प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस साल ३ मार्च को संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति महोदय के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए जब संसदीय बहस में हस्तक्षेप किया तो वे कहीं से भी फासिस्ट ,साम्प्रदायिक और अहंकारी नजर नहीं आ रहे थे। उन्होंने अपनी एनडीए सरकार की विहंगम कार्ययोजनाओं पर देश की जनता और विपक्ष का ध्यान आकर्षित करने की पुरजोर कोशिश की । अपना विस्तृत पक्ष शालीनता से प्रस्तुत करते हुए उन्होंने नेहरू, इंदिरा और राजीव को भी ससम्मान उद्धृत किया। मोदी जी ने राहुल गांधी तथा अन्य विपक्षी नेताओं के आक्रामक और तीखे हमलों का जबाब भी अपनी परम्परागत आक्रामक शैली से कुछ हटकर बड़ी शालीनता से ही दिया। उनके इस भाषण की विषय वस्तु के केंद्र में - बढ़ती जा रही अफसरशाही और घटती जा रही 'संसदीय गरिमा' भी चिंतनीय विषय परिलक्षित हुए। उन्होंने पक्ष-विपक्ष के नेताओं की आपसी तूँ -तूँ , मैं-मैं के बरक्स वैयक्तिक और आपसी सौहाद्र पर काफी जोर दिया। उन्होंने दुहराया कि ''दलीय स्वार्थ और भृष्ट अफसरशाही इस संसदीय लोकतंत्र के लिए घातक है।''। देश और दुनिया के जो लोग राष्ट्रीय परिदृश्य की इन घटनाओं पर पैनी नजर रखते होंगे ,उन्हें मोदीजी के इस 'महाबोधिसत्व' अवतार पर कुछ अचरज अवश्य हुआ होगा। मोदीजी के बहुतेरे आलोचक भी एक दूसरे से पूंछ रहे होंगे कि कहीं ये मोदी जी का तात्कालिक -क्षणिक श्मशान वैराग्य तो नहीं है ?
यदि है भी तो मोदी जी का यह काल्पनिक या आभासी श्मशान वैराग्य अकारण भी नहीं है। जबसे वे केंद्र की सत्ता में आये हैं ,उन्होंने खुद कोई ऐंसा वयान नहीं दिया कि साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने या जातीय उन्माद फैलाने का उन पर कोई सीधा-सीधा आरोप लगाया जा सके। बिहार विधान सभा चुनाव में भी उन्होंने केवल आर्थिक मुद्दों और विकास - सुशासन पर ही अपनी बात रखी थी। लेकिन भागवत जी के आरक्षण संबधी बयान और संघ के अन्य ढपोरशंखियों के बयानों को लालू ले उड़े। लालू और मण्डलवालों ने उसी आधार पर बिहार में मोदी जी को असफल कर दिया। वेशक जैसा बिहार चुनाव के दौरान 'संघ' भाइयों ने मोदी जी के साथ किया था वैसा ही आत्मघाती काम उनके कुछ संकीर्ण समर्थक अभी भी किये जा रहे हैं। उन्ही के कारण मोदी जी पर यह आरोप भी चस्पा है कि वे इन क्रिटिकल मामलों में सदा मौन धारण कर लेते हैं। कुछ ऐंसे आरोप भी लगे हैं कि मोदी जी रोमन सम्राट नीरो की तरह हैं जो रोम के जलने पर भी निश्चिन्त होकर बांसुरी बजाये जा रहा था । मोदी जी ने जब संसद में स्पष्ट तौर पर अफसरशाही पर नितांत उत्तरदायित्व हीनता का आरोप लगाया तो समझदार लोगों को अंदर की थाह पाने में देर नहीं लगी। ''दलीय स्वार्थ ,और अफसरशाही संसदीय लोकतंत्र के लिए घातक है।'' यह सूक्त वाक्य राजीव गांधी का है जो मोदी जी ने राहुल को नसीहत देने की मंशा से संसद में दुहराया।
मोदी जी ने उक्त वाक्य दो कारणों से दुहराया। एक तो राहुल गांधी ने उन्हें एक दिन पहले संसद में घेरने की कोशिश की ,और दूसरी वजह यह कि पूर्व एसआईटी जांच प्रमुख रहे सतीश वर्मा ने मोदी जी के गुजरात वाले स्याह अतीत को उकेरने की कोशिश की है। इशरत जहाँ एनकाउंटर केश में संलग्न लोगों की सूची में अफसरों की पूरी की पूरी फ़ौज शामिल है। और इन अंटाग़ाफ़िल चालाक अफसरों ने अपनी खाल बचाने के लिए यूपीए के राज में मोदी जी को संदेहास्पद बनवा दिया था। उनमें से कुछ तो रिटायर होने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। ये अधिकारी इशरत जहाँ एनकाउंटर केश में नए-नए खुलासे कर रहे हैं। गृह मंत्रालय के रिटायर्ड सेक्रेटरी आरवीएस मणि ने जब अपने एसआईटी अफसर सतीश वर्मा व तत्कालीन ग्रह मंत्री चिदंबरम पर आरोप लगाया की इन लोगों के दबाव में रिपोर्ट बदली गई तो पूर्व एसआईटी जांच प्रमुख सतीश वर्मा ने इशरत जहाँ को निर्दोष ठहराते हुए न केवल ततकलीन मुख्यमंत्री मोदी जी अपितु उनके बगलगीर अफसरों को ही हत्यारा बताया है।अब फिर से सारा मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं ,यही वजह है कि मोदी जी बैचेन हैं। और उन्हें राजीव गांधी का सहअस्तित्व सिद्धांत याद आ रहा है।
जो अफसरशाही मोदी जी के राज में चिदंबरम ,शिंदे या कांग्रेस को भी लपेटने की जुगत में है उसका दूसरा सिरा खुद सत्तारूढ़ नेतत्व को आंच पहुंचाए बिना नहीं रहेगा। हालाँकि इस जांच की आंच कांग्रेस आला कमान पर भी आ सकती है। उधर पूर्व एसआईटी अफसर सतीश वर्मा ने तत्कालीन गुजरात एडमिनिस्ट्रेशन और उच्च अफसरशाही पर इशरत जहाँ के मर्डर का सख्त आरोप लगाया है। प्रकारांतर से वर्मा का यह रहस्योद्घाटन अब मोदी जी की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है। बिना कुछ किये धरे ही मोदी जी को विश्व विरादरी में एक क्रूर शासक सिद्ध किया जा सकता है। इससे आईएसआईएस वालों ,जेश -ऐ- मोहम्मद और पाकपरस्त इस्लामिक आतंकियों को और पाकिस्तान को भी अपने आतंकी गुनाह जस्टीफाई करने का बहाना मिल जाएगा। शायद अपने अफसरों की इन्ही हरकतों से आहत होकर ही मोदी जी किंचित क्षणिक श्मशान वैराग्य को प्राप्त हो गए !और इसीलिये उन्होंने नेहरू जी ,इंदिराजी और राजीव गांधी याद करते हुए देश की संसद में पहली बार अपनी ही भृष्ट अफसरशाही पर हल्ला बोला है । सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि विपक्ष को भी पीएम मोदी जी ने इस भृष्ट और गैरजिम्मेदार अफ़सरशाही से आगाह किया है । और संसद को जनता का सर्वोच्च सत्ता संचालन संस्थान माना है। अर्थात मोदी जी को इल्हाम हो चुका है कि 'संघ' सर्वोच्च नहीं है बल्कि संसद ही सर्वोच्च है।
संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद ज्ञापित करते हुए मोदी जी ने विपक्ष को उकसाने के बजाय,तीखे हमले करने के बजाय सहमति और साहचर्य पर ज्यादा जोर दिया । उनके समर्थक अथवा एनडीए समर्थक तो मोदी जी की इस साफगोई पर अवश्य फ़िदा हुए होंगे ! किन्तु कोई कितना ही मोदी विरोधी हो क्यों न हो वह भी इस राष्ट्रीय चिंता से इंकार नहीं कर सकता कि "संसद में बहस का स्तर गिरता जा रहा है '' ! संसदीय लोकतंत्र का प्रमुख स्तम्भ दरकने को है। प्रधानमंत्री मोदी जी ने विपक्ष और ख़ास तौर से राहुल गांधी के तीखे हमलों का जबाब संयत स्वर और संसदीय गरिमा के साथ दिया। देश के विकास और सुशासन के लिए ,आम सहमति के हितार्थ उन्होंने अपना मंतव्य बार-बार दुहराया। वेशक उनके इस गंभीर भाषण में अनेक प्रश्न अनुत्तरित रह गए किन्तु उन्होंने ऐंसा कुछ नहीं कहा जिससे पक्ष-विपक्ष की दूरियाँ और बढ़ें।
मोदी जी ने अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट को यूपीए से बेहतर बताया तो क्या गलत किया ?यही आरोप तो वामपंथी भी लगा रहे हैं कि एनडीए के बजट में नया कुछ नहीं है। केवल बोतल नईं है और शराब वही पुरानी है !हाँ मोदी जी की एक बड़ी चूक यह कही जा सकती है कि उन्होंने प्रस्तुत बजट को यूपीए से बेहतर मान लिया लिया। बिना जाँचे परखे ही इस बजट को बेहतर मान लिया। जबकि यह बजट यूपीए से 'बेहतर' है या बदतर यह तो उसके लागू होने से पहले केवल अनुमानित ही किया जा सकता है। चूँकि हर बजट अनुमानित ही होता है। अतः यह संसद में पढ़ते ही बेहतर हो गया यह कैसे मानें ? बजट इम्प्लीमेंट होने के बाद साल छः महीना बाद जब बजट की नीतियों के परिणाम सामने होंगे ,तब ही उसे यूपीए से अच्छा या बुरा कहा जा सकता है। मोदी जी ने कुछ और भी बड़ी चूकें की हैं। यह खेद की बात है कि रोहित वेमूला की आत्महत्या , निर्दोष कन्हैया की नाजायज गिरफ्तारी ,कोर्ट में वकीलों -गुंडों द्वारा उसकी पिटाई ,खदु पी एम की अविचारित पाकिस्तान-चाय यात्रा ,अरुणाचल ,नार्थ ईस्ट ,काश्मीर में अस्थिरता ,महँगाई, काला धन ,असहिष्णुता और किसानों की दुर्गति पर कुछ मोदी जी कुछ भी नहीं बोले। लगता है कि उन्हें सिर्फ कार्पोरेट सेक्टर की चिंता है कि संसद में उनके हितार्थ वे जो भी बिल या विधेयक प्रस्तुत करें वह बिना किन्तु-परन्तु के पारित होते रहें ! लेकिन यह अभीष्ट तभी सम्भव है जब मोदी जी विपक्ष के सवालों का भी माकूल जबाब दें। और संघ परिवार के कुछ बिगड़ैल तत्वों द्वारा देश के बुद्धिजीवियों ,साहित्यकारों ,फिल्मकारों,पत्रकारों और छात्र-छात्राओं पर हो रहे अत्याचार बंद हों !
श्रीराम तिवारी