गुरुवार, 18 फ़रवरी 2016

शाखा मृगों की औकात नहीं कि वामपंथ को देशभक्ति सिखायें !


 गनीमत है कि  नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है। और वहां कम्युनिस्ट सत्ता में हैं।  राष्ट्रपति कामरेड विद्या भंडारी हैं. प्रधानमंत्री कामरेड केपी शर्मा 'ओली' हैं ,दिलचस्प बात ये हैं कि दोनों ही ब्राह्मण हैं। लेकिन शुक्र है कि वे धर्मांध नहीं हैं। भारत के  साम्प्रदायिक नेताओं जैसे बगुलाभगत तो वे कदापि नहीं हैं। बल्कि धर्मनिपेक्षता - मानवतावाद ही उनके नीति निर्देशक सिद्धांत  हैं। अति उत्साही दक्ष्णिपंथी भारतीय नेताओं को तो इन मानवीय मूल्यों का अर्थ भी नहीं मालूम। भारत के स्वनामधन्य नेताओं ने तो पड़ोसी देश नेपाल में 'रायता ढोलने' की पूरी कोशिश की है । उन्होंने पशुपतिनाथ को पटाया ,उनके सामने खूब शंख भी बजाया ,भूकम्प के समय खूब सेल्फ़ी खीचीं ,सहायता का ढिंढोरा पीटा ,मधेशियोँ को खूब उकसाया ,किन्तु कुछ  भी काम ना आया !वेशक इस झगडे - झट में कुछ गलती या चूक  नेपाल के अज्ञानी नेताओं की भी रही है।

 खैर जो भी हो !  इतने सारे धतकरम भारत-नेपाल  दुश्मनी के लिए पर्याप्त थे। लोगों ने कयास लगाने शुरू कर दिए थे कि नेपाल तो अब चीन की गोद में बैठ जाएगा। धुंध फैलाई गयी कि नेपाल के प्रधान मंत्री 'ओली 'जी या राष्ट्रपति  विद्या भंडारी जी अब भारत को तबज्जो नहीं देंगे ! चूँकि अभी तक यही  परम्परा थी कि  नेपाल  के राजतन्त्र में जब भी सत्ता परिवर्तन हुआ या लोकतंत्र की स्थापना के बाद वहाँ जब भी  कोई नया प्रधान मंत्री - राष्ट्रपति चुना गया ,तो वह अपना वैदेशिक अभियान भारत से ही प्रारम्भ करता था।  विगत वर्ष नेपाल में जब नया संविधान लागु हुआ और नया कम्युनिस्ट नेतत्व सत्ता में आया तो आशंका व्यक्त की गयी कि वे अपनी पहली विदेश यात्रा बीजिंग से ही शुरुं करेंगे।क्योंकि चीन और नेपाल में एक ही विचारधारा के लोग सत्ता में हैं !

लेकिन  नेपाल के प्रधान मंत्री कामरेड के पी शर्मा 'ओली' ने अपना पहला मित्र  भारत को ही माना है! और चीन जाने के बजाय वे भारत यात्रा पर आये हुए हैं। अब जो स्वयंभू राष्ट्रवादी  लोग भारत में  वामपंथ को 'देशभक्ति का पाठ पढने में जुटे हैं ,वे नेपाल के इन  कम्युनिस्ट नेताओं को क्या कहेंगे ? क्या नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं ने  अपने देश नेपाल को चीन के हाथों सौप दिया ? और यदि वहाँ  हिन्दू राष्ट्र भी था तो क्या उन्होंने अपना सब कुछ  भारत को सौंप दिया था ? भारत के जो  धर्मांध और संगठित लठैत यह प्रचारित करते रहते  हैं कि प्रगति- शील वामपंथी या धर्मनिरपेक्ष लोग वतनपरस्त नहीं होते। उन्हें कामरेड फीदेल कास्त्रो से , कामरेड ,शी  जिन पिंग से नहीं,बल्कि कामरेड के पी शर्मा 'ओली' से यह तस्दीक करना चाहिए कि साम्यवादियों का  'राष्ट्रवाद'  क्या चीज है ? वावले संघियों और शाखा मृगों की औकात नहीं कि वामपंथ और सर्वहारा वर्ग  को देशभक्ति  सिखायें !

 भारत की प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष  आवाम को ,मेहनतकश-सहिष्णु जनता को  ,लोकतान्त्रिक -जनवादी राजनीतिक कतारों को  और वामपंथ को अपने साथी कामरेड के पी शर्मा 'ओली' का तहेदिल से इस्तकबाल करना चाहिए !उम्मीद नही कि  भारत सरकार व  उसके सरपरस्त साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी संगठन इस अवसर का लाभ दोनों देशों की जनता के हित में उठायेंगे! अनावश्यक  'बिघ्न बाधा' उतपन्न करना उनकी फितरत है ! हे ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि देना ! जय  पशुपतिनाथ ! जय महाकाल !  कामरेड  के पी शर्मा ओली को और नेपाल की जनता को ,,,,,लाल सलाम  ! श्रीराम तिवारी !

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