बुधवार, 3 फ़रवरी 2016

भारत में राष्ट्रीय चेतना की दयनीय स्थिति और आतंकवाद की क्रूरतम चुनौती !

बहुत आशाजनक और सकारात्मक खबर है कि पाकिस्तान में पेशावर आर्मी स्कूल के वे बच्चे जो तत्कालीन  आतंकी हमले से  बच गए थे ,जिन्होंने आतंकी  हमले  की बर्बरता को अपनी आँखों से देखा था वे भी आतंकियों से बदला लेना चाहते हैं। लेकिन ये  बच्चे  बन्दूक या बमों  से नहीं बल्कि तालीम से बदला लेना चाहते हैं। उन्हें यह इल्हाम हो चुका है कि हर किस्म की जहालत और आतंकी फितरत को बंदूक से नहीं तालीम से ही रोका जा सकता है। उन्हें मालूम है कि  तालीम न केवल विचार बदल सकती है बल्कि हर किस्म के  अन्याय -उत्पीड़न को रोकने में कारगर  भी हो सकती है।इसलिए ये बच्चे आतंकियों के बच्चों को और आतंकियों को भी तालीम देने के आयाम चुन रहे हैं।  इसी तरह पाकिस्तान के  पख्तुरवा प्रान्त की  'बादशाह खान' यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी अमन के पैगाम ,शांति गीत-शेरो -शायरी और नाटक इत्यादि विधाओं के माध्यम से उस आतंकवाद से लड़ने की तैयारी में जुट गए  हैं जिस आतंकवाद ने उस यूनिवर्सिटी को विगत दिनों ही लहुलुहान किया है।

असल में पाकिस्तान ,सीरिया ,इराक ,यमन ,सूडान ,अफगानिस्तान ,फिलिस्तीन और तमाम इस्लामिक संसार में जितना ,जो भी हो रहा है उसके साथ  मजहब भी दौड़ रहा है या दौड़ाया जा रहा है। दरसल जो बन्दूक उठाकर मजहब की बात किये जा रहे हैं उन्हें उस मजहब का ज्ञान ही  नहीं  है। आर्मी स्कूल के बच्चे  इन आतंकियों और  कटटरपंथी कठमुल्लाओं को याद  दिलाएँगे कि मुहम्मद [सल्ल]  हुजूर सल्लाहो आलेहि  वसल्ल्म का फरमान  क्या है ? उनके दौर में भी जब  दीनी जेहादी जंग जीत के बाद काफिरों को बंदी बनाकर लाते थे तो उनमे बहुत से  आलिम यानी टीचर भी हुआ करते थे। उन्हें कभी कोई सजा नहीं दी गयी बल्कि उनसे कहा गया ''तुम हमारी कौम के सभी बच्चों को पढ़ाओ''यही तुम्हारी सजा है। ये इस्लाम की असल तालीम  है कि सब कुछ ''इकरा '' से शुरू होता है ,यानी 'पढ़ो'  से शुरुं  होता है। इसी पढाई और ज्ञानवर्धन ने इस्लाम को बुलंदियों पर पहुँचाया था। इसी ज्ञानमार्ग ने अरबों की कबीलाई जहालत को खत्म किया था। पाकिस्तान आर्मी स्कूल के बच्चे उसी तालीम को अपने आतंकी दुश्मनों के घरों तक पहुँचाने की तैयारी में लगे हैं। आमीन।

काश  कि भारत के कटटरपंथी मुसलमान और कटटरपंथी हिन्दू -सिख भी इस 'ईंट का जबाब पत्थर से' देने की आदिम -जाहिल -कबीलाई परम्परा से बाहर आ पाते !इनकी जहालत के कारण  पूरा देश अशांत है। धार [एमपी]के  भोजशाला बनाम मस्जिद विवाद,अयोध्या के राम लला मंदिर बनाम बावरी मस्जिद विवाद तो इतिहास की भयंकर भूलों के प्रमाण हैं।  उन पर साम्प्रदायिक उन्माद फैलाकर राजनीति करना  और आतंकियों को उकसाना किसी के हित में  नहीं। जब तक देश के अंदर अमन न हो , जब तक देश की सीमाओं पर शांति न हो ,तब तक कैंसा विकास ? और किसका विकास ?  चूँकि धूर्त और दवंग लोग लोकतंत्र का नाजायज दुरूपयोग किये जा रहे हैं  ,गरीब और दमित सर्वहारा वर्ग एवं राष्ट्र भी असुरक्षित है ,सब तरफ भृष्टाचार और राजनैतिक पाखंड है ,हर तरफ  मजहबी उन्माद है ,और आतंकवादी नासूर बढ़ता ही जा रहा है।  तो  इसकी शल्य क्रिया के लिए कोई वैकल्पिक  शासन व्यवस्था आजमाने में हर्ज क्या है ? इस संकटकाल में  लोकतंत्र को कुछ समय के लिए स्थगित  किया ही जाना चाहिए।  वैसे भी संसद में केवल कुकरहाव ही  बचा है। गणतंत्र अब धनतंत्र और घूसतंत्र में घुस चुका है। अब वक्त आ गया है कि आपातकाल लागू करने की  मांग  देशभक्त जनता  खुद करे।

  यह सर्वमान्य सिद्धांत है कि 'जब मनुष्य का स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन हो तभी वह सांसारिक प्रतिस्पर्धा में सर्वाइव कर सकता है।' यही आधारभूत सिद्धांत किसी समाज विशेष और राष्ट्र विशेष के लिए भी लागू किया जा सकता है। यदि कोई राष्ट्र सदियों तक गुलाम रहां हो ! जिसे शहीदों की अथक कुर्बानी से आजादी मिल पाई हो ! जिस राष्ट्र की सीमाऐं लगातार  असुरक्षित हों ! जिस राष्ट्र के सरमायेदार पूँजीपति और कार्पोरेट लाबी तथा बड़े जमींदार निहायत स्वार्थी हों ! जिस देश में संविधानिक व्यवस्था तंत्र से बाहर अनेक पद लोलुप व्यक्ति और  कुछ  अलोकतांत्रिक  संगठन  सत्ता के दलाल बन गए  हों !  जिस राष्ट्र के मंत्री -अफसर ,तमाम  सार्वजनिक और सरकारी महकमें या  दफ्तर -भृष्टाचार में आकंठ डूबे हों ! जिस राष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी और विपक्ष समेत सभी राजनैतिक पार्टियाँ -आतंकवाद के सवाल पर कोई  ठोस  नीति तय करने में असमर्थ  हों ! जिस देश के कर्णधार  देश की  संसद में  आतंकी हमलों के बरक्स एक दिन  भी गंभीर चर्चा नहीं कर सकें  हों ! जिस राष्ट्र के मजहबी -जातीय  नेता राजनैतिक ध्रुवीकरण  से वोटों की फसल उगाते रहे हों ,अस्मिता के नाम पर  केवल देश के समाजों को लड़ाने-भिड़ाने में जुटे रहते हों ! और जिस देश की अधिकांस जनता राजनैतिक चेतना से शून्य हो ! उस देश के लोगों को ईश्वर- अल्लाह या गॉड  सद्बुद्धि दे ! उस देश को शायद 'श्री राम जी 'ही बचा सकते  हैं।  जो लोग खुद पर भरोसा नहीं करते ,वे रामभरोसे हुआ करते  हैं। जिन्हे श्री राम जी पर भी भरोसा  नहीं वे  'राम लला 'को 'मंदिर निर्माण' की रिश्वत देने का प्लान करते हैं। कि हे राम जी  हमें सत्ता दिलवा दो !  तो हम आपका  एक ठौ मंदिर ज रूर बनवा देंगें। अब सत्ता तो बार-बार फिर भी मिल जाया करती है किन्तु मंदिर सिर्फ घोषणाओं  में बनता रहता है। इस  तरह वोट और राजनीति की ठग विद्या में  माहिर लोग वैश्विक आतंकवाद से  देश की रक्षा कदापि नहीं  कर सकते। क्योंकि उनका अस्तित्व  ही असत्य पर आधारित है।

जिस देश का युवावर्ग  क्रांतिकारियों और शहीदों के विचारों को जानने-समझने ,उनका साहित्य पढ़ने के बजाय या तो कॅरियर निर्माण में जुटा है या फिर फेस बुक और वॉट्सएप  इत्यादि पर आलतू -फ़ालतू चेटिंग में खोया हो ! जिस देश का युवा वर्ग केवल संचार माध्यमों  के दुरूपयोग में या केवल अपनी सेल्फ़ी -फोटो चस्पा करने में आत्ममुग्ध  हो ! जिस देश की जनता परिवारवादी या ढपोरशंखी नेताओं के झांसे में बार-बार आ जाया करती हो, जिस देश को कभी दाऊद के गुर्गे खोखला करते रहे हों , जिस देश को हाफिज सईद, अजहर मसूद और जैश -ए -मुहम्मद के गुर्गे ही लहूलुहान कर जाते हों , उस देश के नेतत्व  ने तमाम  आतंकी आफतों  से मुकाबले के लिए और आईएसआईएस जैसी कुख्यात  ताकत से  निपटने के लिए  क्या तैयारियाँ  की हैं ? किसी को कुछ  नहीं मालूम। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को  ही मालूम हो तो  मुझे  तसल्ली  होती !  मेरी तुच्छ बुद्धि अनुसार  - आतंकवाद की चुनौतियाँ  सुनामी जैसी  बिकराल हैं। और उनसे निपटने की हमारी तैयारी मछुवारे के डोंगे जैसी है। दरसल राष्ट्रीय चेतना की  भारत में  घोर दयनीय  स्थिति हैं। जबकि मजहबी आतंकवाद से भारत का ह्रदय छलनी हो रहा है। हालाँकि मध्य एशिया के इस्लामिक द्वन्द से भारत का कोई लेना -देना नहीं है। क्योंकि ये तो पश्चिमी  सभ्यताओं के संघर्ष की नाजायज ओलाद है ! जबकि भारत भूमि  करुणा ,अहिंसा व  इंसानियत के  लिए मशहूर है । लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद उसके अलंकार हैं।आईएसआईएस वाले जब फ़्रांस  ,  अमेरिका, रूस, और ब्रिटेन को ही  कुछ नहीं समझते। तो हमारे भारत भाग्य विधाता उनसे कैसे निपटेंगे ?

मेरी समझ के अनुसार आईएसआईएस की  विध्वंशक और हिंसक ताकत के चार मुख्य स्त्रोत या कारण हैं।

 पहला- कारण यह है कि आईएसआईएस को अलकायदा की काट के रूप में पैदा करने -पालने-पोषने वाले,उन्हें हथियार मुहैया कराने वाले अमेरिका सहित सारे नाटो देश तथा सभी हथियार उत्पादक लाबियाँ इस आतंकी औलाद के नाजायज बाप  हैं। जो इतने खून खराबे के उपरान्त भी किंचित अपराध बोध से पीड़ित नहीं हैं।

दूसरा- महत्वपूर्ण कारण यह है कि जिसने अपने आप को सच्चे इस्लाम का स्वयंभू  विश्व खलीफा या रहनुमा घोषित कर रखा  है ,वह इस्लाम का स्वयंभू खलीफा बगदादी अपने लड़ाकों को आधुनिकतम हथियार एवं सुंदर- जवान लड़कियों की अबाध आपूर्ति का भरपूर  इंतजाम  रखता है।वैचारिक सोच का वहाँ  कोई काम नहीं !

 तीसरा- कारण है सीरिया ,इराक के अधिकांस तेल  [पेट्रोलियम] क्षेत्र पर आईएसआईएस  का नाजायज कब्ज़ा।

 चौथा- और अंतिम कारण है आईएसआईएस और उसके अनुषंगी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के द्वारा  आधुनिक सूचना -संचार तकनीक ,जीएसएम /जीपीएस सर्विस का बढ़ - चढ़कर इस्तेमाल किया जा रहा है । इसके अलावा आधुनिक मारक तकनीकी शस्त्र क्षमता , उन्नत तकनीकी का इस्तेमाल भी आतंकी हमलों में खूब हो रहा है। यही वजह है कि न केवल अमेरिका ,फ़्रांस ,इंग्लैंड बल्कि भारत में आतंकी हमलों की पूर्व सूचना होने पर भी उन्हें रोका नहीं जा सका  है। शार्लि एब्दों हो या पठानकोट एयरबेस  हर  नापाक हमले में आतंकी ही भारी पड़ रहे हैं।  फ़्रांस पर  हुए हमलों में और पाकिस्तान के पेशावर आर्मी स्कूल तथा  पाकिस्तान के पख्तुरखा प्रान्त स्थित चार सद्दा की बाच्छा यूनिवर्सिटी में पाकिस्तानी छात्रों -प्रोफेसरों  पर किये गए भयानक हमलों में आतंकियों ने  पारम्परिक प्रशिक्षित फौज और सुरक्षा बलों  को  खूब छकाया। ढेरों कुर्बानियाँ देकर भी आर्मी वाले कहीं किसी  आतंकी को जिंदा नहीं पकड़  पाये। मुंबई हमलों में शामिल आतंकी कसाव  जैसे जीवित अपवाद कम ही होंगे !  जिसे बाद में भारतीय न्याय और कानून व्यवस्था ने फांसी की सजा सुनाई ।   

कुख्यात आतंकी संगठन आईएसआईएस द्वारा  ब्रिटेन, अमेरिका, रूस ,फ़्रांस और भारत को निरंतर धमकी दी है कि आइन्दा और भी ज्यादा  खतरनाक हमलों  को भुगतने के लिए तैयार रहें। उनका कुटिल  इरादा किसी से छिपा नहीं है कि वे क्या चाहते हैं ? उन्होंने ब्रिटेन और भारत पर आधुनिकतम उन्नत  रासायनिक हथियारों से बर्बर हमलों के मंसूबे बनाये हैं। उनका कथन है कि इससे  काफिरों [!]की भावी पीढ़ियों अपंग होने लगेंगीं ।और जेनेटिक रूप से इस काफ़िर दुनिया के भावी  बच्चों के  बाल भी सफेद होने लग जाएँगे । खबर तो यह भी है कि आईएसआईएस ने कुछ भारतीय  नेताओं को  व्यक्तिगत टारगेट किया है। और आईएसआईएस ने पाकपरस्त आतंकियों के मार्फत भारत में आतंकी हमलों की खुली  धमकी दी है। इस खतरनाक  चुनौती के संदर्भ  में किसी भी सचेतन भारतीय के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि  ततसम्बन्धी  हमारी सुरक्षात्मक तैयारियाँ क्या हैं ? और हमारा गुनाह क्या है ?हमने आईएसआईएस और पाकिस्तानी आतंकियों का क्या बिगाड़ा ?

वेशक  भारतीय मीडिया ने आतंकी  खतरे को  कभी कमतर नहीं आंका। किन्तु देश के अधिकांस  कूप मंडूक  राजनैतिक  प्राणियों अर्थात दकियानूसी नेताओं ने इसे हमेशा नजअंदाज किया है। देश के जमींदार वर्ग और मुनाफाखोर -जमाखोर पूंजीपतिवर्ग को इससे कोई फर्क  नहीं पड़ता कि इस देश पर किसका शासन है ? चाहे-यूपीए हो या एनडीए ,चाहे अंग्रेज हों या मराठे ,चाहे मुगल हों या तुर्क-पठान -धन्ना सेठों को कोई फर्क  नहीं पड़ता।  केवल भारतीय फौज के चंद  रिटायर अफसर और कुछ  देशभक्त वयोब्रद्ध  सचेतन वर्ग को  ही इस आतंकी खुरापात की फ़िक्र है। क्योंकि वे  नागासाकी और हिरोशिमा जैसे  हमलों से परिचित हैं इसलिए वे इस  पर चिंतित  है। बाकी किसी भी  राजनैतिक दल का एजेंडा उठाकर पढ़ लो ,उसमें आईएसआईएस का नाम भी ढूंढे से नहीं मिलेगा।सहज प्रश्न है कि  क्या उन्हें  इस बाबत कोई फ़िक्र नहीं ? वे आईएसआईएस की किंचित आलोचना से क्यों  डरते हैं ? कुछ  प्रगतिशील और  जनवादी विचारक लोग  असहिष्णुता पर ,असफल लोगों की आत्महत्याओं पर और परदे के पीछे से  सामानांतर  सरकार  चलाने वाले  संघ  पर खूब आलोचनात्मंक निबंध लिखते रहते हैं. में उनके इस सुकृत्य की सराहना करता हूँ। किन्तु  इस्लामिक आतंकवाद और उसके वैश्विक सरगना आईएसआईएस पर कोई अंगुली ही न उठाये या  विरोध के दो शब्द भी न बोलें तो उस की देशभक्ति पर सवाल तो अवश्य उठेगा ! चाहे वो कितना भी क्रान्तिकारी ,जनवादी, धर्मनिरपेक्षतावादी, तर्कवादी विचारक ही क्यों न हो !

आईएसआईएस जैसे हिंसक आतंकी संगठन जब अमेरिका ,फ़्रांस और ब्रिटेन  को ही कुछ नहीं समझते तो इस भारत देश का अब केवल अल्लाह ही मालिक है ! जब आईएसआईएस के पाकिस्तानी दुमछल्ले - छुटभैये मुठ्ठी  भर आतंकी ही पठानकोट एयरबेस को केप्चर कर सकते हैं ,जब दो आतंकी  उधमपुर, बारामूला में  हत्याएं कर सकते हैं ,जब सिमी के दो-चार आतंकी  ही खंडवा,धार, बड़वानी ,खरगोन ,सतना और पूरे मालवा -बिंध्य क्षेत्र में कोहराम मचा सकते हैं ,जब दो-चार आतंकी कोलकाता और हैदराबाद में कोहराम मचा सकते हैं ,जब एक- दो अटकल -भटकल-सटकल  'भाईजान' से आतंकी बनकर  बंगलुरू  से लेकर दिल्ली तक धमाल आमचा सकते हैं , तो उनके मजहबी  सर्वशक्तिमान  आका -आईएसआईएस वाले कहाँ -क्या नहीं कर सकते ? जिनके एक इशारे पर सउदी अरब और पाकिस्तान  के नेता उनके सामने ओंधे हो जाते हैं ,वह आदमखोर आतंकी संगठन रूप और आकार में कितना  भयानक होगा ? और  सारवस्तु  के रूप में वह उससे भी ज्यादा  महा भयावह हो सकता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 'जीका' वायरस को वैश्विक आपातकाल करार दिया  है ! जबकि सारी दुनिया पहले से ही आईएसआईएस नामक 'आतंकी वायरस' से  ग्रस्त है। इधर भारत -पाकिस्तान की तकरार निरंतर  बरकरार है । जिसके मूल में पाक प्रशिक्षित आतंकियों का भारत में हिंसक अभियान रहा  है। पाकिस्तान-बांग्ला देश और नेपाल की सीमाओं से आतंकियों की भारत में अवैध घुसपैठ पर भारत के रक्षा प्रबंधन का अभी भी कोई कारगर नियंत्रण नहीं हो पाया है। वैसे भी क्या अवैध और क्या वैध ? दुनिया के किसी भी मजहबी -आतंकवादी  के  लिए पाकिस्तान एक नखलिस्तान है। उन्हें  भारत में प्रवेश के लिए ,भारत का वीसा- पासपोर्ट आसानी से उपलब्ध कराये  जा सकते हैं। क्योंकि इन  मजहबी आतंकियों के गुप्त हवाला एजेंट और तश्कर-स्मगलर  भारत के हर कस्बे ,हर शहर और हर महानगर में इफरात से फैले हुए हैं। इनमें कुछ नेता ,अफसर  और जन -प्रतिनिधि भी हो सकते हैं। इस्लामिक आतंकी  सीरिया ,ईराक ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान बांग्लादेश और नेपाल  कहीं से भी सिर्फ एक कॉड सन्देश  पर भारत भर में छिपे बैठे उनके गुर्गों को काम पर कागा सकते हैं। आतंकियों की मदद करने वाले सिर्फ मुसलमान ही नहीं होते ,बल्कि वतन के इन गद्दारों में वे भी हो सकते हैं जो रिश्वत लेकर या सूरा-सुंदरी के जाल में फंसकर  हर  अनैतिक काम करने वाले होते हैं।  इनमें हिन्दू -सवर्ण  -दलित -मुस्लिम  कोई भी हो सकता है। इनमें चपरासी,बाबू ,अफसर ,नेता और मंत्री  कोई भी हो सकते हैं। यह भारत का तलछट समाज ही आतंकवाद और अन्य हमलों का  कारण बन जाया करता है।

जब -कभी भारतीय पुलिस या ख़ुफ़िया तंत्र को दो-चार आतंकी  पकड़ पाने में सफलता  मिलती है तो  मजहबी  नेताओं को बड़ी तकलीफ होने लगती है। पाकिस्तान का मीडिया 'सबूत-सबूत' चिल्लाने  लगता है। जब कभी इस्लामिक कटटरवादी पाकिस्तान की किसी मस्जिद पर ,बच्चों के स्कूल पर या किसी यूनिवर्सिटी पर बर्बर  जानलेवा  हमला करते हैं तो पाकिस्तान का मीडिया और सरकार बड़ी बेहयाई से उसका दोष भारत पर मढ़ने लग जाते हैं। इधर भारत के भी कुछ स्वयंभू अक्लमंद   इस मुद्दे पर बगलें झाँकने लगते हैं। वे नापाक आतंकी फितरत पर भी अपने ही प्रधान मंत्री को कसूरवार बताने लग जाते हैं।  देश की जनता ने जिसे बहुमत से चुना है  और जो  आतंकी हमलों के वावजूद पाकिस्तान से मित्रभाव का आकांक्षी है ,उस पर  नितांत झूंठा आरोप लगाना न्यायसंगत नहीं हैं। जो आतंकी  हमलावरों का  पता -ठिकाना  सब जानते हैं, उन गीलानी,ओबीसी को कुछ नहीं कहते। इसके अलावा भारत में छिपे गद्दारों  को पाकिस्तानी कठमुल्लों और फ़ौज का भी  सहयोग हासिल है। अतः  उन आतंकियों को मटन -बिरयानी का इंतजाम  भारत में भी उपलब्ध है। उधर पाकिस्तान सरकार भी  बजरिये [IS] आतंकियों की देखभाल किया करती है। भारत पर हर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में हाफिज सईद ,अजहर मसूद ,दाऊद  इब्राहीम और जेश -ए -मुहम्मद के आतंकी खूब  जश्न मनाया करते हैं। इधर  भारत के कुछ लोग जाति  के आरक्षण की मांग के लिए रेल की पटरियां उखाड़नेमें लगे यहीं।  कुछ छात्र भी बसें जलाने  और स्कूल और कालेजों को  राजनीति का अखाडा  बनाने में जुटे हैं। श्रीराम तिवारी         

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