अंग्रेजों की जै -जैकार करने वाली विचारधारा के आधुनिक उत्तराधिकारी अब आज के स्वयंभू राष्ट्रवादी स्थापित हो चुके हैं। तमाम दुश्वारियों और चूकों के वावजूद भारत की अधिसंख्य जनता का अभिमत या रुझान फिलहाल तो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के साथ है। क्यों है ? कैसे है ? कितने समय तक रहेगा ? यह अलग विमर्श का विषय है। हालाँकि मोदी सरकार को यह सुखद सुअवसर कांग्रेस और अन्य गैर भाजपा दलों की असीम अनुकम्पा से ही नसीब हुआ है। चूँकि कांग्रेस ने बाकी सभी दलों को अलग-अलग मौकों पर कभी-न-कभी धोखा ही दिया है, इसलिए कांग्रेस के प्रति अविश्वाश ने 'संघ परिवार' से बाहर की संसदीय राजनीती में बेजा फूट का स्थाई इंतजाम कर रखा है। इसी का परिणाम है कि बहरहाल तो भाजपा स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में है। वेशक प्रधान मंत्री मोदी जी ने कांग्रेस मुक्त भारत का संकल्प बहुत बार दुहराया ,किन्तु उन्होंने कभी भी वामपंथ या प्रगतिशील तबके पर कोई आक्रामक बयान कभी नहीं दिया। वे त्रिपुरा,बंगाल या केरल जाकर भी सीपीएम या वामपंथ के प्रति चुप ही रहे। जबकि कांग्रेस मुक्त भारत का नारा उन्होंने खूब लगाया।
भले ही मोदी जी को अमेरिका ने अतीत में बीजा न दिया हो और अब ओबामा जी उन्हें शांति दूत मानने लगें, किन्तु भारत के कुछ संकीर्ण और रूढ़िवादी विचारकों ने मोदी जी को अभी तक माफ़ नहीं किया। कुछ तो कत्ल भी कर दिए गए किन्तु चीं नहीं बोले। लेकिन यह गफलत दोनों ध्रुवों के कठमुल्लेपन की है। आजादी के बाद के लगभग ५०-६० सालाना दौर में कांग्रेस की हिमालयी भूलों -असफलताओं और उसके भृष्ट नेताओं के धतकर्मों की बदौलत भारतीय सियासत के नाई का सत्ता रुपी उस्तरा जब साम्प्रदायिक बंदरों के हाथ लगा तो भारत का धर्मनिरपेक्ष -प्रगतिशील सचेतन वर्ग चिंतित हो उठा। चूँकि हर किस्म की साम्प्रदायिकता , मजहबी पाखंड और जातीयवादी संघर्ष लोकतंत्र की सेहत के शत्रु हैं ,इसलिए उनकी आलोचना और चिंता जायज भी है.किन्तु क्रांतिकारी सोच के आलोचकों को यह नहीं भूलना चाहिये कि लोकतांत्रिक जनादेश का सम्मान किये बिना वे भारत में लोकतंत्र को अक्षुण नहीं रख सकेंगे !
पी एम मोदी जी या एनडीए सरकार पर निरंतर वैचारिक हमला करने वाले अक्ल के दुश्मनों को समझना चाहिए कि यदि वे कांग्रेस की ओर से लड़ रहे हैं तो फिर भी कुछ तो ठीक है। किन्तु यदि वे समझते हैं की वे वामपंथ की ओर से या भारत के मेहनतकशों -मजूरों-किसानों और सर्वहारा वर्ग की ओर से या धर्मनिरपेक्षता की ओर से मोदी सरकार की आलोचना में लींन हैं तो वे महामूर्ख हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि ४० साल तक बंगाल में ,कामरेड ज्योति वसु जैसे महानतम क्रांतिकारी के नेतत्व में और कामरेड एकेजी और ईएमएस जैसे महानतम विद्वान क्रांतिकारीयों के नेतत्व में केरल में और आंध्र समेत देश के सभी प्रांतों में बहादुर कामरेडों ने -संयुक्त वामपंथ ने मजदूरों ,मुसलमानों ,स्त्रियों और दलितों -पिछड़ों की जबरजस्त लड़ाई लड़ी है।लेकिन ये सभी शोषित वर्गके लोग - जातीय,मजहबी और पूँजीवादी राजनीति के चूल्हे का ईधन बन कर रहे गए हैं ।
वामपंथ ने जिन वर्गों की चिंता में अपनी तीन-तीन पीढियाँ स्वाहा कर दीं। उस वर्ग की आधुनिक पीढ़ी के अभद्र लौंढे -लपाडे हत्या -बलात्कार और अन्य आपराधिक कुकर्मों में शामिल होकर जेल की रोटियाँ तोड़ रहे हैं। अधिकांस निम्न मध्यवर्गीय युवा क्रांति-भ्रान्ति में यकीन नहीं रखते। वे तो उद्यमी केरियरिस्ट हो चले हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता है और अमेरिका,कनाडा,यूके ,सिंगापुर या आस्ट्रेलिया उनका डेस्टनी है। जो यह सब नहीं कर सकते वे चोरी -चकारी के फेर में होते हैं। ये लोग पूँजीवादी राजनैतिक दलों के भी काम आते हैं। कभी-कभी अपने हाथों में भगवा - हरा धवज उठाये हुए मंदिर-मस्जिद करते हैं। कुछ अल्लाहो -अकबर और कुछ 'हर-हर मोदी' करने लगते हैं।ये लोग वामपंथ का मजाक बनाने या उसे कुचलने में भी काम आते हैं।
आधुनिक बंगाल का बुर्जुवा युवा वर्ग ममता के आपराधिक कांडों और उसके फ़ूहड़ नाटकों में भांडों की भूमिका में हैं। केरल में हिन्दू ,मुस्लिम,ईसाई विमर्श ने आधुनिक युवा शक्ति को तार-तार कर दिया है। आज के बूढ़े-पुराने वामपंथी डोकरों के पास तो आधुनिक तरुणाई पास भी नहीं फटकती। वर्तमान वामपंथ के साथ जो बचे-खुचे जन संगठन -ट्रेड यूनियंस हैं ,जो शुभचिंतक हैं , बुद्धिजीवी -विचारक-साहित्यकार हैं उनमें भी अधिकांस वैचारिक रूप से निहायत ही लकीर के फ़कीर हैं। वे अपने आप को आधुनिक वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप अभी तक अद्द्तन ही नहीं कर पाये हैं। मजहबी -आतंकवाद को कमतर आंकने अथवा उसकी उपेक्षा करने ,नरेंद्र मोदी सरकार के 'सबका विकास -सबका साथ '' का मजाक उड़ाने तथा 'संघ परिवार' के खिलाफ 'गोळवलकर कालीन 'आरोप जड़ते रहने की अवैज्ञानिक प्रवृति ने - आधुनिक वामपंथ की विश्वसनीय तार्किकता और विचार शक्ति को भौंथरा बना डाला है। सड़क से संसद तक जन आंदोलन चलाने के वावजूद यदि आधुनिक वामपंथ भारतीय राजनीति के एरिना से लगभग बाहर है और उसके संघर्षों का फल कांग्रेस को मिलता है तो इसमें किसका दोष है ? क्या भारत में वामपंथ के इस पराभव के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है ? हमारे पास तसल्ली के लिए या तो सर्वकालिक मार्क्सवादी-लेनिनवादी वैज्ञानिक विचारधारा का अभिमान है ,या अतीत के स्वर्णिम संघर्षों का इतिहास है ,या सिर्फ त्रिपुरा की सरकार शेष बची है। आधुनिक सूचना -संचार माध्यमों में यदि वाम के समर्थक राई बराबर है तो साम्प्रदायिक और जातीयतावादी विचार अभिव्यक्ति हिमालय जैसी हो चुकी है । फेसबुक, वॉट्सएप, ट्विटर, इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया पर घिसे-पिटे वीभत्स खटराग ही लाइक किये जा रहे हैं। वामपंथ की कमजोर हालात के कारण भारत में आधुनिक युवा पीढ़ी दिशाहीन हो चुकी है। इसे उन्मत्त पूँजीवाद, कटटर मजहबी आतंकवाद और जातीय संघर्ष से अलग-थलग करना होगा। तभी उनमें वर्गीय चेतना और वैज्ञानिक सोच के संचरण को सम्भव बनाया जा सकता है। इसके अलावा अन्य विकल्प वामपंथ के लिए भी मौजूं नहीं है। इस चालू ढर्रे से भारतीय युवाओं को किसी धर्मनिपेक्ष -क्रांतिकारी विचारधारा से लेस नहीं किया जा सकता।
वामपंथ की व्यापक एकता और लगातार मेहनत मशक्क्त के बाद त्रिवेन्द्रम , दिल्ली ,कोलकाता में वामपंथ की रैली तो धांसू आयोजित हो जाती है। रैली में १०-२० लाख लोग शामिल हो जायेंगे। किन्तु जब लोकसभा या विधान सभा के चुनाव होंगे तो वे लोग जो वामपंथ की संयुक्त रैली में शामिल होते हैं ,हड़ताल में शामिल होते हैं ,वे चुनाव के मौके पर हिन्दू,मुस्लिम ,दलित ईसाई और पिछड़े बन जाते हैं । वामपंथी विचारकों ,लेखकों और नेताओं को बड़ी गलत फहमी है कि वे मोदी सरकार की या 'संघ परिवार' की आलोचना करके भारत में नई क्रांति कर देंगे ! या किसी महान सर्वहारा क्रांति की पूर्व पीठिका तैयार कर सकेंगे । बल्कि मेरा अभिमत है कि वाम पंथी कतारों का यह बौद्धिक विमर्श और आंदोलनात्मक संघर्ष आइन्दा कांग्रेस की वापिसी के अवश्य काम आएगा। वामपंथ को महज कांग्रेस की वापसी के लिए ही मोदी सरकार की आलोचना या संघर्ष ही करते रहना है तो फिर क्रांतियों की असफलताओं के इतिहास क्यों नहीं लिखे जाएंगे ?
वेशक भारत में सिर्फ वामपंथ ने ही फासिज्म और साम्प्रदायिकता की ईमानदाराना मुखालफत की है। जबकि कांग्रेस इसका हमेशा राजनैतिक फायदा उठाती रही है। क्योंकि संसदीय राजनीति में वामपंथ अपनी संघर्ष को महज वोट की राजनीति तक सीमित नहीं रखता ,वह मेहनतकश जनता के फौरी और दूरगामी सरोकारों के बरक्स अपने हिस्से का संघर्ष पूरी ईमानदारी से करता है। जबकि कांग्रेस का उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्ति ही रही है। उधर भाजपा और मय 'संघ परिवार'का उदेश्य इससे भी खतरनाक है। एक -उन्हें भारतीय अस्मिता वापिस चाहिए और दूसरा- इस मकसद की पूर्ती के के लिए उन्हें राज्य सत्ता भी चाहिए। अब यदि वामपंथ और उसके अनुषंगी संगठन अपने संघर्षों और वैचारिक आघातों से मोदी सरकार को किंचित बिहारी नेताओं की तरह रुसवा करते रहते हैं तो उसका लाभ वामपंथ या मजदूर वर्ग को नहीं बल्कि कांग्रेस को ही मिलेगा। आइन्दा भारत में जब भी सत्ता परिवर्तन होगा केंद्र में कांग्रेस की या उसके गठबंधन की ही सरकार बनेगी। अर्थात देश के वे लोग जो 'मोदी सरकार' 'विरोधी है ,जाने अनजाने कांग्रेस को सत्ता में वापिस लाने के हेतु सावित होंगे। ये एनडीए की मोदी सरकार और संघ के आलोचक- जाने- अनजाने में कांग्रेस के कुराज की वापिसी में सहयोग किये जा रहे हैं। हमारी भावी पीढ़ियाँ ही यह तय करेंगी कि मोदी सरकार और संघ की आलोचना करने वाले क्रांतिकारी विचारक सही थे या भड़भूँजे ! श्रीराम तिवारी
भले ही मोदी जी को अमेरिका ने अतीत में बीजा न दिया हो और अब ओबामा जी उन्हें शांति दूत मानने लगें, किन्तु भारत के कुछ संकीर्ण और रूढ़िवादी विचारकों ने मोदी जी को अभी तक माफ़ नहीं किया। कुछ तो कत्ल भी कर दिए गए किन्तु चीं नहीं बोले। लेकिन यह गफलत दोनों ध्रुवों के कठमुल्लेपन की है। आजादी के बाद के लगभग ५०-६० सालाना दौर में कांग्रेस की हिमालयी भूलों -असफलताओं और उसके भृष्ट नेताओं के धतकर्मों की बदौलत भारतीय सियासत के नाई का सत्ता रुपी उस्तरा जब साम्प्रदायिक बंदरों के हाथ लगा तो भारत का धर्मनिरपेक्ष -प्रगतिशील सचेतन वर्ग चिंतित हो उठा। चूँकि हर किस्म की साम्प्रदायिकता , मजहबी पाखंड और जातीयवादी संघर्ष लोकतंत्र की सेहत के शत्रु हैं ,इसलिए उनकी आलोचना और चिंता जायज भी है.किन्तु क्रांतिकारी सोच के आलोचकों को यह नहीं भूलना चाहिये कि लोकतांत्रिक जनादेश का सम्मान किये बिना वे भारत में लोकतंत्र को अक्षुण नहीं रख सकेंगे !
पी एम मोदी जी या एनडीए सरकार पर निरंतर वैचारिक हमला करने वाले अक्ल के दुश्मनों को समझना चाहिए कि यदि वे कांग्रेस की ओर से लड़ रहे हैं तो फिर भी कुछ तो ठीक है। किन्तु यदि वे समझते हैं की वे वामपंथ की ओर से या भारत के मेहनतकशों -मजूरों-किसानों और सर्वहारा वर्ग की ओर से या धर्मनिरपेक्षता की ओर से मोदी सरकार की आलोचना में लींन हैं तो वे महामूर्ख हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि ४० साल तक बंगाल में ,कामरेड ज्योति वसु जैसे महानतम क्रांतिकारी के नेतत्व में और कामरेड एकेजी और ईएमएस जैसे महानतम विद्वान क्रांतिकारीयों के नेतत्व में केरल में और आंध्र समेत देश के सभी प्रांतों में बहादुर कामरेडों ने -संयुक्त वामपंथ ने मजदूरों ,मुसलमानों ,स्त्रियों और दलितों -पिछड़ों की जबरजस्त लड़ाई लड़ी है।लेकिन ये सभी शोषित वर्गके लोग - जातीय,मजहबी और पूँजीवादी राजनीति के चूल्हे का ईधन बन कर रहे गए हैं ।
वामपंथ ने जिन वर्गों की चिंता में अपनी तीन-तीन पीढियाँ स्वाहा कर दीं। उस वर्ग की आधुनिक पीढ़ी के अभद्र लौंढे -लपाडे हत्या -बलात्कार और अन्य आपराधिक कुकर्मों में शामिल होकर जेल की रोटियाँ तोड़ रहे हैं। अधिकांस निम्न मध्यवर्गीय युवा क्रांति-भ्रान्ति में यकीन नहीं रखते। वे तो उद्यमी केरियरिस्ट हो चले हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता है और अमेरिका,कनाडा,यूके ,सिंगापुर या आस्ट्रेलिया उनका डेस्टनी है। जो यह सब नहीं कर सकते वे चोरी -चकारी के फेर में होते हैं। ये लोग पूँजीवादी राजनैतिक दलों के भी काम आते हैं। कभी-कभी अपने हाथों में भगवा - हरा धवज उठाये हुए मंदिर-मस्जिद करते हैं। कुछ अल्लाहो -अकबर और कुछ 'हर-हर मोदी' करने लगते हैं।ये लोग वामपंथ का मजाक बनाने या उसे कुचलने में भी काम आते हैं।
आधुनिक बंगाल का बुर्जुवा युवा वर्ग ममता के आपराधिक कांडों और उसके फ़ूहड़ नाटकों में भांडों की भूमिका में हैं। केरल में हिन्दू ,मुस्लिम,ईसाई विमर्श ने आधुनिक युवा शक्ति को तार-तार कर दिया है। आज के बूढ़े-पुराने वामपंथी डोकरों के पास तो आधुनिक तरुणाई पास भी नहीं फटकती। वर्तमान वामपंथ के साथ जो बचे-खुचे जन संगठन -ट्रेड यूनियंस हैं ,जो शुभचिंतक हैं , बुद्धिजीवी -विचारक-साहित्यकार हैं उनमें भी अधिकांस वैचारिक रूप से निहायत ही लकीर के फ़कीर हैं। वे अपने आप को आधुनिक वैश्विक परिदृश्य के अनुरूप अभी तक अद्द्तन ही नहीं कर पाये हैं। मजहबी -आतंकवाद को कमतर आंकने अथवा उसकी उपेक्षा करने ,नरेंद्र मोदी सरकार के 'सबका विकास -सबका साथ '' का मजाक उड़ाने तथा 'संघ परिवार' के खिलाफ 'गोळवलकर कालीन 'आरोप जड़ते रहने की अवैज्ञानिक प्रवृति ने - आधुनिक वामपंथ की विश्वसनीय तार्किकता और विचार शक्ति को भौंथरा बना डाला है। सड़क से संसद तक जन आंदोलन चलाने के वावजूद यदि आधुनिक वामपंथ भारतीय राजनीति के एरिना से लगभग बाहर है और उसके संघर्षों का फल कांग्रेस को मिलता है तो इसमें किसका दोष है ? क्या भारत में वामपंथ के इस पराभव के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार है ? हमारे पास तसल्ली के लिए या तो सर्वकालिक मार्क्सवादी-लेनिनवादी वैज्ञानिक विचारधारा का अभिमान है ,या अतीत के स्वर्णिम संघर्षों का इतिहास है ,या सिर्फ त्रिपुरा की सरकार शेष बची है। आधुनिक सूचना -संचार माध्यमों में यदि वाम के समर्थक राई बराबर है तो साम्प्रदायिक और जातीयतावादी विचार अभिव्यक्ति हिमालय जैसी हो चुकी है । फेसबुक, वॉट्सएप, ट्विटर, इलेक्ट्रॉनिक एवं सोशल मीडिया पर घिसे-पिटे वीभत्स खटराग ही लाइक किये जा रहे हैं। वामपंथ की कमजोर हालात के कारण भारत में आधुनिक युवा पीढ़ी दिशाहीन हो चुकी है। इसे उन्मत्त पूँजीवाद, कटटर मजहबी आतंकवाद और जातीय संघर्ष से अलग-थलग करना होगा। तभी उनमें वर्गीय चेतना और वैज्ञानिक सोच के संचरण को सम्भव बनाया जा सकता है। इसके अलावा अन्य विकल्प वामपंथ के लिए भी मौजूं नहीं है। इस चालू ढर्रे से भारतीय युवाओं को किसी धर्मनिपेक्ष -क्रांतिकारी विचारधारा से लेस नहीं किया जा सकता।
वामपंथ की व्यापक एकता और लगातार मेहनत मशक्क्त के बाद त्रिवेन्द्रम , दिल्ली ,कोलकाता में वामपंथ की रैली तो धांसू आयोजित हो जाती है। रैली में १०-२० लाख लोग शामिल हो जायेंगे। किन्तु जब लोकसभा या विधान सभा के चुनाव होंगे तो वे लोग जो वामपंथ की संयुक्त रैली में शामिल होते हैं ,हड़ताल में शामिल होते हैं ,वे चुनाव के मौके पर हिन्दू,मुस्लिम ,दलित ईसाई और पिछड़े बन जाते हैं । वामपंथी विचारकों ,लेखकों और नेताओं को बड़ी गलत फहमी है कि वे मोदी सरकार की या 'संघ परिवार' की आलोचना करके भारत में नई क्रांति कर देंगे ! या किसी महान सर्वहारा क्रांति की पूर्व पीठिका तैयार कर सकेंगे । बल्कि मेरा अभिमत है कि वाम पंथी कतारों का यह बौद्धिक विमर्श और आंदोलनात्मक संघर्ष आइन्दा कांग्रेस की वापिसी के अवश्य काम आएगा। वामपंथ को महज कांग्रेस की वापसी के लिए ही मोदी सरकार की आलोचना या संघर्ष ही करते रहना है तो फिर क्रांतियों की असफलताओं के इतिहास क्यों नहीं लिखे जाएंगे ?
वेशक भारत में सिर्फ वामपंथ ने ही फासिज्म और साम्प्रदायिकता की ईमानदाराना मुखालफत की है। जबकि कांग्रेस इसका हमेशा राजनैतिक फायदा उठाती रही है। क्योंकि संसदीय राजनीति में वामपंथ अपनी संघर्ष को महज वोट की राजनीति तक सीमित नहीं रखता ,वह मेहनतकश जनता के फौरी और दूरगामी सरोकारों के बरक्स अपने हिस्से का संघर्ष पूरी ईमानदारी से करता है। जबकि कांग्रेस का उद्देश्य सिर्फ सत्ता प्राप्ति ही रही है। उधर भाजपा और मय 'संघ परिवार'का उदेश्य इससे भी खतरनाक है। एक -उन्हें भारतीय अस्मिता वापिस चाहिए और दूसरा- इस मकसद की पूर्ती के के लिए उन्हें राज्य सत्ता भी चाहिए। अब यदि वामपंथ और उसके अनुषंगी संगठन अपने संघर्षों और वैचारिक आघातों से मोदी सरकार को किंचित बिहारी नेताओं की तरह रुसवा करते रहते हैं तो उसका लाभ वामपंथ या मजदूर वर्ग को नहीं बल्कि कांग्रेस को ही मिलेगा। आइन्दा भारत में जब भी सत्ता परिवर्तन होगा केंद्र में कांग्रेस की या उसके गठबंधन की ही सरकार बनेगी। अर्थात देश के वे लोग जो 'मोदी सरकार' 'विरोधी है ,जाने अनजाने कांग्रेस को सत्ता में वापिस लाने के हेतु सावित होंगे। ये एनडीए की मोदी सरकार और संघ के आलोचक- जाने- अनजाने में कांग्रेस के कुराज की वापिसी में सहयोग किये जा रहे हैं। हमारी भावी पीढ़ियाँ ही यह तय करेंगी कि मोदी सरकार और संघ की आलोचना करने वाले क्रांतिकारी विचारक सही थे या भड़भूँजे ! श्रीराम तिवारी
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