बुधवार, 24 फ़रवरी 2016

स्मृति ईरानी ने बहिन जी को बुरी तरह निपटा दिया। अच्छा किया !

 देश के दलितों को और दलित वर्ग के सच्चे समर्थकों को यह हमेशा याद रखना चाहिए कि उनकी 'अधिष्ठात्री देवी'मायावती  ने हजार-हजार के नोटों की 'वरमाला' कई वार पहनी है। यह भी सोचें कि  वे एक मामूली पोस्टल क्लर्क की 'सुपुत्री' के नाते देश की राजनीति में आतीं तो  कितना पुरुषार्थ बटोर पातीं?  कौन नहीं जानता कि इन  मायावती को और उन जैसे अन्य सभी दलित नेताओं को  दलित वर्ग की अथवा  वंचित शोषित बहुजन समाज की  कितनी चिंता है ? दरसल किसी को कोई  चिंता नहीं है। बल्कि  सभी को सिर्फ और सिर्फ अपने  वोट बैंक की और निजी  आर्थिक स्वार्थ की  ही फ़िक्र है। चूँकि मायावती  जी ने संसद के बजट सत्र -२०१६ के प्रथम दिवस ही असत्य का सहारा लिया और उन्होंने उसे राजयसभा में  परोसा  दिया । अतिउत्साह में  वे खुद के फेंके  जाल में फँसतीं  चली   गईं । इसीलिये  उन्हें  संसद में एक औसत दर्जे की  भूतपूर्व  एक्ट्रेस और  नौसिखिया अर्धशिक्षित 'तुलसी' के शब्द बाणों से घायल होना  पड़ा। मंत्री स्मृति ईरानी ने बहिन जी को न केवल  बुरी तरह निपटा दिया। बल्कि अपने  शैक्षणिक तापमान का सूचकांक भी सबको बता दिया। यह  स्मृति ने बहुत अच्छा किया  !
 
कल जब स्मृति ईरानी  संसद में मायावती को 'फींच'रही थी तो मुझे लगा की  वह मायावती से  हर मामले में बेहतर ही  है। यदि भाजपा - संघ वाले यूपी  विधान सभा चुनाव में स्मृति  को मुख्यमंत्री डिक्लेयर कर दें तो मुलायम परिवार और वसपा के मायाजाल  का अंतिम अवसान सुनिश्चित है। और  तो यह होना भी चाहिए ! क्योंकि यूपी की बर्बादी के लिए सपा-वसपा दोनों जिम्मेदार हैं। यूपी के जंगल राज को सहन करने के लिए यूपी की जनता किसी महान 'सर्वहारा' क्रांति का इंतजार  कब तक करती रहे ? 

नोट :मेरी इस पोस्ट को पढ़कर  मेरे संघी मित्र इस गलतफहमी में न रहें  कि  मैंने अपना वैचारिक स्टेण्ड बदल लिया है या साम्प्रदायिकता और फासिज्म को हरी झंडी दे दी है। उनकी  फासीवादी सोच के खिलाफ  मैं अंतिम सांस तक लड़ुँगा। किन्तु जब कभी  भी शत्रु शिविर में सच प्रतिध्वनित होगा तो मैं  उसकी तारीफ करने में कँजूसी   भी नहीं करूंगा। क्योंकि यह भी मेरा विशेषाधिकार है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता  का प्रमाण भी यही  है।  स्मृति बनाम मायावती का यह संदर्भ एक बड़ी बुराई के सापेक्ष छोटी बुराई को मजबूरन स्वीकारने जैसा है। और जो सही  है वह किसी एक खास के  समर्थन का मोहताज भी नहीं है।  श्रीराम तिवारी 

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