रविवार, 21 फ़रवरी 2016

आग लगाता हरित प्रदेश में ,आरक्षण का नारा है।


   इक्कीसवीं शताब्दी के सोलहवें साल में ,छप्पन इंची सीने वालों के राज में  यदि शोषण-उत्पीड़न -अन्याय के खिलाफ नारे  लगाओगे तो 'देशद्रोही-कन्हैया' कहलाओगे ! किन्तु  यदि कोई बदमास -लफंगा नेता कोर्ट परिसर में ही  कानून को अपने हाथ में लेकर उस 'इंकलाबी' छात्र को थप्पड़ मारेगा तो वह 'देशभक्त' कहलायेगा  !यदि जातीय  आधार पर आरक्षण की मांग को लेकर कोई रेलें रोकता हो ,पटरियाँ  उखाड़ता हो ,बसें जलाता हो ,पुल तोड़ता हो और  सरकार को वोट बैंक की सेंधमारी के लिए ब्लेक मेल करता हो ,वह 'अराजक' फिर भी 'देशभक्त' ही कहलायेगा !यह सब  साम्प्रदायिक  और जातीय मंत्रशक्ति का चमत्कार  है। 'वन्दे मातरम ' या 'जय-जय सियाराम ' के नारे लगाकर कोई भी ठग, चोर, हत्यारा -भगवा कपडे पहनकर साधु-सन्यासी हो सकता है. परम राष्ट्रवादी का तमगा उसे सहज ही उपलब्ध है। कार्पोरेट पूँजी के दलाल - मुनाफाखोर, मक्कार मिलाबटिया,एवं  भूमाफिया, बिल्ड़रमाफिया ,भृष्ट - रिश्वतखोर,ठेका माफिया ,सरमायेदार और साम्प्रदायिक आतंकी  भी इस देश में  'देशभक्त' होने का स्वांग भर रहे हैं । जो लोग राष्ट्रवाद के  नारों की आड़ में  देश को चूना लगाये जा रहे हैं। जो  सरकारी योजनाओं का ८५% पैसा डकार रहे  हैं,जो आरक्षण आंदोलन के बहाने  राष्ट्रीय सम्पत्ति को आग लगा रहे हैं , वे सभी देशभक्त  बने रह सकते हैं। वशर्ते वे जेएनयू की राह पर न चलें और सत्ता के चारण  - भाट हो जाएँ।  जय श्रीराम !

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