शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

अफजल गुरु,याकूब मेनन कोई शांति के मसीहा नहीं थे !


 होली का त्यौहार अभी  नहीं आया ,किन्तु हमारे जम्बूदीपे -भरतखण्डे  के विनोदी सियासतदां एक दूसरे  का मजाक उड़ाने में अभी से व्यस्त हैं। पीएम नरेंद्र मोदी जी कांग्रेस और राहुल का मजाक उड़ाते रहते हैं। राहुल गांधी  भी जब कभी केरल जाते हैं ,तो  एक सांस में  पीएम नरेंद्र मोदी जी का और केरल की मुख्य  विपक्षी पार्टी सीपीएम  का मजाक उड़ाते रहते हैं। बंगाल में ममता के तृणमूली गुंडे बात-बात  में सीपीएम ,भाजपा  तथा मोदी सरकार का मजाक उडाते रहते  हैं।  आप के नेता केजरीवाल कभी  दिल्ली पुलिस  का ,कभी  उप-राज्यपाल  नजीब जंग का और  कभी पीएम मोदी जी का  मजाक उड़ा रहे हैं। कश्मीरी अलगाववादी देश के शहीदों  का मजाक उड़ा रहे हैं। लालू-मुलायम -नीतीश -शरद यादव -ये सभी 'समाजवाद' का मजाक उड़ा रहे हैं। हिन्दुत्ववादी संगठन धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं। जो किसी का मजाक उड़ाने की स्थति में नहीं  है वो खुद  का ही मजाक उड़वा  रहे हैं। जैसे कि पूना,हैदरावाद और जेएनयू के छात्र !

इसी तरह वामपंथी नेता ,कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी भी कहने को तो फासीवाद ,पूंजीवाद  और साम्प्रदायिकता से लड़ रहे हैं। किन्तु  आवाम की नजर में वे खुद अपना ही  मजाक उड़वा रहे हैं। चाहे फिदायीन इशरत जहाँ का  मामला हो , संसद पर हमले के जिम्मेदार अफजल  गुरु का मामला हो ,चाहे मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार याकूब मेमन की फाँसी का  सवाल हो , चाहे देश भर में व्याप्त आतंकी घुसपैठ का सवाल हो ,इन  माँमलों  में देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वालों की पैरवी  क्यों ?  जब  कभी चीन की फौज विवादित क्षेत्र से भारत में घुस आती  है तो क्या  सीपीसी का कोई  भी सदस्य उस 'पीपुल्स आर्मी' का विरोध करता है ? क्या कभी  किसी चीनी नेता  या कामरेड ने लाखों  निर्वासित तिब्बतियों के लिए आक्रोशित होकर  शी जिन पिंग -मुर्दावाद का नारा लगाया ?

चीनी कामरेडों ने तो दलाई लामा 'जिन्दावाद  का  नारा  कभी  नहीं लगाया ! और नहीं लगाया तो अच्छा ही किया। क्योंकि दलाई लामा  तो अमेरिकन सम्राज्य्वाद के पिछलग्गू हो गये थे। हमारे भारतीय कामरेड क्या सीपीसी से कुछ सीखेंगे ? अफजल गुरु,याकूब मेनन कोई शांति के मसीहा  नहीं थे ! और दाऊद ,हाफिज सईद, छोटा अंकल -बड़ा अंकल -कोई दलाई लामाँ  हैं क्या ? अफजल गुरु जिन्दावाद का नारा देने वाला -जेएनयू का छात्र कन्हाईलाल  अपने आपको कामरेड बताता है। और सीपीआई की छात्र शाखा एआईएसएफ का पदाधिकारी है तो मुझे उसकी वैचारिक सोच पर दया आती  है।  यदि कोई वामपंथी  उसकी इस हरकत का समर्थन करता है ,तो उसे भी कम्युनिस्ट  कहलाने का हक नहीं। यह मेरी  निजी  या कोरी सैद्धांतिक  स्थापना नहीं है।चीनी कयूनिस्ट पार्टी  का इतिहास ही प्रमाण के लिए पर्याप्त है। उत्तर कोरिया ,वियतनाम ,क्यूबा ,चिली ,बेनेजुएला या पूर्व सोवियता संघ  की कम्युनिस्ट पार्टी  के किसी सदस्य ने ऐंसा कभी नहीं किया। सोवियत संघ या रूस में तो  क्रांति के गद्दारों -गोर्वाचेव और येल्तसिन ने  भी  इस तरह अपने देश का मजाक नहीं उडाया होगा। फिर भी  यदि किसी को मजाक उड़ाने का बहुत शौक  चर्राया  है तो 'वर्ग शत्रु' का उड़ा लो न  कामरेड ! जो अपने ही देश का मजाक  उड़ायेगा ,तो सरकार भले ही माफ़ कर दे किन्तु देश की अवाम और सर्वहारा वर्ग  क्यों माफ़  करेगा ?

क्या विवेक ,बुद्धि ,प्रगति ,राष्ट्रनिष्ठा इत्यादि  रत्न केवल उनके ही पास हैं ,जिन्हे हम पूँजीवादी -साम्प्रदायिक कहते हैं ? आज  जो  लोग सत्ता से वंचित  हैं और सत्ता पक्ष का सिर्फ अंध विरोध ही करते चले जा रहे हैं। हो सकता है की  कल वे सत्ता में हों , क्या वे  तब भी इस तरह की हरकत करेंगे ? अभी जो जो   सत्ता में हैं  उन्होंने छल-कपट ,प्रलोभन  और भावनात्मक जन-दोहन करके  देश  की सत्ता  हथियाई  है ।  किन्तु ये लोग विपक्ष में होने के वावजूद देश के खिलाफ नारे तो नहीं लगाते ! अब  जो दल या व्यक्ति हार गए हैं ,यदि  वे सिर्फ विरोध के लिए विरोध ही जारी रखेंगे तो इसकी क्या गारंटी है कि  जनता आइन्दा उन्हें अवसर देगी। क्योंकि निषेध की  नकारात्मक परम्परा वैसे भी भारत के  स्वश्थ चिंतन  के अनुकूल नहीं है।  कौन महा मंदमति  होगा जो इस तरह के प्रमादी - नकारात्मक - आलोचकों का संज्ञान लेगा ?

 श्रीराम तिवारी 

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