जरा सब्र कर और शुक्र कर कि-
*तू अपने घर में है,*
*उनके बारे में सोच *
*जो अटके सफ़र में और अधर में हैं..*
* कई होंगे जिन्होंने बाप की शक्ल नहीं देखी
आखरी वक़्त में*
*और कुछ होंगे जिनका*
*बेटा हॉस्पिटल में*
*और बाप कब्र में है..*
*तेरे घर में राशन है साल भर का,*
*तू उसका सोच जो दो वक़्त की*
*रोटी के फ़िक्र में है..*
*तुम्हें किस बात की जल्दी है*
*गाड़ी में घूमने की,*
*अब तो सारी कायनात ही सब्र में है...*
*अभी भी किसी भ्रम में मत रहना मेरे दोस्त*
*इन्सानो की नहीं सुनती आज कल,*
*कुदरत अपने सुर और शबाब में है...*
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