विगत कुछ दिनों पहले ही भारत -म्यांमार सीमा पर जब भारतीय सुरक्षा बलों ने बड़ी मशक्कत और कुर्बानी देकर आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने की कोशिश की थी तब कुछ सत्तारूढ़ पार्टी के बड़बोले नेताओं- मंत्रियों ने जल्दबाजी में अपनी ही पीठ थपथपाना क्या शुरू कर दिया था । कुछ सरकार समर्थक उत्साहीलालों ने तो म्यांमार के बहाने पाकिस्तान को भी चिढ़ाना शुरू कर दिया था। जब म्यांमार के फौजी शासकों और नेताओं को भारतीय सत्तारूढ़ नेताओं की चालाकियाँ और यशेषणा का ज्ञान हुआ तो उन्होंने घोर नाराजी व्यक्त कर उस कामयाबी का भांडा ही फोड़ दिया था। म्यांमार ने पूरी दुनिया को सूचित किया कि भारतीय सुरक्षा बलों ने हमारी सीमा में कदम ही नहीं रखा। है भारत सरकार ने आनन-फानन तब इज्जत की खातिर अजीत धोबाल को रंगून भेजा। धोबाल को म्यांमार वालों ने बुरी तरह झाड़ दिया। किया धरा भाजपा के बयान वीरों ने और वेचारे ढोबाल को उनके गंभीर अपराध पर डाँट पडी । तब उस 'राष्ट्रीय शर्मिंदगी' को धीरे से दबा दिया गया। मीडिया को भी 'मना' लिया गया। नेताओं की कूटनीतिक अज्ञानता और अफसरों की गफलत का परिणाम ये हुआ कि एक मात्र तठस्थ पड़ोसी राष्ट्र म्यांमार भी अब भारत से मुँह फुलाये हुए है। जबकि पाकिस्तान,श्रीलंका, नेपाल ,बांग्लादेश ये सब तो पहले से ही भारत से जले-भुने बैठे हैं। इन सभी के मन साफ़ नहीं हैं। ये सभी सिर्फ भारत से खींचना चाहते हैं। जबकि चीन भारत को आगे बढ़ता नहीं देख सकता। पाकिस्तान का एकमात्र एजेंडा है भारत की बर्बादी। इन हालात में भारत की जनता के समक्ष एकमात्र वही रास्ता है जो उधमपुर में विक्रमजीत और राकेश शर्मा ने दिखाया है। सरकार और उसके तंत्र पर भरोसा करते -करते अर्ध शताब्दी से जयादा वक्त गुजर गया। अब पानी सर से ऊपर पहुँच चूका है। सभी की सोच में बदलाव जरुरी है। कोई भी पार्टी या दल परफेक्ट नहीं है। सभी की कुछ न कुछ कमजोरियाँ हैं। जो बेहतर विचारधारा का दम भरते हैं वे भी बौद्धिक अहमन्यता के शिकार हैं ,जबकि जनमत उनके पास गुजारे लायक भी नहीं है।
इसी तरह उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित आतंकी को ज़िंदा पकड़ने वाले -'जीजा -साले'न तो फौजी हैं ,न ही वेतन भोगी मठ्टर कश्मीरी आरक्षक हैं। वे तो वास्तव में वतन के असली रखवाले हैं। विक्रमजीत और राकेश शर्मा यदि उस आतंकी नावेद को जीवित न पकड़ते तो दो बातें होतीं। एक तो यह कि जिन वेगुनाहों को उस दुष्ट आतंकी ने एके -४७ की नोक पर बंधक बनाया था ,वे सब मारे जाते। दूसरा परिणाम यह होता कि बाद में एक दर्जन भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवानों की शहादत के बाद भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ जो लाशें आतीं उनमें एक लाश आतंकी नावेद की भी होती। इससे सिद्ध होता है कि आतंकी नावेद के जिन्दा पकडे जाने में असली 'देशभक्तों' की भूमिका ज्यादा है। भाजपा की नेत्री मीनाक्षी लेखी और अन्य नेता -प्रवक्ता फिर वही म्यांमार वाली घटना की पुनरावृत्ति करने जा रहे हैं। यह याद रखना होगा कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी जान बूझकर ऐंसी जानकारियाँ देते हैं ताकि बाद में भारत सरकार की दुनिया भर में हँसी उड़े। यही तो पाकिस्तान की कूटनीति है कि उसे आतंकी के बारे में सचाई तो मालूम है,इसीलिये जब नावेद के वयान को आंध्रा बनाकर भारत सरकार ने अपना स्टेटमेंट दिया कि आतंकी पाकिस्तान के फैसलावाद का है तो पाकिस्तान ने फौरन इंकार कर दिया। चूँकि पाकिस्तान की कल को वाशिंगटन -व्हाइट हाउस में पेशी भी हो सकती है ,इसलिए वो अपने इस वयान को कायम रखने के लिए मजबूर होगा। यदि वह वयान बदलता है तो उसकी चोरी पकड़ी जाएगी। कहने का तातपर्य यही है कि भले ही आतंकी पाकिस्तान का ही है किन्तु उस ने जो कहा उसे ही सच मानकर भारतीय एजेंसियां भयानक भूल कर रहीं हैं।भारत की संप्रभुता पर हमला करने वाला
आतंकी बेखौफ मुस्कराते हुए फटाफट जो बयान दे रहा है वह सफेद झूंठ है। सच क्या है यह या तो पाकिस्तान जनता है या वह आतंकी। भारत के नेता कुछ नहीं जानते। केवल दो सभ्रांत नागरिकों की पुण्याई पर भरत नाट्यम कर रहे हैं। इन्हे यह गर्वोकिति करने से पहले भारतीय जवानों की शहादत सदैव स्मरण रखनी चाहिए।
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दुनिया में जब भी कोई आतंकी हिंसात्मक घटना घटती है ,तो एक विशेष समुदाय या कौम के ही गुमराह मरजीवड़ों का लिप्त होना पाया जाता है। सीरिया,इराक,ईरान,अफगानिस्तान,यमन,सूडान,मिश्र ,पाकिस्तान में केवल एक ही सम्प्रदाय के आतंकियों का बोलवाला है। वहाँ इस आतंकवाद को शुद्ध रूप में केवल और केवल इस्लामिक आतंकवाद के रूप में ही देखा -सुना जाता है। यूरोप ,अमेरिका ,इंग्लैंड ,फ़्रांस व भारत की अधिकांस शांति प्रिय जनता इसे वैश्विक आतंकवाद के रूप में देखती है । दुनिया के जो लोग इनसे पीड़ित वे ईसाइयों कुर्दीशों ,यहूदियों यज़ीदियों की तरह इस बर्बर चुनौती को उसकी प्रत्याक्रमण कारी शैली में ही जबाब देने का प्रयत्न करते रहते हैं। भारत में इस इस आयातित साम्प्रदायिक आतंकवाद के फलने-फूलने के लिए पर्याप्त उर्वरा भूमि तो उपलब्ध है। किन्तु उसके प्रतिवाद या निस्तारण के लिए कोई मान्य सिद्धांत नहीं है। यहाँ हिंदुत्व वादी इजरायल की तरह सोचते हैं। धर्मनिरपेक्षतावादी पूर्व सोवियत संघ की तरह सोचते हैं। जबकि भारत के लिए ये दोनों ही सिद्धांत गैरबाजिब हैं।
यद्द्यपि भारत में किसी भी हिंसक साम्प्रदायिक कौम को किसी अन्य अहिंसक साम्प्रदायिक कौम से कोई चुनौती नहीं है। यहाँ पाकिस्तान या आईएसआईएस प्रेरित हिंसक साम्प्रदायिकता के पक्ष में सब कुछ मौजूद है। न केवल तमाम धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील लोग ही 'अल्पसंख्यकवाद' के धोखे में आतंकियों के समर्थक बने हुए हैं बल्कि 'अहिंसक' बहुसंख्यक वर्ग और उसके बीच के साम्प्रदायिक तत्व भी हमेशा कुछ ऐंसा उल्टा सीधा करते रहते हैं कि उनके द्वारा पाली-पोषित यह पूंजीवादी व्यवस्था व उसकी तमाम मशीनरी भी इन हिंसावादी साम्प्रदायिक तत्वों के चरण चाँपने लगती है। भारत के मुठ्ठी भर अधकचरे अनाड़ी -हिंदूवादी साम्प्रदायिक संगठनों ने सत्ता के चूल्हे पर हिंदुत्व रुपी काठ की हांडी दो-दो बार चढ़ाई किन्तु अयोध्या में दस बाई दस वर्ग फुट का एक 'रामलला मंदिर' भी नहीं बनवा सके। यही औकात है भारत में बहुसंख्यक वर्गीय साम्प्रदायिकता की। इसी के लिए वे भारत में विगत सौ साल के इतिहास में केवल बदनाम ही किये जाते रहे हैं। कभी गोडसे ने गांधी को मारा , कभी किसी ने मक्का मस्जिद के आसपास दो-चार फटाके फोड़ दिए ,कभी किसी संघी ने अपने ही प्रचारक संजय जोशी को मार दिया। कभी समझौता एक्प्रेस पर कुछ फ़ुस्से बम फोड़ दिए। इसके अलावा हिन्दुत्वादी कतारों में अपनी कमजोरी छिपाने के लिए केवल ढपोरशंख ही बजाये चले जा रहे हैं। उधर न केवल पाकिस्तान से न केवल चीन से बल्कि दुनिया के कोने -कोने से भारत विरोधी मंसूबे सुनाई दे रहे हैं।
कुछ स्वयंभू राष्ट्रवादियों और प्रगतिशील बुद्धिजीविओं ने दो बातों पर बहुत बड़ा भरम पाल रखा है। पहला -यह कि भारत एक उभरता हुआ आर्थिक तरक्की वाला परमाण्विक शक्तिशाली राष्ट्र है ,जो अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है। इन लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी है कि उनकी सैन्य क्षमता और युद्धक सामग्री पाकिस्तान से बेहतर है। वे यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के शासकों को खुद कुछ भी नहीं करना है। उन्हें केवल इस्लामिक आतंकवाद को ज़िंदा रखना है। बाकी सब काम ये आतंकवादी ही करंगे। ये आतंकवादी भारत में आकर केवल पाकिस्तन का झंडा ही नहीं फहराएंगे बल्कि नकली मुद्रा भी लायंगे। ये हवाला के काम भी आएंगे। वे गांजा चरस और हशीश भी लाएंगे। वे ऐ ,के -४७ और आरडीएक्स भी लायँगे। पाकिस्तान और चीन को कुछ नहीं करना है। जो कुछ करना है इस्लाम के नाम पर आतंकियों को ही करना है।
भारतीय प्रबुद्ध समाज ने दूसरा भरम ये पाला है कि भारतीय विराट आबादी ,उसकी सहिष्णुता,अहिंसा और योग साधना में बड़ी ताकत है । उन्हें अपना ही पौराणिक सिद्धांत याद नहीं कि 'विशाल घासाहारी हाथी को वश में करने के लिए छोटा सा 'अंकुश' ही काफी है. 'दुनिया के ५६ इस्लामिक देश आज भी इजरायल का नाम सुनते ही अमेरिका की गोद में अपना मुँह छिपाने को बाध्य हैं।
भारतीय सुरक्षा तंत्र यदि ताकतवर है तो अक्सर ही ऐंसा क्यों होता है कि एक -दो आतंकवादी को पकड़ने के लिए या मारने के लिए दर्जनों भारतीय जवानों को शहादत क्यों देनी पड़ती है ? उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित आतंकवादी नावेद के प्रकरण से सिद्ध होता है कि हमारी पहली वाली धारणा गलत है कि जीवित आतंकी को भारतीय फौजों या बीएसएफ ने नहीं पकड़ा !इसके बरक्स आतंकियों ने तो बीएसएफ के जवानों को ही मार डाला। कई भारतीय जवान घायल भी हुए। किन्तु वे जीवित किसी भी आतंकी को नहीं पकड़ पाये। जबकि दूसरा भरम-कि हिन्दू सहिष्णु होने से बुजदिल हो गए हैं [ बकौल केद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर ]लिए दूर होना चाहिए कि जिन दो नागरिकों ने जीवित आतंकी को पकड़ा वे असली हिन्दू हैं। विक्रमजीत शर्मा और राकेश शर्मा हैं जो जीजा -साले भी हैं। सरकार और उसकी विशाल फौज इसका श्रेय लेती है तो वह कदाचार और राजनीतिक व्यभिचार ही होगा।
पने-आप को बचाने का ही उपक्रम किया है। दुनिया की कोई भी कौम या राष्ट्र यह दावा नहीं कर सकता कि उसे हिन्दुओं या हिंद्त्व से कोई खतरा है। फिर भी भारत में गंदी राजनीति के लिए कुछ लोगों ने रथ यात्रा निकाली ,मंडल-कमंडल के नारे लगाए ,मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा किया और गोधरा की हिंसा का जबाब पूरे गुजरात के निर्दोष मुसलमानों पर कहर ढाकर समस्त हिन्दू कौम को दुनिए में 'हिंसक' बनिरुपित कर डाला।
श्रीराम तिवारी
इसी तरह उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित आतंकी को ज़िंदा पकड़ने वाले -'जीजा -साले'न तो फौजी हैं ,न ही वेतन भोगी मठ्टर कश्मीरी आरक्षक हैं। वे तो वास्तव में वतन के असली रखवाले हैं। विक्रमजीत और राकेश शर्मा यदि उस आतंकी नावेद को जीवित न पकड़ते तो दो बातें होतीं। एक तो यह कि जिन वेगुनाहों को उस दुष्ट आतंकी ने एके -४७ की नोक पर बंधक बनाया था ,वे सब मारे जाते। दूसरा परिणाम यह होता कि बाद में एक दर्जन भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवानों की शहादत के बाद भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ जो लाशें आतीं उनमें एक लाश आतंकी नावेद की भी होती। इससे सिद्ध होता है कि आतंकी नावेद के जिन्दा पकडे जाने में असली 'देशभक्तों' की भूमिका ज्यादा है। भाजपा की नेत्री मीनाक्षी लेखी और अन्य नेता -प्रवक्ता फिर वही म्यांमार वाली घटना की पुनरावृत्ति करने जा रहे हैं। यह याद रखना होगा कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी जान बूझकर ऐंसी जानकारियाँ देते हैं ताकि बाद में भारत सरकार की दुनिया भर में हँसी उड़े। यही तो पाकिस्तान की कूटनीति है कि उसे आतंकी के बारे में सचाई तो मालूम है,इसीलिये जब नावेद के वयान को आंध्रा बनाकर भारत सरकार ने अपना स्टेटमेंट दिया कि आतंकी पाकिस्तान के फैसलावाद का है तो पाकिस्तान ने फौरन इंकार कर दिया। चूँकि पाकिस्तान की कल को वाशिंगटन -व्हाइट हाउस में पेशी भी हो सकती है ,इसलिए वो अपने इस वयान को कायम रखने के लिए मजबूर होगा। यदि वह वयान बदलता है तो उसकी चोरी पकड़ी जाएगी। कहने का तातपर्य यही है कि भले ही आतंकी पाकिस्तान का ही है किन्तु उस ने जो कहा उसे ही सच मानकर भारतीय एजेंसियां भयानक भूल कर रहीं हैं।भारत की संप्रभुता पर हमला करने वाला
आतंकी बेखौफ मुस्कराते हुए फटाफट जो बयान दे रहा है वह सफेद झूंठ है। सच क्या है यह या तो पाकिस्तान जनता है या वह आतंकी। भारत के नेता कुछ नहीं जानते। केवल दो सभ्रांत नागरिकों की पुण्याई पर भरत नाट्यम कर रहे हैं। इन्हे यह गर्वोकिति करने से पहले भारतीय जवानों की शहादत सदैव स्मरण रखनी चाहिए।
।
दुनिया में जब भी कोई आतंकी हिंसात्मक घटना घटती है ,तो एक विशेष समुदाय या कौम के ही गुमराह मरजीवड़ों का लिप्त होना पाया जाता है। सीरिया,इराक,ईरान,अफगानिस्तान,यमन,सूडान,मिश्र ,पाकिस्तान में केवल एक ही सम्प्रदाय के आतंकियों का बोलवाला है। वहाँ इस आतंकवाद को शुद्ध रूप में केवल और केवल इस्लामिक आतंकवाद के रूप में ही देखा -सुना जाता है। यूरोप ,अमेरिका ,इंग्लैंड ,फ़्रांस व भारत की अधिकांस शांति प्रिय जनता इसे वैश्विक आतंकवाद के रूप में देखती है । दुनिया के जो लोग इनसे पीड़ित वे ईसाइयों कुर्दीशों ,यहूदियों यज़ीदियों की तरह इस बर्बर चुनौती को उसकी प्रत्याक्रमण कारी शैली में ही जबाब देने का प्रयत्न करते रहते हैं। भारत में इस इस आयातित साम्प्रदायिक आतंकवाद के फलने-फूलने के लिए पर्याप्त उर्वरा भूमि तो उपलब्ध है। किन्तु उसके प्रतिवाद या निस्तारण के लिए कोई मान्य सिद्धांत नहीं है। यहाँ हिंदुत्व वादी इजरायल की तरह सोचते हैं। धर्मनिरपेक्षतावादी पूर्व सोवियत संघ की तरह सोचते हैं। जबकि भारत के लिए ये दोनों ही सिद्धांत गैरबाजिब हैं।
यद्द्यपि भारत में किसी भी हिंसक साम्प्रदायिक कौम को किसी अन्य अहिंसक साम्प्रदायिक कौम से कोई चुनौती नहीं है। यहाँ पाकिस्तान या आईएसआईएस प्रेरित हिंसक साम्प्रदायिकता के पक्ष में सब कुछ मौजूद है। न केवल तमाम धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील लोग ही 'अल्पसंख्यकवाद' के धोखे में आतंकियों के समर्थक बने हुए हैं बल्कि 'अहिंसक' बहुसंख्यक वर्ग और उसके बीच के साम्प्रदायिक तत्व भी हमेशा कुछ ऐंसा उल्टा सीधा करते रहते हैं कि उनके द्वारा पाली-पोषित यह पूंजीवादी व्यवस्था व उसकी तमाम मशीनरी भी इन हिंसावादी साम्प्रदायिक तत्वों के चरण चाँपने लगती है। भारत के मुठ्ठी भर अधकचरे अनाड़ी -हिंदूवादी साम्प्रदायिक संगठनों ने सत्ता के चूल्हे पर हिंदुत्व रुपी काठ की हांडी दो-दो बार चढ़ाई किन्तु अयोध्या में दस बाई दस वर्ग फुट का एक 'रामलला मंदिर' भी नहीं बनवा सके। यही औकात है भारत में बहुसंख्यक वर्गीय साम्प्रदायिकता की। इसी के लिए वे भारत में विगत सौ साल के इतिहास में केवल बदनाम ही किये जाते रहे हैं। कभी गोडसे ने गांधी को मारा , कभी किसी ने मक्का मस्जिद के आसपास दो-चार फटाके फोड़ दिए ,कभी किसी संघी ने अपने ही प्रचारक संजय जोशी को मार दिया। कभी समझौता एक्प्रेस पर कुछ फ़ुस्से बम फोड़ दिए। इसके अलावा हिन्दुत्वादी कतारों में अपनी कमजोरी छिपाने के लिए केवल ढपोरशंख ही बजाये चले जा रहे हैं। उधर न केवल पाकिस्तान से न केवल चीन से बल्कि दुनिया के कोने -कोने से भारत विरोधी मंसूबे सुनाई दे रहे हैं।
कुछ स्वयंभू राष्ट्रवादियों और प्रगतिशील बुद्धिजीविओं ने दो बातों पर बहुत बड़ा भरम पाल रखा है। पहला -यह कि भारत एक उभरता हुआ आर्थिक तरक्की वाला परमाण्विक शक्तिशाली राष्ट्र है ,जो अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है। इन लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी है कि उनकी सैन्य क्षमता और युद्धक सामग्री पाकिस्तान से बेहतर है। वे यह भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के शासकों को खुद कुछ भी नहीं करना है। उन्हें केवल इस्लामिक आतंकवाद को ज़िंदा रखना है। बाकी सब काम ये आतंकवादी ही करंगे। ये आतंकवादी भारत में आकर केवल पाकिस्तन का झंडा ही नहीं फहराएंगे बल्कि नकली मुद्रा भी लायंगे। ये हवाला के काम भी आएंगे। वे गांजा चरस और हशीश भी लाएंगे। वे ऐ ,के -४७ और आरडीएक्स भी लायँगे। पाकिस्तान और चीन को कुछ नहीं करना है। जो कुछ करना है इस्लाम के नाम पर आतंकियों को ही करना है।
भारतीय प्रबुद्ध समाज ने दूसरा भरम ये पाला है कि भारतीय विराट आबादी ,उसकी सहिष्णुता,अहिंसा और योग साधना में बड़ी ताकत है । उन्हें अपना ही पौराणिक सिद्धांत याद नहीं कि 'विशाल घासाहारी हाथी को वश में करने के लिए छोटा सा 'अंकुश' ही काफी है. 'दुनिया के ५६ इस्लामिक देश आज भी इजरायल का नाम सुनते ही अमेरिका की गोद में अपना मुँह छिपाने को बाध्य हैं।
भारतीय सुरक्षा तंत्र यदि ताकतवर है तो अक्सर ही ऐंसा क्यों होता है कि एक -दो आतंकवादी को पकड़ने के लिए या मारने के लिए दर्जनों भारतीय जवानों को शहादत क्यों देनी पड़ती है ? उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित आतंकवादी नावेद के प्रकरण से सिद्ध होता है कि हमारी पहली वाली धारणा गलत है कि जीवित आतंकी को भारतीय फौजों या बीएसएफ ने नहीं पकड़ा !इसके बरक्स आतंकियों ने तो बीएसएफ के जवानों को ही मार डाला। कई भारतीय जवान घायल भी हुए। किन्तु वे जीवित किसी भी आतंकी को नहीं पकड़ पाये। जबकि दूसरा भरम-कि हिन्दू सहिष्णु होने से बुजदिल हो गए हैं [ बकौल केद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर ]लिए दूर होना चाहिए कि जिन दो नागरिकों ने जीवित आतंकी को पकड़ा वे असली हिन्दू हैं। विक्रमजीत शर्मा और राकेश शर्मा हैं जो जीजा -साले भी हैं। सरकार और उसकी विशाल फौज इसका श्रेय लेती है तो वह कदाचार और राजनीतिक व्यभिचार ही होगा।
पने-आप को बचाने का ही उपक्रम किया है। दुनिया की कोई भी कौम या राष्ट्र यह दावा नहीं कर सकता कि उसे हिन्दुओं या हिंद्त्व से कोई खतरा है। फिर भी भारत में गंदी राजनीति के लिए कुछ लोगों ने रथ यात्रा निकाली ,मंडल-कमंडल के नारे लगाए ,मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा किया और गोधरा की हिंसा का जबाब पूरे गुजरात के निर्दोष मुसलमानों पर कहर ढाकर समस्त हिन्दू कौम को दुनिए में 'हिंसक' बनिरुपित कर डाला।
श्रीराम तिवारी
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