इंकलाब ज़िंदाबाद !
progressive Articles ,Poems & Socio-political -economical Critque !
मंगलवार, 18 अगस्त 2015
भरी बरसात में गाँव-गाँव, दल -दल की मार भारी।
चुनावी संग्राम में आजकल, कार्पोरेट दल भारी।।
गरीब की थाली से गायब ,हुई महंगी दाल भारी ।
बाकई अच्छे दिन आये हैं , फेंकुओं की बलिहारी ।।
श्रीराम तिवारी
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