मानव मूल्यों के लिए , देते हैं जो प्राण ।
बलिदानी इतिहास में , पाते हैं सम्मान ।।
शोषण -अत्याचार से , लड़ते मनुज अनेक ।
क्रांति दीप्ति अक्षुण रखे ,वो तारा कोई एक ।।
निर्दोषों को मारते , नरपिशाच नादान।
ऐसे आदमखोर से ,बेहतर कागा श्वान।।
मेहनतकश को लग रहे ,श्रम शोषण के बाण ।
भृष्ट धनिक की चरणरज ,नेता का निर्वाण ।।
तज इच्छा ब्रत कर्म सब ,तजे देह अभिमान।
जीवन मुक्त जिजीविषा , निर्विकल्प यह ज्ञान ।।
निरवृत्ति निर्मोहिता ,निर्लिप्ति निष्काम ।
संथारा सल्लेखना , श्रमण समाधि नाम ।।
श्रीराम तिवारी
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