सोमवार, 17 अगस्त 2015

संथारा सल्लेखना , श्रमण समाधि नाम..!



    मानव मूल्यों के लिए  ,  देते हैं जो  प्राण  ।

    बलिदानी  इतिहास में  , पाते हैं सम्मान ।।


   शोषण -अत्याचार से , लड़ते मनुज अनेक ।

    क्रांति दीप्ति अक्षुण रखे ,वो तारा कोई एक ।।


   निर्दोषों को मारते  ,  नरपिशाच   नादान।

   ऐसे आदमखोर से ,बेहतर कागा श्वान।।


   मेहनतकश को लग रहे ,श्रम शोषण  के बाण ।

    भृष्ट धनिक की चरणरज ,नेता का निर्वाण  ।।


   तज इच्छा ब्रत  कर्म सब ,तजे  देह अभिमान।

   जीवन मुक्त जिजीविषा , निर्विकल्प यह ज्ञान  ।।


    निरवृत्ति निर्मोहिता ,निर्लिप्ति निष्काम ।

   संथारा सल्लेखना , श्रमण  समाधि नाम  ।।


                        श्रीराम तिवारी


 

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