सोमवार, 24 अगस्त 2015

ताकतवर समाजों के लोग मजहब-धर्म व आरक्षण जैसे फ़ालतू मुद्दे उठाकर जनता का ध्यान क्यों भटका रहे हैं ?





  "अहा ! भारत हमारा कैसा  सुंदर सुहा रहा है !''  जिस किसी ने भी ये पंक्ति लिखी हो ! परमात्मा उसे जन्नत  में  मुकाम दे ! टीवी चेनल्स पर आरक्षण की माँग करते हुए गुजरात की सड़कों पर लाखों ,खाते-पीते -चिकने  -चुपड़े - हंसमुख  और  गदगदायमान  चेहरे नजर आ  रहे हैं ! हष्ट-पुष्ट सुंदर-नर-नारी एक साथ देखकर  किसी विकसित राष्ट्र का भृम हो रहा है !  ऐंसा नहीं  नहीं लगता की ये  भारत का मंजर है ! यह भी नहीं लगता  कि  ये चेहरे आरक्षण की  वैशाखी  के लायक हैं ! बल्कि लगता है कि आरक्षण तो अब 'दवंगों' का  राजनैतिक शौक बन गया है ! उन्हें लगता है कि  ये सम्पन्न वर्ग के लोग  शायद आरक्षण के बिना  महान नहीं बन सकेंगे  ! इसके बरक्स  जो आरक्षण के असल  हकदार हैं ,वे भारत के  वास्तविक गरीब -,मजदूर और किसान अभी भी अपनी आवाज को समवेत स्वर नहीं दे पा रहे हैं! लेकिन यह अकाट्य सत्य है कि जब तक इन करोड़ों अकिंचन जनों के कष्टों का निवारण नहीं होता ! तब तक  सबल समाजों  की भी खैर नहीं ,भले ही वे भूस्वामी होकर भी आरक्षण की अलख जगाते रहें !

 इसी तरह जो सबल समाज के लोग  अपनी आर्थिक समपन्नता पर इतरा रहे हैं !और 'संथारा-संलेखना ' जैसे  अनावश्यक  मजहबी-धार्मिक और गैरबाजिब विमर्श  के लिए सड़कों पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं ! करोड़ों  - वेरोजगारों ,निर्धन -किसानों , मेहनतकशों -वेरोजगारों  की अनदेखी कर के जो लोग  अपने किसी  खास धर्म-दर्शन या मजहब  को छुइ-मुई मानकर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं वे न्याय और इन्साफ से कोसों दूर हैं ! उन्हें  जब तक वास्तविक 'सत्य' का ज्ञान  नहीं होगा  ,तब तक  उनके भी संशय का निवारण नहीं हो सकता !

कल लाखों धवल वस्त्र धारी -अहिंसा के  पुजारी,जब एक साथ मौन धारण कर इंदौर एवं देश के अन्य नगरों की सड़कों पर निकले तो उनके 'खाते-पीते'  देदीप्यमान चेहरे निरख-निरख मेरा मन बरबस ही गाने लगा  'भारत हमारा कैसा सुंदर सुहा रहा है ! राजस्थान हाई कोर्ट ने 'संथारा-सल्लेखना 'पर जरा सी आपत्ति क्या जताई, भाई लोगों  को मिल गया शक्ति प्रदर्शन का बहाना !  'बंद'-फंद ' की लीला दिखाई !  मजहबी उसूलों में हस्तक्षेप के नाम पर अन्य अल्पसंख्यक  वर्ग के नेताओं ने भी बहती गंगा में डुबकी लगाई !इन में से  किसी को भी जनता के सरोकारों की याद नहीं आयी !  शासन-प्रशासन के लोग हत्या-बलात्कार -डकैती पर अंकुश तो नहीं लगा  पा रहे हैं  किन्तु जनता का ध्यान भटकाने के लिए 'कांवड़-यात्रा ' अमर्नाथ यात्रा ,हज यात्रा पर जरा ज्यादा हीशोर मचा रहे हैं ! रेलें टकरा रहीं हैं ,पल धस रहे हैं ,लोग मर रहे हैं ,नेता  और पूँजीपति अपना विकास कर रहे हैं !

कल इंदौर में केंद्रीय मंत्री नरेन्द्रसिंह तोमर ने 'अच्छे दिनों 'की बाट लगा दी !  नेताजी  ने फ़रमाया कि भाजपा ने कभी नहीं कहा कि  'अच्छे दिन आयंगे' ! ये तो मीडिया और सोशल साइट्स वालों की हरकत थी कि नारा जड़ दिया !भाजपा वालों ने नहीं कहा  था कि  'अच्छे  दिन आएंगे ,राहुल नानी के घर जाएंगे '! यदि इस तरह के नारों  की गफलत में जनता ने  हमें[भाजपा और मोदी सरकार को ] भारी बहुमत  से  जिता दिया तो इसमें हमारा क्या कसूर है ? सत्तारूढ़ नेताओं के इस तरह के बोल बचन पर भारतीय सबल समाज के पढ़े लिखे शिक्षित- सभ्रांत  लोग  मौन क्यों हैं ?

कुछ दिन पहले भाजपा अध्यक्ष ने भी  इसी तरह कुछ बयान किया  था ! ''हमने काले धन की वापिसी और उसमें से प्रत्येक  खाता धारक गरीब के खाते में १५ लाख रूपये जमा करने का वादा  कभी नहीं किया ! ये तो मोदी जी का चुनावी  जुमला था" !  ताकतवर समाजों  के लोग  मजहब-धर्म व  आरक्षण जैसे  फ़ालतू मुद्दे उठाकर जनता का ध्यान   क्यों भटका रहे हैं  ? कहीं  वे  सत्तारूढ़ नेताओं की अकर्मण्यता को छिपाने के किसी  गुप्त एजेंडे पर काम तो   कर रहे हैं ? क्योंकि  असफल  सत्ता पक्ष के नेता वादों से मुकरने के लिए इस तरह की  बहस और नाटक  - नौटंकी  से  देश के सर्वहारा वर्ग को पहले भी मूर्ख बनाते  रहे हैं। यदि  पटेल-पाटीदार समाज को  ६० रूपये किलो प्याज ,१५० रू प्रति किलो तुवर  दाल  बिकने पर कोई फर्क नहीं पड़ता  तो  वे आरक्षण की मांग  क्यों  कर  रहे हैं ?

 हो सकता है कि  जैन् समाज के अधिकांस लोगों को प्याज की मेंहगाई  से कोई लेना-देना न हो ! किन्तु जो  तुवर दाल मनमोहन सिंह के राज में  १५ माह पहले ५० रुपया किलो  मिल जाती  थी ,वह मोदी जी के राज में  अब १५० रु प्रति किलो  बिक रही है ! क्या जैन समाज को  इससे कोई एतराज नहीं है ? भवन निर्माण मेटेरियल सौ गुना महँगा हो चूका है , जो  बालू रेत  १५ माह पहले ७ हजार रूपये प्रति ट्रक बिकती थे ,वह  इंदौर में अब एक लाख रूपये प्रति ट्रक  बिक रही है ! क्या सबल जैन समाज के लोग  इस अंधेगर्दी पर चुप ही रहेंगे ? क्या इस  पर एक विज्ञप्ति  भी जारी नहीं कर  सकते ? हो सकता है कि गुजरात के पटेलों  को  और देश भर के जैनियों को इस मेंहगाई से कोई फर्क न पड़ता हो! किन्तु जिस जनता को फर्क पड़ता है वो २ सितमबर को 'केंद्रीय ट्रेड यूनियन्स' के साथ कंधे से कंधा मिलकर  अपने असंतोष का इजहार अवश्य  करे !

 यदि पटेल ,पाटीदार ,जैन समाज के लोग इस 'सर्वजन हिताय' राष्ट्र व्यापी संघर्ष में शामिल होंगे तो ही हम मानेंगे कि  उनके प्रदर्शन का उद्देश्य पवित्र और सात्विक है ! यदि वे जन -संघर्षों में साथ देते हैं तो उन्हें भी  अन्य हितों पर देश की जनता का साथ मिल सकेगा  ! अन्यथा  देश की मेहनतकश  जनता यह मानकर चलेगी कि  ये लोग भी 'शोषक-शासक' वर्ग के स्टेक-होल्डर्स' हैं !और उनके ये तमाम भीड़ भरे आयोजन केवल शक्ति प्रदर्शन मात्र हैं !

       श्रीराम तिवारी   

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