जिन राष्ट्र शुभचिंतकों को - देश की संसद में हो रहे कुकरहाव की बड़ी चिंता है। जिन देशभक्तों को सांसदों पर होने वाले खर्च की बड़ी फ़िक्र है। उन प्रबुद्धजनों की चिंता बाजिब हो सकती है। लेकिन उन्हें यह याद रखना चाहिये कि उस्तरा चाहे तरबूज पर गिरे या तरबूज उस्तरे पर -जो कुछ होना है ,तरबूज का ही होना है।उन्हें यह भी याद रखना होगा कि संसद चलने का मतलब यह नहीं कि केवल अडानी-अम्बानी और देशी-विदेशी पूँजी -पतियों -सरमायेदारों के समर्थन में ही मोदी सरकार संसद में विधेयक पारित करती रहे। जब किसानों मजूरों के खिलाफ या सार्वजनिक उपक्रमों के खिलाफ संसद में रणनीति बन रही हो तब अत्यल्प विपक्ष को क्या करना चाहिए ? यदि सुषमाजी,शिवराज जी ,स्मृति जी ,वसुंधराजी जी और न जाने कौन-कौन जी पर लगे आरोपों पर देश के प्रधान मंत्री ही संसद में मौन रहेंगे तो विपक्ष को क्या करना चाहिए ? क्या विपक्ष द्वारा सत्तापक्ष के भृष्टाचार को देश के सामने उजागर करना अनैतिक है ? क्या ललित मोदियों के टुकड़ों पर चुनाव जीतने वालों की मंशानुसार ही संसद चलनी चाहिए? क्या विपक्ष को शुद्ध शांत भाव से यह सब चुपचाप टुकुर-टुकुर देखते रहना चाहिए ?
वास्तव में संसद में जो भी गतिरोध नजर आ रहा है , जो भी कुछ चल रहा है उसके लिए और कोई नहीं सिर्फ प्रधानमंत्री ही जिम्मेदार हैं ! विपक्ष की भूमिका का इससे बेहतर और क्या निर्वहन हो सकता है ?आखिरकार कांग्रेस को भी तो मालूम हो कि विपक्ष की रुसवाई कैसी होती है ? उधर सत्ता पक्ष के रूप में मोदी सरकार को भी मालूम हो गया होगा कि 'आँधियों 'के बेर बटोर लेने से घर की रसोई नहीं चलती ' । चाहे संसद में सत्ता पक्ष के छुद्र अहंकारी मदमस्त नेताओं की कर्कश चीख -पुकार हो , चाहे संसद से कांग्रेस के सांसदों का निलंबन हो ,चाहे स्पीकर का निहायत ही पक्षपातपूर्ण रवैया हो , ये सब तो संसदीय लोकतंत्र की आवश्यक बुराइयाँ हैं। इनसे देश का नुक्सान भले ही कितना ही होता रहे , किन्तु वर्तमान 'बनाना गणतंत्र'में इस प्रकार के उग्र विमर्श से बचा ही नहीं जा सकता । जब पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता का गठजोड़ सत्ता के बहुमत में हो तो संसद में वही होगा जो हो रहा है !
संसद नहीं चलने से सरकार समर्थक और भृष्टाचार में लिप्त सत्ता के दलालों को कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि चारण -भाट संतति को तो इसमें बड़ा मजा आ रहा है। सत्तापक्ष और सरकार की मुस्कराहट मीडिया में छिप नहीं पा रही है। वेशक संसद में विपक्ष की आक्रामकता उन पिछलग्गुओं को कतई बर्दास्त नहीं होगी , जिन्हे अपने संसदीय प्रचंड बहुमत का बड़ा गुमान होगा ! सत्ता के बगलगीर -दक्षिणपंथी कूढ़मगज मूढ़ पत्रकारों - बुद्धिजीवियों और स्वयंभू देश भक्तों को भी इस बात की बड़ी हैरानी है कि इतने प्रचंड बहुमत के वावजूद केंद्र की सरकार हर मोर्चे परअसफल और असहाय क्यों है ? हरएक विधेयक संसद में पास होने के बजाय अध्यादेशों की शक्ल में लागु किये जाने को अभिशप्त क्यों है ? इन ज्वलंत सवालों के जबाब देश की जनता अपने प्रधानमंत्री के मुँह से सुनना चाहती हैं !यदि जनता के इन सवालों को कांग्रेस ,वामपंथ और अन्य दल संसद में उठा रहे हैं ,यदि वे इन सवालों को लेकर संसद के बाहर धरना -प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ?
जनता के इन सवालों पर ,भृष्टाचार के सवालों पर, किसानों की आत्म हत्या के सवाल पर ,श्रम कानूनों के शिथलीकरण के सवाल पर ,सुषमा स्वराज और ललित मोदी के सवाल पर ,वसुंधरा राजे और ललित मोदी के सवाल पर , पंकजा मुण्डे और स्मृति ईरानी के संदेहास्पद आचरण पर , शिवराज और उनके मित्र 'यमराज' यानी व्यापम के नृसंशतापूर्ण नर संहार के सवाल पर - सत्ता का सबसे बाचाल 'शुक' जब स्थाई मौन धारण करेगा तो जनक्रोश का गुब्बारा भारतीय संसद में नहीं तो क्या 'व्हाइट हाउस ' में फूटेगा ? सुहाने- लुभावने सपनों के जो बादल लोक सभा चुनाव में खूब गरजा किये थे ,वे अब संसद के इस मानसून सत्र में बरस क्यों नहीं गए ? संसद के इस मानसून सत्र को यदि कोई निष्फल बता रहां है तो वह मूर्ख है । वास्तव में भारतीय संसद के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण और प्रमाण हैं ,जबकि विपक्ष के रूप में भाजपा ,जनसंघ ,सपा, जपा और अन्य विपक्षी दलों ने संसद को सैकड़ों बार बुरी तरह बाधित किया है। कांग्रेस का वर्तमान विपक्षी व्यवहार तो उसके सामने पासंग के बराबर भी नहीं है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी यदि उपरोक्त सवालों का जबाब सत्र के पहले ही दिन संसद के समक्ष प्रस्तुत कर देते तो शायद ही देश की इतनी फजीहत होती !दागी मंत्रियों ,मुख्यमंत्रियों की हकीकत जानते हुए वे 'संघ' और पार्टी संगठन की सदाशयता को राष्ट्र से ऊपर आंकते रहे। यदि वे सच्चे राष्ट्रवादी,स्वाभिमानी और ५६ इन्चीय सीने वाले हैं तो मुँह में दही क्यों जमाये बैठे रहे ? वैसे तो उन्हें बोलने का बड़ा शौक है। मोदी जी बड़े प्रत्युतपन्नमति अर्थात हाजिर जबाब भी ही हैं।फिर वे संसद के दोनों सदनों में स्वयं चुप्पी लगाकर कहाँ खोये रहे ? वेचारे अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद ,बेंकैया नायडू और मुख़्तार अंसारी को ही क्यों नाहक खर्च किये जाते रहे हैं ? कहीं 'नमो ' का आत्मविश्वाश डोलने तो नहीं लगा है ? यदि प्रधानमंत्री को लगता है कि विपक्ष के आरोप गलत हैं तो देश की संसद में 'मन की बात' कहें न !
शायद अपनी किसी कमजोर नब्ज के चलते ही मोदी जी और उनकी सरकार ने पहले 'लोक सभा टीवी 'से विपक्ष को गायब किया और बाद में पूरे विपक्ष को ही संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया है ! इतिहास में पहली बार ऐंसा हुआ है कि पहले तो विपक्ष को मान्यता ही नहीं दी गयी और अब उसकी बची खुची आवाज को भी बड़ी तिकड़म और ढीठता से नेस्तनाबूद किए जा रहा है ! स्पीकर की पक्षपातपूर्ण हेराफेरी किसी से छिपी नहीं है। भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए यह अपशकुन है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश चौतरफा मुसीबतों से घिरा है। 'सबका साथ -सबका विकास ' इस तरह कैसे सम्भव है ? मात्र ३० % वोट हासिल कर संसद में २८० सीट तो जीती जा सकती हैं किन्तु देश को बचाने के लिए ,विकाश व् सुशासन के लिए उन लोगों की आवाज को अनसुना करना उचित नहीं - जो मोदी जी की तरह 'चुनाव प्रबंधन' या मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत संसद में बहुमत की विजय हासिल नहीं कर पाये। आपस में बिखरे हुए होने से आज भारत का विपक्ष ५० % वोट पाकर भी संसद में गुजारे लायक भूमिका में भी नहीं है !
वेशक लोकतंत्र के प्रमुख स्तम्भ के रूप में संसद की महत्ता सर्वोच्च है। संसद में पक्ष -विपक्ष की बाचालिक भिड़ंत या नीतियों-कार्यक्रमों में वैचारिक टकराव कोई बेजा हरकत या महापाप नहीं है। यह तो स्पीकर की काबलियत और सदन के नेता की काबिलयत पर निर्भर है कि वह सत्ता पक्ष के गुरुतम् भार का वहन करे। देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है कि कबीर के इस मन्त्र - "अंतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट' का प्रयोग करे ! संसद में वयान देकर विपक्ष के आक्रोश को डाइल्यूट करे। थोड़ी से संसदीय सदाशयता और लोकतान्त्रिक तौर तरीकों से यदि संसद को चलाया जाए तो बाकई देश के कुछ तो अच्छे दिन आ ही सकते हैं। जनता की वास्तविक खुशहाली और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा तो तभी सम्भव यही जब देश की शोषित -पीड़ित जनता और मजदूर-किसान एक महान समग्रगामी साम्यवादी जन क्रान्ति का आह्वान करें । तब तक इस संसदीय लोकतंत्र को बचाये रखना बहुत जरुरी है। जोकि वर्तमान दौर में असुरक्षित है।
इन दिनों संसद की कार्यवाही ठप्प है। कांग्रेस और अन्य सभी विपक्षी सड़कों पर अपना रोष जाहिर कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि कौन है इस स्थति के लिए जिम्मेदार है ? यह एक औसत बुद्धि का आदमी और ओरत भी जानते हैं कि संसद नहीं चलने से किसका फायदा है ? यदि संसद ठप्प है तो विपक्ष की गैर मौजूदगी में सत्ता पक्ष संसद में मनमानी करके किसान विरोधी ,मजदूर विरोधी और कार्पोरेट परस्त तमाम विधेयक पारित कर सकता है । सत्ता पक्ष के दागी मंत्रियों के गुनाहों पर परदा दाल सकता है। हालाँकि जब कांग्रेस [यूपीए] सत्ता में थी तब भी संसद के हाल यही थे। किन्तु तब लोक सभा स्पीकर चाहे सोमनाथ चटर्जी रहे हों या मीरा कुमार रही हों ,किन्तु वे सत्ता पक्ष के हाथों की इस तरह कठपुतली कभी नहीं बने। सोमनाथ चटर्जी ने तो एक बार नीतिगत सवाल पर अपनी 'मातृ संस्था -सीपीएम की भी बात नहीं मानी थी। उन्होंने तठस्थ सभापति का आदर्श पेश किया। इसी तरह सोनिया गांधी की परम कृपा पात्र होते हुए भी सुश्री मीरा कुमार ने भी यूपीए -दो के दोरान कई मर्तबा भाजपा सांसदों की दुशासन लीला का सामना किया था। किन्तु उन्होंने भी कभी इस तरह थोक में सांसदों का निलंबन नहीं किया। लेकिन लगता है कि वर्तमान लोक सभा अध्यक्ष आदरणीय ताई जी - सुमित्रा महाजन को स्वयं निर्णय लेने का कोई अधिकार नहींरहा है। वरना उनके जैसी न्यायप्रिय -शालीन और डेमोक्रटिक फंक्शनिंग के प्रति कर्तव्यनिष्ठ सीनियर सांसद का -लोक सभा स्पीकर पद पर होते हुए भी इतनी अंधेरगर्दी का होते रहना हैरानी की बात है ! कोई भी स्वाभिमानी देशभक्त इस तरह का अलोकतांत्रिक वर्ताव नहीं कर सकता। यदि भृष्ट सत्तापक्ष द्वारा ताई के कंधों पर बन्दूक रखकर चलाई जा रही है तो भी उन्हें इससे बढ़िया सुअवसर और क्या हो सकता है कि वे इस निरंकुश्ताबाद बेनकाब करते हुए भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा का मान रखें। ताई चाहें तो सोमनाथ चटर्जी का अनुशरण कर देवी अहिल्या बाई होल्कर की धवल कीर्ति को बुलंदियों तक पहूंचा सकतीं हैं। ताई का संसद में विपक्ष के साथ बेहतर व्यवहार वास्तव में भारतीय जनता की आवाज के प्रति आदरभाव ही सिद्ध होगा। देवी अहिल्या बाई के प्रति उनकी इससे बेहतर और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है ?
वेशक लोक सभा की कार्यवाही सेंसर की जा रही है । विपक्ष को जानबूझकर दिखाया ही नहीं जाता।सरकार की यह हरकत उसकी कमजोरी को ही पुष्ट करती है। यदि हंगामेबाज सांसदों को लाइव दिखाया जाता तो इससे सरकार का क्या बिगड़ता ? इससे तो विपक्ष की ही किरकिरी होती [यदि वे हंगामे में संलग्न होते !],आम जनता को मालूम तो पड़ता कि असल गुनहगार कौन है ? ऐसा आभाषित होता है कि मोदी जी ने अपने खुद के गुजरात मॉडल को ही संसद में भी एप्लाई करके दिखा दिया है। सत्ता पक्ष के इस अलोकतांत्रक आचरण से न केवल संसद की गरिमा का चीर हरण हो रहा है , बल्कि संवादहीनता और असहिष्णुता के दम्भ में नव नाजीवाद और नव फासीवाद का बीजांकुरण भी रहा है।
यह सर्वविदित है कि विगत एक वर्ष के कार्यकाल में संसद का काम काज एक दिन भी ठीक-ठाक नहीं चल पाया है । संसद का वर्तमान मानसून सत्र भी शोर और हंगामे की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। संसद में सत्ता पक्ष का आचरण आदतन 'विपक्ष जैसा और 'बची-खुची' कांग्रेस का आचरण भी आदतन 'सत्तापक्ष' जैसा ही प्रदर्शित हो रहा है। सत्रावसान नजदीक है और देश के सब्र का इम्तहान भी छीजता जा रहा है। इस स्थति के लिए सत्ता पक्ष द्वारा बड़ी चालाकी से ,विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जबकि संसद ठप्प होने या संसदीय कार्यवाही आंशिक रूप से बाधित होने से विपक्ष को धइले भर का लाभ नहीं है। बल्कि इसमें सरकार को ही फायदा है। इसीलिए हर किस्म के संसदीय व्यतिक्रम के लिए सत्तापक्ष या उसके मंत्री ही पूर्णतः जिम्मेदार हैं । वेशक इस बात का लोहा तो मानना ही पडेगा कि वर्तमान 'मोदी- सरकार'हर किस्म के ढ़पोरशंखी वितंडावाद में सिद्धहस्त साबित हुई है। अधिकांस प्रिंट,दृश्य,श्रव्य,औरसंगठन का 'कनबतियां' - प्रचार -प्रसार 'साधने' में मोदी सरकार बार-बार सफल हो रही है। उन्होंने बाकई छत्तीश इंच के सीने को छप्पन का सिद्ध कर दिखाया है। लेकिन यह वीरता पाकिस्तान और चीन से निपटने में नहीं बल्कि अपने हमवतन साथियों -विपक्षी नेताओं को निपटाने के काम आ रही है। मोदी जी और 'संघ' का मीडिया मैनेजमेंट तो दुनिया में बेजोड़ है ! सरकारी ,गैर सरकारी और कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया संस्थान भी समवेत स्वर में 'सत्तापक्ष का स्वस्तिवाचन किये जा रहा है.। वह 'मोदी सरकार' को संसदीय प्रजातंत्र का प्रहरी और विपक्ष को संघातक सिद्ध करने में जुटा है। जो खलनायक हैं वे नायक बताये जा रहे हैं। विपक्षियों को भी जनता ने ही चुनकर संसद में भेजा है। किंतु दुर्भाग्य से वे अल्पमत में हैं । अब मीडिया इन निरीह और बचे-खुचे सांसदों पर टूट प;पड़ा है। क्या यह न्याय और देशभक्ति है ? अधिकांस टुच्चे अखवार और टीवी चेनल्स 'संसदीय' कार्यवाही बाधित होने को देश का बंटाढार सिद्ध करने में जुटे हैं। वे शायद नहीं जानते कि संसदीय कारवाही बाधित होना भी लोकतंत्र का ही एक अहम हिस्सा है। बीमार लोकतंत्र व पथभृष्ट सरकार के लिए तो यह संसदीय 'महाभारत' एक कडुवी ओषधि जैसा ही है ! देश की जनता को देश हित में इसे जबरियां ही सही ,किन्तु पीना ही पड़ेगी ।
चूँकि वर्तमान मोदी सरकार' ने विगत १५ महीने में "खाया -पीया चार आना और ग्लास फोड़ा बारह आना '' ही चरितार्थ किया है। इस सरकार को अभी तक यही मालूम नहीं कि किसान आत्म हत्या क्यों कर रहे हैं ? सरकार के मंत्री का कहना है कि आजकल किसान प्यार मोहब्बत में असफल होने या पारिवारिक कलह से पीड़ित होकर आत्महत्या कर रहे हैं। उस मंत्री को सूदखोर दवंगों का आतंक नहीं दिखा। उसे पिछले साल का सूखा ,फिर अकाल वृष्टि और अब बाढ़ -ये सब नहीं दीखते। सरकार के पीएमओ या वित्त मंत्री को नहीं मालूम कि कालाधन कहाँ हैं ? प्रधानमंत्री द्वारा किये गए वादे के अनुसार स्विट्जरर्लैंड वाला कालाधन प्रति व्यक्ति -पंद्रह लाख ,रूपये खाते में कब जमा होगा ? यह भी कोई बताने को तैयार नहीं ! हाफिज सईद,दाऊद , और अन्य वांछित भगोड़े आतंकी कहाँ हैं ? आतंकियों ,देशद्रोहियों को पकड़ने के बजाय सत्ताधरी 'रामदल' के नेता मंत्री 'हिन्दुओं को डरपोंक ' बता रहे हैं। क्या मोदी जी हिन्दू नहीं हैं ? क्या वे भी डरपोंक ही हैं ? क्या मंत्री के इस तरह के घटया वयान की जानकारी सरकार को नहीं! इस सरकार के सत्ता में आते ही कश्मीर क्यों जल उठा ? अमरनाथ यात्राओं पर आतंकी हमले अब क्यों हो चले हैं ?
इन तमाम सवालों की जद में खड़े मोदी जी ,सत्ता पक्ष और उनकी सरकार के पक्ष में शिद्द्त से खड़ी 'स्पीकर महोदया - इतिहास आप को भी माफ़ नहीं करेगा। यह याद रखें कि संसद संचालन की महानता से आप अभी बहुत दूर हैं।
श्रीराम तिवारी
वास्तव में संसद में जो भी गतिरोध नजर आ रहा है , जो भी कुछ चल रहा है उसके लिए और कोई नहीं सिर्फ प्रधानमंत्री ही जिम्मेदार हैं ! विपक्ष की भूमिका का इससे बेहतर और क्या निर्वहन हो सकता है ?आखिरकार कांग्रेस को भी तो मालूम हो कि विपक्ष की रुसवाई कैसी होती है ? उधर सत्ता पक्ष के रूप में मोदी सरकार को भी मालूम हो गया होगा कि 'आँधियों 'के बेर बटोर लेने से घर की रसोई नहीं चलती ' । चाहे संसद में सत्ता पक्ष के छुद्र अहंकारी मदमस्त नेताओं की कर्कश चीख -पुकार हो , चाहे संसद से कांग्रेस के सांसदों का निलंबन हो ,चाहे स्पीकर का निहायत ही पक्षपातपूर्ण रवैया हो , ये सब तो संसदीय लोकतंत्र की आवश्यक बुराइयाँ हैं। इनसे देश का नुक्सान भले ही कितना ही होता रहे , किन्तु वर्तमान 'बनाना गणतंत्र'में इस प्रकार के उग्र विमर्श से बचा ही नहीं जा सकता । जब पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता का गठजोड़ सत्ता के बहुमत में हो तो संसद में वही होगा जो हो रहा है !
संसद नहीं चलने से सरकार समर्थक और भृष्टाचार में लिप्त सत्ता के दलालों को कोई फर्क नहीं पड़ता, बल्कि चारण -भाट संतति को तो इसमें बड़ा मजा आ रहा है। सत्तापक्ष और सरकार की मुस्कराहट मीडिया में छिप नहीं पा रही है। वेशक संसद में विपक्ष की आक्रामकता उन पिछलग्गुओं को कतई बर्दास्त नहीं होगी , जिन्हे अपने संसदीय प्रचंड बहुमत का बड़ा गुमान होगा ! सत्ता के बगलगीर -दक्षिणपंथी कूढ़मगज मूढ़ पत्रकारों - बुद्धिजीवियों और स्वयंभू देश भक्तों को भी इस बात की बड़ी हैरानी है कि इतने प्रचंड बहुमत के वावजूद केंद्र की सरकार हर मोर्चे परअसफल और असहाय क्यों है ? हरएक विधेयक संसद में पास होने के बजाय अध्यादेशों की शक्ल में लागु किये जाने को अभिशप्त क्यों है ? इन ज्वलंत सवालों के जबाब देश की जनता अपने प्रधानमंत्री के मुँह से सुनना चाहती हैं !यदि जनता के इन सवालों को कांग्रेस ,वामपंथ और अन्य दल संसद में उठा रहे हैं ,यदि वे इन सवालों को लेकर संसद के बाहर धरना -प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या गलत कर रहे हैं ?
जनता के इन सवालों पर ,भृष्टाचार के सवालों पर, किसानों की आत्म हत्या के सवाल पर ,श्रम कानूनों के शिथलीकरण के सवाल पर ,सुषमा स्वराज और ललित मोदी के सवाल पर ,वसुंधरा राजे और ललित मोदी के सवाल पर , पंकजा मुण्डे और स्मृति ईरानी के संदेहास्पद आचरण पर , शिवराज और उनके मित्र 'यमराज' यानी व्यापम के नृसंशतापूर्ण नर संहार के सवाल पर - सत्ता का सबसे बाचाल 'शुक' जब स्थाई मौन धारण करेगा तो जनक्रोश का गुब्बारा भारतीय संसद में नहीं तो क्या 'व्हाइट हाउस ' में फूटेगा ? सुहाने- लुभावने सपनों के जो बादल लोक सभा चुनाव में खूब गरजा किये थे ,वे अब संसद के इस मानसून सत्र में बरस क्यों नहीं गए ? संसद के इस मानसून सत्र को यदि कोई निष्फल बता रहां है तो वह मूर्ख है । वास्तव में भारतीय संसद के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण और प्रमाण हैं ,जबकि विपक्ष के रूप में भाजपा ,जनसंघ ,सपा, जपा और अन्य विपक्षी दलों ने संसद को सैकड़ों बार बुरी तरह बाधित किया है। कांग्रेस का वर्तमान विपक्षी व्यवहार तो उसके सामने पासंग के बराबर भी नहीं है।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी यदि उपरोक्त सवालों का जबाब सत्र के पहले ही दिन संसद के समक्ष प्रस्तुत कर देते तो शायद ही देश की इतनी फजीहत होती !दागी मंत्रियों ,मुख्यमंत्रियों की हकीकत जानते हुए वे 'संघ' और पार्टी संगठन की सदाशयता को राष्ट्र से ऊपर आंकते रहे। यदि वे सच्चे राष्ट्रवादी,स्वाभिमानी और ५६ इन्चीय सीने वाले हैं तो मुँह में दही क्यों जमाये बैठे रहे ? वैसे तो उन्हें बोलने का बड़ा शौक है। मोदी जी बड़े प्रत्युतपन्नमति अर्थात हाजिर जबाब भी ही हैं।फिर वे संसद के दोनों सदनों में स्वयं चुप्पी लगाकर कहाँ खोये रहे ? वेचारे अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद ,बेंकैया नायडू और मुख़्तार अंसारी को ही क्यों नाहक खर्च किये जाते रहे हैं ? कहीं 'नमो ' का आत्मविश्वाश डोलने तो नहीं लगा है ? यदि प्रधानमंत्री को लगता है कि विपक्ष के आरोप गलत हैं तो देश की संसद में 'मन की बात' कहें न !
शायद अपनी किसी कमजोर नब्ज के चलते ही मोदी जी और उनकी सरकार ने पहले 'लोक सभा टीवी 'से विपक्ष को गायब किया और बाद में पूरे विपक्ष को ही संसद से बाहर का रास्ता दिखा दिया है ! इतिहास में पहली बार ऐंसा हुआ है कि पहले तो विपक्ष को मान्यता ही नहीं दी गयी और अब उसकी बची खुची आवाज को भी बड़ी तिकड़म और ढीठता से नेस्तनाबूद किए जा रहा है ! स्पीकर की पक्षपातपूर्ण हेराफेरी किसी से छिपी नहीं है। भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए यह अपशकुन है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि देश चौतरफा मुसीबतों से घिरा है। 'सबका साथ -सबका विकास ' इस तरह कैसे सम्भव है ? मात्र ३० % वोट हासिल कर संसद में २८० सीट तो जीती जा सकती हैं किन्तु देश को बचाने के लिए ,विकाश व् सुशासन के लिए उन लोगों की आवाज को अनसुना करना उचित नहीं - जो मोदी जी की तरह 'चुनाव प्रबंधन' या मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत संसद में बहुमत की विजय हासिल नहीं कर पाये। आपस में बिखरे हुए होने से आज भारत का विपक्ष ५० % वोट पाकर भी संसद में गुजारे लायक भूमिका में भी नहीं है !
वेशक लोकतंत्र के प्रमुख स्तम्भ के रूप में संसद की महत्ता सर्वोच्च है। संसद में पक्ष -विपक्ष की बाचालिक भिड़ंत या नीतियों-कार्यक्रमों में वैचारिक टकराव कोई बेजा हरकत या महापाप नहीं है। यह तो स्पीकर की काबलियत और सदन के नेता की काबिलयत पर निर्भर है कि वह सत्ता पक्ष के गुरुतम् भार का वहन करे। देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी है कि कबीर के इस मन्त्र - "अंतर हाथ सहार दे बाहर मारे चोट' का प्रयोग करे ! संसद में वयान देकर विपक्ष के आक्रोश को डाइल्यूट करे। थोड़ी से संसदीय सदाशयता और लोकतान्त्रिक तौर तरीकों से यदि संसद को चलाया जाए तो बाकई देश के कुछ तो अच्छे दिन आ ही सकते हैं। जनता की वास्तविक खुशहाली और देश की राष्ट्रीय सुरक्षा तो तभी सम्भव यही जब देश की शोषित -पीड़ित जनता और मजदूर-किसान एक महान समग्रगामी साम्यवादी जन क्रान्ति का आह्वान करें । तब तक इस संसदीय लोकतंत्र को बचाये रखना बहुत जरुरी है। जोकि वर्तमान दौर में असुरक्षित है।
इन दिनों संसद की कार्यवाही ठप्प है। कांग्रेस और अन्य सभी विपक्षी सड़कों पर अपना रोष जाहिर कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि कौन है इस स्थति के लिए जिम्मेदार है ? यह एक औसत बुद्धि का आदमी और ओरत भी जानते हैं कि संसद नहीं चलने से किसका फायदा है ? यदि संसद ठप्प है तो विपक्ष की गैर मौजूदगी में सत्ता पक्ष संसद में मनमानी करके किसान विरोधी ,मजदूर विरोधी और कार्पोरेट परस्त तमाम विधेयक पारित कर सकता है । सत्ता पक्ष के दागी मंत्रियों के गुनाहों पर परदा दाल सकता है। हालाँकि जब कांग्रेस [यूपीए] सत्ता में थी तब भी संसद के हाल यही थे। किन्तु तब लोक सभा स्पीकर चाहे सोमनाथ चटर्जी रहे हों या मीरा कुमार रही हों ,किन्तु वे सत्ता पक्ष के हाथों की इस तरह कठपुतली कभी नहीं बने। सोमनाथ चटर्जी ने तो एक बार नीतिगत सवाल पर अपनी 'मातृ संस्था -सीपीएम की भी बात नहीं मानी थी। उन्होंने तठस्थ सभापति का आदर्श पेश किया। इसी तरह सोनिया गांधी की परम कृपा पात्र होते हुए भी सुश्री मीरा कुमार ने भी यूपीए -दो के दोरान कई मर्तबा भाजपा सांसदों की दुशासन लीला का सामना किया था। किन्तु उन्होंने भी कभी इस तरह थोक में सांसदों का निलंबन नहीं किया। लेकिन लगता है कि वर्तमान लोक सभा अध्यक्ष आदरणीय ताई जी - सुमित्रा महाजन को स्वयं निर्णय लेने का कोई अधिकार नहींरहा है। वरना उनके जैसी न्यायप्रिय -शालीन और डेमोक्रटिक फंक्शनिंग के प्रति कर्तव्यनिष्ठ सीनियर सांसद का -लोक सभा स्पीकर पद पर होते हुए भी इतनी अंधेरगर्दी का होते रहना हैरानी की बात है ! कोई भी स्वाभिमानी देशभक्त इस तरह का अलोकतांत्रिक वर्ताव नहीं कर सकता। यदि भृष्ट सत्तापक्ष द्वारा ताई के कंधों पर बन्दूक रखकर चलाई जा रही है तो भी उन्हें इससे बढ़िया सुअवसर और क्या हो सकता है कि वे इस निरंकुश्ताबाद बेनकाब करते हुए भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा का मान रखें। ताई चाहें तो सोमनाथ चटर्जी का अनुशरण कर देवी अहिल्या बाई होल्कर की धवल कीर्ति को बुलंदियों तक पहूंचा सकतीं हैं। ताई का संसद में विपक्ष के साथ बेहतर व्यवहार वास्तव में भारतीय जनता की आवाज के प्रति आदरभाव ही सिद्ध होगा। देवी अहिल्या बाई के प्रति उनकी इससे बेहतर और क्या श्रद्धांजलि हो सकती है ?
वेशक लोक सभा की कार्यवाही सेंसर की जा रही है । विपक्ष को जानबूझकर दिखाया ही नहीं जाता।सरकार की यह हरकत उसकी कमजोरी को ही पुष्ट करती है। यदि हंगामेबाज सांसदों को लाइव दिखाया जाता तो इससे सरकार का क्या बिगड़ता ? इससे तो विपक्ष की ही किरकिरी होती [यदि वे हंगामे में संलग्न होते !],आम जनता को मालूम तो पड़ता कि असल गुनहगार कौन है ? ऐसा आभाषित होता है कि मोदी जी ने अपने खुद के गुजरात मॉडल को ही संसद में भी एप्लाई करके दिखा दिया है। सत्ता पक्ष के इस अलोकतांत्रक आचरण से न केवल संसद की गरिमा का चीर हरण हो रहा है , बल्कि संवादहीनता और असहिष्णुता के दम्भ में नव नाजीवाद और नव फासीवाद का बीजांकुरण भी रहा है।
यह सर्वविदित है कि विगत एक वर्ष के कार्यकाल में संसद का काम काज एक दिन भी ठीक-ठाक नहीं चल पाया है । संसद का वर्तमान मानसून सत्र भी शोर और हंगामे की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है। संसद में सत्ता पक्ष का आचरण आदतन 'विपक्ष जैसा और 'बची-खुची' कांग्रेस का आचरण भी आदतन 'सत्तापक्ष' जैसा ही प्रदर्शित हो रहा है। सत्रावसान नजदीक है और देश के सब्र का इम्तहान भी छीजता जा रहा है। इस स्थति के लिए सत्ता पक्ष द्वारा बड़ी चालाकी से ,विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। जबकि संसद ठप्प होने या संसदीय कार्यवाही आंशिक रूप से बाधित होने से विपक्ष को धइले भर का लाभ नहीं है। बल्कि इसमें सरकार को ही फायदा है। इसीलिए हर किस्म के संसदीय व्यतिक्रम के लिए सत्तापक्ष या उसके मंत्री ही पूर्णतः जिम्मेदार हैं । वेशक इस बात का लोहा तो मानना ही पडेगा कि वर्तमान 'मोदी- सरकार'हर किस्म के ढ़पोरशंखी वितंडावाद में सिद्धहस्त साबित हुई है। अधिकांस प्रिंट,दृश्य,श्रव्य,औरसंगठन का 'कनबतियां' - प्रचार -प्रसार 'साधने' में मोदी सरकार बार-बार सफल हो रही है। उन्होंने बाकई छत्तीश इंच के सीने को छप्पन का सिद्ध कर दिखाया है। लेकिन यह वीरता पाकिस्तान और चीन से निपटने में नहीं बल्कि अपने हमवतन साथियों -विपक्षी नेताओं को निपटाने के काम आ रही है। मोदी जी और 'संघ' का मीडिया मैनेजमेंट तो दुनिया में बेजोड़ है ! सरकारी ,गैर सरकारी और कार्पोरेट नियंत्रित मीडिया संस्थान भी समवेत स्वर में 'सत्तापक्ष का स्वस्तिवाचन किये जा रहा है.। वह 'मोदी सरकार' को संसदीय प्रजातंत्र का प्रहरी और विपक्ष को संघातक सिद्ध करने में जुटा है। जो खलनायक हैं वे नायक बताये जा रहे हैं। विपक्षियों को भी जनता ने ही चुनकर संसद में भेजा है। किंतु दुर्भाग्य से वे अल्पमत में हैं । अब मीडिया इन निरीह और बचे-खुचे सांसदों पर टूट प;पड़ा है। क्या यह न्याय और देशभक्ति है ? अधिकांस टुच्चे अखवार और टीवी चेनल्स 'संसदीय' कार्यवाही बाधित होने को देश का बंटाढार सिद्ध करने में जुटे हैं। वे शायद नहीं जानते कि संसदीय कारवाही बाधित होना भी लोकतंत्र का ही एक अहम हिस्सा है। बीमार लोकतंत्र व पथभृष्ट सरकार के लिए तो यह संसदीय 'महाभारत' एक कडुवी ओषधि जैसा ही है ! देश की जनता को देश हित में इसे जबरियां ही सही ,किन्तु पीना ही पड़ेगी ।
चूँकि वर्तमान मोदी सरकार' ने विगत १५ महीने में "खाया -पीया चार आना और ग्लास फोड़ा बारह आना '' ही चरितार्थ किया है। इस सरकार को अभी तक यही मालूम नहीं कि किसान आत्म हत्या क्यों कर रहे हैं ? सरकार के मंत्री का कहना है कि आजकल किसान प्यार मोहब्बत में असफल होने या पारिवारिक कलह से पीड़ित होकर आत्महत्या कर रहे हैं। उस मंत्री को सूदखोर दवंगों का आतंक नहीं दिखा। उसे पिछले साल का सूखा ,फिर अकाल वृष्टि और अब बाढ़ -ये सब नहीं दीखते। सरकार के पीएमओ या वित्त मंत्री को नहीं मालूम कि कालाधन कहाँ हैं ? प्रधानमंत्री द्वारा किये गए वादे के अनुसार स्विट्जरर्लैंड वाला कालाधन प्रति व्यक्ति -पंद्रह लाख ,रूपये खाते में कब जमा होगा ? यह भी कोई बताने को तैयार नहीं ! हाफिज सईद,दाऊद , और अन्य वांछित भगोड़े आतंकी कहाँ हैं ? आतंकियों ,देशद्रोहियों को पकड़ने के बजाय सत्ताधरी 'रामदल' के नेता मंत्री 'हिन्दुओं को डरपोंक ' बता रहे हैं। क्या मोदी जी हिन्दू नहीं हैं ? क्या वे भी डरपोंक ही हैं ? क्या मंत्री के इस तरह के घटया वयान की जानकारी सरकार को नहीं! इस सरकार के सत्ता में आते ही कश्मीर क्यों जल उठा ? अमरनाथ यात्राओं पर आतंकी हमले अब क्यों हो चले हैं ?
इन तमाम सवालों की जद में खड़े मोदी जी ,सत्ता पक्ष और उनकी सरकार के पक्ष में शिद्द्त से खड़ी 'स्पीकर महोदया - इतिहास आप को भी माफ़ नहीं करेगा। यह याद रखें कि संसद संचालन की महानता से आप अभी बहुत दूर हैं।
श्रीराम तिवारी
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