प्रशंग एक :-
अभी हाल ही में सीआरपीएफ के जवान से जुड़ा एक सनसनी खेज मामला उजागर हुआ है। विगत साढ़े तीन साल से जिसके परिजन - जिस जवान को मृत मानकर बैठे थे ,वह हिमाचल प्रदेश के किसी लक्झरी होटल में अपनी 'गर्लफ्रेंड' बनाम प्रेमिका बनाम रखैल के साथ रंगरेलियाँ मनाते हुए रँगे हाथों पकड़ा गया।यह स्मरणीय है कि उस जवान की 'मृत्यु' उपरान्त भारत सरकार उस परिवार को सत्रह लाख रूपये मुआवजा राशि दे चुकी है। इसके अलावा उसकी पत्नी को बारह हजार रूपये प्रति माह पेंशन भी दी जा रही है। पुलिस महा निरीक्षक जयपुर श्री डीसी जैन के मुताबिक 'दशरथ जाट ' नामक वह सिपाही झुनझुनू के दोरादास का रहने वाला है। वह १९९८ में सीआरपीएफ में सिपाही के पद पर भर्ती हुआ था। इसकी भी पूरी सम्भावना है कि इस तरह के चलते-पुर्जे गद्दार ने आरक्षण या रिश्वत की गटरगंगा में डुबकी जरूर लगाई होगी। यह शख्स २०१२ में जब बिहार की यूनिट में तैनात था तब उसने एक माह का 'सवैतनिक' अवकाश लिए था। अवकाश की अवधि पूरी होने के बाद वह अपनी यूनिट में वापसी का कहकर घर से गया था। किन्तु वह न तो ड्यूटी पर पहुंचा और न ही घर वापिस लौटा। क्या भारतीय सुरक्षा तंत्र और प्रशासनिक मशीनरी का यही असली डीएनए है ? क्या ऐंसे ही दोगले लोगों के भरोसे और उनके द्वारा संचालित 'वर्णशंकर' व्यवस्था के बलबूते हम चीन-पाकिस्तान को उनकी निर्मम आक्रामकता का माकूल जबाब दें सकेंगे ?
प्रसंग दो :-
विगत कुछ दिनों पहले उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित पाकिस्तानी आतंकी'नावेद' को ज़िंदा पकड़ने वाले -'जीजा -साले' न तो फौजी हैं ,न ही आरक्षण प्राप्त कोई वेतन भोगी सरकारी कर्मचारी-अधिकारी हैं ,न ही कोई मठ्टर रिश्वतखोर अधिकारी हैं ,न ही कोई धंधेबाज नेता हैं। वे तो मामूली मेहनतकश नागरिक हैं जो आये दिन पाकिस्तान प्रेरित आतंक के साये में जीते-मरते हैं। वास्तव में वतन के असली रखवाले और सच्चे वतन परस्त ये ही हैं। विक्रमजीत और राकेश शर्मा यदि उस आतंकी नावेद को जीवित नहीं पकड़ते तो इस आतंकी घटना की तस्वीर कुछ और होतीं। एक तो यह कि जिन वेगुनाहों को उस दुष्ट आतंकी ने एके -४७ की नोक पर बंधक बनाया था ,वे सब मारे जाते। दूसरा परिणाम यह होता कि बाद में एक दर्जन भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवानों की शहादत के बाद भारतीय सुरक्षा बलों के हाथ जो लाशें आतीं उनमें एक लाश आतंकी नावेद की भी होती। तीसरा परिणाम यह होता कि भारत के पास पाकिस्तान के खिलाफ कोई ज़िंदा सबूत नहीं होता ! इससे सिद्ध होता है कि आतंकी नावेद के जिन्दा पकडे जाने में जिन 'देशभक्तों' की भूमिका शानदार रही है। वे 'राष्ट्रीय गौरव ' के असली हकदार हैं। खबर है कि राज्य सरकार ने इन जाँबाज 'जीजा -साले' को आरक्षक बलों में भर्ती की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है। उन्हें वीरोचित राष्ट्रीय समान से भी नवाजा जाएगा। देश की युवा पीढ़ी कोअपने कॅरियर की फ़िक्र के साथ-साथ इन्ही प्रेरणास्पद आदर्शों से सीखना चाहिए !
उपरोक प्रसंग भारत के वर्तमान दौर की व्यवस्था व जन-मानसिकता का सांकेतिक प्रतिनिधित्व करते हैं। मेहनत ,ईमानदारी से आजीविका चलाने वालों को सद्गति मिलती है ,ये तो प्रमाणित करना पडेगा ,किन्तु यह पक्की बात है कि ऐंसे व्यक्ति ही समाज के लिए ,देश के लिए अनुकरणीय होते हैं। जो बिना किसी आरक्षण रुपी वैशाखी या रिश्वत के देश के गद्दारों से लोहा ले सकते हैं ,वे विक्रमजीत और राकेश शर्मा ही देश और कौम के असल नायक कहे जा सकते हैं। इस साहस और वतनपरस्ती की भारत को बहुत सख्त जरुरत है। भारत के मेहनतकश जन तो देशभक्त हैं किन्तु राजनीति में अपनी ताकत बढ़ाने और वोट बटोरने के लिए कोई जाति वाद का ,कोई मजहब का ,कोई आरक्षण का और कोई अल्पसंख्यकवाद का चूल्हा सुलगाये हुए है। इससे देश के मेहनतकशों-किसानों और बेरोजगार युवाओं की एकता तार- तार हो आरही है। इसी कमजोरी का फायदा आतंकवादी और अलगाववादी उठा रहे हैं। सर्वहारा वर्ग और ईमानदार पेटी -बुर्जुवा वर्ग की आपसी खींच तान का फायदा कार्पोरेट लाबी और पूँजीवादी -साम्प्रदायिक पार्टियों को मिल रहा है। जो लोग लोकतंत्र को बाहुबल और धनबल से अपनी कांख में दबाये हुए हैं वे देशभक्त कैसे हो सकते हैं ?
किसी एक आतंकी के जीवित पकडे जाने पर भाजपा नेता-प्रवक्ता फिर वही म्यांमार वाली शर्मनाक घटना की पुनरावृत्ति कर रहे हैं। ये लोग हर दुर्घटना या आतंकी हमले के बाद स्वयं की पीठ ठोकने लग जाते हैं। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकी जान बूझकर ऐंसी जानकारियाँ देते हैं ताकि ,बाद में भारत और उलझ जाये एवं सरकार की दुनिया भर में हँसी उड़े। यही तो पाकिस्तान की षड्यंत्रकारी कूटनीति है कि उसे आतंकी के बारे में सचाई मालूम है ,किन्तु उसकी संबध्दता से इंकार कर रहा है। जबकि नावेद के वयान को आधार बनाकर भारत सरकार अपना कूटनीतिक स्टेण्ड ले रही है। जब भारत ने कहा कि नावेद और दूसरे मारे गए आतंकी पाकिस्तान के हैं , तो पाकिस्तान ने फौरन इंकार कर दिया। चूँकि पाकिस्तान की कभी भी वाशिंगटन -व्हाइट हाउस में पेशी भी हो सकती है.तो वह सबूतों की बात करेगा। भले ही आतंकी पाकिस्तान का ही है किन्तु उस ने जो कहा उसे ही सच मानकर भारतीय एजेंसियां भयानक भूल कर रहीं हैं। भारतीय संप्रभुता पर हमला करने वाला -आतंकी बेखौफ मुस्कराते हुए फटाफट जो बयान दे रहा है वह सफेद झूंठ भी हो सकता है। सच क्या है यह या तो पाकिस्तान ही जानता है। भारत के नेता लोग अपने दो सभ्रांत जाबांज़ नागरिकों की पुण्याई पर भरत नाट्यम न करें । किसी तरह की गर्वोकिति करने से पहले भारतीय जवानों की शहादत भी स्मरण रखनी चाहिए।
श्रीराम तिवारी
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