सोमवार, 10 अगस्त 2015

ये दुनिया बिना किसी खूनी क्रान्ति के भी 'सुंदर' बनायी जा सकती है !

  भाववादी दुनिया का कोई भी मजहब -धर्म -पंथ यह दावा नहीं कर सकता कि  उसके अनुयाई वेवकूफ नहीं हैं !  वेशक दुनिया  के प्रत्येक  धर्म-मजहब में तमाम नेकनामियों  मौजूद हैं। इन धर्म-मजहबों में मानवीय मूल्यों के सुंदर सृजनशील उपदेश भी  भरे पड़े हैं। किन्तु अधिकांस मजहबी लोगों की समस्या है कि  इन मजहबों-धर्मों के दिशा निर्देशों का अनुकरण करने के बजाय उनके संस्थापकों के रूप और आकार पर ही फ़िदा होते रहते हैं। और  इसीलिये जब मानवता ,इंसानियत ,स्वतंत्रता ,समानता  की  कोई क्रांतिकारी आवाज उठती है ,जब सामूहिक  हकों की बात की जाती है , जब एक  शोषण मुक्त समाज की माँग उठती है ,तो ये सभी धर्म-मजहबों पर काबिज  ठेकेदार अपना असली रंग दिखाने लगते हैं।प्रत्येक भाववादी सोच में मौजूद अंधश्रद्धा जब वैज्ञानिक तर्कों के सामने विवेकहीन हो जाती है तो वह  हिंसक रूप धारण कर लेती है।

   वेशक लूट- ठगी-अन्याय व उत्पीड़न के तरीके -देशकाल परिस्थतियों के कारण बिभिन्न देशों और कौमों में  भिन्न-भिन्न हो सकते हैं । लेकिन  निहित स्वार्थ साधने के  लक्ष्य सभी के एक समान और  आडम्बरपूर्ण  होते  हैं। ईसाई ,यहूदी और हिन्दू वर्चस्ववादी यदि बनियागिरी से , धार्मिक पाखंडवाद से कमजोरों -मेहनतकशों  और किसानों  का खून चूसते हैं। इसी तरह अंधश्रद्धावान उग्र  मुसलमान  और नास्तिक उग्र वामपंथी भी  हिंसा का रास्ता ही  चुनते हैं। उग्र वामपंथ तो  कभी भी अपनी  ही मौत  मर सकता है।  बशर्ते समाज के उपेक्षित-शोषित  पीड़ित वर्ग को उनके हक और उत्पादन के औजार लौटा  दिए जाएँ ! इसी तरह 'जेहाद' के नाम पर निर्दोषों का खून बहाने वालों को यदि इस्लाम सहित दुनिया के तमाम मजहबों का वास्तविक  उद्देश्य-दर्शन -ज्ञान हो जाए तो वे भी मान सकते हैं कि - ये दुनिया  बिना किसी खूनी क्रान्ति के भी 'सुंदर' बनायी जा सकती है  !

  प्रायः देखा गया है कि धर्मांध हिन्दुओं को अपने शास्त्रीय धर्म सूत्रों में कोई दिलचस्पी नहीं है। ये तमाम किस्म के आस्तिक  और अंधश्रद्धालु लोग  सत्य ,अहिंसा ,अस्तेय ,ब्रह्मचर्य ,अपरिग्रह ,शौच ,संतोष ,स्वाध्याय ,योग,  ईश्वर प्रणिधान  इत्यादि के विमर्श  की बातें तो बहुत करते  हैं। किन्तु अन्याय -अत्याचार करने वाले 'असुरों' - बाहुबलियों और शोषण करने वाले शासक वर्ग सामने किसी भी  किस्म  का जायज  संघर्ष करने के बजाय खुद भी  उनके शिकार हो जाया करते हैं। अथवा व्यवस्थाजन्य मानवकृत आपदाओं का ठीकरा अपने 'आराध्य' ईश्वर ,अल्लाह या परमात्मा  के सिर  पर फोड़  देते हैं। आम तौर पर  अमीर-गरीब ,शरीफ - बदमाश सभी किस्म के धर्मांध  हिन्दुओं को अपने पाखंडी  धर्मोपदेशक 'बाबाओं' और साध्वियों  पर बड़ी  अटूट अंध श्रद्धा  हुआ करती  है। इसीलिये साम्प्रदायिक और जातीय आधार पर वोट जुगाड़ने वाले दलों  को ये अंधश्रद्धा के नशे में डूबी  नस्ल केवल 'चुनाव जिताऊ मशीन'  मात्र ही है  ! पूँजीवादी -साम्प्रदायिक  नेतागण  बाबाओं के पाखंड और व्यभिचार पर चुप्पी साधे  रहते हैं।  कुछ इसी तरह की  साम्प्रदायिकता -अल्पसंख्यक वर्ग की राजनीति   करने वाले नेताओं में भी पाई जाती है।

 शीत युद्ध समाप्ति के बाद की दुनिया में  प्रायः देखा गया है कि वैश्विक ताकतों द्वारा  व्यवस्थाओं के  संघर्ष को 'सभ्यताओं के संघर्ष' में तब्दील किया जाता रहा है। इस्लामिक राष्ट्रों के  पेट्रोलियम पर कब्जा करने की साम्राज्य्वादी जद्दोजहद ने धीरे-धीरे मजहबी जेहाद का यह  वर्तमान हिंसक  रूप धारण कर लिया ।  इक्कीसवीं शताब्दी की  कोई  भी आतंकी हिंसात्मक  घटना  ऐंसी नहीं  है  जो जिहाद प्रेरित न हो !  भारत में विगत वीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अवश्य खालिस्तानी  उग्रवाद ने सर उठाया था ,जिसे दुरुस्त करने में  भारत ने अनेक   कुर्बानियाँ दीं हैं।लेकिन वैश्विक कुख्याति में अब  एक विशेष समुदाय या कौम के ही  गुमराह  मरजीवड़ों का ही  बोलवाला  है। सीरिया,इराक,ईरान,अफगानिस्तान,यमन,सूडान,मिश्र ,पाकिस्तान   में केवल एक ही सम्प्रदाय के आतंकियों  की तूती  बोल रही है। वहाँ  इस आतंकवाद को शुद्ध रूप में केवल और केवल इस्लामिक या कथित 'जेहादी' आतंकवाद के रूप में ही देखा -सुना जाता है। यूरोप ,अमेरिका ,इंग्लैंड ,फ़्रांस और  भारत  की अधिकांस  शांति प्रिय जनता अब इसे वैश्विक आतंकवाद के रूप में देखती  है ।

 दुनिया के जो लोग  इस जेहाद से पीड़ित हैं ,वे ईसाई  ,कुर्दीश ,यहूदी , यज़ीदि और शिया भी  एक सम्प्रदाय या कौम के रूप में इस  बर्बर चुनौती को उसकी प्रत्याक्रमण कारी शैली में  जबाब देने में असफल रहे। चूँकि  यूएस और उसके पिछलगुओं ने पूर्व सोवियत संघ को नष्ट करने के लिए कभी इस अपवित्र हिंसक  जाहिल नस्ल को खाद -पानी दिया था। इसलिए वे  केवल दिखावे के लिए इन हिंसक तत्वों का मौखिक विरोध करते रहे। बाद में जब  अमेरिका पर आतंकी हमला हुआ तो उसके  प्रतिउत्तर में पाकिस्तान में छिपे ओसामा और अल-कायदा वालों से अमेरिका वालों ने खुन्नस निकाली।वैसे भी यूरोप ,अमेरिका और सुदूर वर्ती राष्ट्रों को आईएसआईएस से उतना खतरा नहीं है। किन्तु  भारत में इस जेहादी  आतंकवाद के  फलने-फूलने के लिए पर्याप्त उर्वरा भूमि उपलब्ध   है।

      दक्षिण एशिया  में आईएस से भी पहले से ,बल्कि सदियों से ही  हिन्दू विरोधी जेहाद जैसा  हथकंडा निरंतर जारी है। हिन्दुस्तान का बटवारा होने के बाद पाकिस्तान ने इसे और भड़काया। चूँकि भारत की धर्मनिरपेक्षता -वादी  नीति  में  इन  'जेहादी' चरमपंथियों  के  हिंसक हमलों के प्रतिवाद या निस्तारण के लिए कोई मान्य ठोस सिद्धांत नहीं है। इजरायल अमेरिका ही नहीं बल्कि तमाम गैर इस्लामिक मुल्कों में  इस जेहाद से लड़ने के लिए जनता नहीं बल्कि सरकारें काम करती  रही हैं।इंडोनेशिया के बाद दुनिया की सर्वाधिक मुस्लिम आबादी भारत  में निवास करती है । भारत के लिए यह फक्र की बात होती यदि आईएस ,अलकायदा और पाकिस्तान परस्त आतंकी भारत को बुरी नजर से नहीं देखते। भारत  की कोई भी सरकार हो -चाहे वो कांग्रेस की हो ,तीसरे मोर्चे की हो या 'संघ परिवार' के वर्चस्व की - हिंदुत्व वादी सरकार  ही क्यों न हो  उसे मालूम है कि  वह इजरायल या यूएस -की तरह का उन्मूलन सिद्धांत लागू नहीं कर सकती ।क्योंकि भारत का धर्मनिरपेक्ष संविधान इसकी इजाजत नहीं देता !

                  भारत के अधिकांस हिन्दू  मुस्लिम ,सिख ,ईसाई ,बौध्द  इत्यादि  अधिकांस जनगण  स्वभावतः   धर्मनिरपेक्षतावादी ही  हैं। अधिकांस गंगा-जमुनी तहजीव के पक्षधर हैं। किन्तु जब  कश्मीर में आईएस या पाकिस्तान के झंडे फहराये जाएँ या कोई  पाकिस्तान प्रेरित आतंकी ज़िंदा पकड़ा जाता है ! औरजब  वह 'नावेद' की तरह   केवल चुन-चुनकर हिन्दुओं को निशाना बनाने  की बात करता है। जब वह कहता है कि  'हिन्दुओं को मारने में मुझे मजा आता है ' इतिहास साक्षी है कि तब बाजी  धर्मनिर्पेक्षतावादियों के हाथों से फिसलकर स्वतः ही साम्पर्दयिकतावादियों के हाथों में पहुँच जाती है। तब  वामपंथी बुद्धिजीवियों  और धर्मनिर्पेक्षतावादियों की या लोकतंत्रवादियों की बात का  बहुसंख्यक आवाम  पर कोई असर नहीं होता। तब बहुसंख्यक वर्ग के आक्रोश को भुनाते हुए फासिज्म परवान चढ़ने लगता है। तब  अल्पसंख्यक आतंकियों को नेस्तनाबूद करने के बजाय राज्य सत्ता पर काबिज नेता  और सरकार निर्दोषों पर अत्याचार का 'अधिकार पत्र' प्राप्त कर लेती है।

   यद्द्यपि  भारत में किसी भी हिंसक साम्प्रदायिक कौम को किसी अन्य अहिंसक साम्प्रदायिक  कौम से कोई  चुनौती नहीं है। यहाँ पाकिस्तान  या आईएसआईएस  प्रेरित हिंसक  साम्प्रदायिकता  के पक्ष में सब कुछ मौजूद है। न  केवल  तमाम धर्मनिरपेक्ष-प्रगतिशील लोग ही 'अल्पसंख्यकवाद' के धोखे में  ही आतंकियों के समर्थक बने हुए हैं। बल्कि 'अहिंसक' बहुसंख्यक वर्ग और उसके बीच के साम्प्रदायिक तत्व भी हमेशा कुछ ऐंसा उल्टा सीधा करते रहते हैं कि उनके द्वारा पाली-पोषित यह पूंजीवादी व्यवस्था व  उसकी तमाम मशीनरी भी इन हिंसावादी साम्प्रदायिक तत्वों के चरण चाँपने लगती है। भारत के मुठ्ठी भर अधकचरे अनाड़ी और  साम्प्रदायिक संगठनों ने सत्ता के चूल्हे पर हिंदुत्व रुपी काठ की हांडी दो-दो बार चढ़ा ली ,किन्तु अयोध्या में दस बाई दस वर्ग फुट का एक 'रामलला मंदिर' भी  वे नहीं बनवा सके। क्या यही हैसियत है भारत में बहुसंख्यक साम्प्रदायिकता की ? क्या  इसी के लिए वे भारत में विगत सौ साल के इतिहास में केवल  बदनाम ही किये जाते रहे  है ? कभी किसी  गोडसे ने गांधी को मारा , कभी किसी गुंडे  ने मक्का मस्जिद के आसपास दो-चार फटाके फोड़ दिए ,कभी किसी संघी ने अपने ही प्रचारक  संजय जोशी को  मार दिया ,कभी  किसी जडमति  ने समझौता एक्प्रेस पर कुछ  फुस्सी बम फोड़ दिए। इसके अलावा हिन्दुत्वादी कतारों में अपनी  कमजोरी  छिपाने के लिए  बार-बार के आम चुनावों में अल्पसंख्यकों के खिलाफ जहर उगलने और ढपोरशंख  बजाने से आईएस और पाकिस्तान परस्तों को उनका आतंकी जेहाद जस्टीफाइ लगने  लगता है। वैसे भी जबसे 'मोदी सरकार' सत्ता में आई है तबसे न  केवल  पाकिस्तान से  न केवल चीन से  बल्कि  दुनिया  के कोने -कोने से  भारत विरोधी  मंसूबे सुनाई दे रहे हैं।

कुछ स्वयंभू राष्ट्रवादियों और प्रगतिशील बुद्धिजीविओं ने दो बातों पर बहुत बड़ा भरम पाल रखा है। पहला -यह कि  भारत एक उभरता हुआ आर्थिक तरक्की वाला परमाण्विक शक्तिशाली  राष्ट्र है। जो अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है।  इन लोगों को बहुत बड़ी गलतफहमी है कि उनकी सैन्य  क्षमता और युद्धक सामग्री  दुश्मनों से बेहतर है। वे यह भूल जाते हैं कि  पाकिस्तान  के शासकों को खुद कुछ भी नहीं करना है।  उन्हें केवल जेहादी इस्लामिक आतंकवाद को ज़िंदा रखना है। बाकी सब काम ये आतंकवादी ही करंगे।  ये आतंकवादी भारत में आकर केवल पाकिस्तान  का झंडा ही नहीं फहराएंगे बल्कि नकली मुद्रा भी लायंगे। ये हवाला के काम भी आएंगे। वे गांजा चरस  और हशीश भी लाएंगे। वे  ऐ ,के  -४७  और आरडीएक्स भी लायँगे। पाकिस्तान और आईएस को कुछ नहीं  करना है। जो कुछ करना है इस्लाम के नाम पर  पाकिस्तान और भारत के  गुमराह युवाओं  को ही करना है।

भारतीय प्रबुद्ध समाज ने दूसरा भरम  ये पाल रखा  है कि  भारत की  विराट आबादी ,उसकी सहिष्णुता ,अहिंसा और  उसकी  धर्मनिरपेक्षतावादी नीति  में बड़ी ताकत है ।  उन्हें  अपने मानवीय मूल्यों पर बड़ा नाज है। किन्तु  अपना ही यह पौराणिक सिद्धांत याद नहीं कि किसी  'विशाल  घासाहारी हाथी को वश  में करने के लिए छोटा सा 'अंकुश' ही काफी है। 'दुनिया के ५६ इस्लामिक देशों की सेनाएं , अलकायदा ,आईएस और पाकिस्तान  में  छिपे  बैठे दाऊद ,हाफिज सईद  इजरायल  से क्यों नहीं लड़ लेते ? क्यों इजरायल  का नाम सुनते ही सऊदी अरब और जॉर्डन  का शाह भी  अमेरिका की गोद में  अपना मुँह  छिपाने को बाध्य हो जाते  हैं। इस आतंकवाद से लड़ने के लिए  भारत  को वास्तविक धर्मनिरपेक्षतावाद की दरकार है। सभी किस्म के साम्प्रदायिक तत्वों का राजनीति में प्रवेश वर्जित किया जाना  चाहिए। इस्लामिक जेहाद का जबाब हिन्दुत्ववादी साम्प्रदायिकता कदापि नहीं हो सकती। बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक सरकार और उसकी सेनाएं ही उसका बेहतर जबाब हो सकते हैं।

  वर्तमान में सत्तारूढ़ नेता साम्प्रदायिकता में रचे -बसे  हैं। उधर  भारतीय सुरक्षा तंत्र बेहद कमजोर है। यदि हम ताकतवर होते  तो अक्सर ही ऐंसा क्यों होता है कि  एक -दो आतंकवादी को पकड़ने के लिए या मारने के लिए दर्जनों भारतीय जवानों को शहादत नहीं  देनी पड़ती  है  ! अभी -अभी उधमपुर में पकडे गए एकमात्र जीवित आतंकवादी नावेद के प्रकरण से  ही सिद्ध होता है कि हमारी यह धारणा  गलत है कि भारतीय  सुरक्षा तंत्र मजबूत है।  वैसे भी जीवित आतंकी को  भारतीय फौजों या बीएसएफ ने नहीं पकड़ा ! इसके बरक्स आतंकियों ने तो बीएसएफ के जवानों को ही मार डाला है । कई भारतीय जवान घायल भी हुए। किन्तु वे जीवित किसी भी आतंकी को नहीं पकड़ पाये। वेशक भारतीय जवांन दुनिया में सबसे बेहतरीन हैं किन्तु साँप  यदि आस्तीन में ही छुपे हों  तो  पुनः गंभीरता से  सोचना पडेगा। हालाँकि  भारतीय सेनाओं को बँगला देश के समय जो गौरव प्राप्त हुआ था उसकी पुण्याई अब समाप्ति पर है। शायद इसीलिये कभी केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर परिकर को शिकायत रहती  है कि  'हम बहुत दिनों से लड़े ही नहीं' ,कभी  केद्रीय मंत्री गिरिराज किशोर  को ये शिकायत हुआ करती है कि  'हिन्दू सहिष्णु होने से बुजदिल और कायर होते हैं '। यह देखने के बाद कि  जिन दो भारतीय  नागरिकों  ने जीवित आतंकी  नावेद को पकड़ा  है -वे असली हिन्दू  हैं।  वे विक्रमजीत शर्मा और राकेश शर्मा  जो की आपस में  जीजा -साले भी हैं। सहिष्णु होने के बाद जब वे आतंक से लड़ सकते हैं तो  सम्पूर्ण भारतीय युवा इस आतंकवाद से क्यों नहीं लड़ सकते ?  हालाँकि इस घटना का श्रेय सरकार और नेता लेते दिख रहे हैं जो कि एक किस्म  का  कदाचार और राजनीतिक व्यभिचार ही है ।

 जम्मू कश्मीर में 'पुहुन  कश्मीर ' ने वर्षों अपने-आप को बचाने का  उपक्रम किया।  उन्ही की बदौलत नेहरू  -पटेल ने कश्मीर को 'भारत संघ' में   मिलाया। उन्ही की बदौलत कभी बाप बेटे ने , कभी बाप-बेटी ने कश्मीर  पर राज किया।  उन्ही की बदौलत 'नमो' को भी कालर ऊँची करने का मौका मिला। किन्तु  कश्मीरी  पंडित  या हिन्दू अपने  ही देश में अपने ही घर  में वापिस लौटने में अभी भी  डर  रहा  है। जबकि दुनिया की कोई भी कौम या राष्ट्र यह दावा नहीं कर सकता कि  उसे  कश्मीरी पंडितों या हिन्दुओं  से कोई खतरा है। इस दुखद स्थति के लिए केवल जेहादी ही नहीं बल्कि भारत में गंदी राजनीति  करने वाले भी जिम्मेदार हैं। सत्ता के लिए कुछ लोगों ने रथ यात्रा निकाली। मंडल-कमंडल के नारे लगाए। मंदिर-मस्जिद विवाद खड़ा किया। गोधरा की हिंसा का हिंसक  जबाब पूरे गुजरात के निर्दोष मुसलमानों पर कहर ढाकर  दिया। समस्त हिन्दू कौम को दुनिया भर में  'हिंसक'  व साम्प्रदायिक निरुपित  किया । भले ही इन दुर्घटनाओं से 'संघ परिवार' को और भाजपा को राजनैतिक लाभ हुआ है। किन्तु भारत और दुनिया के हिन्दुओं का इस 'गुजरात स्वाभिमान'  वाले अहंकार से  बहुत नुक्सान हुआ है।

   श्रीराम तिवारी



 

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