भगवती चरण वर्मा की कहानी 'दो बाँके ' जिस किसी ने भी पढ़ी होगी ,उसे भारत-पाकिस्तान के द्विपक्षीय संबंधों के स्थायी अंतर्विरोध व अविश्वास पर कोई हैरानी नहीं हुई होगी।वेशक पहले भी अनेकों बार भारत ने स्वेच्छा से और पाकिस्तान की सरकारों ने अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते द्विपक्षीय वार्ताओं में शिरकत की है। किन्तु हर बार पाकिस्तान की सेना बीच में आ जाती है। उसके दबाव में वहाँ की चुनी हुई सरकारें भी कोई न कोई बहाना बनाकर द्विपक्षीय वार्ताओं को असफल करने को लालायित रही हैं। अतीत में कभी ताशकंद समझौता ,कभी शिमला समझौता,कभी आगरा समिट और कभी लाहौर संधि की असफलता के पीछे हमेशा अमेरिका पालित पाकिस्तानी जनरलों का ही हाथ रहा है।
भारत -पाकिस्तान की जनता अमन -शांति और सौहाद्र चाहती है। किन्तु अमेरिका और पाकिस्तानी सैन्य लाबी नहीं चाहती कि पाकिस्तान की भारत से दोस्ती हो जाए। या पाकिस्तान की कोई भी जन-निर्वाचित सरकार इस नेक काम में भारत से कोई सार्थक संधि की सफलता हासिल करे। पाकिस्तानी जनरल केवल भारत जैसे शान्तिप्रय -अहिंसावादी पड़ोसी पर ही भौंक सकते हैं । वर्ना चीनी और अमेरिकी नेताओं और जनरलों के सामने उनकी बोलती बंद ही रहती है। उनके सामने तो वे महज घुटना टेकु ही सावित हुए हैं।वैसे तो कश्मीरी अलगाववादियों व पाकिस्तान परस्त उग्रवादियों को शिखंडी बनाकर -भारत से निरंतर छाया युद्ध करने वाले ,पाकिस्तानी जनरल बड़े शूरमा बनते हैं। किन्तु जब उनकी नाक के सामने ही अमेरिकी कमांडो ओसामा-बिन -लादेन को ख़लाक़ करते हैं। उसके टुकड़े -टुकड़े करते हैं । तब पाकिस्तानी जनरलों को चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होता कि शर्म से डूबकर मर जाएँ !
वैसे पाकिस्तानी फौज ,पाकिस्तानी कटटरपंथी ,पाकिस्तानी जेहादी और कुछ भटके हुए भारतीय-कश्मीरी युवा भी भारत-पाकिस्तान दोनों के ही साझा शत्रु हैं। पाकिस्तान से सौहाद्रपूर्ण संबंधों की कामना लेकर भारत की ओर से हर पार्टी और हर दौर की सरकारों ने पूरी कोशिश की है कि दोनों देशों के रिश्ते मित्रतापूर्ण हों ! यथार्थ के धरातल पर दोनों पड़ोसी मुल्कों के सर्वांगीण विकास की यह पहली शर्त भी है ! इस सिद्धांत को लेकर ही समय-समय पर पंडित नेहरू ,इंदिराजी ,नरसिंहराव्,अटलजी इत्यादि सभी भारतीय प्रधानमंत्रियों ने तहेदिल से अपने पड़ोसी पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। किन्तु इन सभी ने कभी भी मरहूम जुल्फीकार अली भुट्टो की तरह, या जिया-उल-हक की तरह ,या परवेज मोहम्मद की तरह यह बड़बोलापन नहीं दिखाया कि 'हम हजार साल तक जंग खोरी करते रहेंगे ' किन्तु खेद है कि भारत के वर्तमान सत्तारूढ़ नेताओं ने भी विगत चुनाव के दौरान बड़बोलापन बघारा कि -''हम आसमान के तार तोड़ लाएंगे ,हम घुसकर मारेंगे , मनमोहनसिंह तो कायर हैं ,बुजदिल हैं ,हम यदि सत्ता में आये तो पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देंगे !" किन्तु ये ५६ इंच के सीने वाले अब इस पाकिस्तान रुपी समस्या को एक इंच भी इधर से उधर नहीं खिसका पा रहे हैं।
माना कि पाकिस्तान के फौजी जनरल और मजहबी कठमुल्ले ही हर समस्या की जड़ है ,तो फिर यह वास्तविक बहाना याने इम्मुनिटी तो भारत के हर भूतपूर्व प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री को भी मिलनी चाहिए ! क्योंकि भारत-पाक रिश्तों की कडुवाहट के लिए पाकिस्तान के जनरलों और कठमुल्लों को तो सभी ने दोषी माना है । यह नग्न सत्य भी है। तो फिर वोट बटोरने के लिए पाकिस्तान पर ढपोरशंख बजाने की क्या जरूरत थी। यदि सब कुछ लुटाकर होश में आने की बात है तो बड़बोलेपन के लिए देश की जनता से क्षमा क्यों नहीं मांगनी चाहिए ? उन्हें क्यों नहीं कहना चाहिए कि हमारे पूर्व नेता तो जबरदस्त प्रयास करते रहे । किन्तु यदि कुत्ते की दुम सीधी नहीं हो पा रही है तो इसमें -कुदरत ,भूगोल,इतिहास और वैश्विक साम्राज्य्वादियों की भी यही मर्जी है। यदि पाकिस्तानी फौज रुपी मन्थरा और कठमुल्ले ही इस भारत-पाक वैमनस्य की जड़ है । तो भारत को पाकिस्तान की जनता से सीधा संवाद क्यों नहीं किया जाना चाहिए ? पाकिस्तान की जनता को भी चाहिए कि वह भी अपने फौजी जनरलों से मुक्त होने बाबत संघर्ष तेज करे। भारत-पाक मैत्री के लिए दोनों ही देशों की जनता को प्रतिबद्ध होना पडेगा । इसके अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं। क्योंकि हम अपने पड़ोसी कभी नहीं बदल सकते !
वैसे यूएनओ मंच से पाकिस्तानी हुक्मरानों की भारत के प्रति विद्वेषपूर्ण पैंतरेबाजी कोई नयी बात नहीं है !
पाकिस्तानी जंगखोरों ,कश्मीरी अलगाववादियों ,हुरियत ,मिल्लत -ए -दुख्तराने और जेकेएलएफ इत्यादि की भारत विरोधी हरकतें कोई नयी बात नहीं है !भारत ने जब-जब द्वीय पक्षीय समझौतों के निमत्त स्थाई अमन के कदम आगे बढाए हैं ,तब-तब हर -बार पाकिस्तान और उसकी सरपरस्ती में फलीं -फूली धुर भारत विरोधी नापाक ताकतों की अड़ंगेबाजी ने सब कुछ गुड़ -गोबर किया है ,यह भी कोई नयी बात नहीं है !इस बार भी यदि पाकिस्तानी सिरफिरों ने वही दुहराया है जो वे १९७१ की पिटाई के बाद से करते आ रहे हैं ! तो इसमें भी नयी बात क्या है ?
इसमें नयी बात यह है कि १५ अगस्त -१९४७ से लेकर १६ मई-२०१४ तक भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने [ इंदिराजी और अटलजी ने भी ] इतना शोर नहीं मचाया था कि 'मैं ही एक अनोखा हूँ जो सब कुछ ठीक कर दूंगा '! यदि भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है ,यदि देश में 'संघ परिवार' की तूती बोल रही है ,यदि प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी 'वैश्विक' नेता बन चुके हैं ,तो वे अपने पूर्ववर्तियों की तरह द्वीय पक्षीय वार्ता अवरुद्ध करने को मजबूर क्यों हैं ? ये सनातन मजबूरी अब क्यों ? विगत चुनावी शंखनाद का गप्पाड़ी उद्घोष अब कहाँ गया ? क्या बाकई मोदी जी के पास , पाकिस्तान की कुचालों का कोई माकूल और बाजिब जबाब है ? यदि हाँ तो उसको एप्लाई क्यों नहीं किया जा रहा है ? यदि उनके पास पाकिस्तान की कुटिलता का कोई जबाब है ही नहीं तो वे अपने पूर्व वर्ती प्रधान मंत्रियों और अन्य वरिष्ठ भारतीय राजनयिकों को किस दम -गुर्दे पर नाकारा और असफल बताते रहे हैं ? यक्ष प्रश्न यह है कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों के संदर्भ में मोदी जी नया क्या कर रहे हैं ?
यदि पाकिस्तानी कठमुल्लों और फौज के इशारे पर द्वीय पक्षीय वार्ता अवरुद्ध हुई है ,यदि वर्तमान भारत सरकार की भी वही 'सनातन' मजबूरी है जो पहले वालों की रही है ,तो इसमें नया क्या है ? यदि पाकिस्तान और भारत विरोधी अलगाव वादी ही हर रोग की जड़ हैं , यदि इतिहास की भूलें ही हर दुर्घटना के लिये दोषी हैं तो 'संघ परिवार' वाले -असली राष्ट्रवादी और खुद मोदी जी यह सिद्धांत क्यों बघारते रहते हैं कि ये लफ़ड़े तो गांधी -नेहरू की देन हैं ? उनका यक कहना कि -"चूँकि पं नेहरू ने कुछ नहीं किया ! इंदिराजी-राजीव ने कुछ नहीं किया ! चूँकि नेहरू ने पटेल की नहीं चलने दी ! इसीलिये ये बीमारियाँ भारत में व्याप्त हैं ! संघी भाई कहते नहीं थकते कि "हम होते तो ईंट से ईंट बजा देते "! चलो मान भी लेते हैं कि कांग्रेसियों ने बाकई कुछ नहीं किया ! इसीलिये तो जनता ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया है ! अब जो स्वयंभू सूरमा हैं ,वे खुद प्रचंड बहुमत से सत्ता में विराजमान हैं। अब देश की जनता को उग्रवाद पर और पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर लगाम लगाना चाहिए !चूँकि सर्वशक्तिमान व्यक्तित्व को देश की जनता ने सत्ता सौंप दी है। इसलिए अब गाल बजाने के बजाय खुद कुछ कमाल कर के दिखाइये ! आपको रोका किसने है ? पाकिस्तान की दुम को सीधा करके दिखाए ! ढपोरशंख बजाना बंद कीजिये ! सत्तासीन लोग यदि अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं कर पाने के लिए विपक्ष को, या अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक परिदृश्य को , या पाकिस्तानी कठमुल्लों को ,या पाकिस्तानी जनरलों को ही कोसते रहेंगे तो दक्षिण एशिया में बारूद की दुर्गन्ध कैसे दफा होगी ?
श्रीराम तिवारी
भारत -पाकिस्तान की जनता अमन -शांति और सौहाद्र चाहती है। किन्तु अमेरिका और पाकिस्तानी सैन्य लाबी नहीं चाहती कि पाकिस्तान की भारत से दोस्ती हो जाए। या पाकिस्तान की कोई भी जन-निर्वाचित सरकार इस नेक काम में भारत से कोई सार्थक संधि की सफलता हासिल करे। पाकिस्तानी जनरल केवल भारत जैसे शान्तिप्रय -अहिंसावादी पड़ोसी पर ही भौंक सकते हैं । वर्ना चीनी और अमेरिकी नेताओं और जनरलों के सामने उनकी बोलती बंद ही रहती है। उनके सामने तो वे महज घुटना टेकु ही सावित हुए हैं।वैसे तो कश्मीरी अलगाववादियों व पाकिस्तान परस्त उग्रवादियों को शिखंडी बनाकर -भारत से निरंतर छाया युद्ध करने वाले ,पाकिस्तानी जनरल बड़े शूरमा बनते हैं। किन्तु जब उनकी नाक के सामने ही अमेरिकी कमांडो ओसामा-बिन -लादेन को ख़लाक़ करते हैं। उसके टुकड़े -टुकड़े करते हैं । तब पाकिस्तानी जनरलों को चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं होता कि शर्म से डूबकर मर जाएँ !
वैसे पाकिस्तानी फौज ,पाकिस्तानी कटटरपंथी ,पाकिस्तानी जेहादी और कुछ भटके हुए भारतीय-कश्मीरी युवा भी भारत-पाकिस्तान दोनों के ही साझा शत्रु हैं। पाकिस्तान से सौहाद्रपूर्ण संबंधों की कामना लेकर भारत की ओर से हर पार्टी और हर दौर की सरकारों ने पूरी कोशिश की है कि दोनों देशों के रिश्ते मित्रतापूर्ण हों ! यथार्थ के धरातल पर दोनों पड़ोसी मुल्कों के सर्वांगीण विकास की यह पहली शर्त भी है ! इस सिद्धांत को लेकर ही समय-समय पर पंडित नेहरू ,इंदिराजी ,नरसिंहराव्,अटलजी इत्यादि सभी भारतीय प्रधानमंत्रियों ने तहेदिल से अपने पड़ोसी पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। किन्तु इन सभी ने कभी भी मरहूम जुल्फीकार अली भुट्टो की तरह, या जिया-उल-हक की तरह ,या परवेज मोहम्मद की तरह यह बड़बोलापन नहीं दिखाया कि 'हम हजार साल तक जंग खोरी करते रहेंगे ' किन्तु खेद है कि भारत के वर्तमान सत्तारूढ़ नेताओं ने भी विगत चुनाव के दौरान बड़बोलापन बघारा कि -''हम आसमान के तार तोड़ लाएंगे ,हम घुसकर मारेंगे , मनमोहनसिंह तो कायर हैं ,बुजदिल हैं ,हम यदि सत्ता में आये तो पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजा देंगे !" किन्तु ये ५६ इंच के सीने वाले अब इस पाकिस्तान रुपी समस्या को एक इंच भी इधर से उधर नहीं खिसका पा रहे हैं।
माना कि पाकिस्तान के फौजी जनरल और मजहबी कठमुल्ले ही हर समस्या की जड़ है ,तो फिर यह वास्तविक बहाना याने इम्मुनिटी तो भारत के हर भूतपूर्व प्रधानमंत्री और विदेशमंत्री को भी मिलनी चाहिए ! क्योंकि भारत-पाक रिश्तों की कडुवाहट के लिए पाकिस्तान के जनरलों और कठमुल्लों को तो सभी ने दोषी माना है । यह नग्न सत्य भी है। तो फिर वोट बटोरने के लिए पाकिस्तान पर ढपोरशंख बजाने की क्या जरूरत थी। यदि सब कुछ लुटाकर होश में आने की बात है तो बड़बोलेपन के लिए देश की जनता से क्षमा क्यों नहीं मांगनी चाहिए ? उन्हें क्यों नहीं कहना चाहिए कि हमारे पूर्व नेता तो जबरदस्त प्रयास करते रहे । किन्तु यदि कुत्ते की दुम सीधी नहीं हो पा रही है तो इसमें -कुदरत ,भूगोल,इतिहास और वैश्विक साम्राज्य्वादियों की भी यही मर्जी है। यदि पाकिस्तानी फौज रुपी मन्थरा और कठमुल्ले ही इस भारत-पाक वैमनस्य की जड़ है । तो भारत को पाकिस्तान की जनता से सीधा संवाद क्यों नहीं किया जाना चाहिए ? पाकिस्तान की जनता को भी चाहिए कि वह भी अपने फौजी जनरलों से मुक्त होने बाबत संघर्ष तेज करे। भारत-पाक मैत्री के लिए दोनों ही देशों की जनता को प्रतिबद्ध होना पडेगा । इसके अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं। क्योंकि हम अपने पड़ोसी कभी नहीं बदल सकते !
वैसे यूएनओ मंच से पाकिस्तानी हुक्मरानों की भारत के प्रति विद्वेषपूर्ण पैंतरेबाजी कोई नयी बात नहीं है !
पाकिस्तानी जंगखोरों ,कश्मीरी अलगाववादियों ,हुरियत ,मिल्लत -ए -दुख्तराने और जेकेएलएफ इत्यादि की भारत विरोधी हरकतें कोई नयी बात नहीं है !भारत ने जब-जब द्वीय पक्षीय समझौतों के निमत्त स्थाई अमन के कदम आगे बढाए हैं ,तब-तब हर -बार पाकिस्तान और उसकी सरपरस्ती में फलीं -फूली धुर भारत विरोधी नापाक ताकतों की अड़ंगेबाजी ने सब कुछ गुड़ -गोबर किया है ,यह भी कोई नयी बात नहीं है !इस बार भी यदि पाकिस्तानी सिरफिरों ने वही दुहराया है जो वे १९७१ की पिटाई के बाद से करते आ रहे हैं ! तो इसमें भी नयी बात क्या है ?
इसमें नयी बात यह है कि १५ अगस्त -१९४७ से लेकर १६ मई-२०१४ तक भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने [ इंदिराजी और अटलजी ने भी ] इतना शोर नहीं मचाया था कि 'मैं ही एक अनोखा हूँ जो सब कुछ ठीक कर दूंगा '! यदि भाजपा के पास प्रचंड बहुमत है ,यदि देश में 'संघ परिवार' की तूती बोल रही है ,यदि प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी 'वैश्विक' नेता बन चुके हैं ,तो वे अपने पूर्ववर्तियों की तरह द्वीय पक्षीय वार्ता अवरुद्ध करने को मजबूर क्यों हैं ? ये सनातन मजबूरी अब क्यों ? विगत चुनावी शंखनाद का गप्पाड़ी उद्घोष अब कहाँ गया ? क्या बाकई मोदी जी के पास , पाकिस्तान की कुचालों का कोई माकूल और बाजिब जबाब है ? यदि हाँ तो उसको एप्लाई क्यों नहीं किया जा रहा है ? यदि उनके पास पाकिस्तान की कुटिलता का कोई जबाब है ही नहीं तो वे अपने पूर्व वर्ती प्रधान मंत्रियों और अन्य वरिष्ठ भारतीय राजनयिकों को किस दम -गुर्दे पर नाकारा और असफल बताते रहे हैं ? यक्ष प्रश्न यह है कि पाकिस्तान की नापाक हरकतों के संदर्भ में मोदी जी नया क्या कर रहे हैं ?
यदि पाकिस्तानी कठमुल्लों और फौज के इशारे पर द्वीय पक्षीय वार्ता अवरुद्ध हुई है ,यदि वर्तमान भारत सरकार की भी वही 'सनातन' मजबूरी है जो पहले वालों की रही है ,तो इसमें नया क्या है ? यदि पाकिस्तान और भारत विरोधी अलगाव वादी ही हर रोग की जड़ हैं , यदि इतिहास की भूलें ही हर दुर्घटना के लिये दोषी हैं तो 'संघ परिवार' वाले -असली राष्ट्रवादी और खुद मोदी जी यह सिद्धांत क्यों बघारते रहते हैं कि ये लफ़ड़े तो गांधी -नेहरू की देन हैं ? उनका यक कहना कि -"चूँकि पं नेहरू ने कुछ नहीं किया ! इंदिराजी-राजीव ने कुछ नहीं किया ! चूँकि नेहरू ने पटेल की नहीं चलने दी ! इसीलिये ये बीमारियाँ भारत में व्याप्त हैं ! संघी भाई कहते नहीं थकते कि "हम होते तो ईंट से ईंट बजा देते "! चलो मान भी लेते हैं कि कांग्रेसियों ने बाकई कुछ नहीं किया ! इसीलिये तो जनता ने उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया गया है ! अब जो स्वयंभू सूरमा हैं ,वे खुद प्रचंड बहुमत से सत्ता में विराजमान हैं। अब देश की जनता को उग्रवाद पर और पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर लगाम लगाना चाहिए !चूँकि सर्वशक्तिमान व्यक्तित्व को देश की जनता ने सत्ता सौंप दी है। इसलिए अब गाल बजाने के बजाय खुद कुछ कमाल कर के दिखाइये ! आपको रोका किसने है ? पाकिस्तान की दुम को सीधा करके दिखाए ! ढपोरशंख बजाना बंद कीजिये ! सत्तासीन लोग यदि अपने चुनावी वादों को पूरा नहीं कर पाने के लिए विपक्ष को, या अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक परिदृश्य को , या पाकिस्तानी कठमुल्लों को ,या पाकिस्तानी जनरलों को ही कोसते रहेंगे तो दक्षिण एशिया में बारूद की दुर्गन्ध कैसे दफा होगी ?
श्रीराम तिवारी
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