शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

मुफ़्ती और भाजपा की दोस्ती ने कश्मीर के पंडितों को और पूरे भारत को रुसवा किया है !


                               वेशक  डॉ मनमोहन सिंह  के राज में  भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही थी , अंदरुनी हालत  भी ठीक नहीं थे।  भृष्टाचार चरम पर था। किन्तु  अंतर्राष्ट्रीय जगत में भारत की धर्मनिरपेक्ष  छवि पर तब भी किसी ने अंगुली नहीं उठाई। भारत  की धर्मनिरपेक्षता और लोकशाही पर प्रश्न चिन्ह  लगने  की नौबत कभी नहीं आयी । विगत यूपीए सरकार की गठबंधनात्मक कमजोरियों ,प्रशासनिक नाकामियों, व्यवस्थाजन्य   भृष्टाचार  , महँगाई  और उसके खिलाफ उतपन्न  जनाक्रोश को भाजपाई  बड़बोले नेता अपनी सत्ताप्राप्ति  का साधन बनाने मेंविभिन्न कारणों से  सफल रहे।  किन्तु  सत्ता का   प्रचंड बहुमत मिलने सेएक ओर उन्हें  अहंकार हो चला  है, तो दूसरी ओर हर मोर्चे पर असफलता के कारण उनके  हाथों से  तोते उड़ने लगे हैं।

                जब भूमिअधिग्रहण कानून में  कार्पोरेट की चाकरी में व्यस्त हों  ,जब कालेधन की वापिसी में असफल रहे हों ,जब कश्मीर में मुफ्ती जैसे दोगले  और ग़ैरजिम्मेदार  साम्प्रदायिक नेता को मुख्यमंत्री बनाकर उलझ गए हों  , जब मुसरत के पथ्थरबाजों को बिरयानी खिलाई जा रही हो  ,जब संयुक्त विपक्ष ने राज्य सभा में 'लौह  नेतत्व' को बार-बार  पटकनी दी हो ,जब  इनकी नादानी  के कारण देश   आर्थिक,सामाजिक ,वैदेशिक  नीति में   चौतरफा विफल हो रहा हो ,जब राष्ट्र चौतरफा  संकट से घिर  चुका हो , तब न केवल  सत्तारूढ़ पार्टी में , न केवल  देश  के आमजन में , न केवल भारतीय  वुद्धिजीवी  वर्ग में   ,न  केवल कांग्रेस या  सम्पूर्ण गैर भाजपाई- विपक्ष   के मन में बल्कि  भारत के  प्रगतिशील तबकों  में  भी बैचेनी स्वाभाविक है।  बहरहाल तमाम सुधीजनों को   'मोदी मान मर्दन' की चिंता  छोड़कर  अपने वतन की चिंता करनी चाहिए ।
                                                   मौजूदा दौर में कश्मीर  सहित देश की सीमाओं पर राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र और उसके बरक्स बदतरीन   हालात पर सियासत मौजू नहीं है।  महाप्रलयकारी  वैश्विक आतंकवाद की  स्याह काली परछाई  की  झलक स्पष्ट परिलक्षित हो रही है। जब  अमेरिका  ,यूरोप  ,इजरायल  ,इंग्लैंड  ,फ़्रांस ,चीन ,रूस सऊदी अरब ,यमन और ईरान  जैसे  देश भी आईएस का कुछ नहीं उखाड़ पा रहे हैं। तो अफगानिस्तान  ,भारत  या पाकिस्तान के अमनपसंद लोग  इस चुनौती से निपटने में कितना  कुछ प्रतिरोध कर पाएंग
                                       हालाँकि  दूनिया के इस खतरनाक  खूनी  मंजर  की तुलना में भारतीय समाज का सामाजिक  - साम्प्रदायिक   सौहाद्र कहीं ज्यादा काबिले तारीफ़ है। भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि को  बनाने में किसी  ओबामा का या ओसामा का कोई रोल नहीं। वर्तमान  सत्तारूढ़ नेतत्व  का भीइसमें  कोई रोल नहीं है ।   भारत की गंगा जमुनी तहजीब के परिष्करण में  उन ताकतों का  भी कोई हाथ नहीं जो दुनिया में अपने पेशाब से चिराग जलाने की असफल  कोशिश कर  रहे हैं।  आज  भारत को  न केवल  अमेरिका नसीहत दे रहा है , न केवल मुफ्ती  और मुसर्रत आलम  भारत को धोखा दे रहे हैं ,बल्कि अब तो  श्रीलंका का  नवनिर्वाचित राष्ट्रपति विक्रमसिंघे  भी तमिल अस्मिता को दवाने के नाम पर भारत को आँखें दिखा रहा है। नेपाल में लगातार भारत के खिलाफ  विष वेलि  बोई जा रही है। भारत की धर्मनिरपेक्षता , भारत का लोकतंत्र और भारत की उत्कृष्ट सांस्कृतिक  सभ्यता का निर्माण- साम्राज्य्वादी श्वेत प्रभुओं के द्वारा नहीं  हुआ है। कश्मीर के पथ्थरबाज युवा  शायद नहीं जानते कि भारतीय लोकतंत्र और पाकिस्तानी 'रोगतंत्र' में क्या फर्क है ? उन्हें तो  स्वाधीनता संग्राम के महान अमर शहीदों के बलिदानों  की भी कोई जानकारी नहीं है। यदि वे शहीद भगतसिंह जैसे क्रांतिकारियों के विचारों को जा पाते तो  वे भारत विरोधी नारे नहीं लगाते। यदि किसी को संघ परिवार या भाजपा की नीतियों से परहेज है तो  वेशक वो उनके खिलाफ नारे  लगाए। लेकिन यह कदापि असहनीय है कि मोदी सरकार या मुफ्ती सरकार की असफलताओं का ठीकरा 'भारत राष्ट्र' के सर पर फोडा जाए !यह कतई  बर्दास्त नहीं किया जा सकता कि  भारत की सरजमीं पर पाकिस्तान का झंडा लहराए जाए ।  यह सौ फीसदी   सच है कि  भारत में  हिन्दुओं,मुसलमानों या किसी भी  अन्य धर्म -मजहब के लिए कोई खतरा नहीं है।यहाँ  दरसल किसी भी दर्शन या विचार को कहीं कोई खतरा नहीं है ।
                                    आम धारणा है कि  इस दौर में  वे ही ज्यादा  असुरक्षित है जो किसी धर्म मजहब  केगृह-उपग्रह हैं। इसीलिये वे कुछ साम्प्रदायिक किस्म के  नेताओं की वोट कबाडु  घटिया राजनीति  का चारा बनने को तैयार हो जाते हैं। कोई जातिवाद के कारण ,कोई  मजहब के कारण ,कोई  राजनीति   में धर्म को घुसेड़ने के कारण तो  कोई  अपनी  भाषाई -क्षेत्रीय अहमन्यता के कारण  अपने ही  देश को तोड़ने पर आमादा है।  कोई घोर पूँजीवादी  आर्थिक नीतियों के कारण  उपेक्षित  है। वर्तमान  आर्थिक नीतियों की कुदृष्टि से सर्वहारा वर्ग तो मरने की कगार पर है ही, किन्तु  भारत का मध्यम वर्ग भी अब   खतरे  की जद में  ही आ  चुका  है।  इस तरह देखा  जाए तो  मोदी राज में केवल कश्मीर ही नहीं बल्कि  पूरा देश ही असुरक्षित है।
                   यह जग  जाहिर है कि   'मोदी सरकार'  को केवल कार्पोरेट जगत की  ही चिंता  है ? उन्हें अब मंदिर की  चिंता नहीं , हिंदुत्व की चिंता नहीं  , धारा -३७० की चिंता नहीं ।   फिर कश्मीरी पथ्थरवाजों की समस्या क्या है ?एक  समान  कानून की भी अब कोई बात नहीं करता। खुद मंदिर वाले और कमंडल वाले ही अब  सब कुछ भूलकर  'हर-हर मोदी' 'के नमोगान' में निरंतर लीन  रहता है। फिर आईएस और इस्लामिक कटट्रपंथ की प्राब्लम क्या है ? जब भारत के अधिकांस हिन्दू और मुसलमान आपस में एकजुट हैं तो बेगानी शादी में अलकयदा  वालों को रूचि क्यों है ?
                      वैसे भी भारत की केवल वामपंथी पार्टियाँ  ही नहीं बल्कि भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम  अर्धसामंती ,अर्धपूँजीवादी  और क्षेत्रीय  राजनैतिक पार्टियाँ भी धर्मनिरपेक्षता , लोकतंत्र , समाजवाद का गुणगान सनातन से करती आ रही हैं।  फिर इसमें पाकिस्तानी  फौज और उसकी नाजायज ओलाद हाफिज सईद  के  कश्मीरी पिठ्ठुओं की समस्या क्या है ? वे क्यों भारत विरोधी  नारे लगा रहे  हैं। क्या 'वैश्विक खूखार आतंक' और भारत विरोधी ताकतों का सही आकलन करने की फुर्सत  वर्तमान  भारतीय नेतत्व को है ? इस  देश की जनता को  महँगाई  ने मारा।  भृष्टाचार ने मारा।  'मंदिर-मस्जिद' विवाद ने मारा । गठबंधन धर्म ने मारा। झंडे -झाड़ू ने  मारा।   कभी कही  ' शायनिंग  इण्डिया'  ने मारा ।  किन्तु ऐंसा किसी  ने  कभी नहीं मारा जैसा अब मुफ़्ती और भाजपा की दोस्ती ने  कश्मीर के पंडितों को और पूरे भारत को रुसवा किया  है !
                       हमारे कुछ प्रगतिशील मित्र भी सिर्फ अल्पसंख्यकों के लिए दुबले हुए जा रहे हैं। इन सूमड़ों को याद रखना चाहिए कि   जब अधिकांस भारतीय असुरक्षित हैं , जब अल्पसंख्यक असुरक्षित हैं ,जब  देश का मजदूर  और किसान असुरक्षित है  तो हिन्दू कैसे सुरक्षित रह सकते हैं ? जब दुनिया भर में ईसाई ,मुस्लिम मारे जा रहे हैं तो भारत के  अधिसंख्य हिन्दू नागरिक सुरक्षित कैसे हो सकते हैं  ? ऊपर  से तुर्रा ये कि  जो लोग हिंदुत्व का वोट  बैंक बनाकर सत्ता का खजाना  खाली करने में जुटे हैं, वे हिन्दुओं के लिए  तो कुछ भी नहीं कर रहे हैं। उलटे शेखी बघारकर इस्लामिक आतंकवादियों को हिन्दुओं  के खिलाफ आक्रामक बना रहे हैं। वे हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों पर ,बाबाओं की यौन लिप्सा पर या मंदिरों में एकत्रित अपार धन राशि के उचित  एवं  युक्तियुक्तकरण  पर  मौन हैं। वे केवल सत्ता सुख लूट रहे हैं।  वे  'मुफ्तियों' के आगे  शरणम गच्छामि हो रहे हैं। वे उस  मुसर्रत आलम से गलबहिंयां  डाल रहे हैं। जो नामी पथ्थरबाज था है और रहेगा। वो हाफिज सईद को सलाम करता है।  वो दाऊद के साथ डिनर करेंगा ।  हमारे नेता उचित कार्यवाही के वयानों में व्यस्त हैं।
                         बड़े  दुःख की बात ये हैं कि  संसदीय राजनीति  की इस दुरवस्था को देश की जनता अभी भी समझ नहीं पायी है !संतोष की बात है कि  -समझदार सचेतन  वामपंथी बुद्धिजीवी -प्रगतिशील तबकों  द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग के हितों की पूरी-पूरी वकालत मौजूद है।  किन्तु उनके द्वारा  भी  जाने-अनजाने अधिकांशतः     हिन्दुओं को ही टारगेट किया जा रह है। इससे अल्पसंख्यक वर्ग में एक काल्पनिक असुरक्षा का  भाव  पैदा हो रहा है।   शायद   भी - नाहक ही  आक्रामक और उग्र हो उठते हैं। देश  में वाम पंथ की हिन्दू विरोधी छवि बन चुकी  है। अल्पसंख्यक वर्ग भी टैक्टिकल वोटिंग के कारण एकमुश्त उसे वोट करने लगा है जो भाजपा को हरा सके।  संसदीय लोकतंत्र में वाम की ताकत का कम होना  भी देश के लिए अशुभ  है। टैक्टिकल वोटिंग के कारण  आमतौर पर  देश में और खास तौर  से  बंगाल  के अल्पसंख्यक ममता के साथ हो लिए हैं ।
 हिन्दू   मतदाताओं ने  भी बंगाल में ममता और  लेफ्ट से  ऊपर  भाजपा को  तरजीह देना शुरू आकर दिया  है  ! यह कटु सत्य है कि इसीलिये भारत में लेफ्ट की राजनीति अब केवल 'संघर्ष' तक ही सिमिटती  जा रही  है।
                              कोई 'आरएसएस ' का विरोध करे  ,  मोहन भागवत का विरोध करे ,मोदी जी का तर्कसंगत विरोध करे तो यह उसका अधिकार ही नहीं बल्कि कर्तव्य भी है । मैं भी संघ परिवार का धुर विरोधी हूँ।  किन्तु जब कोई 'मुफ्ती'  आतंकियों  का कृपापात्र हो जाए या कोई ओबामा  जैसा बड़ा नेता सम्पूर्ण हिन्दू  मानस को ही  धर्मनिरपेक्षता की नसीहत दे तो  हमें अपनी सोच को अपडेट करना पडेगा।  हम केवल मोहन भागवत  जी  या मोदी जी या हिन्दू नेताओं   के उग्र वयानों  के निषेध तक ही सीमित क्यों रहें ?  हम  भगोड़े  दाऊद के बारे में ,हाफिज सईद के बारे में ,अफजल गुरु के बारे में या अब्दुलगनी लोन के बारे में चुप क्यों रहें ?वेशक हर धर्म-मजहब का  कोई भी  पढ़ा -लिखा  वेरोजगार  युवा भले ही भूँखों मर रहा हो, किन्तु   अब  वह  'गरीब' 'सर्वहारा'  कहलाना पसंद नहीं करता।  वह ज़िंदा रहने के लिए किसी भी नैतिक  -अनैतिक  'साधन' को अपना सकता है।  उसे किसी धर्म-मजहब के उसूलों की  या  सर्वहारा क्रांति की कोई दरकार नहीं ! दरसल भारत को खतरा  इसी अधकचरी  मानसिकता  से है। यह वही युवा  वर्ग है जो भटका हुआ है।  यह वर्ग  कभी  भारत के सुरक्षा बालों पर पत्थर फ़ेंकत है। कभी लव-जेहाद का नाटक  करता है।  कभी साम्प्रदायिकता की 'हुड़दंगलीला' में शामिल हो जाया करता है।  इस दौर में  कुछ मुठ्ठी भर युवा ही वैज्ञानिक,धर्मनिरपेक्ष  और क्रांतिकारी सोच की समझ  रखते हैं। बाकी अधिकांस तो मजहबी नेताओं द्वारा ऊगले जा रहे लावे में जलने-मरने को फुदकते रहते हैं। कुछ   आधुनिक  मध्यम  वर्गीय उच्च शिक्षित युवा  भी  कार्पोरेट जगत की असुरक्षित  चाकरी के निमित्त ,  कोल्हू के बैल की मानिंद जीने के लिए अभिशप्त हैं। वे नहीं जानते कि  'आजादी' किस चिड़िया का नाम है ?
        जिनसे अमेरिका को खतरा है ,जिनसे पाकिस्तान को खतरा है ,जिनसे शार्ली  एब्दो   को खतरा है। जिनसे सारी  सभ्य दुनिया को खतरा है।  उन्ही से भारत को भी खतरा है। किन्तु बड़ी विचित्र और मानसिक दुरवस्था है कि दवे कुचले  उन निर्धन  भारतीयों को ही दोनों ओर  के कटट्रपंथ की ओर से  टारगेट किया जा रहा है जो  दुंर्भाग्य से ' हिन्दू ' कहलाते हैं ,जिन्हे अतीत में भी सैकड़ों सालों से  चुन-चुन कर  मारा  जाता रहा है । दरसल हिन्दू  निर्धन युवक  आज भी दुनिया में हासिये पर ही है।  उसके लिए कहने को आरएसएस है।उनके वोट बटोरने को  भाजपा है।  धर्म रक्षा के लिए वीएचपी है।  जय-जयकार के लिए अटल-आडवाणी और मोदी हैं। किन्तु इन वेरोजगार या  अपढ़ हिन्दू युवाओं  के लिए ,हिन्दू मजदूरों के लिए ,गरीब हिन्दू किसानों  के लिए  रोटी-कपड़ा -मकान जुगाड़ने के लिए मुस्लमान युवाओं की ही तरह खुद ही संघर्ष करना होगा।
                       वर्तमान  सरकार की हैसियत तो  एक मामूली 'मुफ्ती' के सामने  अब भटे  के  बराबर भी नहीं रही ।  भाजपा विधायकों के समर्थन से मुख्य मंत्री बना व्यक्ति देश विरोधी कामों में   जुट गया और ये सिर्फ संसद में स्यापा कर रहे हैं। क्या इनके भरोसे हिंदुत्व की रक्षा  सम्भव है ?इससे बेहतर तो  'बाप-बेटे' की ही सरकार थी।  वो देश के ख़िलाफ़ तो  कभी नहीं गए।   मुफ्ती साहब  ने खूब  सबक सिखाया  दिया है कि  धारा  ३७०  हटाने की बात तो भूल ही जाओ। एक झंडा ,एक संविधान और एक क़ानून तो छोड़िये  'मुफ्तीजी' को तो कश्मीर के चुनाव में पाकिस्तान की 'कृपा ' ही सर्वत्र नजर आ रही है।  भारतीय फौजियों के सर काटने वाले आतंकी तो 'मुफ्ती' को क्रांतिकारी नजर आ रहे हैं।  इस अंधेरगर्दी के खिलाफ एक शब्द नहीं है मोहन भागवत जी के पास।  केवल मोदी जी की क्लाश लेने से 'देशभक्ति' पूरी नहीं हो जाती।  सत्ता की मिठास में  तो  पूरा 'संघ परिवार' शामिल  ,किन्तु जब 'मुफ़्ती' का कड़वा 'सच' सामने आया तो  अब 'अमित शाह और मोदीजी  पर  आँखें तरेर रहे हैं। इधर पूरा विपक्ष भी सरकार को सांस नहीं लेने दे रहा।   वेशक मोदीजी ही इन घटनाओं के लिए प्रारंभिक तौर  पर जिम्मेदार हैं। किन्तु कश्मीर में यदि भाजपा को बहुमत नहीं मिला  तो इसमें भी क्या मोदी जी की ही जिम्मेदारी   है ? यदि पीडीपी के साथ गठबंधन नहीं बनाते तो भी आरोप तो लग ही रहे थे कि  राष्ट्रपति शासन की जुगाड़ चल  रही है !अब  वक्त का तकाजा है कि पूरा देश मोदी को बाद में घेरे-कभी किसी चुनाव में।  अभी तो ततकाल  कश्मीर को बचाने की बात करे। पूरी संसद और पूरा देश एकजुट हो जाए तो न केवल गिलानी 'साहब'को ,न केवल मुसरत आलम को , न केवल यासीन मलिक को , न केवल उनके नापाक  पाकिस्तानी आकाओं को  बल्कि मुफ्ती साहब को  भी भारतीय लोकतंत्र के  जन-गण -मन का और भारतीय तिरंगे का सम्मान करना  सिखाया जा सकता है।


                          श्रीराम तिवारी

 

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