नहीं विकास नहीं नीतियाँ , नहीं वसंती रंग।
दिल्ली राज्य चुनाव की , हुई तश्वीर बदरंग।।
हुई तश्वीर बदरंग , संग दिग्भर्मित नर मेदिनी।
फागुन के दिन चार, ज्यों अवसरवाद की चांदनी।।
कहें कवि 'श्रीराम' , क्या यही सुहाने सपने ?
चाल चरित्र को बेच , खरीदते चेहरे चिकने ।।
श्रीराम तिवारी
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