गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

नसीबबाले ने नक्सली-उपद्रवी को चाय पर बुलाया ! न सिर्फ बुलाया बल्कि चाय भी पी !

 

   दिल्ली में भाजपा की हार और 'आप' की जीत  के बारे में  सारे संसार में चर्चा है। अमेरिका ,इंग्लैंड ,पाकिस्तान , चीन ,जापान ,आस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, श्रीलंका समेत दुनिया भर  के अखवारों  के  प्रथम पृष्ठ पर दिल्ली के चुनाव  चर्चित  हैं। दुनिया भर के सोशल साइट्स पर ,डिजिटल  और इलक्ट्रॉनिक  मीडिया पर 'दिल्ली राज्य ' चुनाव के विश्लेषणों   की विगत दो दिनों खूब धूम  मची हुई  है।सबके अपने-अपने कयास हैं। सबके अपने-अपने विमर्श और विश्लेषण हैं।  भारतीय और  अंतर्राष्ट्रीय  विश्लेषणों में - कुछ वास्तविक ,कुछ  काल्पनिक ,कुछ अर्धसत्य ,कुछ  वास्तविकता  से दूर और कुछ अतिरंजित व्यंग मात्र हैं। इनमें सबसे खतरनाक टिप्पणी   सुब्रमण्यम स्वामी की है। उसका कथन  है की " दिल्ली में देश द्रोहियों की सरकार आ गयी है ''[नई  दुनिया - इंदौर संस्करण ,पेज नंबर -१२  कलम ७-८ , -दिनांक १२-० २- १५ ] आशा की जाती  है की  दिल्ली की प्रबुद्ध   जनता  ,देश की जनता ,  सभी राजनैतिक पार्टियां और दिल्ली के वे  वकील  जिन्होंने किरण वेदी को हरवाया  और 'आप' को जिताया है।  वे  सुब्रमण्यम स्वामी के इस वयान का संज्ञान अवश्य लेंंगे।
                                                     दिल्ली राज्य चुनाव विषयक  प्राप्त  सूचनाओं और अपनी बौद्धिक क्षमता के अनुरूप मेरा  व्यक्तिगत विश्लेषण  निम्नानुसार है। दिल्ली राज्य  विधान सभा की ७० में ६७ सींटें प्राप्त कर   'आप' ने जो बुलंदी हासिल की है  उस के कारकों को उजागर करने से पहले 'आप' को नेक  सलाह दी  जाती  है कि 'आप' इस गुमान में न रहे कि  दिल्ली की तरह शेष  भारत की  जनता भी  'आप ' पर लट्टू है। देश की जनता न तो मोदी पर लट्टू है न 'आप' पर।   वह तो वर्तमान व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन चाहती है।  चूँकि मोदी जी ९-१० माह में कुछ भी नहीं कर सके तो दिल्ली की जनता ने 'विकल्प'  उपलब्ध होंने  पर दिल्ली में   बहरहाल  'आप' को पसंद कर लिया है ।  यदि 'आप' ५ साल में कुछ नहीं कर सके तो  कांग्रेस और भाजपा की तरह 'आप' को भी ठिकाने लगा दिया जाएगा ।
      दिल्ली में मिली सफलता का  यह मतलब  भी नहीं  है कि  'आप' की नीतियाँ  और कार्यक्रम पूरे देश को पसंद हैं ! यदि 'आप' की सोच यह है की दिल्ली की जनता  और  शेष भारत की जनता  की मनः स्थति एक सी है तो 'आप' गलतफहमी में हैं ! 'आप' को स्मरण रखना होगा कि  भारत का हर प्रांत या   हर क्षेत्र अपनी   विशिष्ट   भौगोलिक,सांस्कृतिक, सामाजिक ,और राजनैतिक विविधता के   बरक्स  अपनी राजनैतिक चेतना और राजनैतिक  बुनावट को अभिव्यक्त करता है।याद रखें कि  'आप' आज लोकप्रियता की बुलंदियों पर होने के वावजूद मध्यप्रदेश में एक विधान सभा सदस्य तो क्या एक पार्षद भी नहीं  जिता पाये।   जबकि मध्यप्रदेश में ठीक  दिल्ली चुनाव से पूर्व स्थानीय निकायों में भाजपा की इकतरफा जीत हुई है।  जबकि भाजपा यहां आकंठ भृष्टाचार में डूबी हुई है।   यदि 'आप' इतने बलशाली हैं तो मध्यप्रदेश ,गुजरात ,राजस्थान या छग में कहीं तो उपस्थ्ति दर्ज कराइये। सबको मालूम है कि  इन दिनों  भाजपा शाषित राज्यों में भृष्टाचार चरम पर है।  'आप' के नेता दिल्ली की जीत को ''बिल्ली के भाग से छींका टूटा"ही माने ! इससे ज्यादा सोचने में कोई हर्ज नहीं है।  किन्तु सोच का दायरा तर्कपूर्ण और विज्ञानसम्मत होना चाहिए। बहरहाल दिल्ली  में 'आप' की बम्फर जीत एवं  जागरूक  जनता द्वारा  कांग्रेस और  'भाजपा ' की बेरहम पिटाई  पर  कुछ खास निष्कर्ष  इस प्रकार हैं !
  

[१]  दिल्ली के अधिकांस  मतदाताओं को  पीएम  मोदी जी का स्वर्ण खचित -जड़ाऊँ -नौलखिया शूट पसंद नहीं आया !  भले ही वह गिफ्ट में  ही क्यों न  मिला हो  !  देश  के गरीब  मजदूर जब ठंड में ठठुर रहे हों  और ओला  पीड़ित किसान आत्महत्या  कर  रहे हों, तब प्रधानमंत्री का इस तरह  बार-बार  कीमती वस्त्र बदल -  बदलकर  , हवाई  मार्ग से हवाई  बातें करना  दिल्ली के मतदाताओं को पसंद नहीं आया।

[२]    संसद  सत्र  के  फौरन वाद कुटिल अध्यादेश जारी करना -भारतीय संविधान पर  परोक्ष हमला करना या   धर्मनिरपेक्षता पर हमला करना  , समर्थक  'भगवा मण्डली' द्वारा चार -चार-बच्चे पैदा करने का फतवा  जारी करना  ,घर वापिसी  का आक्रामक अभियान चलाना  यह सब   भी  शायद दिल्ली की जनता को  पसंद नहीं आया।

[३]  भूमिअधिग्रहण  अध्यादेश ,बीमा बिल अध्यादेश ,  एफडीआई -पूंजीपतियों के पक्ष में श्रम  कानूनों का शिथली  करण, सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण तथा   गणतंत्र दिवस पर ओबामाजी को अपने हाथ से चाय  पिलाना -दिल्ली के मतदातों को   संभवतः पसंद नहीं आया।

[४]    डेरा सच्चा सौदा -गुरमित  राम रहीम का  भाजपा के पक्ष में फतवा जारी हुआ  तो उसे भाजपा नेताओं  ने  सर-माथे लिया।  जबकि  इमाम बुखारी द्वारा जारी किया गया  'आप' के पक्ष में फतवा -  केजरीवाल द्वारा तत्काल रिजेक्ट कर दिया गया। दिल्ली के मतदाताओं को 'आप' की  यह अदा  खूब पसंद आयी  ! जबकि  भाजपा के नेता अपने हिन्दुत्ववादी ध्रवीकरण के  घमंड में चूर   होकर  इस  जन-मानसिकता को समझने में  नितांत  असमर्थ रहे कि बहुमत हिन्दू समाज को  किसी भी तरह की  साम्प्रदायिक कट्टरता कतई  पसंद नहीं।

[५] किरण वेदी , कृष्णा तीरथ ,इल्मी ,बिन्नी ,अमुक- धिमुक  जैसे दल बदलू -दलबदलिनियों  में उमड़े अचानक  भाजपाई  - सत्ता प्रेम को  बड़े भाजपाई नेता गफलत में  'मोदी प्रेम ' समझ बैठे।  इस रौ में वे अपने हर्षवर्धनों ,उपाध्यायों, जगदीश मुखियों  जैसे खाँटी  - खानदानियों की उपेक्षा  कर बैठे !  और चुके हुए कारतूसों को लेकर 'लाम' पर चल दिए।  दिल्ली के मतदाताअों ने इस  आयातित तलछट के कारण भाजपा  को  ही  नकार दिया !

 [६]  विगत २०१३  की विधान सभा  के त्रिशंकु होने  और  कांग्रेस की बैशाखी से  परेशान केजरीवाल ने  जो ४९ दिनों में त्याग पत्र दिया था। वेशक वो न केवल नाटक  नौटंकी था बल्कि केजरीवाल का उथलापन  भी था। किन्तु जब केजरीवाल  ने इस कृत्य के लिए  माफ़ी मांगी तो दिल्ली के मतदाताओं ने खुले दिल से माफ़ कर दिया ।  न केवल माफ़ किया अपितु वम्फर जीत देकर  दुनिया में मशहूर कर दिया।

[७]  वेशक 'आप' के कुछ कार्यकर्ता लगातार जुटे रहे। 'आप'  रुपी हिरण ने  भाजपा रुपी बाघ के सामने हिम्मत  नहीं हारी।  'आप' का हौसला भी इस जीत में बहुत महत्वपूर्ण है।

 [८]    'आप'    ने  जाति  -मजहब ,और खोखले वादों की राजनीति  नहीं की।   कांग्रेस और  भाजपा को नागनाथ -सांपनाथ समझा।  दिल्ली के मतदाताओं को 'आप'  का यह आचरण पसंद आया।


                    'आप' दिल्ली की जनता से   किये गए  वादे पूरें कर पाएंगे इसमें मुझे संदेह है।  दिल्ली राज्य का पुलिस पर कोई कंट्रोल नहीं।  वित्तीय स्थति  किसी नगर निगम से भी बदतर  है। 'आप' के कुछ नए -नए चेहरे उत्साहीलाल  भी हो सकते हैं।  किरण वेदी ,शाजिया इल्मी आपके दुश्मन बन चुके हैं। चूँकि 'आप' का जन्म  अन्ना  के आंदोलन से हुआ है इसलिए  अन्ना भी 'आप' को  ऐंसे ही छोड़ने वाला नहीं। केंद्र में मोदी  जी की  सरकार है। 'आप' के पास केवल नैतिक ताकत ही  है।  किन्तु यह नैतिकता इसलिए नहीं है कि 'आप' के नेता ' बड़े आदर्शवादी और संयमी' हैं।  बल्कि इसलिए हैं कि  मौका ही नहीं मिला। अब मौका मिला  है तो देश की और   दिल्ली की जनता  देखेगी की 'आप' अपने कौल के कितने पक्के हैं ?'आप' की आर्थिक नीतियाँ  क्या हैं ? 'आप' आसमान से कितने तारे कब तक तोड़ कर लाते हैं ?'आप'  का एजेंडा कैसे पूरा होगा  ? 'आप'  कांग्रेस ,भाजपा ,कम्युनिस्ट और  अन्य विपक्षी पार्टियों से  कैसा व्यवहार  करेंगे  ? ये सवाल 'आप' की आयु तय करेंगे।
बहरहाल अभी तो 'आप'  नसीबबालों  के साथ चाय पीजिये। जिन्होंने आपको  नक्सली-उपद्रवी  की पदवी से विभूषित किया  !

                               श्रीराम तिवारी  

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