पुरवा हुम -हुम करे ,पछुआ गुन -गुन करे ,
ढलती जाए शिशिर की जवानी हो !
आया पतझड़ का दौर ,झूमें आमों में बौर ,
कूंके कुंजन में कोयलिया कारी हो !
वन महकने लगे ,मन मचलने लगे ,
ऋतू फागुन की आयी सुहानी हो !
करे धरती श्रृंगार , दिन वासंती चार ,
'अलि ' करने लगे मनमानी हो !
फलें फूलें दिगंत ,गाता आये वसंत ,
हर सवेरा नया और संध्या सुहानी हो !
नोट :- प्रस्तुत पंक्तियाँ मेरे प्रथम काव्य संग्रह 'अनामिका ' [१९९८] में प्रकाशित ''अमर शहीदों के सपनो का भारत'' नामक रचना से उद्धृत कीं गईं हैं। कुछ साल पहले नई दुनिया के प्रथम पृष्ठ 'सकारात्मक सोमवार' में भी यह रचना प्रकाशित हो चुकी है।
श्रीराम तिवारी
www.janwadi .blogspot.com
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