मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

देश पर मंडरा रहे आसन्न खतरे की तरफ बहुत कम भारतीयों का ध्यान है !



अमेरिकी राष्ट्रपति को यदि भारतीय प्रधान मंत्री 'बराक भाई ' कहकर सम्बोधित करते हैं ,अपनापन दिखाते हैं तो इसमें  क्या  बुराई है ?अपने हाथ से चाय बनाकर पिलाने में क्या अनर्थ हो गया ?ओबामाजी ने  भारत  को सुरक्षा परिषद   का स्थायी सदस्य बनवाने का समर्थन किया है । इसीलिये उनकी चारण - वंदना में में क्या बुराई है  ?ये सभी वाकये यदि किसी 'निरीह' भारतीय नागरिक को फीलगुड मेहसूस  कराते हैं तो इसमें  किसी का क्या  जाता है ?   राष्ट्रीय सरोकारों और जन- प्रश्नों का सीधा सरल समवेत उत्तर  है कि किसी भी घटनाक्रम या द्विपक्षीय संवाद में कहीं कोई बुराई नहीं है।
                              किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि 'सफलता की संजीविनी बूटी ' तो कहीं भी किसी को भी नजर नहीं आ रही है।  कुछ शुतुरमुर्ग जरूर आत्म मुग्ध हैं।  वे एक ही रट  लगाये हुए हैं।  अभी तो ८ माह ही हुए हैं।  यानी कि  अगले -नौवें महीने में 'विकास ' नामक अजूबा  पैदा होने वाला है। 'मेक इन इण्डिया' होने वाला है।  कालाधन-  वापिसी होने  वाली है। भृष्टाचार विमुक्ति भारत होने वाला है। पाकिस्तान जमींदोज  होने जा रहा है।  चीन  का  चक्का जाम होने जा रहा है। आतंकियों , मुनाफाखोरों,मिलाबटियों ,रिश्वतखोरों का पराभव सुनिश्चित है।  जिस के अभाव  में भारत रुपी लक्ष्मण अभी भी मूर्छित पड़ा हुआ है।वह संजीवनी  बूटी  अगले बजट सत्र तक 'इस जम्बूदीप में  प्रकट होने वाली है।
                    वर्तमान नेतत्व द्वारा विगत  चुनावों में बार-बार कहा गया है कि  विगत  ६० साल में  किसी  भी नेता या या राजनैतिक पार्टी ने अभी तक कुछ नहीं किया।  पाकिस्तान के दो टुकड़े किसने  कराये क्या यह भी बताना होगा ?  साम्प्रदायिकता ,जातीयता और असमानता  के अविराम द्वंद  में जूझती आवाम ,भाषा -क्षेत्र - सांस्कृतिक संघर्ष में निरंतर संघर्षरत जनता  और अपने स्वार्थों के लिए विदेश भाग  रहीं प्रतिभाएं क्या  इन्होने  ही अभी तक  भारत  राष्ट्र की एकता को अक्षुण रखा है ? क्या भारत की संप्रभुता को अक्षुण रखने में  उनका रंचमात्र योगदान है जो आज सत्ता के शिखर पर विराजमान हैं ?यदि  आपस में  मरती -कटती  कांग्रेस ,नेहरू जी , इंदिरा जी ,मोरारजी ,चरणसिंह ,राजीव गांधी ,विश्वनाथ प्रतापसिंह, चंद्रशेखर ,गुजराल ,देवेगौड़ा ,नरसिम्हाराव, अटल बिहारी ,मनमोहनसिंह इत्यादि  सभी  अकर्मण्य और नाकारा थे। तो वह लोकतंत्र अभी तक कैसे सलामत रहा जिसके माध्यम से वर्तमान नेतत्व सत्तारूढ़ है।हर बार के  चुनावों में आपका दावा रहा है  कि  एकमात्र हम  ही हैं हिन्दू पद पादशाही के प्रतिस्थापन्न [आइसोटोप्स] । हम  कर देंगें। 'Yes We Can' ! !ओ. के। अब करो न !  आप  अमेरिका ,चीन पाकिस्तान को ठीक कर  दीजिये !  जनता से किये गए वादे पूरे कीजिये ! अपने ही असंतुष्टों को संतुष्ट  कीजिये ! आप दाऊद  इब्राहीम को  सजा दिलाईये !आप विकास की गंगा बहाइये  हम भी तहेदिल से आपके साथ है !  वेशक हम असमानता और अन्याय का प्रतिकार करेंगे।  वेशक हम  झूंठ -कपट-छल  की राजनीति  का विरोध करेंगे।  वेशक हम  पूँजीपतियों  की हितसाधक नीतियों का प्रबल  विरोध करते रहेंगे ! किन्तु यदि आप देश के गरीबों के पक्ष में ,मजदूरों के पक्ष में ,किसानों के पक्ष में और देश के पक्ष में कोई नीति या कार्यक्रम पेश करते हैं तो हम दिलोजान से आपके साथ है। किन्तु आपकी अभी तक की भाव भंगिमा से हमे संदेह है कि  आपका विजन दुरुस्त है।
                                    चुनाव जीतने के १० मिनिट वाद ही  वर्तमान भारतीय नेतत्व ने  नवाज शरीफ को  फौरन याद कर लिया।  शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया।   शरीफ साहब की  माताजी को शाल श्रीफल भेजा। नवाज ने, पाकिस्तान के आतंकियों ने और पाकिस्तान की फौज ने भारतीय नेतत्व को  एक इंच भी कहीं छोट नहीं दी। उन्होंने एक क्षण के लिए भीआपको  किंचित  रंचमात्र  सम्मान नहीं दिया।  पाकिस्तान की [अ] मित्रता पूर्ण   बेरुखी से आजिज आकर  भारतीय प्रधानमंत्री ने  शायद 'अबोला' ठान लिया है । हालाँकि गृहमंत्री  राजनाथसिंह  और रक्षा मंत्री  पर्रिकर ने भारतीय फौजों को आदेश दिया है  कि  'तीव्रता से जबाब दो ' ! परिणामस्वरूप अब भारतीय  जवान रोज -रोज  पहले से ज्यादा  शहीद होने  लगे हैं।  बड़ी-बड़ी डींगें हाँकने  वाले   भारतीय प्रधानमंत्री अब तक  न तो  'नवाज शरीफ'  को 'नाथ '  पाये हैं  और न  ही वे चीन  को 'साध' पाये हैं।   उलटे आनन फानन में अमेरिकी  धन -कुबेरों के मोहपाश में , हड़बड़ी में पाकिस्तान और चीन की  सामरिक साझेदारी को बुलंद कर बैठे हैं ।  यह सत्य है कि  वर्तमान नेतत्व के  सत्ता में  आने के बाद  भारत  विरोधी ताकतों के  हमले तेज हो गए हैं। न केवल पाकिस्तान के हमले और तेज हो गए हैं , बल्कि उसने युद्धक  सैन्य  सामग्री का आधुनिकीकरण भी तेज कर दिया है। नमो  के 'नए मित्र बराक ओबामाजी '   एक तरफ तो भारत को सहिष्णुता ,धर्मनिरपेक्षता का ज्ञान बाँट रहे हैं  दूसरी ओर  पाकिस्तान की भरपूर मदद कर रहे हैं।  हमारे   यशश्वी  और तथाकथित डायनामिक  नेता 'नमो 'शायद भूल रहे  हैं कि -

        कुत्ते की दुम  बारह साल पुंगेरी में फसाए जाने पर भले ही सीधी  हो जाए किन्तु धंधेबाज ,मुनाफाखोर,   'हथियारों के सौदागर'  कभी  किसी के दोस्त नहीं हो सकते। अमेरिकी राष्ट्रपति को भारत से लौटे अभी एक सप्ताह ही हुआ है। किन्तु  कल सीनेट में फिर  भारत को चिढ़ाने का प्रस्ताव लाया गया है।  इस प्रस्ताव में   पाकिस्तान को जारी सतत  आर्थिक सहायता की मद में एक अरब डॉलर  की [६१ करोड़ रूपये]  अतिरिक्त सहायता को मंजूरी दी  जानी है  ! इनसे जो हथियार खरीदे जाएंगे वे भारतीय निर्दोषों का खून बहाने के काम आएंगे। ऊपर  से तुर्रा ये कि चीन भी पाकिस्तान को अत्याधुनिक युद्धक सजी सामान सप्लाई करने की घर पहुँच सेवा  के लिए तैयार है। 
               अमेरिकी विदेश सचिव का ताजा  वयान  है "पाकिस्तान हमारे दिल में रहता है ".!

                           उधर भारतीय विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज जब बीजिंग पहुंची तो उनकी आवभगत में  चीनी नेताओं ने पलक पांवड़े विछाये।  खबर है कि  चीन के राष्ट्रपति ने प्रोटोकॉल तोड़कर भारतीय विदेश मंत्री की आवभगत की ,उनसे मुलाकत की। सुषमाजी भी गदगद हैं। इधर  भाजपाई भी स्थानीय  चुनावों में धनबल-बाहुबल,सम्प्रदायबल  और जातिबल  की सफल राजनीति  से गदगद हैं।  इस गद्गद अवस्था में वे भारत पर आसन्न संकट  को नहीं देख पा रहे हैं। 
                                                            सत्ता के मद चूर नेताओं  की अविवेकी नीतियों  और प्रशासनिक असफलता के कारण  सीमाओं  पर  भारतीय जवानों  लहू अविरल प्रवाहमान है। इधर  महाराष्ट्र ,आंध्र और मध्यप्रदेश में  किसानों की आत्महत्याके आंकड़े बढ़ते ही जा रहेहैं।  वेरोजगार युवाओं  का मजबूरन या शौकिया  ही  अपराधीकरण की ओर रुझान बढ़ चला  है। प्रशासनिक  व्यवस्था का भृष्टाचारीकरण चरम पर है। अंधेर नगरी -चोपट राजा है। लगातार ढपोरशंख बजाने का नतीजा है कि  भारत अंदर से खोखला और बाहर से असुरक्षित होता जा रहा है।  देश  पर मंडरा रहे  आसन्न खतरे  की तरफ बहुत कम भारतीयों का ध्यान है। 
                                         भारत की वर्तमान राजनीति 'मदारी के खेल'  जैसी हो चुकी है। तभी तो दिल्ली राज्य विधान सभा चुनाव के दौरान भारतीय राजनीती का वीभत्स रूप प्रकट हुआ। अण्णा आंदोलन के कुछ अर्धकुशल   अराजक  और लम्पट समर्थक 'आप' की नाव में  तालियाँ  बजा रहे हैं। कुछ  प्रगतिशील -वामपंथी और ममता समर्थक भी केजरीवाल को 'गंभीर' नेता मान बैठे हैं। उधर अण्णा की कुछ निठ्ठली ,दलबदलू , चेलियाँ ,इल्मी-फ़िल्मी टाइप की रूपसी वरांगनाएँ  भी  वर्तमान सत्तारूढ़  केंद्रीय नेतत्व पर  जरा ज्यादा ही फ़िदा हैं।वे इस वर्तमान  असफल नेतत्व पर क्यों  आसक्त हैं ? यह  विचारणीय प्रश्न है ! उन्हें तो शायद  भृष्ट और  पूंजीवादी  राजनैतिक व्यवस्था की  'अपान वायु ' में  भी मजा आ रहा है। उन्हें भरम  है कि  ढपोरशंखी  बड़बोले   नेताओं  ओर  नेत्रियों को भारत  की जनता सदैव सर -माथे रखेगी। जनता के एक बहुत बड़े समूह को भी ग़लतफ़हमी है कि   किरण -केजरीवाल ही विकल्प हैं।
                            दरसल कांग्रेस एक महा भृष्ट और बदनाम पार्टी होने के वावजूद ,अलोकतांत्रिक कार्यप्रणाली से संगठन चलाने के वावजूद दिल्ली में तो सबसे  बेहतर नेतत्व देने की क्षमता रखती है। अजय माकन ,शीला दीक्षित , अमरिंदरसिंह लवली  जैसे दर्जनों बेहतरीन नेता कांग्रेस में हैं जो  किरण वेदी और अरविन्द केजरीवाल से बेहतर शासन चला सकते हैं।  किन्तु  'कांग्रेस  ही कांग्रेस की दुश्मन हो ' तो यह दिल्ली वालों का दुर्भग्य है कि  उन्हें  फासिस्ट भाजपा और अगम्भीर 'आप' में से किसी एक को  चुनने का ऐलान 'मीडिया ' ने या 'वक्त' ने कर दिया है। आखिरकार जनता को भी तो अपने  प्राण ,व्यान ,समान ,उदान की चिंता  स्वयं करनी चाहिए ! क्या सारा ठेका नेताओं ने ले रखा है ?  

                                    श्रीराम तिवारी 
                                

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