स्वर्गीय बाल ठाकरे के निधन पर कुछ लोगों ने घोषणा की थी ,अब शिव सेना का अंत निकट है। कुछ का अनुमान था कि सम्भवतः राज ठाकरे वाला धड़ा ही बचेगा और उद्धव वाला धड़ा डूब जाएगा। सभी अनुमान गलत साबित हुए हैं। राज की 'मनसे' का अता-पता नहीं। जबकि उद्धव -उनकी सेना और 'सामना'पूरी सिंह गर्जना के साथ मौजूद है। न केवल महाराष्ट्र में बल्कि भारत की संसद में ,न केवल संसद में बल्कि कैविनेट मंत्रिमंडल में वह मोदी जी की ५६ इंच की छाती पर मूंग दल रही है। तभी तो भारी उद्द्योग मंत्री -अनंत गीते ने बड़ी बेबाकी से - अरुण जेटली के बजट को 'मध्यम वर्ग विरोधी ' बताया है। लोकतांत्रिक परम्परानुसार यह सामूहिक जिम्मेदारी के बरक्स गीते ने जो बजट का विरोध किया वह संवैधानिक संकट उतपन्न कर सकता है। प्रधानमंत्री की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि देश को और देश की संसद को संतुष्ट करें। बहरहाल गीते के बोलबचन से सिद्ध होता है कि भारत के मध्यम वर्ग को इस बजट से ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है।
इस बजट पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया हास्यापद है। कहाँ हो डॉ मनमोहनसिंह ! आपको मेरा सुझाव है कि सिर्फ इतना ही कह देते कि यह बजट बहुत अच्छा है। कोई नयी रेल नहीं ,कोई नयी पटरी नहीं ,कोई किराया नहीं बढ़ा। याने सब कुछ यथावत ! याने आपका मनमोहनी बजट ही अभी एक साल तक जारी रहेगा !अब कांग्रेस के लोग भलते ही रेल बजट की बखिया उघेड़ रहे हैं। इससे तो यही सिद्ध होता है कि जो आपका यूपीए वाला बजट था वो ही घटिया था। पहले सुरेश प्रभु और अब अरुण जेटली के बजट ने भी चिदंबरम, और डॉ मनमोहनसिंह जी आपको बहुत कुछ मौका दिया है ,किन्तु आपका मौन ही कांग्रेस की दुर्गति का कारण है। आपसे बेहतर खिलाड़ी तो मोदी जी निकले कि पहले तो आपके मनरेगा की समाधि बना डाली फिर उसी का बजट बनाकर ढोल भी पीट रहे हैं। आदरणीय मनमोहनसिंह जी आपके बजट ने ही तो सबसे पहले देश के मध्यम वर्ग को जुतियाया था। अब जेटली जी ने तो मनमोहन के हाथों बुनी गयी "ज्यों की त्यों धर दीनी चादरिया।इनकम टैक्स का स्लेब नहीं बढ़ा। सर्विस टैक्स बढ़ा दिया। सब्सिडी को मिनिमाइज किया और शान से कह रहे हैं 'अच्छे दिन आने वाले हैं'। डॉ मनमोहनसिंह की जगह कोई अदना सा नेता भी होता तो सारे देश में ढोल पीट-पीटकर बताता कि ये तो मेरी ही नीतियों का विस्तार है।
मेरी यूपीए सरकार की नीतियों को और जयादा कार्पोरेट परस्त बनाकर जेटलीजी ने देश की आम जनता के सामने परोसा है। इस अर्थ नीति ने ही जिस तरह कांग्रेस को 'अच्छे दिनों ' बहुत दूर कर दिया है। उसी तरह यह मनमोहनी बजट इस मोदी सरकार का भी पीछा ही नहीं छोड़ने वाला । अभी तो किसी ठोस विकल्प के अभाव में यही लगता है कि यह पूंजीवादी अर्थशाश्त्र देश का अभिशाप बन गया है। दुःख इसी बात का है कि जनता को बोतल बदलने में ही मजा आ रहा है जबकि शराब वही पुरानी है।
श्रीराम तिवारी
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