हर साल बरसात के दिनों में आत्मघाती निठल्ले फुरसतिये लोग तीर्थ यात्रा के नाम पर मौत की फिराक में निकल पड़ते हैं।वे सड़क दुर्घटनाओं में, पहाड़ खिसकने में, तीर्थ स्थलों के दर्शन हेतु उमड़ी भीड़ में, वाहन खाई में गिर जाने से बेमौत मर जाते हैं। हर साल न जाने कितने कावड़ियों की मौत हो जाती है।हर बार विपक्ष का आरोप सरकार पर होता है कि *सरकार फेलुअर है*!
यद्यपि हम इन सबकी मौत का जिम्मेदार इनको ही मानते हैं! तीर्थ यात्रा हो या कांवड़ यात्रा हो, इसमें आज तक धनिक वर्ग का न तो कोई तीर्थ यात्री मरा न ही कावड़िया। कावड़ यात्रा में कोई धनाड़य क्यों नहीं मरता? कोई बड़ा नेता क्यों नहीं मरा? यहां तक कि कोई शंकराचार्य अथवा मठाधीश कांवड़ यात्रा, जुलूस जलसों में जब जाता ही नही, तो मरेगा क्यों?
भारत में प्रायः देखा गया है कि धर्मांध लोगों को अपने शास्त्रीय धर्मसूत्रों या आप्तबचनों में कोई दिलचस्पी नही है। महापुरुषों के बताये मार्ग पर चलने के बजाय वे केवल सैर सपाटे, मनोरंजन के लिये अमरनाथ,वैष्णव देवी,चार धाम,52 शक्ति पीठ, द्वादश ज्योतिर्लिंग,हेम कुंड साहिब, तिरूपति बालाजी,शिर्डी या हज यात्रा पर निकल पड़ते हैं!
इन दिनों कांवड़ यात्रा कुछ ज्यादा ही हाईटैक हो गई है ! 'बम बम बोल' वाले नारों के साथ साथ अब इलेक्ट्रिानिक,डिजीटल साधनों और सोशल मीडिया पर यात्राओं के द्रश्य भी प्रचारित होने लगे हैं! जबकि इन चीजों का धर्म मजहब अथवा अध्यात्म से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है! श्रेष्ठ लोग सत्य अहिंसा,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह शौच,संतोष ,स्वाध्याय तथा ईश्वर प्राणिधान द्वा इत्यादि के बारे में जानते हैं, इसीलिए वे सड़कों पर जाम लगाने,राजनैतिक भीड़ में समा जाने में यकीन नही रखते।वे बरसात में किसी सुरक्षित और पवित्र जगह पर चातुर्मास करते हैं। वे किसी पद यात्रा या जुलुस का हिस्सा नहीं बनते। इसके अलावा वे अन्याय,अत्याचार करने वालों से भी किसी किस्म का संबंध रखने के बजाय तार्किक और सार्थक सत्संग करने में विश्वास रखते हैं।
आम तौर पर अमीर-गरीब ,शरीफ-बदमाश सभी किस्म के धर्मांध हिन्दुओं मुस्लिमों को अपने पाखंडी 'बाबाओं' मुल्ले मौलवियों पर अटूट अंध श्रद्धा हुआ करती है। साम्प्रदायिक और जातीय आधार पर वोट जुगाड़ने वाले दलों को अंधश्रद्धा के नशे में डूबी नस्ल-'केवल चुनाव जिताऊ भीड़' मात्र हैं !इसीलिए पादरियों,बाबाओं-कठमुल्लों के पाखंड- व्यभिचार पर वे चुप्पी साधे रहते हैं। इस तरह की मानसिकता सिर्फ-हिंदुओं में ही नहीं, बल्कि अल्पसंख्यक कौमौ में भी पाई जाती है। इसी मानसिकता ने *धर्मनिरपेक्ष विपक्ष* को शून्य पर ला खड़ा किया है। और पूंजीवादी कंजरवेटिव वर्ग को सत्ता में बिठाकर खुल्लम खुल्ला खेलने का मौका दिया है!श्रीराम तिवारी
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