मंगलवार, 8 अगस्त 2023

अपने आदर्श प्रभु श्रीराम

 गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य

💜रामचरितमानस❤ के लिये 🧡श्रीराम💛 को ही नायक 💚क्यों चुना ?
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गोस्वामी तुलसीदास ने बादशाह अकबर के शासनकाल में अपने दिव्य कामों को पूरा किया और प्रसिद्धि प्राप्त की। समय का वह हिस्सा भक्तिकाल में शुमार है। कबीर,सूरदास,मीराबाई रैदास,तुलसीदास,जैसे अनेक संत कवि उसी कालखंड में हुए थे। विदेशी आक्रमणकारियों की वजह से भारतीय समाज अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत से बिछड़ने की छटपटाहट महसूस कर रहा था। यह पीड़ादायक था। बाहरी आक्रमणकारियों ने भारत की धरती पर साम्राज्य स्थापित कर लिया था। सत्य सनातन धर्मावलंबी अपनी जिजीविषा निर्वाह में बाधाएं महसूस कर रहे थे।
यूं तो,अकबर सहिष्णु और उदार था परंतु स्वयं के चलाए ‘दीन-ए-इलाही’ नाम के नए मजहब को अपनाने की प्रेरणा देकर लोगों को अपने धर्म से विमुख करने का प्रयास भी कर रहा था। किंतु अविश्वास की एक बेबस बेचैनी सी छाई हुई थी। लोग भ्रमित हो रहे थे कि क्या करें?
ऐसे संकटकाल में भक्तिकालीन संतों ने जनता को अपने धर्म पर विश्वास कायम रखने और अस्मिता बचाने के लिए प्रवचनों और रचनाओं से उनकी हिम्मत बढ़ाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इस महत् कार्य में सबसे बड़ा योगदान स्वामी नरहरिदास और उनके कतिपय शिष्यों ने दिया! गोस्वामी जी उनमें प्रमुख थे, जिन्होंने श्रीरामचरितमानस के माध्यम से शौर्य और सत्य के लिये संघर्ष का संदेश दिया।
सवाल उठाया जा सकता है कि गोस्वामी जी ने अपने महाकाव्य का नायक श्रीराम को ही क्यों चुना ? श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और चूँकि तब हिंदू समाज को मर्यादा में बांधने की आवश्यकता थी। इसलिए उद्विग्न,तप्त और भ्रमित समाज को संघर्ष का मार्ग दिखाने के लिए तुलसी बाबा ने श्रीराम के आदर्श चरित्र और अन्याय के खिलाफ संघर्ष को जनता के सम्मुख लोक भाषा में प्रस्तुत किया। इस तरह गुलाम हिंदू समाज को एक दैवी आश्रय प्राप्त होता चला गया! सभी को मर्यादा पुरूषोत्तम रघुकुल नंदन मानवोचित व्यवहार वाले आदर्श भा गए।
हिंदू -आर्य जनमानस को श्रीराम अपने बीच के ऐसे महापुरुष लगते थे जो परमात्मा हैं! परंतु गरीब-अमीर, छोटे-बड़े सभी के साथ हैं। वे शबरी के जूठे बेर भी चाव से खाते हैं और प्रेम पूर्वक केवट और निषादराज का भी आतिथ्य स्वीकारते हैं। श्रीराम बनवासियों,आदिवासियों और उपेक्षित समुदाय के लोगों से स्वयं जाकर मिलते हैं, उनके दुख-दर्द दूर करते हैं। अपने भक्तों की रक्षा और उनके कष्टों का निवारण करते हैं।
जब नैतिक और धार्मिक परंपराओं पर चोट पहुंच रही थी तब तुलसी बाबा ने श्रीराम के रूप में पूरे समाज को एकजुट रहने और मर्यादित रहने का अवलंबन प्रदान किया। तुलसीदासजी के 'राम' एक महाराजा हैं परंतु आदर्श पुत्र,सनेही भाई और एकपत्नी व्रती भी हैं। जब समाज में बहुविवाह को अनुचित नहीं माना जाता था तब नारी को बराबरी का सम्मान देने के लिए श्रीराम एकपत्नीव्रत का पालन करते हैं।
बिना समुचित कारण के पति द्वारा तिरस्कृत अहिल्या का उद्धार कर समाज में उसे पुनः प्रतिष्ठा दिलाते हैं। स्त्रियों पर कुदृष्टि रखने वाले बालि का वध करते हैं। पिता के वचनों का मान रखने के लिए अयोध्या का साम्राज्य त्याग देते हैं। भाइयों से अटूट प्रेम करते हैं। वे करुणामय शरणागतवत्सल हैं। वे संतों सज्जनों को राक्षसों -निशाचरों के अत्याचारों से मुक्ति दिलानेके लिए, जन-जन को संगठित कर,ऐसी सेना तैयार करते हैं जो उनके नेतृत्व में रावण जैसे महा पराक्रमी बलशाली को परास्त कर देती है।
गोस्वामी जी ने दानवी प्रवृत्तियों पर विजय पाने के लिए ऐसी आदर्श एवं मर्यादित चरित्र की आवश्यकता प्रतिपादित की जिसे ईश्वर को भी अपनाना पड़ता है। तुलसी के राम ऐसे राजा हैं जिनके राज्य को सबसे आदर्श शासन व्यवस्था मानी जाती रही है।
जनमानस को अपने व्याकुल मन को विश्राम देने के लिए जिस आदर्श चरित्र और परमात्मतत्व की प्रतीक्षा थी, तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस के माध्यम से लोगों की उसी आकांक्षा को पूरा किया। देखते-देखते आम और खास सभी लोगों के बीच राम और उनकी रामलीला अत्यंत लोकप्रिय हो गए। जनता का आत्मविश्वास लौटा। आत्मबल के कारण लोगों का जीवन सुधरा, कामों में सफलता मिलने लगी। नैतिक मूल्यों में आस्था जागी इसलिए परिवार और समाज में सुधार हुआ। लोगों ने इसे ही अपने आदर्श प्रभु श्रीराम की कृपा का नाम दिया।
गोस्वामी जी ने हिंदुओं में अत्याचार और कुरीतियों से लड़ने का साहस जगाया। भाई चारा सिखाया! हिंदू समाज का इससे बेहतर जन जागरण उस दौर में और क्या हो सकता था?
तुलसी बाबा की श्रीरामचरितमानस ने अयोध्या के प्रतापी राजा राम को जन-जन का भगवान श्रीराम बनाया। अनपढ़ और गांव में रहने वाले के मुख से भी ‘मानस’ के दोहे-चौपाई सुने जा सकते हैं। कोउ नृप होय हमें का हानी, का बरषा जब कृषि सुखाने, खग जाने खग ही की भाषा, प्राण जाहिं पर बचन न जाई, करम प्रधान बिस्व रचि राखा, पर उपदेश कुसल बहुतेरे, मूरख हृदय न चेत जैसी सैकड़ों पंक्तियां लोगों की जुबान पर रखी रहती हैं।
आइए, हम भी तुलसी बाबा के साथ कहें-
💜सीय राममय सब जग जानी।
करहुं प्रनाम जोर जुग पानी।। ❤
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