यदि कोई व्यक्ति या नेता अपने आपको नास्तिक समझता है, तो तीन बातें हो सकती हैं! एक तो यह कि शायद वह उच्च कोटि का दर्शनशास्री है, अध्यात्मवाद योगशास्त्र का अध्येता है, ईमानदार कठोर परिश्रमी है! बुद्ध महावीर की मानिंद चरम मानवतावादी है! इस कोटि के लोग ईश्वर के होने या न होने पर कोई माथा पच्ची नहीं करते! इस श्रेणी के नास्तिक महान होते हैं!
इतिहास के हर दौर में बुद्ध,महावीर, पायथागोरस,आर्क मिडीज, सुकरात,रूसो,एमानुएल काण्ट, कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक ऐंगेल्स,नीत्शे,फायरबाख, सिग्मंड फ्रायड, गैरी बाल्डी,लेनिन,स्टालिन,फीडेल कास्त्रो,चे ग्वेरा भगतसिंह जैसे नास्तिक सदा से होते रहे हैं ! भारत का संविधान ऋषि मुनियों या साधू संतों ने नहीं लिखा, बल्कि हमारा संविधान परम नास्तिक पं जवाहरलाल नेहरू की सोच और संविधान सभा के प्रस्तावों को संपादित करने वाले बाबा साहेब डॉ भीमराव आंबेडकर परम नास्तिक थे! बौद्ध दर्शन में दीक्षित होने से पहले भी वे अपने कट्टर नास्तिक पेरियार के सानिध्य में नास्तिक ही थे!
भारतीय संविधान वास्तव में ब्रिटिश संविधान की सार वस्तु पर आधारित है! ब्रिटिश संविधान को बनाने में पोप के घोर बिरोधी नास्तिकों,वैज्ञानिकों ,अर्थशास्त्रियों ने,चर्च विरोधी ताकतों ने ही अपने सम्राट से लड़ते हुए, सर्वोच्च धर्म गुरु पोप से (ईसाई धर्म) पंगा लेते हुए बारहवीं शताब्दी में*मेग्नाकार्टा*के रूप में ब्रिटिश पार्लियामेंट को संविधान का आकार दिया! ब्रिटिश पार्लियामेंट ने लगभग सारे विश्व को अपना संविधान प्रदत्त किया! भारतीय संविधान का उदगम इसी ब्रिटिश संविधान से हुआ है! इतना लिखने का लब्बोलुआब ये है कि भारतीय संविधान नास्तिक बौद्धिकता का प्रतिनिधित्व करता है! इसीलिए धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणतंत्र हमारे संविधान के नीति निर्देशक सिद्धांत हैं!
नास्तिक होने की दूसरी अहर्ता यह हो सकती है कि जो योगेश्वर महादेव की तरह वीतरागी है,सांख्यशास्र रचयिता कपिल मुनि की तरह पदार्थवादी है, राजा जनक-महर्षि अष्टावक्र और योगेश्वर श्रीकृष्ण की तरह स्वयं को ईश्वर तुल्य बना लेता है! झेन' कन्फ्युशियस की तरह-अज्ञात ईश्वरीय सत्ता की बनिस्पत जीव माया के भेदाभेद से परे बिना किसी जोग जग्य तप ज्ञान के खुद ही जगत वंदनीय हो जाते हैं ! कालांतर में वे ईश्वर जैसा सम्मान पाते हैं! वे अपने से पृथक किसी और सत्ता को नहीं मानते!शिव की नजर में जिस तरह देव -दानव सभी की बराबर होती है, उसी तरह इन आधुनिक श्रैष्ठ नास्तिकों को ईश्वर की नहीं, बल्कि प्राणीमात्र की चिंता रहती है और इस धरती को भी बचाने की फ़िक्र रहती है!
नास्तिकता की तीसरी अहर्ता यह है कि जो अपढ़ कुपढ़ अंधविश्वासी हैं, धर्मांध हैं, आतंकी कसाब की तरह चंद रुपयों की खातिर मरने मारने को तैयार हैं ,भक्ष अभक्ष में भेद नहीं करने वाले मजहबी फिरकापरस्त, मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने वाले, ड्रग्स रैकेट,खनन माफिया,उग्र पत्थरबाज,मास लिंचड़, रिस्वतखोर,धर्म को राजनीति का हथियार बनाने वाले तमाम लोग, वे चाहे कितने ही तीर्थ यात्रा और गंगा स्नान कर लें, कितने ही यज्ञ भंडारे कर लें, किंतु वे निकृष्ट जीव तब तक नास्तिक ही हैं,जब तक वे ईश्वरीय संदेशों का अनुशरण नहीं करते!
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