मैली हो चुकीं हैं चादरें सभ्यताओं की जहान में ,
हिमालय की धवलता में अभी जिन्दा जवानी है ।
तरुणाई को मक्कार बनाना कैसा विकास है ये?
मुस्टंडों को घर बैठे खिलाना*सरासर नादानी है।
'सबका साथ सबका विकास'-तभी हो सकता पूर्ण,
आर्थिक असमानता की गहरी खाई को मिटानी है।।
किसीके यहां सदा अंधेरा किसी के यहां दिवाली,
मदद करो उसकी जिसके यहां नही अन्न पानी है।
न चलाओ खंजर मजूरों किसानों वतनपरस्तों पर ,
जियो और जीनेदो यही धर्म सार यही वेदवाणी है !!
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