मंगलवार, 13 सितंबर 2022

*जैन धर्म मे श्राद्ध मान्य नहीं हैं, क्यों?*

 *जैन धर्म मे श्राद्ध मान्य नहीं हैं, क्यों?*

उत्तर - श्राद्ध कई जैन परिवार पितरों की शांति हेतु करते है पर जैन धर्म अनुसार ये मिथ्यात्व है । जैन धर्म में कर्म सत्ता के अनुसार मर्त्यु बाद जन्म होजाता है ।कई
जैन लोगों के प्रश्न हैं कि श्राद्ध मानें या नहीं? जैन धर्म श्रमण संस्कृति को मानता है, वैदिक संस्कृति मे श्राद्ध मानते हैं।
हिन्दु धर्म और जैन धर्म अलग हैं। बहुत से जैन समझते हैं कि हम हिन्दु हैं। जैन धर्म कर्म प्रधान है।हिन्दू धर्म वेदों के अनुसार चलता है जब कि जैन सिद्धान्त कर्म व आगम पर ।
जैसे कर्म वैसी गति।
पिंड दान करने से या कौवे को खिलाने से क्या वो दान पूर्व जाता है, यह बात समझ से बाहर है।क्या आप के पितर के कर्म ऐसे थे कि बे कौवे बने जो श्राद्ध की तिथि समझ कर आप के द्वारा परोसा भोजन करेंगे ।
नही तो क्यों?
अगर आप के मन मे पितरों के प्रति आदर है तो ये करना बंद करें
उनकी तिथि पर जैन सिद्धान्त अनुसार मन्दिर में पूजा पढ़वा ये ।
गोशाला में चारा डलवाये ।
साधु संतों की वेयावच्च सेवा दे ।
इस कार्य से आप के पूर्वजो को खुशी होगी और वे उनकी आत्मा जिस लोक में होगी ये कार्य देख आप को आशीर्वाद देगी ।अरिहंत गीतांजली
कौवे को पितर मान खाना देने से नही इस से आप के पितरों का भी मान जाता है ।
करुणा तो जैन धर्म का गहना (आभूषण) है। महावीर प्रभु के रग रग मे करुणा थी जगत के लिए। पूर्वज कोई देव नहीं हैं, जैसी उनके कर्म हैं वैसी उनकी गि पूर्वज को पूजा नहीं जाता, सिर्फ उन्हें प्रणाम किया जाता है, क्योंकि वो घर के बड़े थे पूजना है तो *अरिहंत प्रभु* को पूजो।
🌹🌹🌹🌹
णमो अरिहंताणं🙏🥰🙏
उपरोक्त पोस्ट पर मेरा मतांतर इस प्रकार है :
-निवेदन है कि इस तरह कि आपत्तिजनक पोस्ट डालकर जैन दर्शन -श्रमण संस्कृति और वैदिक संस्कृति को बांटने की कोशिश न करें! आप एक ही कुल के दो भाइयों की दार्शनिक मतभिन्नता को बढ़ा चढ़ाकर पेशन करें! आप कुए के मेंढक और महासागर की व्हेल मछली की तुलना कर भारतीय सामाजिक भिन्नता को हवा न दें!आप पहले वैदिक साहित्य पर आधारित वेदांत दर्शन,भगवद गीता और प्रस्थान त्रयी ब्रह्म सूत्र आदि का अध्ययन मनन करें! दरसल वेद शास्त्र आगम, निगम पुराण आदि पढ़े बिना ही आपने हिंदू धर्म का श्राद्ध कर डाला!
आप पहले वैदिक मंत्रों को समझने के लिए संस्कृत पढ़ें, अष्टाध्याई पढ़ें,समयसार पढ़ें, आपको पता चल जाएगा कि वैदिक संस्कृति और श्रमण संस्कृति में जन्म कर्म और कर्मफल की कितनी साम्यता है! ,जन्म -मृत्यु,जीव,पुद्गल, आत्मा -जीवात्मा,श्रद्धा विश्वास, श्राद्ध और आस्था क्या चीज है,यह जानने के लिए गहन अध्यन जरूरी है! जैन मत को श्राद्ध विरोधी बताकर आप वैदिक संस्कृति (हिंदू दर्शन) और श्रमण संस्कृति (जैन मत) को तोड़ने की कोशिश न करें! श्रीराम तिवारी

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