एक थी लोमड़ी! बहुत तेज तर्राट चालाक धूर्त, बिल्कुल आधुनिक भारत के सत्ताधारी नेताओं की मानिंद! वैसे तो जंगल में सब ठीक -ठाक चल रहा था,किंतु हुआ यों कि सुश्री लोमड़ी की पूँछ कांटेदार झाड़ी में उलझकर कट गई थी! अत: जंगली जानवरों के बीच अपनी शर्म छिपाने के लिए लोमड़ी ने एक नायाब तरकीब निकाली! उसने अपनी झेंप दूर करने बाबत जंगली जानवरों की मीटिंग बुलवाई!
मीटिंग में चूहे -बिल्ली,सांप -नेवले से लेकर नीलगाय हाथी,हिरण- खरगोश,तेंदुआ- चीता और सिंह* साहिबान पधारे ! परम्परानुसार मीटिंग की अध्यक्षता श्रीमान सिंह साहब ने की ! मीटिंग में लोमड़ी द्वारा प्रस्तुत प्रस्ताव पर गंभीर विचार विमर्श हुआ! लोमड़ी देवी एक झाड़ी की ओट में इस तरह सटकर बैठी थी कि किसी को शक न हो कि लोमड़ी देवी की पूछ नहीं है! किंतु एक सियार को लोमड़ी पर शक हो गया!
सियार ने अध्यक्ष सिंह साहब से निवेदन किया कि विमर्श के लिए लाया गया विषय जिनका है, उन्हें सबके सामने पेश होना चाहिए! सिंह साहब और मीटिंग में उपस्थित वन्य समुदाय को सियार की बात जच गई !सब के जोर देने पर लोमड़ी अपना पिछवाड़ा छिपाते छिपाते मीटिंग में आई! उसने सभी से कहा कि "क्यों न सभी जंगली जानवर अपनी -अपनी पूंछ कटवा लें, क्योंकि इसके कारण कई बार हमारे प्राण संकट में आ जाते हैं!
सभा में उपस्थिति अधिकांश जानवरों ने सहमति में गर्दन हिला दी! लेकिन सभा में उपस्थिति बूढ़े सियार ने असहमति व्यक्त की! जब अध्यक्ष सिंह साहब ने सियार से कारण पूछा, तो स्यार ने जबाब दिया कि पहले इस लोमड़ी को कहिये कि पिछवाड़ा न छिपाये बल्कि ये बताए कि माजरा क्या है?
सिंह साहब ने लोमड़ी को पिछवाड़ा दिखाने को कहा, सभी वनचरों ने देखा कि लोमड़ी की पूछ ही नहीं है!
सभी को समझते देर नही लगी कि पूछविहीन लोमड़ी ने सभी वनचरों को अपनी अपनी पूंछ से महरूम करने का मनसूबा ठान लिया था!
जब कोई कहे कि मैं जातिवाद नही मानता, समझो कि उसकी जाति चली गई, जब कोई कहे कि मैं धर्म मजहब नही मानता, समझो कि उसका धर्म मजहब है ही नही!
यदि किसी की जाति नही, धर्म नही तो समझो कि वह वीतरागी हो गया है! किंतु जब कोई धर्मविहीनता जातिविहीनता की बात करे और अपने घर में सबसे बड़े जातिवादी नेता का फोटो लगाकर रखे, तो यह पाखंड है!
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