धीनता संग्राम के इतिहास से अनभिज्ञ कुछ अपढ़ गंवारों को मालूम नही कि फांसी की सजा को खुद शहीद भगतसिंह ने चुना था! कुछ गप्पाड़ियों का आरोप है कि यदि गांधी, नेहरु,पटैल,अंबेडकर चाहते तो शहीद भगतसिंह को बचाया जा सकता था ! कुछ तो नीचतापूर्ण आरोप लगाते हैं कि गांधी जी चाहते तो भगतसिंह,राजगुरू,सुखदेव को फांसी से बचा सकते थे!
यह काबिले गौर है कि जब भगतसिंह ने अपने बाप की नही मानी तो,गांधी नेहरु कहां लगते हैं?यदि भगवान भी वकील बनकर भगतसिंह की वकालत करते तो, भगतसिंह उनकी भीनही मानते! क्योंकि भगतसिंह ने ठान लिया था कि भारत की मुर्दा गुलाम कौम को जगाने के लिये शहादत बहुत जरूरी है! यदि वे फांसी नही चढ़ते तो भारत की जनता जागती ही नहीं और आज भारत, पाकिस्तान में उनका जितना सम्मान भगतसिंह का है,उतना कदापि नहीं होता! इंक्लाब जिंदावाद का नारा भले ही हजरत रूहानी * ने लिखा होगा, किंतु दुनिया के मजदूरों ने तो भगतसिंह से ही सुना था..
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