परजीवी उपदेशकों को विशेषाधिकार है कि कोई उन्हें साधारण आदमी ट्रीट नहीं कर सकता! उनके कृतित्व या उनकी संपदा के स्वामित्व में आड़े नहीं आना पालतु लोकतंत्र की दुखती रग है!
संघ परिवार,भाजपा,विश्व हिन्दू परिषद् ,ये अखाड़ा -वो मठ या वक्फ बोर्ड ये सब पूँजीवादी व्यवस्था के टूल्स हैं!
हिंदूवादी भले ही कहें कि उनके पास गीता-रामायण जैसे संस्कृत साहित्य के अलावा कुछ नहीं तो कौन यकीन करेगा ? जब वे खुद चीख -चीखकर प्रचार कर रहे हैं कि उनके आविष्कारों की गूँज सारी दुनिया में है ,उनकी 'पतंजलि योग अनुसंधान केंद्र ' में तैयार की गईं वेश कीमती आयुर्वैदिक दवाएं अमेरिका ,यूरोप और इंग्लॅण्ड में भारी कीमत में खरीदें जातीं हैं. तो इसमें क्या शक है कि वे स्वयम भी अपने पेटेंट्स उत्पादनों के ब्राण्ड एम्बेसडर बनकर ही तो इंग्लेंड गए हैं।
स्वामी विवेकानन्द ने भारत और हिन्दू धर्म पर बहुत कुछससचच
कि भारत में कुछ लोग सिर्फ हिन्दू स्वामियों ,बाबाओं और प्रवचन कारों को ही घेरते हैं. अल्पसंख्यक चय हिन्दुओं के सापेक्ष अल्पसंख्यकों को कम कुख्याति मिली हो।लेकिन इसका अभिप्राय यह कदापि नहीं की किसी खास धर्म-मजहब के 'मज़हबजी लीडर' पाक -साफ़ हैं। कौन कहता है कि केवल हिन्दू धर्म के बाबा स्वामी या संत ही बड़े बदमाश हैं? धर्म-मजहब कोई भी हो उसका मूल आधार - अंध श्रद्धा ही है। सभी धर्मों-मजहबों -पंथों-दर्शनों में वक्त के साथ गिरावट आई है। वैसे भी दुनिया के तमाम धर्म-मजहब और उनके धार्मिक ग्रुन्थ सिखाते हैं कि "केवल उनका धर्म-पंथ -,मजहब ही श्रेष्ठ है ,उस पर ही यकीन करो ,उसके संस्थापक पर ही यकीन करो ,बाकी के धर्म मजहब सब झूंठे हैं " हिन्दू धर्म में इतनी कट्टर अवधारणा नहीं है। बल्कि केवल हिन्दू धर्म ही है जो सिखाता है की :-
" एकम सद विप्रा बहुधा वदन्ति "
'सत्य एक ही है ,संसार के सभी धर्म-मजहब के लोग उस परमात्मा या सत्य को अपनी भाषा या वाणी से उद्घोषित किया करते हैं "
"सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया , सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्वेत "
"सभी सुखी हों ,सभी निरोगी हों ,सभी में समग्र दृष्टी हो और सभी के दुखों का निवारण सभी मिलकर करें "
बहुत शर्मनाक है कि इस दौर के हिंदुवादियों -गुरु घंटालों और धंधेबाज स्वामियों ने अपने निहित स्वार्थ के लिए 'हिन्दू धर्म' की वास्तविक छवि को धूमिल करने का काम किया है। हिन्दू धर्म के उच्चतम मूल्यों और सिद्धांत पर रमण करने वाले योगी महात्मा तिजारत-व्यापार नहीं किया करते। अन्य धर्मों में यदि ये मूल्य नदारत हैं तो यह उस धर्म-मजहब के अनुयाइयों के चिंतन का विषय है। सच्चे हिन्दू लोग सिर्फ इसलिए परिस्थितियों को स्वीकारने के लिए नहीं बैठे कि ये तो सभी संस्कृतियों और धर्मों-मजहबों की दुर्गति का दौर है। बहरहाल यहाँ भारत में तो हिन्दू धर्म के बाबाओं-स्वामियों का ही ज्यादा बोलबाला है अतेव उन्ही की पूजा और उन्ही की आलोचना का दौर है। गैर हिन्दू धर्म के बारे में उनके अनुयायी ही फैसला करेंगे कि क्या उचित है ? क्या अनुचित है ?
वेशक हिन्दू धर्म के स्वामी-बाबा और धर्माचार्य तो 'सत्पथ' पर नहीं चल रहे हैं। चंद सच्चे साधू-संतों को छोड़ अधिकांस 'धर्म-प्रचारक ' मठाधीश केवल www याने [welth,women,wine] में रमण कर रहे हैं। वे वर्तमान यूपी ऐ सरकार में अपने कर्मों के कारण न केवल बदनाम हो रहे हैं बल्कि जेल भी जा रहे हैं ,इसीलिये वे पाखंडी ढोंगी धर्मगुरु- कट्टरतावादी हिंदुत्व की राजनीती करने वालों के कट्टर प्रचारक बन चुके हैं। अधिकांस परजीवी धन्धेवाज, चालाक और धूर्त -ज्योतिषी -कर्मकांडी इस फिराक में रहते हैं की राज्यसत्ता का अविरल सम्मान और समर्थन उन्हें मिलता रहे। वे केवल 'राम-नाम जपना -पराया माल अपना ' के अभिलाषी हैं .
आशाराम ,निर्मल बाबा ,कंधारी बाबा , ये आश्रम वो डेरा और न जाने कितने नामी-गिरामी अपराधी हैं जो निरीह जनता को वेवकूफ बनाकर दौलत के ढेर पर बैठे हैं। स्वामी रामदेव इन सब में नंबर वन हैं। राजनैतिक भर्ष्टाचार को समाप्त करने ,विदेशी बेंकों से काला धन वापिस लाने की दुहाई देने वाले बाब रामदेव का राजनैतिक सरोकार तो समझ में आता है किन्तु धर्म- अध्यात्म और 'दर्शन ' से उनका कोई लेना देना नहीं है । वे अब व्यक्ति नहीं संस्था हो चुके हैं। वे योग गुरु, के बहाने सरकार से और समाज से अपने व्यापार के लिए ,तिजारत के लिए विशेषाधिकार की आकांक्षा रखते हैं। कांग्रेस और यूपीए से अब उन्हें कोई उम्मीद नहीं है इसलिए उगते सूरज-नरेन्द्र मोदी का "नमो-जाप" शुरू कर दिया है बाबा रामदेव ने। लेकिन भाजपा ,एनडीए या मोदी के सहयोग से ये सुविधा उन्हें शायद भारत में ही मिल सकती है । इंग्लेंड में या अमेरिका में 'संघ परिवार' की ताकत अभी सीमित है . अमेरिका में जब ईसाई जार्ज फर्नाडीज के कपडे उतरवा लिये जाते हैं और मुसलमान शाहरुख खान को अपमानित किया जाता है। तो बाबा रामदेव कुछ नहीं बोलते। लेकिन जब उन पर बीतती है तो ठीकरा कांग्रेस या 'धर्मनिरपेक्ष ' जमात पर फोड़ देते हैं। गनीमत है स्वामी रामदेव की इंग्लेंड में लंगोटी तो सलामत रही। रामदेव को सोचना चाहिए कि "संतों का सीकरी सों काम " यदि राजनीती ही करनी है या धंधा ही करना है तो योग का ढोंग छोड़ना होगा। विशुद्ध व्यापार के लिए तो अंग्रेज दुनिया में वैसे ही बहुत मशहूर हैं. आशा है कि स्वामी रामदेव जी को इंग्लेंड से जो कुछ भी अनुभव मिले वे उनके भविष्य में अवश्य काम आयेंगे
श्रीराम तिवारी
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