कल सिटी फ़ॉरेस्ट में ईवनिंग वॉक करते हुए मैं एक अनुभवी योगाचार्य जी से चिकित्सा संबंधी जानकारी प्राप्त कर रहा था! योगाचार्य जी जब आयुर्वेद की महिमा -उपवास और पंचकर्म इत्यादि कठिन -कठिन योग विधियां बता रहे थे,तब मैंने उनसे प्रतिवाद करते हुए कहा कि :-
"चार दिन की जिंदगी, इंतजाम धत्कर्म जमाने भर के ! मैं 70 साल का होने जा रहा हूँ,अब इतनी सारी झंझटें किसलिये? "
योगाचार्य जी बोले कि प्राचीन काल में मनुष्य जाति की उम्र हजारों साल की होती थी, किंतु गलत खानपान और योग का पालन नही करने से मनुष्य की उम्र 100 के नीचे सिमट गई है! मुझे यह गप्प जची नही, यह अतिशयोक्ति पूर्ण अवधारणा मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ ! अत : उनसे वाद विवाद में न उलझते हुए इस पोस्ट के माध्यम से उन तक और अपने हजारों मित्रों तक पौराणिक धर्मशास्त्रों के कुछ तथ्य प्रस्तुत करते हुए तथाकथित इस लंबी उम्र का राज खोल रहा हूँ!
गोस्वामी तुलसीदासजी ने रामचरितमानस*में कई बार लंबी उम्र पाये जाने का उल्लेख किया है! महाभारत और भागवत पुराण में ऋषि वेद व्यास ने अनेक बार लंबी उम्र का उल्लेख किया है! किंतु मैं बिना लाग लपेट के अपने पौराणिक अध्यन मनन और साइंस की खोजों को जितना मैं जान पाया हूँ, उसके आधार पर डंके की चोट पर घोषणा करता हूँ कि:-
*मनुष्य की सैकड़ों हजारों साल की लंबी उम्र वाली अवधारणाएं सही नही हैं*
यदि जैविकीविद और नृतत्वसमाजशास्त्री 150 साल से ऊपर का कोई मानव नरकंकाल बता दें,तो मैं अपनी इस स्थापना को दुरुस्त कर लूँगा! हालांकि मेरे विश्वास का कारण इन्ही रामायण महाभारत जैसे पौराणिक ग्रंथों का आश्रय ही आधार हैं! बाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामचरितमानस में अयोध्या नरेश चक्रवर्ती सम्राट श्रीरामचंद्र जी को 10 हजार साल तक राज काज करते हुए बताया गया है! यदि उस जमाने में उम्र बाकई इतनी लंबी होती थी, तो वर्णाश्रम धर्मानुसार राम की आयू यदि 10000 साल मानें तो उनकी ब्रह्मचर्य अवस्था 25 हजार साल की होगी! तब श्रीराम जी का विवाह भी अवतरण के 27000 साल बाद ही हुआ मानना पड़ेगा! जो कि निहायत ही विरोधाभासी है!
जबकि इन्ही ग्रंथों में उल्लेखित है कि श्रीराम जी का विवाह 27 वर्ष की उम्र में 21 वर्षीय सीता के साथ हुआ था! इसके अलावा यदि उस जमाने में इतनी लंबी उम्र होती, तो कैकेयी ने अपने दो वरदानों में श्रीराम को 14 वर्षका वनवास क्यों मांगा? उन्हें 14000 साल का वनवास मांगने में क्या फर्क पड़ता? इन उम्रदराजी और अन्य चमत्कार की कपोल कल्पित घटनाओं से दुखी होकर स्वामी दयानंद सरस्वती ने सिर्फ वेदों को ही प्रमाण माना और डंके की चोट पर कहा कि वेद में जो लिखा, वही सही है अर्थात :-
*जीवेत शरद: शतम् * (सौ वसंत या सौ शरद रितु पर्यंत जियें)
इसी तरह महाभारत कालीन अनेक कथाएं विरोधाभासी हैं, जो हजारों साल की उम्र का महिमा मंडन करती पाई जाती हैं! रामायण की तरह महाभारत में भी इतिहास छिपा है! भूसे के ढेर में सुई की तरह! रामायण में केकेयी 14 वर्ष राम वनवासा* का वर मांगती है,और महाभारत में जुआ खेलने से पूर्व शकुनि अपने भानजे दुर्योधन को पट्टी पढ़ाता है कि:-
"मैं अपनी कलाकारी से तुम्हारे शत्रु पांडवों को जुए में हरा दूँगा, और हे दुर्योधन तुम महाराज धृतराष्ट्र से पांडवों के लिये 12 वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष का कठोर अज्ञातवास मांग लेना "यदि उस जमाने में सैकड़ों/हजारों साल की उम्र होती तो क्या शकुनि और दुर्योधन इतनी कम उम्र के लिये दॉव लगाते?
इसी तरह महाराज मनु ने ब्राहमणोचित वर्णाश्रम संस्कारों की जो सूची मर्यादित की है उसमें जगह जगह उल्लेख मिलता है कि यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह संस्कार आदि सोलह संस्कार कब किस उम्र में होने चाहिए! इनमें कोई भी संस्कार 100 की उम्र से ऊपर का नही है! कुछ तो जन्म से लेकर विवाह तक के संस्कार हैं, जो 25 वर्ष की उम्र तक संपूर्ण किये जाने का उल्लेख है!
सारा वैदिक और अवैदिक वांग्मय,आगम निगम पुराण मानते हैं कि मनुष्य जाति के आदि पूर्वज मनु महाराज हैं, किंतु मेरा मत है कि लाखों साल की आदिम अमानवीय यात्रा से गुजरकर मनुष्य जब पशु जगत या जीव जगत पर विजय प्राप्त करने में सक्षम हुआ होगा, उसके हजारों साल बाद वैदिक सभ्यता के उदय काल में जिस किसी ने आर्य जाति के नियम आचरण सूत्रबद्ध किये, वही हमारे परमपिता परमपूज्य मनु महाराज हो सकतेे हैं!
कुछ लोगों का अटकलपंचू विधवा विलाप है कि *महाराज मनु ने शूद्रों को अधिकारों से वंचित रखा*! यह मिथ्या आरोप है! बेशक यह रिसर्च का विषय है कि इक्ष्वाकु कुल नरेश सम्राट मनु यदि क्षत्रिय थे तो ब्राह्मणों पर आरोप क्यों लगाया जाता है कि मनुवाद ही ब्राह्मणवाद है ?
आधारहीन तथ्यों को परोसने की लम्बी परम्परा रही है पर 100 वर्ष को ही चार आश्रमों में बांटा गया था।सभी आश्रम 25-25 वर्ष के ही थे।कुछ अपवादों को छोड़कर, जिनमें 10-20 वर्ष उम्र अधिक बताई जाती है, उसमें भी गणना के भूल की सम्भावना अधिक है, बाकी उम्र को 100 ही माना है।मनुस्मृति में भी यही 100 वर्ष की उम्र का उल्लेख है।मनु क्षत्रिय वर्ण से थे,इसमें कोई दो राय नहीं है।स्मृति के छः अध्याय ब्राह्मण के विभिन्न कर्मों को ही परिभाषित करते हैं।ऋग्वेद तीन वर्ण की बात करता है।उनमें आपस में सभी प्रकार के सम्बंध भी थे।उनमें अनुलोम व प्रतिलोम विवाह भी है।मनुस्मृति में चौथे वर्ण की बात है।अर्थात ऋग्वेद की रचना के बाद मनुस्मृति की रचना हुई।मनुस्मृति नहीं लगता कि मनु की लिखी है क्योंकि पहले अध्याय के बाद बाकी सभी को भृगु बता रहे जिन्हें मनु का प्रिय कहा गया है तथा जोड़ा है कि सारी कथा भृगु को मालूम है सो आगे वही कहेंगे ।बात साफ है कि भृगु ने ही लिखा होगा ।भृगु ऋग्वेद के ऋषियों में नहीं हैं।मेरा कहने का आशय कि चौथे वर्ण का उद्भव बाद का है, पर 100वर्ष की उम्र तो दोनों में है।
मेरा मानना है कि आर्य सभ्यता में तीन ही वेद हुआ करते थे ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद (देखें गीता) और तीन ही वर्ण थे :-ब्राह्मण,छत्रिय,वैश्य! इनसे जो बाहर थे, वे सब अनार्य कहलाए! कालांतर में पुष्यमित्र शुंग या गुप्तकाल में जब ब्राहमणोचित संस्कार जटिल बना दिये गये,जब कट्टरता का अनुसरण नही करने वालों को उपरोक्त तीन वर्णों से पदच्युत किया जाने लगा, तब एक अलग वर्ण बन गया जिये पहले दास या दस्यू कहा जाता था, वही कालांतर में शूद्र या अस्पर्श जन /हरिजन कहे गये !
यह कटु सत्य है कि राजपूतों की तरह अहीर,यादव,दांगी, जाट,गूजर,लोधी,किरार,खंगार ये सब छत्रिय हैं!समझ नही आ रहा कि सारी खेती बाड़ी जिनके पास है ,पी एम से लेकर कलेक्टर कमिश्नर हैं वे पिछड़े कहे जा रहे हैं! और जो आज लोकतांत्रिक व्यवस्था में हासिये पर हैं, उन्हें सवर्ण या अगड़ा कहा जाता है!
यह यक्ष प्रश्न है कि सत्ता के इन सनातन स्वामियों को पिछड़ा बताकर,इनका भला किया गया है या नीचा दिखाया गया?( विषयांतर के लिए और त्रुटियों के लिए क्षमा) श्रीराम तिवारी
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