कुछ लोग कम्युनिस्ट घोषणापत्र की कालजयी रचना को पढ़े बिना और अपने देश की सभ्यता -संस्कृति और इतिहास का अध्ययन किये बिना रात दिन हिंदू धर्म की आलोचना करते रहते हैं! शुक्र है कि भारत में *ईश निंदा कानून * नही है ! जो लोग थोड़ा सा पढ़ लिखकर आरक्षण की वैशाखी के बलबूते सरकारी नौकरी पा गये, वही लोग आज अपने सजातीय बंधु बांधवों को यह ज्ञान बांट रहे हैं कि :-
"तुम सब जो ये हिंदू धर्म के वार त्यौहार पर पूजा आरती करते हो, नाच गाना बजाना करते हो यह सब बकवास है,यह सब बकवास है "
ये अहमक असभ्य नास्तिक हिंदू सूतिये* केवल हिंदू धर्म की आलोचना करते हैं, मुसलमानों की कट्टर मजहबपरस्ती के खिलाफ, लव जेहाद के खिलाफ और गजवा ए हिंद के खिलाफ एक लब्ज नही बोलते ! क्योंकि ऐंसा करने पर उनका सिर कलम कर दिया जाएगा! जो जबरन हिंदू से मुसलमान बना दिये गये,उन पर अब यह कहावत चरितार्थ हो रही है कि
*सूप बोले सो बोले,छलनी क्यों बोले, जिसमें 70 छेद हैं?"
जो लोग चार पीढ़ी पांच पीढ़ी पहले हिंदू थे, लेकिन भय या स्वार्थ से मुस्लिम हो गये, वे आज अपने ही दलित हिंद भाइयों के खिलाफ जहर उगलने लगे हैं! जबकि शेख सैयद मुगल पठान में से किसी ने उन्हें अब तक सामाजिक बराबरी सम्मान नही दिया! भारत के मुसलमानों में भयंकर आर्थिक असमानता है, कोई मस्जिद के बाहर भीख मांग रही /रही है और किसी के पास दो या तीन देशों की नागरिकता है, कोई मुस्लिम बंधु ठेला चलाता है, परिवार का पेट भरने के लिए ! और कोई मुस्लिम है जो एक फिल्म में काम करने के करोड़ों रुपये लेता/लेती है!
हिंदू धर्म की वैज्ञानिकता को न समझ पाने वाले लकीर के फकीर नही जानते कि सभ्य समाज में वैयक्तिक जीवन को सार्वजनिक जीवन में रूपांतरित करने की कला भी मानवीय वैज्ञानिक अनुसंधान ही है! सनातन हिंदू धर्म के नाम पर आडंबर रूप अभिव्यंजनावाद के अलावा जीवन के बाकी सभी आयाम स्तुत्य हैं ! जो मनुष्य जाति को गौरवान्वित करते हैं, हर्षित करते हैं सुख समृद्धि और शांति प्रदान करते हैं!
मौजूदा उत्साहीलालों की तरह जवानी के दिनों में माबदौलत भी लट्ठ लेकर हिंदू धर्म के आडंबरपूर्ण कर्मकांड के पीछे पड़े रहते थे, किंतु जब किसी ने सवाल किया कि:-
* इस्लाम में मौजूद ढेरों कुरीतियों के खिलाफ आपने कभी कुछ नहीं कहा*
तब मैने जबाब दिया कि न तो मैं मुसलमान हूँ और न ही मैं इस्लाम का अध्येता हूँ! अत :मुझे इस्लाम के खिलाफ लिखने बोलने का अधिकार नही है! मेरा जबाब सुनकर तमाम गरीब अमीर असंतुष्ट आलोचक में से इक्का दुक्का को छोड़कर बाकी किसी ने मेरी बात पर कान नही दिया! किंतु जब मैं कुछ शर्तों के साथ धीरे धीरे उनके विचारों को सम्मान देने लगा, उनकी पूजा,आरती में शामिल होने लगा,तो वे सब मेरी वैज्ञानिकता पूर्ण तर्क और द्वंदात्मक भौतिकवाद से प्रणीत बातें समझने में दिलचस्पी लेने लगे हैं!
यदि आप विचारधारा का चिरायता सीधे किसी मरीज के मुँह में डालोगे तो न मरीज ठीक होगा न चिरायते की खूबी पर लोगों को यकीन रहेगा! ग्रम्सी * ने कहा है कि "सभ्यता और संस्कृति का विरोध करने वाला व्यक्ति न तो कम्युनिस्ट है और न ही प्रगतिशील! " श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें