गुरुवार, 31 मार्च 2016

समस्या 'भारत माता की जय नहीं है, बल्कि समस्या राजनैतिक जनाधार खिसकने की है।



महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री देवेन्द्र फडणवीस कहते हैं ' भारत में रहना हैं तो , 'भारत माता की जय 'बोलना पडेगा। सवाल उठाना चाहिए कि क्या भारत में रहेंगे तो ही 'भारत माता की जय ' बोलेंगे ? जो लोग वर्षों पहले अपना वतन भारत छोड़ अमेरिका ,आस्ट्रेलिया ,इंग्लैंड और विदेश जा वसे वे अप्रवासी  भारतीय तो वहां के परमेनेंट निवासी हो जाने के वावजूद भी बेहिचक 'भारत माता की जय ' का नारा लगाते रहते  हैं। लेकिन वहां की सरकारों ने  और वहाँ के मूल निवासियों ने  इन नारे लगाने वाले भारतीयों को  कभी देशद्रोही या गद्दार  नहीं कहा । चाहे भारतीय क्रिकेट टीम हो ,कोई भारतीय  सांस्कृतिक दल हो , कोई लोकप्रिय भारतीय नेता हो या  प्रधान मंत्री हो  इनमें से कोई भी जब कभी  कहीं विदेशी दौरे पर होते हैं ,तो  वहाँ मौजूद भारतीय मूल के लोग  'भारत माता की जय 'के नारे अवश्य लगाते  हैं !कहने का तातपर्य यह हैं कि  फडणवीस छाप लोगों का यह कथन कि 'भारत में रहना हो तो भारत माता की जय बोलना ही होगा ' इस तरह का जुमला देशभक्ति पूर्ण नहीं है। और युक्तिसंगत तो कदापि नहीं है। वेशक  जो लोग भारत का नमक खाते हों और भारत माता की जय बोलने से इंकार करें ,वे भी महा मूर्ख और ठस ही हैं। वे लाख अपने धर्म -मजहब की दुहाई देंते रहें  कि  'भारत माता  की जय बोलने से तो  उनका मजहब काफूर हो जाएगा। किन्तु उनकी  इस जिद में कोई  तार्किकता नहीं है ।  बल्कि वे अपने मजहब की संकीर्णता ही सिद्ध किये जा रहे हैं। और  दुनिया में खुद की  हँसी उड़वा रहे हैं। कुछ मुठ्ठी भर लोगों के  भारत माता की जय नहीं बोलने से 'भारत माता ' का कुछ नहीं बिगड़ने वाला। भले ही कोई कुछ भी कहे किन्तु उनका यह कृत्य निंदनीय तो अवश्य है।

अभी हाल ही में मोदी जी जब सऊदी अरब की यात्रा पर  थे तब सैकड़ों भारतीय अप्रवासियों ने 'भारत माता की जय' का उद्घोष किया । इस नारेवाजी में  न केवल भारतीय कामगार -मजदूर थे। बल्कि अधिकांश  बुर्काधारी मुस्लिम  उद्द्य्मी  महिलाएं भी  थीं।  जब सऊदी अरब निवासी मुस्लिम  महिलाएं 'भारत माता की जय 'का नारा लगाकर अपना मजहब सुरक्षित रख सकतीं हैं ,तो भारत के मुसलमानों को क्या परेशानी है ? उन्हें तो अपनी  मातृभूमि के प्रति  और अधिक कृतज्ञ होना चाहिए !  कुछ सिरफिरे ओवेसी -मवेशी , गुमराह देवबंदी ,बाचाल  फडणवीस  और शिवसेना वाले  यदि  साम्प्रदायिक उन्माद  की आग को हवा दे रहे हैं ,तो जनता को उनके इस धर्मांध वाग्जाल से सावधान रहना होगा।  भारत के युवाओं को देश की एकजुटता के प्रति ,सहिष्णुता के प्रति एवं  अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति  बहुत खबरदार रहना होगा। साम्प्रदायिकता और फासिज्म के जुड़वां शत्रु  से लड़कर ही लोकतंत्र को बचाया जा सकता है।  देश में लोकतंत्र रहेगा तो  ही जन सरोकारों के  लिए संघर्ष किया जा सकेगा। 

  भारत माता की जय बोलने से किसी का  धर्म -मजहब खतरे में नहीं  होगा ।  इस नारे का ईश्वरी आश्था से कोई लेना-देना नहीं है। यदि कोई  मुस्लिम भारत वासी है तो 'भारत माता की जय ' का तातपर्य यह समझना चाहिए कि  भारत  मेरा मादरे वतन है ,इसे मैं सलाम करता हूँ। वैसे भी अधिकांश मुसलमान भारत माता की जय बोलते  हैं। किन्तु यदि कोई अड़ियल आदमी इस नारे की जगह 'जय हिन्द' या हिन्दुस्तान जिंदाबाद बोलता है तो भी किसी को कोई एतराज नहीं होना चाहिए।   वैसे भी  किसी के जय नहीं बोलने से किसी अन्य के पेट में  दर्द  होना भी नहीं  चाहिए ! लोकतंत्र का अभिप्राय भी यही है कि किसी पर कोई अपनी मर्जी नहीं थोप सकता।  एतद  द्वारा देवेन्द्र फडणवीस को और तमाम उन लोगों को  भी ,जो 'भारत माता की जय' से आगे कुछ और  सोच  -समझ नहीं पा रहे हैं -उन्हें सूचित किया जाता है कि ''भारत माता की जय ' तो सारा ब्रह्माण्ड बोल रहा है ! वैसे  यह जरुरी नहीं कि 'भारत माता की जय ' का नारा लगाने वाला देशभक्त ही हो। भारत माता की जय कहने वाले भी देशद्रोही हो सकते हैं। रिष्वतखोरी ,मिलावट,जमाखोरी ,घटिया निर्माण ,देश की सम्पत्ति का दुरूपयोग और दुश्मन देशों की जासूसी करना भी देशद्रोह ही है।  इन देशद्रोहियों के गले में हाथ डालकर कुछ धूर्त लोग केवल 'नारे नहीं लगाने वालों को  देशद्रोही बताकर साम्प्रदायिकता का उन्माद फैलाकर राजनीति कर  रहे हैं ! क्या यह देशद्रोह नहीं है ?

पाकिस्तान प्रशिक्षित आतंकवाद से पीड़ित  भारत ,महंगाई और भृष्टाचार से पीड़िता भारत और गरीब-अमीर के बीच असमानता की  भयानक खाई से आक्रान्त भारत  का सत्तारूढ़ नेतत्व हर मोर्चे पर विफल है।  भारत की वर्तमान सरकार यह मानने को ही तैयार नहीं कि वह घरेलु समस्याओं के  समाधान और वैकल्पिक नीतियों के संधारण में विफल रही है।  वित्तीय आर्थिक बदहवासी के सामने , पाकिस्तान  की कूटनीति के सामने ,चीन की चालों  के सामने और कारपोरेट पूँजी की अकड़ के सामने  मोदी सरकार पूरी तरह असहाय और निस्तेज नजर आ रही है। देश की जनता को अच्छी तरह मालूम है कि समस्या 'भारत माता की जय नहीं है बल्कि समस्या उनके  राजनैतिक जनाधार खिसकने की है। 

भारत के  दक्षिणपंथी मीडिया ने  और 'राष्ट्रवाद' के झंडावरदार उपद्रवियों  ने जेएनयू की मामूली सी घटनाओं  को कुछ  इस कदर महिमा मण्डित किया मानों 'आर्यावर्त' पर शक-हूण -कुषाण चढ़ बैठे हों ! उन्होंने कन्हैया जैसे मामूली  छात्र को इस कदर बदनाम  किया और सताया कि  'नरकगामी -हिटलर और मुसोलनी' भी शर्मा गए होंगे ! उन्होंने वामपंथ  समेत जेएनयू के आठ हजार छात्रों और प्रोफेसरों को भी  'देशद्रोही' सिद्ध  करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । दरसल इन्हे  हिन्दू राष्ट्र या हिंदुत्व  की चिंता  कदापि नहीं है ! यदि उन्हें अपने  मुल्क की राष्ट्रीय  एकता और अखंडता की  जरा भी परवाह  होती तो वे जेएनयू की समस्याओं को खुद अपने हाथ में उन्हीं लेते बल्कि कानून और शासन  प्रशासन के  माध्यम से उस समस्या का निवारण करते। वे देश में इस कदर  बैमनस्य नहीं फैलाते ! बल्कि संघप्रमुख  मोहन भागवत ,संघ के बौद्धिक प्रचारक इंद्रेशकुमार ,सुधांशु कुलकर्णी जैसे लोगों से  ही कुछ प्रेरणा लेते ,जो सौहाद्रपूर्ण राष्टीय एकीकरण  की बात कर  रहे हैं।वास्तव में यह हिंदूवादी और अल्पसंख्य्क वादी खेमें  एक दूसरे  के प्रत्यक्ष शुभचिंतक हैं। और वे खुद बुरी तरह  विभाजित और दिग्भर्मित भी है। संघ  अपनी प्राथमिकताएं  तय नहीं कर पा रहा है।  संघ और हिन्दुत्ववादी कश्मीर में तो  धारा  ३७० नहीं चाहते । किन्तु अब  वे इस धारा ३७०  को  हटाने का संकल्प भूलकर  कश्मीर में उन्हें समर्थन दे रहे हैं जो  लोग भारत से घृणा करते हैं। क्या यह  दोगली हरकत नहीं कि एक -दो कश्मीरी छात्रों  और अलगाव वादी युवाओं की घटिया हरकत के  बहाने  देशभक्त कन्हैया कुमार और वामपंथ  को तो  'देशद्रोही' का तमगा दे दे दिया और खुद  अलगाववाद की 'होलिका' की गोद में जा बैठे ? 

  जिन्हे  भारतीय संविधान की विकाश यात्रा का ज्ञान  नहीं है ! जो लोग लोकतंत्र,धर्मनिरपेक्षता,अभिव्यक्ति की आजादी के दुश्मन हैं. जिनके दिलों में भारतीय संविधान के प्रति सम्मान का भाव  नहीं है, वे स्वयम्भू  देशभक्त लोग क्रांतिकारियों को तो  पानी पी पीकर गालियाँ  दे रहे हैं जबकि  महबूबा मुफ्ती और बीफ खउओं का सम्मान कर रहे हैं। यदि इन हिन्दुत्वआदियों में देश के प्रति [भारत माता के प्रति] सम्मान का भाव होता तो वे बार-बार कानून को अपने हाथ में क्यों लेते ? इसी अज्ञानतावश  सरकार समर्थक [छी न्यूज]  दक्षिणपंथी मीडिया एवं 'स्वयम्भू देशभक्तों' ने जेएनयू को ही नहीं बल्कि उसकी  शानदार विरासत को भी  बदनाम करके रख दिया है । जेएनयू के बहाने यह भारत की साझा सांस्कृतिक विरासत  और  वैचारिक  विविधता पर सीधा-सीधा हमला है। इस राष्ट्रीय  क्षति के लिए जिम्मेदार लोग ही असल राष्टद्रोही हैं।  दक्षिणपंथी मीडिया द्वारा फैलाया गया यह कोहरा शीघ्र ही छट  जाएगा !और शीघ्र ही दुनिया देखेगी कि  जेएनयू कोई अराजकता का जमघट नहीं है बल्कि जेएनयू तो वैश्विक विचारों का पनघट है।  जनता को सवाल करना चाहिए  कि जेएनयू ,पूना फिल्म प्रशिक्षण संसथान  , हैदराबाद यूनिवर्सिटी , अलाहाबाद यूनिवर्सिटी ,अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी,जाधवपुर और देश के अन्य विश्व विद्यालयों में राष्ट्रबाद की तथाकथित अलख जगाने वाले लोग कश्मीर में कौनसा राष्ट्रबाद पढ़ रहे हैं ?क्या कश्मीर के खालिद जैसे दो-चार  छात्र ही 'देशद्रोही' हैं ? क्या अब पूरा कश्मीर 'भारत माता की जय'बोल रहा है

 पठानकोट आतंकी हमले की जांच के बहाने पाकिस्तान के बदमाश आईएसआई वाले भारत की सुरक्षा में सेंध लगा रहे हैं। और हमारे देशभक्त नेता उनकी आवभगत में खीसें निपोर रहे हैं ! पाकिस्तानी जाँच दल जेआईटी के लिए लाल  कालीन  बिछा रहे हैं. जबकि अजहर मसूद से पूंछतांछ के विषय में पाकिस्तान ठेंगा दिखा रहा है। केंद्र में  यदि कोई और पार्टी का राज होता , मोदी सरकार की जगह कोई और सरकर होती या कश्मीर में पीडीपी को किसी और दल ने समर्थन  दिया होता  तो 'संघ' वालों को -हिन्दुत्ववालों को और जेएनयू के छात्रों पर लात-घूसे  चलाने वालों को कश्मीर की यह राजनैतिक दुर्दशा पसंद आती ? क्या तब धारा  -३७० याद नहीं आती ? अब  अपना ही बयांन  'पाकिस्तान  को उसके घर में घुसकर मारेंगे 'याद नहीं  रहा क्या ?

 जिस तरह कोई नया-नया  मुल्ला मस्जिद में  शरू -शुरू में  घनी-घनी और जोर -जोर से नमाज पढता है,उसी तरह भारत के नए-नए सिखन्दडे शासकों ने  भी 'राष्ट्रवाद' का हो हल्ला कुछ ज्यादा ही मचा रखा  है। इन्ही के इशारे पर जेएनयू में  नए-नए संघ के अनुषंगी छात्र संगठन एबीवीपी ने  जो कुछ  भी किया वह देशभक्ति नहीं बल्कि जग हँसाई ही है। एबीवीपी के इन  दक्षिणपंथी छात्रों को और स्मृति जैसे मंत्रियों को शायद मालूम नहीं था कि  जेएनयू में कोई अराजकता का जमघट नहीं है ,बल्कि जेएनयू तो विचारों का पनघट है ! समेत देश भर के विश्व विद्यालयों में बहुत आक्रामक  तरीके से  राष्ट्रवाद  की नेतागिरी  कर  रहे हैं।  
                              
श्रीराम  तिवारी 

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