शनिवार, 12 मार्च 2016

यदि यही आर्ट आफ लिविंग है तो आर्ट आफ चीटिंग किसे कहते हैं ?


इसको कहते हैं 'मुंडन कराते ही ओले पड़ना' दिल्ली में यमुना किनारे 'आर्ट आफ लिविंग 'के कार्यक्रम को दुष्ट  देशद्रोही  देवराज इंद्र ने अपनी कोपदृष्टि  से तहस-नहस कर दिया है। एनजीटी ने भले ही जुरमाना भरवाने की मोहलत दे कर श्री श्री के आयोजन को हरी झंडी दे दी हो , भारत सरकार ने  भले ही क़ानून को ताक पर रखकर  भारतीय सेना को श्री श्री की सेवा में लगा दिया हो ,भले ही श्री श्री  की संस्था ने करोड़ों रु का जुर्माना भरने की अर्जी दी  हो ,और भले ही उन्होंने कदम-कदम  बार-बार झूंठ बोला हो,किन्तु  आर्ट आफ लिविंग बनाम आर्ट ऑफ़ चीटिंग का  यह धतकरम  खुद हमारे देवराज  इंद्र को भी  पसंद नहीं आया !

हालाँकि श्री श्री अपने भक्तों को तसल्ली देते हैं ,''श्रेयांशि च बहुबिघ्नानी '' श्रेस्ठ  कार्यों के मार्ग में अनेक बाधाएं आतीं हैं ! इस आप्त वाक्य का प्रयोग करते हुए वे अपने राज्यप्रणीत 'आर्ट आफ लिविंग ' के इस  विवादास्पद कार्यक्रम में उपस्थ्ति लोगों की हताशा को कुछ हद तक रोक पाने में सफल हुए होंगे ! और  सिर्फ वे ही सहमत हो सकते हैं जिन्होंने  धर्मान्धता की नाद का दूषित पानी पी लिया  होगा। वरना जिसका ईमान जिन्दा है ,जो सच्चा  हिन्दू और सच्चा  देशभक्त है वो  इस अनैतिकता का समर्थन नहीं करेगा। कोई कितने  ही बड़े  कद का क्यों न हो वह अपने देश के कानून का अपमान नहीं कर सकता। और अपने देश की फौज के  दुरूपयोग  की बात तो सोच भी नहीं सकता। फौज ने यमुना पर जो पुल  बनाया है उसकी वित्तीय जाँच' तो  कैग 'के मार्फत होनी ही चाहिए। और सारा खर्च श्री श्री से वसूला जाना  चाहिए ! वे यदि बहुत  बड़े धर्मात्मा या संत हैं तो देश पर बोझ न बने। उन्हें मालूम हो कि देश की जनता के टैक्स से ही  सेना का खर्च चलता है ! और सेना का काम देश की सीमा की रक्षा करना होता है। विपदकाल  में जनता की सेवा करना  भी भारतीय  सेना  का कर्तव्य है ,किन्तु किसी भी  संत  या उसके वयक्तिगत आयोजन के लिए सेना उसकी  गुलाम नहीं  है!

वैसे भी जो  शख्स अपने ही  देश की अदालत अर्थात कानून को मानने  से  स्पष्ट इंकार कर दे ,क्या वह धर्म गुरु या राजगुरु हो सकता है ? क्या उस मंच पर देश के प्रधान मंत्री को जाना चाहिए जिस मंच का प्रमुख कर्ता -धर्ता  अदालत के आदेश को नहीं मानने  की घोषणा कर रहा हो ?  क्या इन डबल श्री पर अदालत की मानहानि का प्रकरण दर्ज करने का माद्दा उनमें  है ,जिन्होंने 'राष्ट्रवाद' का ठेका ले रखा है ?  यदि देश  की राजधानी के निकट  मृतप्राय यमुना किनारे ,एक हजार एकड़ जमीन पर  देश और दुनिया भर के ३०  लाख लोग आकर तीन दिनों तक खाएंगे-पिएंगे और हगेंगे मूतेंगे  तो पर्यावरण बर्बाद होगा या नहीं ? दिल्ली के  पर्यावरण पर कोई आंच नहीं आएगी  और उसे सुदर्शन क्रिया का लाभ मिलेगा ,इस बह्काबे में वही आ सकता है ,जिसने धर्मान्धता की भांग पी रखी हो ! और यदि यही 'आर्ट आफ लिविंग' है तो 'आर्ट आफ चीटिंग' किसे कहते हैं

नागौर में चल रही  'संघ ' की मीटिंग में कूड़मगज  'बौद्धिकों' का बस नहीं चला वरना वे इस वेमौसम बरसात के लिए विपक्ष को या वामपंथ को या जेएनयू के छात्रों को ही दोषी ठहरा देते।वे अपने इष्टदेव  इंद्र को 'राष्ट्रद्रोही' नहीं ठहरा सकते ! हालाँकि संघ वालों ने 'अनार्य पुत्र' वेमुला और यदुकुल भूषण कामरेड  कन्हैया को और उनके  जैसे अन्य छात्रों को तो राष्ट्रद्रोही ' मान ही लिया है। उन्होंने  मोदी सरकार को  भी आगाह किया है कि जो कोई भी उनके सम्प्रदायिक बाड़े में आड़े आये उसे तत्काल 'देशद्रोही' मान लिया जाये !और शीघ्र अतिशीघ्र फांसी पर लटका दिया जाये !'संघ' ने विश्वविद्यालयों के छात्रों और प्रोफेसरों  को विशेष तौर पर टारगेट किया है। देशद्रोह  के प्रति उनकी यह चिंता बड़ी गजब की  है।  उनकी नजर में भगोड़ा विजय माल्या 'देशद्रोही ' नहीं है। मुंबई में गरीबों के ऑटो रिक्सा जलाने वाले दवंग -गुंडे -मवाली  देशद्रोही नहीं हैं।  निर्दोष छात्रों को  पीटने वाले ,कानून को धता बताने वाले नकली वकील -विधायक उनकी नजर में  परम देश भक्त हैं। देश की सेना को भी अपनी चाकरी  में लगाने वाला  और कानून को आँख दिखने वाला बाबा  भी देशभक्त ही है। राष्ट्रवाद की यह विचित्र परिभाषा  जो 'संघ' ने गढ़ ली है ,वह हिटलर,मुसोलनि या बिस्मार्क ने भी नहीं सोची होगी।

 एनजीटी के आदेश की धज्जियाँ उड़ाने वाले श्री श्री के मतवाले - सफेदपोश -आर्ट आफ लिविंग वाले ,यमुना का  सत्यानाश करने वाले और एनजीटी को सरे आम धमकी देने वाले तो संघ की नजर में देशभक्त  हो सकते हैं , किन्तु पढ़ने-लिखने वाले विश्वविद्यालयीन छात्र  उनकी नजर में  कभी देशभक्त नहीं हो सकते ! आर्ट ऑफ  लिविंग के  इन पाखंडियों को यदि ईश्वर में जरा भी आस्था  होती ,यदि उनमें संतों के एक आध लक्षण भी होते  तो वे इतना झूंठ नहीं  बोलते ,जो  इस  आयोजन के अधिष्ठाता  श्री श्री बोले लगातार बोले जा रहे हैं।यह सर्व विदित है कि  किसी व्यक्तिगत आयोजन के लिए फौज का उपयोग करना संविधान विरुद्ध है। ऐंसा कौनसा पहाड़ टूट पड़ा था कि बाबा श्री की 'सुदर्शन क्रिया के वास्ते देश की फौज ही लाम पर झोंक दी ?यह भी सर्व ज्ञात है कि जीएंन टी का आदेश न मानना  नितांत  असंवैधानिक है! सम्विधान की  अवमानना का ऐंसा वाक्या और फौज  का ऐंसा बेजा इस्तेमाल इतिहास में कभी नहीं हुआ।  किसी खास धतकर्मी बाबा के आयोजन  में फौज का क्या काम ? क्या अदालत की  यह अवमानना और फौज का यह दुरूपयोग देशद्र्रोह  नहीं है ?

 पहले तो  श्री  श्री बोले जेल चला जाऊँगा पर जुर्माना  नहीं दूंगा ! फिर उन्हें  दूसरे दिन सुबह-सुबह ब्रह्मज्ञान हुआ और बोले की जेल नहीं जाऊंगा ,जुर्माना  भर दूंगा।  फिर कुछ देर बाद  बोले जुर्माना  तो दूंगा किन्तु कुछ एतराज के साथ  दूंगा ! और ऊंची अदालत में अपील करूंगा। उन्होंने सफ़ेद झूंठ बोला  कि वे यह आयोजन  तो  दिल्ली को स्वच्छ करने  और यमुना को पवित्र करने के लिए  कर रहे।  अब ये तो दिल्ली वाले ही जाने की उनके इस प्रोग्राम से यमुना किंतनी पवित्र हुई और भारत कितना समृद्ध हुआ ?लेकिन उनके झूंठ को देवराज इंद्र ने पसंद नहीं किया। श्री श्री इतने अलौकिक शक्ति वाले हैं तो कार्यक्रम के दौरान हुई ओलावृष्टि  को ही रोक लेते ! बेहद गंदगी युक्त मैदान ,कीचड़ से सना पंडाल और कुरूप आयोजन देखने के लिए दुनिया भर के लोगों को भेला कर श्री श्री ने भारत की जग हंसाई  करवाई है।

श्रीराम तिवारी

नोट :- कृपया जो लोग समझते हैं कि  श्री श्री ने अदालत की अवमानना नहीं की ,वे सूचना के अधिकार के तहत एनजीटी के जस्टिस स्वतंत्रकुमार से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। जिन श्री भक्तों को लगता है कि फ़ौज का दुरूपयोग नहीं हुआ वे किसी भी  रिटायर जनरल या कर्नल से इस बाबत अवश्य बात करें !जिन्हे लगता है कि इस आयोजन से  पर्यावरण को लाभ हुआ है वे एनजीटी से सरटिफिकेट ले आएं या खुद ही दिल्ली जाकर उस जगह का दीदार कर आएं !श्रीराम तिवारी
 

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