सोमवार, 4 अप्रैल 2016

कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही है ? इसका फैसला कौन करेगा ?

आपातकाल के दौरान जेल में बंद रहे अधिकांश  क्रांतिकारी  नेताओं ने अपने-अपने विजन और थॉट्स को लेकर कुछ न कुछ जरूर लिखा है। लेकिन तत्कालीन सर संघ चालक  बाला साहिब  देवरस और उनके चेलों ने शायद कुछ  नहीं  लिखा। क्योंकि वे  माफी मांगकर जेल जाने से बचते  रहे। जबकि जनसंघ के अटल-आडवाणी जेल में थे।  इन नेताओं ने भी बाकी  के सभी ख्यातनाम  नेताओं  -जार्ज फर्नाडीस ,मामा बालेश्वर  दयाल ,लाड़लीमोहन निगम ,कल्याण जैन और राजनारायण  इत्यादि  की तरह ही  जेलों में १८ महीने  पढ़ने-लिखने में गुजारे।

शहीद भगतसिंह ने  जेल का एक-एक पल पठन-पाठन और चिंतन-मनन में लगाया था। उनके ही आदर्शों पर  चलकर  प्रख्यात मार्क्सवादी नेता कामरेड ,बी टी रणदिवे ,ज्योति वसु ,प्रमोद दासगुप्ता ,ईएमएस नबूदिरिपाद , हरकिशन सुरजीत,एकेजी और  अन्य दर्जनों कामरेडों  ने  आपातकाल के दौरान  अपनी जिंदगी के बेहद कीमती १८ माह  जेलों में रहते हुए भी अध्यन -मनन-चिंतन में गुजारे  हैं। ये सभी क्रांतिकारी साथी जेल  की यातनापूर्ण जिंदगी में  भी कुछ न कुछ क्रांतिकारी सृजन करते  रहे हैं ! उनका यह संघर्षपूर्ण क्रांतिकारी लेखन विश्व सर्वहारा की अमानत है।  हर दौर की उच्च शिक्षित एवं  संर्षशील  युवा पीढ़ी के लिए ये  महान सर्वकालिक आइकॉन जैसे हैं। यद्द्पि आधुनिक सूचना संचार तकनीक  के दौर में दक्ष युवा पीढ़ी को एंड्रॉयड मोबाइल पर हर किस्म की द्रुत  सूचनाएँ और संसाधन उपलब्ध हैं। किन्तु  इसके वावजूद भी इस पीढ़ी के शब्दकोश  में  कुछ  जरुरी शब्द मौजूद नहीं हैं। चिकने-चुपड़े चेहरे वाले  टीवी एकटर -ऐक्ट्रेस जैसे आइकॉन  की मुराद में  आधुनिक अधिकांश शिक्षित  मध्यमवर्गीय युवाओं के शब्दकोश में  -अभिव्यक्ति की आजादी,राष्ट्रचेतना,राष्ट्र-नवनिर्माण, इंकलाब  ,क्रांति जनवाद और  आर्थिक  असमानता  निवारण जैसे शब्द और वाक्य विन्यास सिरे से नदारद  हैं।

 जो उत्पादन के साधनों पर काबिज हैं वे और ज्यादा मजबूत  पकड़ बनाने की जुगत में रहते हैं। अर्ध शिक्षित   अथवा साधनविहीन भारतीय  युवाओं की भीड़  के लिए यदि  जीवन यापन के नैतिक और वैध साधन उपलब्ध नहीं होंगे तब वे वही करेंगे जो वे इस दौर में क्र रहे हैं। अर्थात अपराध जगत का दायरा बढ़ाने में या जेलों की रोटियाँ  निगलने के काम आ  रहे हैं। शिक्षित आधुनिक  युवा और विद्यार्थी  यदि कन्हैया कुमार या वेमुला को तथा जेएनयू को जानना चाहते  हैं,तो  वे   गैरीबाल्डी,  बाल्टेयर,गोर्की,देरेंदा बाल्जाक फुरिए ,ओवन ,मार्क्स या रोजा लक्समबर्ग  को भले ही न पढ़ें ,किन्तु अपने देश के उन  बलिदानी लोगों को तो अवश्य पढ़ें जिन्होंने देश की  आजादी के लिए कुरबानियाँ दीं हैं  और  आपातकाल  के प्रतिकार में जेल की सजा भुगती है ।

इस  विषम और दिग्भर्मित दौर में यह जानने के लिए कि कौन सच बोल रहा है ? सत्ता में बैठे लोग झूंठ परोस रहे हैं या जो विपक्ष में हैं वे  देश को गुमराह कर  रहे हैं ?  कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही है ,कौन सहिष्णु है और कौन असहिष्णु है ,यह तय करने के लिए जिस  विवेक बुद्धि की जरूरत है  उसकी  क्षमता अर्जित करनी  हो तो  थोड़ा समय निकालकर देश और दुनिया के महानतम नायकों के  क्रांतिकारी विचारों को समझने के लिए उनके  साहित्य को  अवश्य  पढ़ना  चाहिए। इस दौर में  राष्ट्रवाद और नारेबाजी के विमर्श में देशद्रोह शब्द को जबरन घुसेड़ा जा  रहा है।  दरसल तब तक कोई देशभक्त नहीं हो सकता जब तक वह 'राष्ट्र'  की परिभाषा नहीं जान ले। हम जब तक राष्ट्रवाद का तातपर्य नहीं समझ  लेते तब तक कोई भी किसी को 'देशद्रोही' बता सकता है। और यह महाझूंठ इस दौर में खूब बोला जा रहा है। कौन देशद्रोही है ,कौन देश भक्त है यह तय करने की  विवेक शक्ति अर्जित करने के लिए राष्ट्र के वर्तमान ,अतीत और स्वाधीनता संग्राम के साहित्य का अध्यन  बहुत जरुरी है।

आपातकाल की  सर्वाधिक  चर्चित पुस्तक ''भारतीय जेलों में पांच साल ''रही है। यह अत्यन्त -मार्मिक  पुस्तक मेरी टाइलर ने लिखी है । प्रशासनिक बर्बरता और संजय गांधी  की निजी गंगे का फासिज्म जब  चरम  पर था।  उस  भयानक दौर के दमन  -उत्पीड़न को खुद ही भोगने वाली उस  निर्दोष लड़की ने पूरे पांच  साल  हजारीबाग़  जेल की अँधेरी कोठरी में  गुजारे हैं ।  उसने अपनी पुस्तक ''भारतीय जेलों में पांच साल' का प्रत्येक शब्द  अपने लहु से लिखा था। वह आपातकाल की घोषणा  [१५ जून -१९७५] से कुछ दिनों पहले ही भारत आईं  थी। एक शोध छात्र की हैसियत से  भारत में अध्यन कर रही थी । उसे आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से छात्रवृत्ति मिल रही  थी।  वह शायद नक्सलवादी आंदोलन पर पीएच डी  करने के लिए इंग्लैंड से भारत  आयी थीं। उसे भारत की पुलिस  व्यवस्था का मिजाज नहीं मालूम था। आपातकाल में जब अचानक जेपी समर्थक छात्रों को पुलिस ने   धर दबोचा ,तभी वह ब्रिटिश छात्रा  भी नक्सलवादियों की हिमायती समझकर जेल में ठूंस दी गयी।  जैसे कि इस दौर में   छग पुलिस कर रही है।

 कम्युनिस्ट  पार्टियों को छोड़कर बाकी सभी गैर कांग्रेसी एकजुट होते चले गए। तब के तमाम जनसंघी भी  जनता पार्टी' में विलीन  होते  चले  गये ।  मोरारजी, अटलजी ,आडवाणीजी , मुरलीमनोहर जोशी ,जगन्नाथ राव जोशी  जैसे दक्षिणपंथी नेता , मुलायम, जनेश्वर ,राजनारायण जैसे  प्रशिक्षु  समाजवादी और चौधरी चरणसिंह  एवं  देवीलाल  जैसे किसान नेता  भी  राजनीति के उसी 'जनता'  घाट पर पानी पीने जा पहुंचे।  रहे थे।  चुनाव में जनता पार्टी को भारी  बहुमत मिला।  मोरारजी प्रधानमंत्री बने। अटल जी विदेश मंत्री बने। आडवाणी सूचना प्रसारण मंत्री बने।  राजनारायण  स्वास्थ्य मंत्री बने। समाजवादियों ने जनता पार्टी में आरएसएस से जुड़े नेताओं  की दुहरी सद्स्य्ता  को लेकर  आपत्ति लेना शुरू क्र दिया। जनता पार्टी में बिखराव , अलगाव शुरुं हुआ। जेपी बीमार पड़ गए और मर गए। दो ढाई साल में ही जनता पार्टी की सरकार गिर गयी थी ।  मोरारजी बीमार पड़े और मर गए। तब कांग्रेस से दलबदल कर  बाहर आये  जगजीवनराम के समर्थन से चौधरी चरनसिंह  प्रधान मंत्री बने। वे एक दिन भी प्रधानमंत्री कार्यालय नहीं गए। केवल जाटों को  बहलाकर रैलियां करते रहे। अपना जन्म दिन मनाते रहे। जब चौधरी  की  सरकार अल्पमत में आई तो वे  भी घर बैठे गए।  वे तुरंत बीमार मार पड़ गए और मर गए।  दिल्ली के किसान घाट पर  उनकी  अंत्येष्टि सम्पन्न हुई। उसके बाद राजीव गांधी ,वी पीसिंह, चन्द्रशेखर ,नरसिम्हाराव,गुजराल ,देवेगौड़ा अटलजी,मनमोहनसिंग जी ने क्रमशः देश को उपकृत किया। अब नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी  इस भारत भूमि को उपकृत  किये जा रहे हैं।  रेल मंत्री सुरेश  प्रभु का कहना है  की आजादी के बाद एकमात्र इंदिराजी  ही सबसे सशक्त प्रधानमंत्री हुई हैं। मोदी जी के समक्ष दो  बिकट  चुनौतियाँ  खड़ीं  हो गएँ हैं। वे श्रीमती ईंदिरा का पुरष अवतार जैसे हैं।

पुस्तिका लिखने का लुब्बो -लुआब  शायद  यह रहा होगा कि समाजवादी ,जनसंघी और इंदिरा विरोधी कांग्रेसी - जो कि सभी  घोर विरोधी विचारधाराओं के हैं वे 'जनता पार्टी' नामक मंच पर एक कैसे हो गए ? और यदि हो भी गए तो  स्थिर सरकार कैसे दे पाएंगे ? यह सभी जानते हैं कि बाद में  यह 'अस्थिरता की आशंका सही सावित हुई !क्योंकि उन्ही राजनारायण ने 'संघी 'भाइयों की दोहरी सदस्य्ता का मसला उठाकर न केवल जनता पार्टी भस्म कर दी ,बल्कि जेपी आंदोलन को भी रुसवा कर दिया । खैर यह सब तो भारत के राजनैतिक उत्थान-पतन का जीवंत इतिहास है। इस आलेख का मकसद वह इतिहास दुहराना नहीं है। मेरा मंतव्य उस पुस्तिका में दी गई कुछ  जरूरी जानकारियों से है ,जो आज के ऍण्ड्रॉइड धारी , डिजिटिलाइज ,हाई -फाई युवाओं को भी शायद नहीं  मालूम होगी  । 

वह पुस्तिका तो जिस किसी को मैंने पढ़ने को दी उसने वापिस नहीं की। किन्तु उसका सार तत्व अब भी याद है! उसमें यह संछिप्त जानकारी दी गई कि भारत के स्वाधीनता संग्राम में जो कांग्रेस आंदोलन का नेतत्व कर रही थी ,वह आपातकाल लगाने वाली कांग्रेस से  बिलकुल जुदा  थी । आपातकाल  लगाने वाली कांग्रेस में इंदिराजी, संजय गांधी और  उनकी 'किचिन केबिनेट' ही बची थी। जबकि स्वाधीनता संग्राम का आंदोलन चलाने  वाली कांग्रेस में विराट नर मेदनी का सिंहनाद हुआ करता था। जिसमें वोल्शेविक विचारधारा वाले लोकमान्य  बाल गंगा धर तिलक थे।  हिन्दू महा सभा के सावरकर जैसे लोग भी शुरूं में कांग्रेस में ही  थे। तब मिस्टर जिन्ना जैसे  प्रोगेसिंव  -उदारवादी  मुसलमान  भी कांग्रेस के ही आश्रित थे। लाला लाजपत राय जैसे शुद्ध आर्य समाजी  भी कांग्रेस में ही  थे। चंद्रशेखर आजाद,भगतसिंह  ,नम्बूदिरीपाद और ज्योति वसु जैसे साम्यवादी क्रांतिकारी  नेता भी प्रारम्भ में कांग्रेस के  ही कार्यकर्ता थे। आचार्य  नरेंद्रदेव ,राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे समाजवादी भी कांग्रेस के झंडे के नीचे ही आंदोलनों में शामिल रहे। बाबा साहिब भीमराव अम्बेडकर, शेख अब्दुल्ला ,सीमान्त गांधी ,कामराज नाडार और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भी पहले कांग्रेसी ही हुआ करते थे।

स्वाधीनता संग्राम के दौरान ही जब गांधी जी बिड़लाओं के यहाँ ठहरने लगे ,ट्रस्टीशिप की बात करने लगे   , बिनोबा के मार्फत किसानों को और गुलजारी लाल नंदा [इंटक]के मार्फत मजदूरों को मालिकों के पक्ष में  फुसलाने लगे और जब कांग्रेस का वर्ग चरित्र बड़े -किसानों ,जमीन्दारों एवं सरमायेदारों की ओर  खिसकने  लगा ,तो १९२५ में 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गठन हुआ। जब मुस्लिम लीग ने मजहब के आधार पर पृथक निर्वाचन क्षेत्रों की बात  की  तो हिटलर-मुसोलनि से प्रेरित होकर डॉ मुंजे और डा हेडगेवार ने 'संघ' की स्थापना की। हालांकि   हिन्दू महा सभा पहले से ही कांग्रेस से बाहर आ चुकी  थी। जिन व्यक्तियों ,ग्रुपों का वैचारिक और  सैद्धांतिक आधार था वे सभी आजादी से पूर्व ही कांग्रेस को नमस्कार कर चुके थे। जो शेष रहे वे आजादी मिलने के बाद  जाग गए। अर्थात सभी विचारधाराओं के नेतत्व ने अपने-अपने अलग-अलग दल और  ठिये बना लिए।
 श्रीराम तिवारी



    

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