जिन लोगों को लगता है कि मोदी जी तो हिन्दू ह्रदय सम्राट हैं उन्हें सवाल करना चाहिए कि आपके होते हुए हिंदुत्व पर इतना अनाचार क्यों ?साधुओं,साध्वियों का अपमान करने वाला अनुपम खेर क्या सिर्फ इसलिए छम्य है कि वह आपकी घोर स्वामिभक्ति में लीन है या आपका खास दासानुदास है ?जब कभी कोई वामपंथी या धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति इन ढोंगी बाबाओं या धर्मांध परजीवियों की भूरि-भूरि आलोचना करता है तो 'संघ ' के विधान अनुसार वह 'राष्ट्रद्रोही' कहलाता है। और कुछ 'स्वयंभू देशभक्त ' तो छात्रों को भी जेल में डालने को आतुर रहते हैं !जब कोई सहिष्णुतावादी या अमनपसनद व्यक्ति अनुपम खेर की आलोचना करता है तो उसे देश विरोधी करार दिया जाता है। लेकिन अब खुद योगी आदित्यनाथ ने अनुपम खेर को उसकी औकात बताई है,तो देखने की बात हे कि प्रतिगामी मानसिकता का ऊँट अब किस करवट बैठता है ?
भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि ''अभिनेता अनुपम खैर सिर्फ फिल्म में ही नहीं बल्कि असल जिंदगी में भी 'विलेन' ही है ! ज्ञातव्य है कि योगी आदित्यनाथ ,साध्वी प्राची और निरंजना ज्योति के बयानों को अनुपम खेर ने बकवास बताया था। अब योगी आदित्यनाथ पलटवार करते हुए कह रहे हैं कि ये अनुपम खेर खुद केवल बकवास करते रहते हैं। भाजपा के समर्थकों की यह बदजुबानी कोई नयी बात नहीं। ये लोग न केवल धर्मनिरपेक्षता और वामपंथ को लहूलुहान करने पर तुले रहते हैं अपितु अपने 'संघ परिवार' के अंदर भी एक दूसरे की टांग खींचने में ,एक दूसरे को लतियाने में जुटे रहते हैं। मोदी जी तो बिना बुलाये ही पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ के घर चाय पीना पसंद करेंगे ,किन्तु प्रवीण तोगड़िया से मिलना पसंद नहीं करेंगे। बिहार के जीतनराम मांझी के साथ मोदी जी डिनर कर लेंगे किन्तु अपनी ही पार्टी के दिग्गज यशवंत सिन्हा,शत्रुध्न सिन्हा और मुरली मनोहर जोशी की ओर देखना भी पसंद नहीं करते। जो आडवाणी जी गुजरात दंगों के दौरान राजधर्म नहीं निभाने पर मोदी जी के संकटमोचक थे ,वे अब उन्हें फ़ूटी आँखों से देखना भी पसंद नहीं करते।
ये जो तथाकथित नकली 'राष्ट्रवादी' और हिन्दुत्वादी' हैं ,ये औरंगजेब का शुद्ध 'हिन्दी अवतार' ही हैं। अर्थात ये लोग यदि कुदरती कारणों से मुसलमान घर पैदा होते तो चंगेज खान , हलाकू या औरंगजेब से भी ज्यादा बर्बर होते। दरअसल इनमें और अलबगदादी के समर्थक आतंकियों में सिर्फ इतना फर्क है कि ये 'हिदुत्व ' को खा रहे हैं और आईएसआईएस ,अल कायदा वाले इस्लाम को निगल रहे हैं। दुर्भाग्य से 'पुनर्जन्म' सिद्धांत के अनुसार यदि अल बगदादी ,हाफिज सईद,परवेज मुसर्रफ,नवाज शरीफ,राहिल शरीफ या कोई इस्लामिक जेहादी किसी कट्टर हिन्दू के घर पैदा होगा तो वह योगी आदित्यनाथ,अनुपम खेर,साध्वी प्राची और निरंजना ज्योति से कमतर घातक और कट्टर नहीं होगा। यदि प्रवीण तोगड़िया ,योगी आदित्यनाथ संगीत सोम और बाबुल सुप्रियो जैसे लोग इस्लामिक जेहादियों के घर पैदा होंग़े तो वे अल-बगदादी ,अफजल गुरु,याकूब मेनन और बुरहान बानी से भी ज्यादा उजबकऔर खतरनाक आतंकी होंगे।
'सहिष्णुता बनाम राष्ट्रवाद' के विमर्श में दक्षिणपंथ की कतारों के ही कुछ लोग अतिउत्साह में 'मोदी सरकार' को चूना लगाने में जुटे हैं। संसद के बाहर 'जेएनयू' विरोधी गुंडे ,छात्र विरोधी लफंगे ,दलित विरोधी शैतान, लोकतंत्र विरोधी फासिस्ट लगातार विपक्ष पर आक्रामण किये जा रहे हैं। निर्दोष छात्रों के समर्थकों पर राष्ट्रद्रोह के आरोप और मुकदमें कायम किये जा रहे हैं ,भाजपा के उन्मादी समर्थक और संघ वाले भी ,विपक्ष को रोज दो-चार गाली दिए बिना सुबह की नित्यक्रिया भी नहीं करते । पीएम नरेन्द्र मोदी खुद 'कांग्रेस मुक्त' भारत का खटराग लगातार बजाये जा रहे हैं। नतीजा साफ़ है कि विगत नौ मार्च -२०१६ को राष्ट्रपति अभिभाषण के उपरान्त सरकार पहले ही प्रस्ताव पर राज्य सभा में बुरी तरह हार गयी थी । इस हार से आहत प्रधान मंत्री जी तभी से तमाम विपक्ष को साधने में जुट गए थे। वे विनम्र निवेदन करते रहे कि लोक सभा में पारित बिलों को राज्य सभा में भी पारित होने दें। लेकिन सवाल अपनी जगह अटल है कि संसद में प्रस्तुत जीएसटी समेत तमाम दर्जनों 'बिल ' पास कराने के लिए मोदी जी खुद जिस विपक्ष से अनुनय -विनय करते रहे और सफल नहीं हो पाए , उसी विपक्ष को साधने में जेटली ,मुख़्तार नकवी, बैंकैया नायडू की मेहनत सौ फीसदी कामयाब रही। राज्य सभा के मानसून सत्र में चार अगस्त-२०१६ को जीएसटी बिल सर्वानुमति से पास हो गया। न केवल जीएसटी बिल पास हुआ बल्कि अन्य बिल भी पास हो गए। इसके साथ साथ सम्पूर्ण पक्ष-विपक्ष ने दक्षेस - पाकिस्तान यात्रा के संदर्भ में पाकिस्तान की हरकतों के खिलाफ राजनाथ सिंह के 'जबाब' का समर्थन किया। पूरा विपक्ष राजनाथसिंह के साथ नहीं ,भाजपा के साथ नहीं बल्कि देश के साथ खड़ा है। संघ और भाजपा के जो अंध समर्थक कल तक विपक्ष को देशद्रोही कह रहे थे ,और कांग्रेस मुक्त भारत की धुन में था-था थैया कर रहे थे, उनके सुर बदलने लगे हैं।लेकिन जिनके स्वर नहीं बदले वे असल 'देशद्रोही' हैं।
अनुपम खैर ,बलवीर पुंज योगी आदित्यनाथ ,साध्वी निरंजना , जेएनयू छात्र कन्हैयाकुमार की जिव्हा काटने का तलबगार कोई लफंगा ,और उस जैसे हजारों विक्षिप्त मनः लोग सोशल मीडिया पर लगातार विपक्ष को गालियाँ दिए जा रहे हैं। देश की ६९% जनता भले ही बिखरी हुई है ,किन्तु वह विपक्ष के साथ है। जिस विपक्ष के बिना एक भी 'बिल' पास नहीं हो सकता ,उसी विपक्ष को राष्ट्रद्रोही कहना और फिर उससे समर्थन की उम्मीद करना क्या यह दोगला चरित्र नहीं है ? श्रीराम तिवारी :
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