रविवार, 6 मार्च 2016

कन्हैया व्यक्ति नहीं विचार है ये कंस बध नहीं 'साम्प्रदायिकता का बध करेगा !



 डेमोक्रेटिक सिस्टम का कायदा यह है कि जनता ने  जिन्हें  बहुमत से चुना  है और यदि वे अपना दायित्व ठीक  से वहन  कर रहे हैं ,जनता के हित में काम कर रहे हैं ,देश के हित में काम  कर रहे हैं ,और यदि जनता भी उनके  कार्यों ,नीतियों ,कार्यक्रमों  से जनता खुश है तो विपक्ष की आलोचना की उन्हें परवाह नहीं करना चाहिए ! जब सत्ताधारी  नेतत्व ने कोई  काम गलत नहीं किया और उनके मन में कोई खोट नहीं तो 'साँच को आँच 'क्यों होने लगी? फिर ये वर्तमान सत्ताधारी नेता  विपक्ष द्वारा की जा रही बाजिब आलोचना , छात्रों द्वारा की जा रही क्षणिक  नारेबाजी और  देशभर में चल रहे अहिंसक  आंदोलन  से इतने  भयभीत क्यों हो रहे हैं ?

 ऐंसा लगता है कि  भारत का  वर्तमान सत्ताधारी नेतत्व  कदाचित फुर्सत में है या उन्हें  शासन चलाना आता ही नहीं !यदि  उन्हें इसका ज्ञान होता तो  शासन-प्रशासन  चलाना छोड़कर ,अपनी नीतियों का द्रुत विहंगावलोकन छोड़कर,घोषित कार्यक्रमों का  अमली करण  छोड़कर-केवल कन्हैया -कन्हैया नहीं जपते रहते ।  'संघ परिवार '   के कुछ अंधे समर्थक कन्हैया की जीभ काटने का फतवा जारी कर रहे हैं। कुछ  दक्षिणपंथी  अपढ़ गंवार लुच्चे-लफंगे और लफंगियाँ  विपक्ष को दुश्मन बता रहे हैं। जबकि जेएनयू छात्र नेता कन्हैया के  विचार बहुत  उत्कृष्ट है , कि एबीवीपी वालों को दुश्मन नहीं बल्कि अपना साथी  या प्रतिश्पर्धी  माना है। जो मीडिया वाले दिन भर केवल कन्हैया और कम्युनिस्टों को कोसते रहते हैं। उन बेचारों की मति  भृष्ट हो चुकी है ,उन्हें इतना भी नहीं मालूम कि  ये  कन्हैया व्यक्ति नहीं  बल्कि एक क्रांतिकारी  विचारधारा  है । और ये कन्हैया कोई  कंस बध नहीं बल्कि  'साम्प्रदायिकता का बध  करेगा । उसे  आज के हस्तिनापुर वाले कौरब तो क्या नागपुर वाले 'पांडव' भी नहीं हरा सकते ! क्योंकि वह तो खुद ही साक्षात्  कन्हैया ही  है ! जेएनयू में भले ही उसका नारा सिर्फ इंकलाब - जिंदाबाद  ही रहा या 'जय हिन्द' के नारे लगे , किन्तु  जब कभी कोई दुष्ट कंस -जरासंध या कालयवन  कन्हैया की राह में रोड़ा बनेगा तो उसके नारे कुछ इस तरह भी हो सकता है ;-

आएगा भई  आएगा ,नया जमाना आएगा।

कमाने वाला खाएगा,लूटने वाला जाएगा।।

लोकतंत्र में हिटलर शाही ,नहीं चलेगी नहीं चलेगी।

झूँठ -कपट की तिकड़मबाजी ,नहीं चलेगी ,नहीं चलेगी।।

मेहनतकश से टकराये जो ,वो किस्मत का मारा है।

जागेंगे  मजदूर -किसान ,कहैं कन्हैया प्यारा  है।।

हर जोर जुल्म की टक्कर में ,संघर्ष हमारा नारा है।

दूर हटो ये चोर -उचक्कों , भारत वर्ष  हमारा है।।


यदि किसी को ये नारे पसंद नहीं तो  द्वापर  वाले कन्हैया के ये  बोल बचन याद रखे !


'' यदा यदा ही धर्मस्य ,ग्लानिर्भवति भारत।

 अभ्युत्थानम्धर्मस्य  तदआत्मनाम् सृजाम्हम।।

परित्राणाय साधूनाम ,विनाशाय च दुष्कृताम।

धर्म संस्थापनाय ,समभवामि युगे -युगे।। '' [भगवद्गीता]

श्रीराम तिवारी 

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