'आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ' की मौरूसी तर्ज पर हमारे प्रधान मंत्री जी कल संसद के दोनों सदनों में निहायत ही शायराना मिजाज में पेश नजर आये। उन्होंने महान उर्दू शायर निदा फाजली की शायरी ''तुम सम्भल सको तो चलो '' को उदधृत करते हुए विपक्ष और खास तौर से कांग्रेस पर निशाना साधा। यदि मोदी जी को नहीं मालूम कि निदा फाजली 'वामपंथी विचारधारा में शुमार होते हैं और फिर भी उन्होंने निदा फाजली को संसद में उद्धृत किया है तो यह वामपंथी विचारधारा की सार्वभौमिकता और प्रासंगिकता का प्रमाण है। यदि मोदी जी जानते हैं कि निदा फाजली न केवल वामपंथी थे अपितु धर्मनिरपेक्षता के कालजयी स्तम्भ भी रहे हैं और यह जाननें के बावजूद यदि मोदी जी ने संसद में निदा फाजली को उद्धृत किया है तो यह वामपंथी - जनवादी विचारधारा के प्रति मोदी जी के हृदय में सम्मान का सूचक है। श्रीराम तिवारी
बुधवार, 9 मार्च 2016
'आओ ज़रा रूमानी हो जाएँ' की मौरूसी तर्ज पर हमारे प्रधान मंत्री जी कल संसद के दोनों सदनों में निहायत ही शायराना मिजाज में पेश नजर आये। उन्होंने महान उर्दू शायर निदा फाजली की शायरी ''तुम सम्भल सको तो चलो '' को उदधृत करते हुए विपक्ष और खास तौर से कांग्रेस पर निशाना साधा। यदि मोदी जी को नहीं मालूम कि निदा फाजली 'वामपंथी विचारधारा में शुमार होते हैं और फिर भी उन्होंने निदा फाजली को संसद में उद्धृत किया है तो यह वामपंथी विचारधारा की सार्वभौमिकता और प्रासंगिकता का प्रमाण है। यदि मोदी जी जानते हैं कि निदा फाजली न केवल वामपंथी थे अपितु धर्मनिरपेक्षता के कालजयी स्तम्भ भी रहे हैं और यह जाननें के बावजूद यदि मोदी जी ने संसद में निदा फाजली को उद्धृत किया है तो यह वामपंथी - जनवादी विचारधारा के प्रति मोदी जी के हृदय में सम्मान का सूचक है। श्रीराम तिवारी
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