बुधवार, 9 मार्च 2016

यह अंधेरगर्दी क्यों ?


 देश के कुछ फुर्सतिये  और साम्प्रदायिक मूर्खों  को इन दिनों ' राष्ट्रद्रोह' की रतोंधी ने हलकान कर रखा है। उन्हें  जेएनयू में राष्ट्रद्रोह दिखता है ,उन्हें किसानों की आत्महत्या व रोहित वेमुला की आत्महत्या में राष्ट्रद्रोह दिखता है। उन्हें जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैयाकुमार और पुणे फिल्म इंस्टीटूट के आंदोलनकारी छात्रों में राष्ट्रद्रोह दिखता है। उन्हें देश के मेहनतकशों के पसीने में और उन मेहनतकशों  के जन संघर्ष में 'देशद्रोह' दिखता है। किन्तु उन्हें उस वयक्ति में राष्ट्रद्रोह नहीं दिखता जो  देश की गरीब जनता का ९ हजार करोड़ रूपये डकारकर विदेश भाग  गया या भगा दिया गया।  कुख्यात शराब कारोबारी और राज्य सभा सांसद विजय माल्या  कानून को धता बताकर  देश छोड़कर भाग गया ! देश की १७ बैंकों के ९ हजार करोड़  रूपये वह एक दिन में ही नहीं खा गया होगा । बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा [भाजपा] से लेकर सिद्धर्मिया [कांग्रेस] तक के लम्बे कार्यकाल में उसने यह सब खाया -पिया होगा। कांग्रेस सरकार यदि ५० साल सत्ता में रही तो मोदी सरकार को भी पौने दो साल होने वाले हैं। और  सरकार को भी तो उससे ५३५ करोड़ रूपये लेने हैं। अब सीबीआई,और अन्य एजेंसियाँ हक्का-बक्का क्यों हैं ?  निर्दोष  कन्हैया को गिरफ्तार करने में तो बड़ी मर्दानगी दिखाई थी। उसे पीटने वाले हरामी वकील , बदमास विधायक , दिल्ली पुलिस  के वस्सी जैसे घटिया  अफसर और इस देश के सभी स्वयंभ  'राष्ट्रवादी 'अपने आका -विजय माल्या से इतनी मोहब्बत क्यों करते हैं ?जो लोग   देश के असल गद्दार-असल राष्ट्रद्रोही विजय माल्या को अब भी देशभक्त मानते हैं उनकी राष्ट्रभक्ति को धिक्कार है। जो लोग माल्या की  आलोचना में  एक शब्द भी  खर्च नहीं करेंगे ! क्या वे वतनपरस्त हो सकते हैं  ? यह अंधेरगर्दी क्यों ? आजाद देश में गरीबों और अमीरों को न्याय के दोहरे मापदंड क्यों ? ये पब्लिक बहुत मासूम है कुछ नहीं जानती ! वह व्यक्ति बैबकूफ था  जो कह गया कि 'ये पब्लिक है और सब कुछ जानती है '! श्रीराम तिवारी :-

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