गुरुवार, 8 जनवरी 2015

दुनिया के समक्ष असल खतरा तो यह 'वैश्विक मजहबी उन्माद' ही है।



  दुनिया के  अधिकांस हिस्सों में  वेरोजगार युवाओं  को जीवकोपार्जन का साधन मिले या ने मिले ,रोटी -कपडा -मकान मिले  न मिले किन्तु यदि  वे  चाहें  तो  उन्हें ए के-४७ से लेकर क्लाशिन्कोव जैसे आधुनिकतम तीव्र  मारक क्षमता वाले  हथियार  , पर्याप्त गोला  बारूद  और निर्देशित  'टारगेट' तक पहुँच  इत्यादि  संसाधन  आसानी से मिल जाया करते हैं  ! अपराध जगत की रक्तरंजित सेवा में  जुटे हुए नौजवान  हों या किसी  खास मजहब के लिए निर्दोषों का खून बहाने  को  तैयार  'धर्मयोद्धा ' [क्रूसेडर] हों, इन सभी की जन्मजात मजबूरियों में उनकी  व्यवस्था जन्य  वेरोजगारी का और उनके अंधश्रद्धाजनित  भय के   भूत की भूमिका  ही प्रमुख हुआ करती  है । इन  अभागों  को  अच्छी तरह  मालूम  रहता कि  उनका भविष्य  व अंतिम  हश्र भी एक दिन किसी  'कसाव'  या किसी  'लादेन' 'की तरह ही  होगा ! किन्तु  शायद उन्हें यह  याद  नहीं  रहता   कि  बन्दूक की गोली से  सिर्फ और सिर्फ मौत  ही निकलती है  ! रोटी -कपड़ा -मकान या  इंसानियत नहीं! यह एक यक्ष प्रश्न है कि  क्यों  सिर्फ दुनिया के  गरीबों  को ही  इस धर्मान्धता की ,प्रतिशोध की  या अपराध जगत की हिंसक  दावाग्नि में  धधकना होता  है?  वेशक इन  अभागे आतंकियों के हाथों मारे जाने वाले अधिकांस निर्दोष ही होते हैं।      
                        इस्लामिक देशों में जिहाद के नाम पर  जो  कुछ भी  अनवरत  हो रहा है वो  अब किसी को  कोई संवेदना नहीं देता। कोई  किसी  से इस विषय में  लिखना -सुनना  पसंद नहीं करता। पहले ९/११ जैसे  एक आध  बाकए  पर  अमेरिका ने ,इंग्लैंड  ने ,और चीन ने भी उसका स्वाद चखा होगा। किन्तु  लग रहा है कि  पूँजी से ज्यादा  तो अब  'मजहबी आतंक का ग्लोबलाइजेशन'  हो  चुका  है। अभिव्यक्ति पर तो हमला अब शायद कुछ ज्यादा ही होने लगा है। अभी तक मुझे  तक लग रहा था कि दुनिया में  भारत ही  अकेला गैर इस्लामिक और धर्मनिपेक्ष लोकतान्त्रिक  राष्ट्र  है जो खास किस्म के  धर्मांध कटट्रपंथियों के निशाने पर है। लेकिन पेशावर , आस्ट्रेलिया , के बाद अब फ़्रांस में हुए 'शार्ली  एब्दो ' पर हिंसक हमले से यह सावित हो  चुका   है  की दुनिया  के किसी देश का भी खतरा अब उसका अपना नहीं है।   अभी तक तो केवल वैश्विक पूँजीवाद और नवउपनिवेशवाद की मार से ही  सारा संसार बिलबिला रहा था ।  किन्तु अब सारा संसार  उस अंधधार्मिक आतंकवाद के सांझे संकट के मुहाने पर खड़ा है जिसका भुक्तभोगी अब तक केवल भारत हुआ करता था। अभी तक तो हम केवल एटॉमिक या स्टार वार  के आभासी खतरे से जूझ रहे  थे।  किन्तु अब  उस मध्युगीन जेहादी  खतरे ने  फिर से  भयानक  रूप धारण कर लिया है। जिसके कारण  अतीत में भारत जैसे 'अहिंसक' राष्ट्रों ने सदियों तक नारकीय गुलामी  और यंत्रणा भोगी है।  गनीमत है कि यह बर्बर खतरा आज  केवल भारत  को ही नहीं  बल्कि पूरे संसार को चुनौती दे रहा है।  अपने  वैश्विक मजहबी उन्माद'  की चपेट में ले  चुका  है ! इसका मुकाबला हिंसा या घृणा से नहीं किया जा सकता। बड़बोले बयानों  'की चार बच्चे पैदा करो '  से भी इस चुनौती का मुकाबला नहीं किया जा सकता। वैश्विक  समानता ,लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के मानवीयों मूल्यों पर आधारित जन-एकता का  साझा संघर्ष ही  इस भयानक आक्रमण का मुकाबला कर सकता है।
                      भारत में 'संघ परिवार' के साक्षी महाराज , अशोक सिंघल जी जैसे महान हिन्दुत्ववादियों  का हिन्दुओं को  'धर्मादेश '  है  कि  चार बच्चे पैदा करो !  हिन्दुओं की तादाद बढ़ाओ ! इन ज्ञान बांटू महात्माओं से पूंछा जाए कि चार-चार बीमार ,अपढ़ गंवार अपराधी हर घर में पैदा हो गए तो क्या होगा ? क्या  ऐंसा ही  हिन्दू राष्ट्र चाहिए ? प्रायः देखा गया है कि  अपढ़ ,अशिक्षित और निर्धन  परिवारों में वैसे भी ज्यादा बच्चे अभी भी हो रहे हैं। कितने दुधमुहे अकाल मौत मर रहे हैं ,कितने भ्रूण काल में ही मारे जा रहे हैं।  कितने भूंख-कुपोषण और महामारियों की भेंट चढ़ रहे हैं।  जो  बचे-खुचे हैं उनमें से कुछ तो जेल में  सजा भुगत  रहे हैं। कुछ राजनीति  में  'वोट 'के काम आ रहे हैं ।  बचे -खुचे साम्प्रदायिक उन्माद में 'शहीद' हो रहे हैं। बड़े और सम्पन्न परिवारों के  नौनिहाल खुशनसीब हैं कि  पढ़-लिखकर  शासक वर्ग की सेवा करेंगे।  जो  ज्यादा खुशकिस्मत होगा वो स्मृति ईरानी की  तरह कम पढ़ा लिखा होकर भी ऊँचे पद पर पहुँच जाएगा। जो संघर्षशील और सपने देखने वाला होगा वो प्रधानमंत्री भी बन सकता है। ये धर्मनिरपेक्षटा  और लोकतंत्र की महिमा है।  यहाँ सभी को समान अवसर उपलब्ध कराने  वाला शानदार संविधान है।
                    भारतीय संविधान के दिशानिर्देशों की अनदेखी कर  जो लोग अनर्गल बकवास करते हैं उन्हें यहां सर्वत्र धिक्कार ही मिलती है। जो लोग आबादी बढ़ाकर अपनी ताकत  बढ़ाना चाहते हैं वे कौरवों के हश्र को क्यों भूलते है ? वे युधिष्ठर ,भीम ,अर्जुन,नकुल और सहदेव   जैसे पांच पांडवों को विस्मृत क्यों करते हैं ?  वैसे भी  इस महंगाई और प्रतिस्पर्धा के घातक दौर में  कोई शादी शुदा निम्न मध्यम वर्गीय  दम्पति  खुद  की और अपने  एक -दो बच्चों  की  परवरिश  भी ठीक से नहीं कर पा  रहा है ।  ऐसे हालत में चार -चार बच्चों को  कौन पालेगा ? उन्हें   कौन पढ़ायेगा  ? सभी मजहबों-धर्मों -जातियों के  इतने सारे  युवा युवतियाँ जो  वेरोजगार हैं , उनके मार्ग दर्शन का , उन्हें बेहतर जीवन यापन  उपलब्ध कराने का कौनसा उपाय अब तक किया  गया है ?, मेहनतकशों के काम के घटे -आठ सुनिश्चित करने का ,न तो यूपीए सरकार ने  कभी कोई  इंतजाम  किया और न ही वर्तमान  मोदी सरकार  ही अभी तक कुछ कर पाई है।
                   जिन्हे कोई आरक्षण नहीं , जिनका  कोई 'गॉड  फादर ' नहीं,जिनके परिवार का कोई अफसर -नेता या दलाल नहीं ,जिनकी पढ़ाई का कोई इंतजाम नहीं ,उनकी तो समझो वैसे ही इस जमाने में मरण मौत ही है। जिनके  लिए  खाने-कमाने का ठीक  -ठिकाना नहीं है वे चाहे हिन्दू हों या मुसलामन उनके लिए दो ही रास्ते है एक यही कि आईएसआई ,सिमी,तालिवानी - जेहादियों की तरह , नक्सलवादियों की तरह  या डाकुओं की तरह  हाथ में  बन्दूक   थाम  लो  ! दूसरी यह कि विदर्भ ,आंध्र, मराठवाड़ा,तेलांगना और मध्यप्रदेश के सूखा-पाला  या अनावृष्टि पीड़ित किसानों की तरह आत्म  हत्या कर लो। यह सर्वविदित है कि  देश  के कुछ हिस्सों में विगत  तीन साल से  सूखा ,पाला  की मार से लगातार फसल  नष्ट  होती रहीं हैं।  हजारों किसान - जो अधिकांस हिन्दू ही हैं-  वैमौत मरने को मजबूर हैं । उन्हें बचाने  के लिए  वी एच पी और  हिन्दुत्ववादी   क्या कर रहे हैं ? ये साक्षी महाराज  अशोक सिंघल जी और अन्य  धर्मांध पाखंडी बताएं कि  देश के लगभग  ७० करोड़  मजदूर-किसान [हिन्दू]   जिस शोषण के  सिस्टम से  दुखी हैं.उस सिस्टम की सत्ता के भागीदार आप लोग  क्यों हैं  ?  धर्म-मजहब यदि न्याय का पक्षपोषक है तो आप इस  लूटखोरी की व्यवस्था के बगलगीर क्यों है ?
                वास्तव में निर्धन -दलित -मजदूर किसानों  के हितों की  रक्षा का  कोई उपाय न तो हिंदुत्वादियों के पास है ,न इस्लामिक तत्ववादियों के पास है,न किसी और धर्म-मजहब के  संकीर्णतावादियों के पास है। पूँजीवादी 'शासक वर्ग' के पास  तो शोषण के सिवा कुछ  और है भी नहीं। ज्यादा बच्चे पैदा करने का 'फतवा '  देने वालों के पास किसी को कोई आजीविका दिलाने का तो प्रश्न ही नहीं। वे खुद भी परजीवी हुआ करते हैं।  इनके पास तो  'बाबाजी का घंटा ' है और दंड -कमंडल है । मजहबी उन्मादी  वेशक  किसी  कार्टूनिस्ट को गोली से  उड़ा सकते हैं।  वे किसी पत्रकार को, किसी धर्मान्धता विरोधी कार्यकर्ता को ,कलाकार को ,लेखक को गोली  मार सकते हैं।  किन्तु वे  किसी वेरोजगार को रोटी -कपड़ा -मकान  नहीं दे सकते।  वे  अभिव्यक्ति की रक्षा तो क्या उसका अभिप्राय भी नहीं जानते।
                         यह परम सत्य है कि अतीत में कभी गरीबी ,कभी सामाजिक  असमानता का अपमान ,कभी प्रलोभन  और कभी '  तलवार' के भय से  लाखों  भारतीय  समय-समय पर धर्मान्तरित होते रहे हैं।  न केवल इस्लाम के आगमन उपरान्त बल्कि उससे से भी पूर्व से ,  ठीक आज के राजनैतिक  दल -बदल की तरह   रामायण -महाभारत या पौराणिक काल में भी  भारतीय परम्परा में सनातनी आर्य ,द्रविड  या देवासुर  ही नहीं बल्कि  ,बौद्ध ,जैन ,शैव ,शाक्त ,चरावकीय ,नास्तिक  और अन्य पंथ -परंपरा में  भी आगम-निगम चलता रहा है।  जिस पंथ का राजा या राजगुरु होता था जनता भी उसी में स्वमेव दीक्षित होने लग जाती थी।  चाणक्य  चन्द्रगुप्त  ,अशोक जब तक  वैष्णव रहे तो सारा आर्यावर्त  शुद्ध  वैष्णव रहा । बुढ़ापे में जब  उन्होंने या उनके  राज गुरुओं ने धर्म परिवर्तन किया  -जैन या बौद्ध हुए ! तो रातों-रात अधिकांस सेठ साहूकार और अधीनस्थ राजे -रजवाड़े  या सामंत सभी बौद्ध या जैन होते चले गए। लेकिन जनता ने धर्म परिवर्तन  [दल -बदल ] नहीं किया।
                               आजकल पुनः अतीत के भग्नावेशों पर इमारतें खड़ी करने की कोशिश की जा रही  है।  इन दिनों  जो लोग  धर्मांतरण करवा रहे हैं  या खुद धर्म परिवर्तन कर रहे हैं ,वे इसलिए नहीं कि  किसी खास ' दर्शन' या सिद्धांत या मतवाद से प्रेरित हो रहे हैं ! वास्तव में ये धर्म परिवर्तन करने वाले या तो  'सर्वहारा'  होते हैं  जो सनातन शोषण से आजिज आकर  धर्मांतरण में अपना काल्पनिक उद्धार देखते हैं या  एक समूह के रूप में राजनैतिक रूप से खुदगर्ज- 'टैक्टिकल ब्लेकमेलर' जैसे होते हैं।  कुछ धरम बदलू वे भी हैं जो  खास  किस्म  का आर्थिक -सामाजिक और राजनीतिक-  उन्नयन    चाहते हैं। हिन्दू समाज  में चार-चार लाचार -गुलाम या धर्मबदलु बच्चे  पैदा करने का 'कुमंत्र'  नहीं  दिया जाना चाहिए। बल्कि एक-एक भगतसिंह  हर घर में पैदा हो यह क्रान्तिकारी  भावना होनी चहिये  !  इस वैज्ञानिक अधुनातन युग में भी बिना  टोने  -टोटके  के कोई काम नहीं हो रहा है।   हिन्दुओं की जातीय समाज व्यवस्था ,वर्ण  व्यवस्था  और आर्थिक फटेहाली को  दुरुस्त करने की   वैज्ञानिक सोच का संधान होना चाहिए।  अतीत के काल्पनिक नॉस्टेलजिया या  व्यामोह  की मृगमरीचिका में  वैमौत मरने का सुझाव नहीं दिया जाना चाहिए।  यदि हमारी पुरातन 'धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष ' की नीति  सही थी तो क्या वजह है कि  किसी को यह  कहना पड़ा कि -

            'वामन कुत्ता नाउ ,जात  देख गुर्राय'

                            क्यों यह लोकोक्ति बन गई कि -

             " सब जातें रघुवीर की , ये जातें वे पीर।  दाँव   परे  चूके  नहीं ,लोधी  जाट अहीर।।

 क्यों किसी को कहना पड़ा -

                       ' नौ   कनौजिया  तेरह  चूले '

लोकोक्ति  क्यों बन गई ;

'तिलक -तराजू और तलवार ,इनको मारो  जूते चार '
   या
वामन -बनिया -ठाकुर  छोड़।  बाकी सारे डी  एस  फोर।

  हिन्दू समाज का यह  घृणित चेहरा भी  क्या किसी विदेशी हमलावर या किसी गैर हिन्दू जेहादी  संगठन की दैन  है ? नहीं ! फिर चार बच्चे पैदा करने या आबादी बढ़ाने  की बात करने का  लुब्बो लुआब क्या है ? मानाकि हिन्दू समाज की कुरीतियों का फायदा  उठाकर  मुसलमानो और ईसाइयों नेअतीत में कभी  हिन्दुओं का खूब   धर्मांतरण कराया। किन्तु जब हिन्दू समाज के 'कलंकित' फेक्टर अभी भी  जिन्दा हैं तो  क्या गारंटी है कि  अतीत की तरह  ही वे तथाकथित 'हिन्दू' या 'घर के भूले भटके ' पुनः धर्मांतरण नहीं कर लेंगे ? क्या गारंटी है कि   भय -भूंख से पीड़ित अपार  आबादी  किसी गैर हिन्दू मजहब  के दड़वे  में  पुनः नहीं समा जाएगी ?
                           आजम खान ,असदुल्लाह ओवेसी , बुखारी  इत्यादि का  'आप्तवाक्य' है कि  अभी जो मुस्लिम नहीं हैं  वे  सभी  भी आदमजात जन्मना मुसलमान ही हैं ,उनका विश्लेषण और तर्क है कि  फर्क तो माता-पिता और सामाजिक संस्कारों की खुराफात से हुआ है। यदि यही सच है तो फिर ओवेसी को  धर्मांतरण की इतनी ललक क्यों  ? पेशावर में या  लाहोर की लाल मस्जिद में जो मारे गए वे कौन थे ? कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकी जिनको  मारे जा रहे हैं वे कौन  है ?   इराक ,ईरान सीरिया और पाकिस्तान में  सुन्नी आईएसआई  द्वारा मारे गए शियाओं ,तुर्कों और यज़ीदियों को किस बात की सजा दी गई ? ओवेसी के अनुसार  भी चार -चार बीबियाँ और  अनगिनत बच्चे पैदा करने की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। अब ये जिम्मेदारी मुस्लिम जमात की है कि  वे हुजूर सल्ललाहो  आलेहि  वसल्ल्म  के मार्फ़त दिया गया 'अल्लाह ' का हुक्म माने  या ओवेसी जैसे बड़बोले की बात सुनकर ताली बजाएं!

                                               श्रीराम तिवारी 

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