आर्थिक सुधारों की सूची में वैसे तो सैकड़ों शब्द हैं। किन्तु पी पी पी याने पब्लिक -प्राइवेट -पार्टनरशिप की जो धुन डॉ मनमोहनसिंह अनमने मन से बजाते रहे हैं ,जिस पर विदेशी विनिवेश की सर्पणी नाचने को आतुर रहती है उस पीपीपी का आइटम सांग मोदी जी ज़रा ज्यादा शिद्दत से बजा रहे हैं। इस पी पी पी के विरोध में न केवल कोयला क्षेत्र के मजदूर ,न केवल सार्वजनिक उपक्रमों के कामगार बल्कि संगठित क्षेत्र के तमाम श्रमिक संघ आगामी दिनों में जो सिंह गर्जना करेंगे वो तो देश और दुनिया खुद ही देखेगी। मैं इस आलेख में जिस पीपीपी की बात कर रहा हूँ वह उपरोक्त पीपीपी से भी कई गुना खतरनाक है। इस पी पी पी का अभिप्राय है -पेंटागन ,पाकिस्तान और पापी पेट का सवाल ! पेंटागन याने दुनिया को दोनों हाथ से हथियार बांटने वाला। पाकिस्तान याने पाप का घड़ा। पापी -पेट का सवाल -याने बेरोजगारों का 'पेट' के लिए आतंकी ,फिदायीन या आत्मघाती बनने वाले वेरोजगार अशिक्षित युवा। ये युवा पाकिस्तान ,बांग्लादेश या भारत कहीं के भी हो सकते हैं। ये किसी भी धर्म -मजहब या जाति के हो सकते हैं।
खबर है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को डेढ़ अरब डॉलर की सहायता पुनः प्रदान की है। उसे शाबाशी भी दी है।मेरा सीधा सा सवाल है कि , प्रेजिडेंट ओबामा की भारत यात्रा से भारत की जनता को क्या सन्देश दिया जा रहा है ? क्या यह खबर डरावनी नहीं है कि पाकिस्तानी फौजी ,जेहादी , अलकायदा , आतंकवादी ,जमुहरियत का चोला पहने हुए पाकिस्तानी सत्तासीन नेता और दुनिया भर में फैले बुखारी -ओवेसी -सब-के सब मिल जुल कर भारत को तबाह करने की फिराक में एकजुट हैं ? खबर है कि अरब सागर के रास्ते २६/११ की तरह पुनः भारत में दहशतगर्दी फैलाने के लिए - पाकिस्तानी फ़िदाईनो की आत्मघाती नौकाओं की सूचना का श्रेय भी अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों को दिया जा रहा है। याने भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र और भारत सरकार केवल सत्ता सुख की आत्ममुग्धता में तल्लीन है। जनाब ! यदि इतनी ही मेहरवानी २६/११ पर कर देते तो मुंबई में और देश में अनेक वेश्कीमती जाने तो नहीं जातीं ! दरशल किस का कोई एहसान नहीं है सब मदमस्त हैं। यह तो भारतीय तटरक्षक बलों की सजगता और कर्मठता का परिणाम है कि शत्रु पक्ष की चाल को अरब सागर में ही ध्वस्त कर दिया गया। यदि कोई इसका श्रेय ले या अपनी पीठ थपथपाये तो यह असत्याचरण नहीं तो और क्या है ?
यह भी खबर है कि अमेरिका अपनी आर्थिक मंदी की जकड़न से मुक्त हो रहा है। उसका आयात -निर्यात का समीकरण अमेरिकी बाजार के पक्ष में है। हथियार उत्पादक और निर्यातकों की लॉबी याने 'पेंटागन' के प्रयासों में कोई कोर कसर रह गई होगी तो ६५ वें भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर प्रेजिडेंट ओबामा जी के अतिथि सत्कार से पूरी हो जाएगी। इन तमाम खबरों को अलग-अलग ने देखते हुए यदि सभी घटनाओं और कार्यकलापों को अंन्योनाश्रित देखें तो हम पाएंगे कि दुनिया में अभी तो सबसे ज्यादा असुरक्षित भारत की जनता ही है। क्या इस खतरनाक स्थति के लिए केवल पाकिस्तान के'नापाक' हाथ ही जिम्मेदार हैं ?क्या पाकिस्तान के हाथ में जो बंदूकें हैं ,जो तोपें हैं ,जो मोटार हैं ,जो टेंक हैं ,जिनका निशाना सिर्फ भारत की ओर ही है, वे अमेरिका ने खैरात में नहीं दिए ?
अमेरिका की आर्थिक मंदी का और उसके पिछलग्गू राष्ट्रों की आर्थिक विपन्नता का स्थाई समाधान् यही है कि वे इस संकट का भार दुनिया के अन्य अविकसित या विकासशील राष्ट्रों पर डालते रहें । ऐंसा करने से से पहले उन विकासशील राष्ट्रों में अस्थिरता उत्पन्न करना बहुत जरुरी है। चाहे विभिन्न राष्ट्रों के बीच सीमाओं के पुराने झगड़े हों ,चाहे नस्लवाद,जातिवाद,सम्प्रदायवाद या क्षेत्रीयतावाद के परनाले हों सभी में हिंसक आन्दोलनों के लिए न केवल हथियार, बल्कि नापाक आर्थिक घेराबंदी भी जरुरी है। ये तमाम आर्थिक साधन हैं जो अमेरिका नीत एक ध्रुवीय विश्व के नवउपनिवेशवाद के लिए मुफीद हुआ करते हैं ।
दक्षिण एशिया में भारत -पाकिस्तान का स्थाई वैमनस्य का रक्तिम जलजला , अफगानिस्तान में तालिवानियों और 'जिरगों का संकीर्णतावाद , इराक -सीरिया और ईरान में आईएसआई का ख़लीफ़ाई अभियान ,विश्व इस्लामिक जेहादियों के शिया -सुन्नी झगड़े , ये सब स्वतः स्फूर्त नहीं हैं। ओपेक देशों और खास तौर से अरब राष्ट्रों के मार्फ़त अमेरिकी हथियार आतंकवाद्यों या जेहादियों को कैसे मिलते रहते हैं ? इजरायल फिलिस्तीन में सनातन संघर्ष , लेबनान -जॉर्डन और लीबिया में रक्तपात ,भारत में साम्प्रदायिकता , क्षेत्रीयतावाद ,अलगाववाद और भाषावादी आन्दोलनों को गुप्त समर्थन कौन दे रहा है ? श्रीलंका में तमिल -सिंहली संघर्ष को बढ़ावा , बांग्लादेश और म्यांमार में अराजक अलोकतांत्रिक तत्वों का आतंक इत्यादि जितने भी अमानवीय और नकारात्मक फेक्टर हैं , उन सभी को अमेरिका और सीआई ऐ का वरदहस्त है। अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए अमेरिका और उसके मित्र - समृद्ध राष्ट्रों ने हथियार उत्पादन पर या आणविक परीक्षणों पर इसीलिये अभी तक कोई रोक नहीं लगाईं है।
अमेरिका और नाटो के खास हथियार उत्पादक संगठन और विश्व नियंत्रक संस्थान -पेंटागन ने जो ख़ुफ़िया रिपोर्ट सीनेट को जारी की है वो अब उजागर हो रही है। हथियारों के खरीददार और 'खपत क्षेत्रों ' की भी पहचान की गई है। इसमें सर्वाधिक खपत वाले देश इजरायल ,सऊदी अरब,इराक अफगानिस्तान ,यमन , सीरिया ,पाकिस्तान और भारत ही हैं। अंतर्राष्ट्रीय हथियार उत्पादक लाबी के हथियार बाएं हाथ से अराजक तत्वों को और दायें हाथ से इन अराजक तत्वों से प्रभावित देशों की सरकारों को बेचे जा रहे हैं। इस तरह दोनों हाथों में लड्डू लेकर विश्व सम्राज्य्वाद और नव उपनिवेशवाद का सितारा बहरहाल बुलंदियों पर है। उसके आर्थिक संकट निवारण में उसके निर्यात का या ततसंबंधी व्यापारिक नीतियों का कितना योगदान है ये तो अर्थशाश्त्री ही जाने। किन्तु हथियारों की बिक्री में अमेरिका और नाटो देशों की जो बल्ले -बल्ले हो रही है उसमें भारत की पूर्व और वर्तमान सरकार की अमेरिका परस्त नीतियों का भी कुछ तो असर है।
यह जग जाहिर है कि पाकिस्तान के आतंकियों को मिल रहे हथियारों और पाकिस्तानी सैन्यबलों को बेचे जा रहे हथियारों का उत्पादक -बिक्रेता एक ही है -पेंटागन। इसमें भारत के तमाम अलगाववादी , जेहादी, नक्सलवादी ,कश्मीरी आतंकवादी भी शामिल हैं जिन्हे पाकिस्तान के मार्फ़त या दलालों के मार्फ़त लगातार हथियार मिलते रहते हैं। पेंटागन के इस संहारक व्यापार में जिस वर्ग विशेष का 'हाथ' रहा है उसकी पहचान करना भी कठिन नहीं है। अमेरिका ने दुनिया को दिखाने के लिए तो दाऊद ,हाफिज सईद , आईएसआई ,जमात -उद -दावा और अन्य के खातों पर प्रतिबंध लगाए हैं। किन्तु वह यह जाहिर नहीं होने देता कि खातों पर प्रतिबंध के उपरान्त भी उसके या नाटो देशों के हथियार गोला बारूद इन खूखार दरिंदों तक कैसे पहुंचते हैं ? इसके विपरीत जो उसकी पोल खोलने वाले हैं उन विकिलीक्स जैसे 'विसिलब्लोअर्स ' को दुनिया में कहीं भी शरण नहीं लेने देता।
अविकसित राष्ट्रों के निम्न मध्यम वर्गीय युवाओं या शिक्षित -अशिक्षित वेरोजगारों को 'मरने -मारने' का ,फिदायीन बनने का ,आत्मघाती बनने का जो [सु] अवसर इन महान [?] हथियार निर्माता -उत्पादक -निवेशक ताकतों ने दिया वह केवल उदारीकरण या बाजारीकरण की नीतियों का दुष्परिणाम ही नहीं है। बल्कि इन हथियारों के सौदागरों की जरजर अर्थव्यवस्था को स्थाई रूप से साधे रखने के लिए यह ' वैश्विक हिंसा ' बड़े काम की चीज है। अच्छे और नेक काम के लिए या जन-कल्याण के लिए अपेक्षित मानव श्रम को भले ही ये अस्थायी या एवजी नियुक्ति का नियम बनायें। किन्तु हथियारों के निर्यात या उनके उपयोग के लिए वे विकाशशील देशों या संघर्ष रत राष्ट्रों में स्थाई काम के लिए दर्जनों ओसामा ,बीसियों आईएसआई , सैकड़ों दाऊद , हजारों भिंडरावाला ,लाखों हाफिज सईद ,पालने में पीछे नहीं रहेंगे । इनके मार्फ़त वेरोजगार युवाओं को जेहाद या सभ्यताओं के संघर्ष में झोंकना आसान होता है। हथियारों को खपाना है तो मजहबी उन्माद या [अ] मित्र राष्ट्रों का अनवरत संघर्ष जरुरी है। ताकि अमेरिका या नाटो देशों में हथियारों की कारखाना बंदी याने आर्थिक मंदी की नौबत ही न आये। इसके लिए उन्हें न केवल मजहबी पाखंडवाद ,उग्रराष्ट्रवाद बल्कि 'अनियंत्रित' समाज भी मुफीद है। इस काम में उन्हें समाज का 'लम्पट वर्ग' भी इफरात में उपलब्ध है। 'लम्पट वर्ग 'का चरित्र अराजकतावादी होता है।
बड़े शहरों -कस्वों- मेलों -सम्मेलनों में , निर्धनता -अभाव - कंगाली के मारे गिरहकट ,जुआरी -चोर -ठग -डाकू -लुटेरे, जब अकेले या 'गैंग' के साथ 'काम' पर निकलते हैं तो वे राह चलते किसी अपने ही 'वर्ग मित्र' याने गरीब -रोजनदारी मजदूर -सरकारी गैर सरकारी मजदूर -कर्मचारी या फूटपाथ पर गुमटी से जैसे -तैसे आजीविका चलाने वाले परेशान नागरिक की जेब साफ़ करने को ही प्राथमिकता देते हैं। ये नितांत निर्धन , असभ्य और चेतना विहीन हिंसक लुटेरे 'स्लिम डाॅग ' से 'मिलियेन्अर 'बनने की जुगाड़ में कभी जेल में -कभी रेल में , कभी पूँजीवादी राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार में ,कभी साम्प्रदायिक उन्माद की ज्वाला में ईधन के रूप में काम आते हैं। इन्हे इस वर्तमान अधोगामी वयवस्था ने सोच समझकर ही इस दयनीय और घटिया जिंदगी की ओर जबरन धकेला है। ताकि वे बिना किसी चूँ चपड़ के साम्राज्य वादी कुल्हाड़ी का बेंट बनाए जा सकें। ताकि ये उसी 'महाठगनी ' व्यवस्था के सशक्तिकरण में अपनी जवानी खर्च करते रहते हैं। इन अभागे 'लम्पट सर्वहारा' अपराधियों की नियति ये है कि ये किसी शक्तिशाली वर्ग या सत्तारूढ़ नेतत्व की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख सकते। इन असमाजिक तत्वों का हाथ किसी कलेक्टर ,कमिश्नर , एसपी , विधायक ,सांसद , मुख्यमंत्री या राज्यपाल की जेब या गले तक नहीं पहुँच सकता। ये समाज की तलछट हैं जो असामाजिक तत्व बनकर कभी अम्बानी ,अडानी , मित्तल , टाटा ,बिरला की ओर आँख उठाकर नहीं देख सकते। ये हिंसक पाशविक प्रवृत्ति के जाहिल गंवार अपने घर परिवार में भी आतंक मचाते रहते हैं । ये इतने कृतघ्न या नाशुक्रे हुआ करते हैं कि अपने मददगार से भी विश्वासघात करने में संकोच नहीं करते। न केवल भारत -पाकिस्तान जैसे विकाशशील देशों में बल्कि पूरी दुनिया में यह 'अमरवेलि' रुपी परजीवी प्रजाति अभी फिलहाल निर्णायक स्थिति में है। इस लम्पट सर्वहारा वर्ग का कोई राष्ट्रवाद नहीं ! इनका कोई नैतिक ईमान धर्म नहीं ! इनका कोई सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं ! इसीलिये न केवल लुटेरे पूँजीपति वर्ग के लिए, न केवल शासक पार्टी के लिए , न केवल साम्प्रदायिक संगठनों के लिए, बल्कि 'पेंटागन' के लिए भी यह 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग बहुत उपयोगी है।
कमजोर और भृष्ट शासक वर्ग व् ही अपने स्वार्थों के लिए 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग को कुल्हाड़ी का बेंट बनाता है। कभी लव जेहाद, कभी आईएस आई ,कभी तालिवान ,कभी मुजाहिदीन ,कभी अल-कायदा ,कभी बजरंग दल ,कभी शिवसेना ,कभी धर्मांतरण सेना ,कभी घर वापसी सेना ' कभी सिमी और कभी पाक -अधिकृत कश्मीर के आतंकवादियों के रूप में यह 'लम्पट सर्वहारा' वर्ग न केवल पाकिस्तान ,न केवल अमेरिका बल्कि पेंटागन के लिए बहुत मुफीद है।पेंटागन के हथियार ,पाकिस्तान के अशिक्षित किन्तु मजहबी उन्माद से ग्रस्त -बेरोजगार -नौजवानों का पेट ये असली पीपीपी हैं जो न केवल भारत को बल्कि सारी धरती के लिए घातक हैं। चीन,अमेरिका और शेष दुनिया इस भुलावे में ना रहे कि वे इस संकट से बच जाएंगे। पाकिस्तान खुद भी इस पीपीपी की आग में झुलसने लगा है।
इजिप्ट ,तुर्की , सीरिया ,इराक ,सूडान ,फिलिस्तीन ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान ,भारत ,बांग्लादेश ,नेपाल , थाइलैंड और मध्य अफ़्रीकी और एशियाई राष्ट्रों में जो विचारधारा विहीन लम्पट सर्वहारा वर्ग है उसे अमेरिकन सम्राज्य्वाद और विश्व पूंजीवाद की ओर से अनवरत 'खाद -पानी' दिया जाता है। जब कभी इस 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग का कोई साम्प्रदायिक या अलगाववादी संगठन -संगठित होकर सड़कों पर कोहराम मचाता है तो ' पेंटागन रुपी मोगेम्बो' बहुत खुश होता है। क्योंकि उसके हथियार इस लम्पट सर्वहारा वर्ग के द्वारा ही इस्तेमाल किये जाते हैं । इसी के साथ -साथ इस वर्ग के उत्पात से निपटने के लिए प्रत्येक देश की सरकार को भी अमेरिका या पेंटागन से या उसके दुमछल्लों से भारी शर्तों और दलाली के बरक्स घातक हथियार खरीदना होते हैं। इस लम्पट सर्वहारा वर्ग को कुल्हाड़ी का बेंट बनाकर दुनिया के मुठ्ठी भर हथियार उत्पादक लुटेरे ऐश कर रहे हैं। दूसरी ओर निम्न आय वर्ग के ईमानदार मेहनतकश सर्वहारा -मजदूर ,किसांन जब अपने हितों के लिए जागरूक होकर आवाज उठाता है,संघर्ष के लिए एकजुट होता है तो उपरोक लम्पट सर्वहारा के हाथों ही इन 'अजन्मी' क्रांतियों की भ्रूण हत्या करवा दी जाती है।
श्रीराम तिवारी
खबर है कि अमेरिका ने पाकिस्तान को डेढ़ अरब डॉलर की सहायता पुनः प्रदान की है। उसे शाबाशी भी दी है।मेरा सीधा सा सवाल है कि , प्रेजिडेंट ओबामा की भारत यात्रा से भारत की जनता को क्या सन्देश दिया जा रहा है ? क्या यह खबर डरावनी नहीं है कि पाकिस्तानी फौजी ,जेहादी , अलकायदा , आतंकवादी ,जमुहरियत का चोला पहने हुए पाकिस्तानी सत्तासीन नेता और दुनिया भर में फैले बुखारी -ओवेसी -सब-के सब मिल जुल कर भारत को तबाह करने की फिराक में एकजुट हैं ? खबर है कि अरब सागर के रास्ते २६/११ की तरह पुनः भारत में दहशतगर्दी फैलाने के लिए - पाकिस्तानी फ़िदाईनो की आत्मघाती नौकाओं की सूचना का श्रेय भी अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसियों को दिया जा रहा है। याने भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र और भारत सरकार केवल सत्ता सुख की आत्ममुग्धता में तल्लीन है। जनाब ! यदि इतनी ही मेहरवानी २६/११ पर कर देते तो मुंबई में और देश में अनेक वेश्कीमती जाने तो नहीं जातीं ! दरशल किस का कोई एहसान नहीं है सब मदमस्त हैं। यह तो भारतीय तटरक्षक बलों की सजगता और कर्मठता का परिणाम है कि शत्रु पक्ष की चाल को अरब सागर में ही ध्वस्त कर दिया गया। यदि कोई इसका श्रेय ले या अपनी पीठ थपथपाये तो यह असत्याचरण नहीं तो और क्या है ?
यह भी खबर है कि अमेरिका अपनी आर्थिक मंदी की जकड़न से मुक्त हो रहा है। उसका आयात -निर्यात का समीकरण अमेरिकी बाजार के पक्ष में है। हथियार उत्पादक और निर्यातकों की लॉबी याने 'पेंटागन' के प्रयासों में कोई कोर कसर रह गई होगी तो ६५ वें भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के अवसर पर प्रेजिडेंट ओबामा जी के अतिथि सत्कार से पूरी हो जाएगी। इन तमाम खबरों को अलग-अलग ने देखते हुए यदि सभी घटनाओं और कार्यकलापों को अंन्योनाश्रित देखें तो हम पाएंगे कि दुनिया में अभी तो सबसे ज्यादा असुरक्षित भारत की जनता ही है। क्या इस खतरनाक स्थति के लिए केवल पाकिस्तान के'नापाक' हाथ ही जिम्मेदार हैं ?क्या पाकिस्तान के हाथ में जो बंदूकें हैं ,जो तोपें हैं ,जो मोटार हैं ,जो टेंक हैं ,जिनका निशाना सिर्फ भारत की ओर ही है, वे अमेरिका ने खैरात में नहीं दिए ?
अमेरिका की आर्थिक मंदी का और उसके पिछलग्गू राष्ट्रों की आर्थिक विपन्नता का स्थाई समाधान् यही है कि वे इस संकट का भार दुनिया के अन्य अविकसित या विकासशील राष्ट्रों पर डालते रहें । ऐंसा करने से से पहले उन विकासशील राष्ट्रों में अस्थिरता उत्पन्न करना बहुत जरुरी है। चाहे विभिन्न राष्ट्रों के बीच सीमाओं के पुराने झगड़े हों ,चाहे नस्लवाद,जातिवाद,सम्प्रदायवाद या क्षेत्रीयतावाद के परनाले हों सभी में हिंसक आन्दोलनों के लिए न केवल हथियार, बल्कि नापाक आर्थिक घेराबंदी भी जरुरी है। ये तमाम आर्थिक साधन हैं जो अमेरिका नीत एक ध्रुवीय विश्व के नवउपनिवेशवाद के लिए मुफीद हुआ करते हैं ।
दक्षिण एशिया में भारत -पाकिस्तान का स्थाई वैमनस्य का रक्तिम जलजला , अफगानिस्तान में तालिवानियों और 'जिरगों का संकीर्णतावाद , इराक -सीरिया और ईरान में आईएसआई का ख़लीफ़ाई अभियान ,विश्व इस्लामिक जेहादियों के शिया -सुन्नी झगड़े , ये सब स्वतः स्फूर्त नहीं हैं। ओपेक देशों और खास तौर से अरब राष्ट्रों के मार्फ़त अमेरिकी हथियार आतंकवाद्यों या जेहादियों को कैसे मिलते रहते हैं ? इजरायल फिलिस्तीन में सनातन संघर्ष , लेबनान -जॉर्डन और लीबिया में रक्तपात ,भारत में साम्प्रदायिकता , क्षेत्रीयतावाद ,अलगाववाद और भाषावादी आन्दोलनों को गुप्त समर्थन कौन दे रहा है ? श्रीलंका में तमिल -सिंहली संघर्ष को बढ़ावा , बांग्लादेश और म्यांमार में अराजक अलोकतांत्रिक तत्वों का आतंक इत्यादि जितने भी अमानवीय और नकारात्मक फेक्टर हैं , उन सभी को अमेरिका और सीआई ऐ का वरदहस्त है। अपने आर्थिक हितों को साधने के लिए अमेरिका और उसके मित्र - समृद्ध राष्ट्रों ने हथियार उत्पादन पर या आणविक परीक्षणों पर इसीलिये अभी तक कोई रोक नहीं लगाईं है।
अमेरिका और नाटो के खास हथियार उत्पादक संगठन और विश्व नियंत्रक संस्थान -पेंटागन ने जो ख़ुफ़िया रिपोर्ट सीनेट को जारी की है वो अब उजागर हो रही है। हथियारों के खरीददार और 'खपत क्षेत्रों ' की भी पहचान की गई है। इसमें सर्वाधिक खपत वाले देश इजरायल ,सऊदी अरब,इराक अफगानिस्तान ,यमन , सीरिया ,पाकिस्तान और भारत ही हैं। अंतर्राष्ट्रीय हथियार उत्पादक लाबी के हथियार बाएं हाथ से अराजक तत्वों को और दायें हाथ से इन अराजक तत्वों से प्रभावित देशों की सरकारों को बेचे जा रहे हैं। इस तरह दोनों हाथों में लड्डू लेकर विश्व सम्राज्य्वाद और नव उपनिवेशवाद का सितारा बहरहाल बुलंदियों पर है। उसके आर्थिक संकट निवारण में उसके निर्यात का या ततसंबंधी व्यापारिक नीतियों का कितना योगदान है ये तो अर्थशाश्त्री ही जाने। किन्तु हथियारों की बिक्री में अमेरिका और नाटो देशों की जो बल्ले -बल्ले हो रही है उसमें भारत की पूर्व और वर्तमान सरकार की अमेरिका परस्त नीतियों का भी कुछ तो असर है।
यह जग जाहिर है कि पाकिस्तान के आतंकियों को मिल रहे हथियारों और पाकिस्तानी सैन्यबलों को बेचे जा रहे हथियारों का उत्पादक -बिक्रेता एक ही है -पेंटागन। इसमें भारत के तमाम अलगाववादी , जेहादी, नक्सलवादी ,कश्मीरी आतंकवादी भी शामिल हैं जिन्हे पाकिस्तान के मार्फ़त या दलालों के मार्फ़त लगातार हथियार मिलते रहते हैं। पेंटागन के इस संहारक व्यापार में जिस वर्ग विशेष का 'हाथ' रहा है उसकी पहचान करना भी कठिन नहीं है। अमेरिका ने दुनिया को दिखाने के लिए तो दाऊद ,हाफिज सईद , आईएसआई ,जमात -उद -दावा और अन्य के खातों पर प्रतिबंध लगाए हैं। किन्तु वह यह जाहिर नहीं होने देता कि खातों पर प्रतिबंध के उपरान्त भी उसके या नाटो देशों के हथियार गोला बारूद इन खूखार दरिंदों तक कैसे पहुंचते हैं ? इसके विपरीत जो उसकी पोल खोलने वाले हैं उन विकिलीक्स जैसे 'विसिलब्लोअर्स ' को दुनिया में कहीं भी शरण नहीं लेने देता।
अविकसित राष्ट्रों के निम्न मध्यम वर्गीय युवाओं या शिक्षित -अशिक्षित वेरोजगारों को 'मरने -मारने' का ,फिदायीन बनने का ,आत्मघाती बनने का जो [सु] अवसर इन महान [?] हथियार निर्माता -उत्पादक -निवेशक ताकतों ने दिया वह केवल उदारीकरण या बाजारीकरण की नीतियों का दुष्परिणाम ही नहीं है। बल्कि इन हथियारों के सौदागरों की जरजर अर्थव्यवस्था को स्थाई रूप से साधे रखने के लिए यह ' वैश्विक हिंसा ' बड़े काम की चीज है। अच्छे और नेक काम के लिए या जन-कल्याण के लिए अपेक्षित मानव श्रम को भले ही ये अस्थायी या एवजी नियुक्ति का नियम बनायें। किन्तु हथियारों के निर्यात या उनके उपयोग के लिए वे विकाशशील देशों या संघर्ष रत राष्ट्रों में स्थाई काम के लिए दर्जनों ओसामा ,बीसियों आईएसआई , सैकड़ों दाऊद , हजारों भिंडरावाला ,लाखों हाफिज सईद ,पालने में पीछे नहीं रहेंगे । इनके मार्फ़त वेरोजगार युवाओं को जेहाद या सभ्यताओं के संघर्ष में झोंकना आसान होता है। हथियारों को खपाना है तो मजहबी उन्माद या [अ] मित्र राष्ट्रों का अनवरत संघर्ष जरुरी है। ताकि अमेरिका या नाटो देशों में हथियारों की कारखाना बंदी याने आर्थिक मंदी की नौबत ही न आये। इसके लिए उन्हें न केवल मजहबी पाखंडवाद ,उग्रराष्ट्रवाद बल्कि 'अनियंत्रित' समाज भी मुफीद है। इस काम में उन्हें समाज का 'लम्पट वर्ग' भी इफरात में उपलब्ध है। 'लम्पट वर्ग 'का चरित्र अराजकतावादी होता है।
बड़े शहरों -कस्वों- मेलों -सम्मेलनों में , निर्धनता -अभाव - कंगाली के मारे गिरहकट ,जुआरी -चोर -ठग -डाकू -लुटेरे, जब अकेले या 'गैंग' के साथ 'काम' पर निकलते हैं तो वे राह चलते किसी अपने ही 'वर्ग मित्र' याने गरीब -रोजनदारी मजदूर -सरकारी गैर सरकारी मजदूर -कर्मचारी या फूटपाथ पर गुमटी से जैसे -तैसे आजीविका चलाने वाले परेशान नागरिक की जेब साफ़ करने को ही प्राथमिकता देते हैं। ये नितांत निर्धन , असभ्य और चेतना विहीन हिंसक लुटेरे 'स्लिम डाॅग ' से 'मिलियेन्अर 'बनने की जुगाड़ में कभी जेल में -कभी रेल में , कभी पूँजीवादी राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार में ,कभी साम्प्रदायिक उन्माद की ज्वाला में ईधन के रूप में काम आते हैं। इन्हे इस वर्तमान अधोगामी वयवस्था ने सोच समझकर ही इस दयनीय और घटिया जिंदगी की ओर जबरन धकेला है। ताकि वे बिना किसी चूँ चपड़ के साम्राज्य वादी कुल्हाड़ी का बेंट बनाए जा सकें। ताकि ये उसी 'महाठगनी ' व्यवस्था के सशक्तिकरण में अपनी जवानी खर्च करते रहते हैं। इन अभागे 'लम्पट सर्वहारा' अपराधियों की नियति ये है कि ये किसी शक्तिशाली वर्ग या सत्तारूढ़ नेतत्व की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख सकते। इन असमाजिक तत्वों का हाथ किसी कलेक्टर ,कमिश्नर , एसपी , विधायक ,सांसद , मुख्यमंत्री या राज्यपाल की जेब या गले तक नहीं पहुँच सकता। ये समाज की तलछट हैं जो असामाजिक तत्व बनकर कभी अम्बानी ,अडानी , मित्तल , टाटा ,बिरला की ओर आँख उठाकर नहीं देख सकते। ये हिंसक पाशविक प्रवृत्ति के जाहिल गंवार अपने घर परिवार में भी आतंक मचाते रहते हैं । ये इतने कृतघ्न या नाशुक्रे हुआ करते हैं कि अपने मददगार से भी विश्वासघात करने में संकोच नहीं करते। न केवल भारत -पाकिस्तान जैसे विकाशशील देशों में बल्कि पूरी दुनिया में यह 'अमरवेलि' रुपी परजीवी प्रजाति अभी फिलहाल निर्णायक स्थिति में है। इस लम्पट सर्वहारा वर्ग का कोई राष्ट्रवाद नहीं ! इनका कोई नैतिक ईमान धर्म नहीं ! इनका कोई सामाजिक उत्तरदायित्व नहीं ! इसीलिये न केवल लुटेरे पूँजीपति वर्ग के लिए, न केवल शासक पार्टी के लिए , न केवल साम्प्रदायिक संगठनों के लिए, बल्कि 'पेंटागन' के लिए भी यह 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग बहुत उपयोगी है।
कमजोर और भृष्ट शासक वर्ग व् ही अपने स्वार्थों के लिए 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग को कुल्हाड़ी का बेंट बनाता है। कभी लव जेहाद, कभी आईएस आई ,कभी तालिवान ,कभी मुजाहिदीन ,कभी अल-कायदा ,कभी बजरंग दल ,कभी शिवसेना ,कभी धर्मांतरण सेना ,कभी घर वापसी सेना ' कभी सिमी और कभी पाक -अधिकृत कश्मीर के आतंकवादियों के रूप में यह 'लम्पट सर्वहारा' वर्ग न केवल पाकिस्तान ,न केवल अमेरिका बल्कि पेंटागन के लिए बहुत मुफीद है।पेंटागन के हथियार ,पाकिस्तान के अशिक्षित किन्तु मजहबी उन्माद से ग्रस्त -बेरोजगार -नौजवानों का पेट ये असली पीपीपी हैं जो न केवल भारत को बल्कि सारी धरती के लिए घातक हैं। चीन,अमेरिका और शेष दुनिया इस भुलावे में ना रहे कि वे इस संकट से बच जाएंगे। पाकिस्तान खुद भी इस पीपीपी की आग में झुलसने लगा है।
इजिप्ट ,तुर्की , सीरिया ,इराक ,सूडान ,फिलिस्तीन ,अफगानिस्तान ,पाकिस्तान ,भारत ,बांग्लादेश ,नेपाल , थाइलैंड और मध्य अफ़्रीकी और एशियाई राष्ट्रों में जो विचारधारा विहीन लम्पट सर्वहारा वर्ग है उसे अमेरिकन सम्राज्य्वाद और विश्व पूंजीवाद की ओर से अनवरत 'खाद -पानी' दिया जाता है। जब कभी इस 'लम्पट सर्वहारा ' वर्ग का कोई साम्प्रदायिक या अलगाववादी संगठन -संगठित होकर सड़कों पर कोहराम मचाता है तो ' पेंटागन रुपी मोगेम्बो' बहुत खुश होता है। क्योंकि उसके हथियार इस लम्पट सर्वहारा वर्ग के द्वारा ही इस्तेमाल किये जाते हैं । इसी के साथ -साथ इस वर्ग के उत्पात से निपटने के लिए प्रत्येक देश की सरकार को भी अमेरिका या पेंटागन से या उसके दुमछल्लों से भारी शर्तों और दलाली के बरक्स घातक हथियार खरीदना होते हैं। इस लम्पट सर्वहारा वर्ग को कुल्हाड़ी का बेंट बनाकर दुनिया के मुठ्ठी भर हथियार उत्पादक लुटेरे ऐश कर रहे हैं। दूसरी ओर निम्न आय वर्ग के ईमानदार मेहनतकश सर्वहारा -मजदूर ,किसांन जब अपने हितों के लिए जागरूक होकर आवाज उठाता है,संघर्ष के लिए एकजुट होता है तो उपरोक लम्पट सर्वहारा के हाथों ही इन 'अजन्मी' क्रांतियों की भ्रूण हत्या करवा दी जाती है।
श्रीराम तिवारी
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