मंगलवार, 20 जनवरी 2015

वास्तव में उनके अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते




                     मेरे देश  में इन दिनों  बहुतेरों को एक अदद  'अवतार ' की  शिद्द्त से दरकार है।  पीलिया रोग से पीड़ित कुछ  नर-मादाओं को तो  नरेंद्र मोदी  साक्षात विष्णु के अवतार  ही नजर आ रहे हैं। महज कार्पोरेट लाबी या हिन्दुत्ववादियों को ही नहीं अब तो खांटी  धर्मनिर्पेक्षतावादियों ,कांग्रेसियों  और लोहियावादियों को भी मोदी जी 'कितने अच्छे लगने  लगे ' हैं।   जब शांति भूषण जी को 'नमो' भक्ति में लीन  देखता हूँ तो लगता  है कि   बाकई  मोदी जी  का उन पर भी कुछ तो असर  है। सिर्फ किरण वेदी ,शाजिया इल्मी ,जया प्रदा या कृष्णा  तीरथ जैसी  नादान इच्छाधारणियां  ही नहीं , बल्कि जीतनराम माँझी , दिनेश त्रिवेदी ,जनार्दन द्धिवेदी जैसे राजनीतिक ड्रगन  भी 'मोदी जाप' के लिए कुनमुना रहे हैं। मोदी जी की के अंधभक्तों  ने तो सहीदों  को भी भगवा दुपट्टा पहना दिया है।   सरदार भगतसिंह , सरदार पटेल ,सुभासचन्द्र  बोस  और  लाला लाजपत राय  भी इनसे नहीं बच पाये। अमर शहीदों  की प्रतिमाओं  के कान में भी फुसफुसा कर  कहा जा रहा हो " गांधी को भूल जाओ, लोकतंत्र को  भूल जाओ ,इंकलाब  को भूल जाओ।   इसलिए हे भारत वासियो ! सब मिलकर एक साथ  जोर से बोलो - 'गोडसे  महाराज की जय '  !  मोदी महाराज  की जय ! जय-जय सियाराम !
                       यूएस  प्रेसिडेंट  श्री ओबामा  जी  के गणतंत्र दिवस पर  भारत आगमन  पर  भारत -अमेरिका की कार्पोरेट लाबी बहुत  खुश है। अब तो हवाएँ भी पछुआ हो चली हैं।  इन फिजाओं में  भी मोदी जी का  कुछ तो असर है। 'भगवा आंधी'   योँ  ही नहीं  चल रही है।  दिनेश त्रिवेदी [टीएमसी वाले] से लेकर जनार्दन द्धिवेदी [ कांग्रेस वाले] तक सबके सब  'हर- हर मोदी'  ही  किये जा रहे हैं।  कल तक  जिन्हे  ममता ,सोनिया या राहुल  देश  के तारणहार दीखते थे  वे अब 'मेरो तो मोदी दूसरो न कोई ' का भजन गा  रहे हैं।  उन्हें तो गाना पडेगा  जो  चाटुकारिता और दासत्व के सिंड्रोम से पीड़ित हैं।  इसीलिये सारे चमचो ,दलबदलुओं  एक साथ बोलो - मोदी महाराज की जय !जय-जय सियाराम !
            कुछ लोगों ने एक वाहियात  सी अवधारणा  बना रखी  है  कि देश और  दुनिया का उद्धार करने के लिए हर युग में एक अदद 'अवतार' की जरूरत होती है। चूँकि इस आधुनिक दौर में भारत को आर्थिक-सामाजिक -साम्प्रदायिक और सांस्कृतिक महामारियों ने घेर रखा है इसलिए 'अवतार' की  शिद्दत से जरुरत है।  दरसल  कांग्रेस के कुकर्मों , मीडिया के 'अपकर्मों', धर्मनिर्पेक्षतावादियों - अल्पसंख्यकवादियों के   'भेड़िया धसान कर्मों '  तथा   'संघ परिवार '  के नाटकीय  'धत्कर्मों'  के परिणाम स्वरूप अवसरवादियों और दल  बदलुओं के 'पापकर्म' धुल  चुके हैं।   वास्तव में उनके  अच्छे दिन आये हैं जो केरेक्टर की परवाह नहीं करते।  उधर  आर्थिक 'नीति' और 'नीति आयोग 'में विश्व बैंक, एनआरआई ,अम्बानी,अडानी जैसे  बड़े -बड़े  कारोबारियों और 'दलालों' के अच्छे दिन आने लगे हैं। अभी-अभी ताजा-ताजा , केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड में 'राग दरवारियों ,चाटुकारों  और चन्दवरदाइयों ' के अच्छे दिन आये हैं।  राष्ट्र रुपी घूरे के दिन  कब फिरेंगे  ? ये तो इस वैज्ञानिक -उत्तर आधुनिक युग में कोई भी दावे से नहीं कह सकता !  किन्तु  जिनके पहले से ही अच्छे दिन चल रहे थे। उन  धूर्त  चालक  और काइयाँ लोगों  के  स्वर्णिम दिन बरक़रार हैं। जो सत्ता से महरूम हैं वे मोदी  भक्ति को बेकरार हैं।
                         मजदूरों के तो बहुत बुरे दिन आये हैं। न सिर्फ 'कांग्रेस मुक्त भारत' बल्कि अब तो शुद्ध -  निखालिस 'श्रम नीति'  मुक्त  भारत होने जा रहा है। न केवल  सांस्कृतिक पुरुत्थान वादियों  के सपनों का 'एंड-वेण्ड इंडिया'बल्कि   'मेक इन इंडिया 'याने 'अतुल्य ' भारत  भी  होने जा रहा  है। न केवल 'लोकतंत्र ,समाजवाद  और धर्मनिेपेक्षता '  से मुक्त भारत बल्कि संसदीय लोकतंत्र मुक्त भारत की  सम्भावनाएँ  भी ७ माह में ९  अध्यादेश लागू कर दिखा दींगईं  हैं। मानवीय संवेदनाओं  से  मुक्ति  की कामना पूर्ण होने के आसार  भी नजर आ रहे  हैं।  इस घोर नकारात्मक परिदृश्य के  वावजूद कुछ लोग  ढ़पोरशंखी वयान बाजी और पूँजीवादी आर्थिक  राजनैतिक चकाचौंध में मानो  'रतौंधिया' गए हैं ।  ये   हर -हर 'मोदी-मोदी' के नारे लगाने वाले  कभी न कभी  कांग्रेस के और गांधी नेहरू परिवार के भी गुणगान किया करते थे ,यकीन ने हो तो अमिताभ  बच्चन जी से या अमरसिंह जी से ही  पूंछ लो !
                                                     श्रीराम तिवारी

                                               श्री नरेंद्र मोदी के नेतत्व में एनडीए बनाम भाजपा बनाम संघ परिवार बनाम भगवा मण्डली की अनवरत बढ़त के लिए कोई एक फेक्टर या कारक जिम्मेदार  नहीं है। बेशक कांग्रेस का कुशासन और उसकी जन -विरोधी नीतियाँ  एक सबसे बड़ा दृश्यमान कारण है। हो सकता है कि  मनमोहनसिंह  का 'मजबूर' नेतत्व भी कुछ हद तक जिम्मेदार  हो ! सम्भव है की विगत दो दशकों से चली आ रही नकारात्मक  गठबन्धनीय राजनैतिक परिस्थिति भी इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार  हो  !  यह भी संभव है कि वैश्विक    आतंकवाद  और पाकिस्तान की हरकतों से भारत  के बहुसंख्यक हिन्दू समाज का अभिमत 'संघ परिवार' की ओर झुक गया हो ! यह भी एक बहुत बड़ा  कारक हो सकता है कि  क्षेत्रीय दलों या  तीसरे मोर्चे के नेता एवं  दल  केवल आरक्षण , धर्मनिरपेक्षता  और हिंदुत्तव विरोध  के एजेंडे पर  एकजुट होते रहे हों। शायद वे  वेहतर वैकल्पिक  आर्थिकनीति  ,विदेशनीति  और  स्थायी सरकार प्रस्तुत करने में असमर्थ रहे हों ! यह भी सम्भव है कि  देश के संगठित   मजदूर -किसान आंदोलन और वामपंथ के संघर्ष अपने आक्रोश को 'जनमत' में न बदल पाये हों।   यह भी सम्भव है कि कार्पोरेट लॉबियों  को  मोदी जी की तरह  सत्ता में अपेक्षित हिस्सेदारी का वादा  करने में  असफल  रहे हों!
                                                         विगत लोक सभा चुनाव से पूर्व भारत में जो मनघडंत राजनैतिक -सामाजिक और आर्थिक  अवधारणाएँ  प्रचलित थीं  उनमे से अधिकांस ध्वस्त हो चुकीं हैं।  जो कुछ बचीं हैं वे भी अपना बक्त आने पर ध्वस्त हो जायंगी। एक अवधारणा थी कि  बिना गठबंधन के कोई सरकार केंद्र में बन ही नहीं सकती।  अब  एक दलीय सरकार खुद के बलबूते पर भाजपा की  बन ही  गई  है तो गठबंधन सिद्धांत का  मर्सिया पढ़ने से  बेहतर है कि इस  'एक पार्टी शासन'  का  विकल्प शिद्द्त से  खड़ा किया जाए। ताकि वक्त आने पर आगामी लोक सभा चुनाव में आकर्षक ,टिकाऊ और  जन-कल्याणकारी  विकल्प जनता के सामने हो !
                                              प्रश्न किया जा सकता है कि  देश की जनता को एक गैर कांग्रेस और गैर भाजपाई  विकल्प की आवश्यकता क्यों है? जबाब प्रस्तुत है।  चूँकि  सोनिया -राहुल के नेतत्व में कांग्रेस रुपी काठ की हांड़ी की   केंद्रीय सत्ता के चूल्हे पर  चढ़ने की आइन्दा १० साल  तक कोई संभावना नहीं है।  वैसे भी देश की जनता बड़ी निर्मम है कि  कांग्रेस को ' विपक्ष ' की भूमिका के काबिल भी नहीं छोड़ा है। इधर   भाजपा  ने  भी  न केवल आर्थिक और विदेश संबंधी नीतियां ही कांग्रेस से चुराईं  हैं  बल्कि  उसने अपना हिन्दुत्ववादी एजेंडा भी केवल 'वोट वटोरने' तक ही सीमित रखा है।  इसीलिये तो मंदिर मुद्दा छोड़कर , धारा -३७० छोड़कर ,एक समान राष्ट्रीय क़ानून छोड़कर केवल 'ज्यादा बच्चे पैदा करने का एजेंडा ही अब  बाबाओं और स्वामियों के हाथ रह गया है।घर वापसी ,धर्मांतरण ,सम्पदायिक टुच्चई  ,लव -जिहाद इत्यादि में जो -जो  शामिल  हैं उन सभी के अच्छे दिन आने वाले हैं।  जनता के सवालों पर बात  करने वालों को 'शार्ली  हेब्दों' बना दिया जायेगा।
                            सत्ता लोलुपता के घटिया  महामोहान्धकार में  संघ परिवार और भाजपा का शीर्ष नेतत्व  बड़ी वेशर्मी से  कांग्रेस के [कृष्णा  तीरथ जैसे  ] भृष्ट दलबदलुओं  को ,'आप' के[इल्मी-बिन्नी जैसे] गद्दारों को ,अण्णा  आंदोलन के विश्वाशघातियों [किरण बेदी जैसे ]  को  भाजपा  में पलक  पांवड़े बिछाकर  स्वागत कर रहा है ।  जो लोकतंत्र ,धर्मनिरपेक्ष्यता समाजवाद के शत्रु है उन्हें महिमा मंडित किया जा रहा है। न केवल अम्बानियों -अडानियों को बल्कि फ़िल्मी धंधेबाजों को भी उपकृत किया जा रहा है।-कहाँ तक नाम गिनवायें ? जिन्हें अब न केवल मोदी जी बल्कि भाजपा भी अच्छी लगने लगी है।   जिनको कल तक सोनिया जी देवी और राहुल जी 'प्रिंस आफ वेल्स' दीखते थे उनको वे नीम और करेले से भी कड़वे हो गए हैं।   इन सनातन चाटुकारों और  सत्ता लोलुपों को  अचानक भाजपा और मोदी 'कितने अच्छे लगने लगे ' हैं ? ये बात  जुदा  है कि  भाजपा १९८० से है। मोदी  जी  को भी इस धरती पर आये हुए ६४ साल हो चुके हैं।  जब मोदी जी चाय बेचा करते थे तब ये इल्मी-फ़िल्मी सितारे  मोदी को  तो  नहीं पहिचानते होंगे !  भाजपा  का और उससे पूर्व जनसंघ का तो नाम लेना भी गुनाह हुआ करता था ! अब  ये दल  बदलू और आश्था  बदलू लोग आज  जितना प्यार -दुलार अभी भाजपा पर  उड़ेल रहे हैं।यदि   अतीत में [२००४ में] १० साल पहले  ही यह प्यार और  आस्था -भाजपा पर उड़ेल देते  तो बेचारे आडवाणी जी आज 'पी एम वेटिंग' होकर ही  योँ  रुस्वा नहीं हुए  होते। जो    - जो  ! नामचिन्ह  दल बदलू नेहरू गांधी परिवार की जूँठन खाकर गौरवान्वित हुआ करते थे।  वे यदि सभी के सभी भाजपा में आ जाएँ तो कांग्रेस फिर से जिन्दा हो जाएगी।  लेकिन   तब कांग्रेस का नाम 'भाजपा' ही होगा  ! सांपनाथ वनाम नागनाथ  का सिद्धांत पेश करने वाले की मेधा शक्ति का लोहा मानना पडेगा।
                अंततोगत्वा ! एतद द्वारा  घोषित किया जाता है  कि  यदि आपने रेप किया है ,आपने नौ  सौ चूहे खाए हैं ! आपने  मोदी जी को उनके गुजरात वाले घटनाक्रम पर पानी पी पी कर  कोसा है ! यदि आपने भाजपा -कांग्रेस दोनों को 'चोर-चोर मौसेरे भाई कहा है !   यदि आपका कालाधन स्विस बैंकों में जमा है ! यदि जमाखोरी -कालाबजारी  में आकंठ डूबे हुए हैं ! यदि आप पर देश द्रोह का भी आरोप है ! यदि आप भारत छोड़ अमेरिका इंग्लैंड में इसलिए भागे थे कि  आप पर गंभीर किस्म के आपराधिक मुक़ददमें दर्ज थे ! यदि आपको दलाली ,रिश्वतखोरी , मुनाफाखोरी  और साम्प्रदायिकता से लगाव है यदि आप अपने संगी साथियों के  रुतवे  से ईर्ष्या  रखते हैं तो आप को एक अदद फार्म भरकर भाजपा कार्यालय को देना है । यदि आप इतना भी नहीं कर सकते तो उनको एक 'मिस काल' कर दीजिये -आपके सारे गुनाह फौरन माफ़ कर दिए जायंगे। न केवल आप भाजपा के सदस्य बना लिए जाएंगे बल्कि  आपको मीडिया में इतना कवरेज  मिलेगा कि ''टाट में विराजमान राम लला'' भी शरमा  जाएंगे। आपके  लोक और परलोक दोनों  सुधर जावेंगे।  आपको १०  बच्चे पैदा करने का अवसर भी दिया जावेगा।आप कानून से परे  हो जाएंगे।
                           वेशक आज का दिन  बड़ा महान है। आज जो भी  भाजपा ज्वाइन कर लेगा उसको  'सद्गति' प्राप्त होने में  कोई संदेह नहीं । उसके अच्छे दिनों की गारंटी  भी मुफ्त ही मिल जाएगी  ! यदि आप अछूत हैं , अल्पसंख्यक हैं तो  हिन्दुत्तवादी भी  आप से  रोटी-बेटी का व्यवहार करने लगेंगे ।  मैं तो कहता हूँ कि सुरेश कलमाड़ी ,पवन वंसल ,ए   राजा ,दयानिधि मारन या  जगदीश टाइटलर चाहैं  तो भाजपा के दरवाजे खुले हैं। रावर्ट वाड्रा ,राहुल गांधी ,प्रियंका वाड्रा को भी भाजपा में अच्छी  हैसियत मिलने की संभावनाएं हैं।  लखवी ,हाफिज सईद ,दाऊद भी यदि भाजपा ज्वाइन कर  लें तो यों पाकिस्तान में  छिप-छिपकर जिंदगी नहीं गुजारनी पड़ेगी।  सत्ता की लालसा  में भाजपा का यह सिद्धांत और   दॄष्टिकोण  बहुत  ही  रोचक है कि उसकी नजर में   'कांग्रेस  ,आप या कोई भी भृष्ट पार्टी हो  उससे तो देश को मुक्त करना है किन्तु दल  बदलू  कृष्णा   तीरथ हो ,या 'आप '  के इल्मी-बिन्नी हों   भाजपा की गटर  गॅंग  में  सबके सब परम पवित्र और  ईमानदार हैं '!  तभी तो  जगदम्बिका पाल से लेकर कृष्णा  तीरथ तक सभी उसे 'पाक-साफ़' लगते हैं।  इस तरह से कांग्रेस मुक्त भारत का स्वप्न  पूरा होने में संदेह है। भले ही कांग्रेस सत्ता में  न हो किन्तु परोक्षतः  दल  बदलू  कांग्रेसी लोग  जब  भाजपा में आकर देश पर शासन  करेंगे तो  भाजपा अपने आपको 'पार्टी विथ डिफ़रेंस' किस मुँह  से कह  सकती है ?'भाजपा का चाल -चेहरा और चरित्र ' कांग्रेस   जैसा क्यों नहीं होगा ?
                                                    श्रीराम तिवारी

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