वर्तमान भारतीय सेना प्रमुख जनरल दलवीरसिंह सुहाग का कहना कि ' भारत ने भारी कीमत चुकाई है तब कहीं जाकर कश्मीर में आंशिक शांति आई है ' उनका यह भी कहना है कि 'पाकिस्तान अभी भी कश्मीर में छद्म युद्ध[प्राक्सी वार] लड़ रहा है ' जनरल सुहाग ने जो कुछ कहा वह अर्ध सत्य है। जबकि भारत के दुश्मनों को पूर्ण सत्य मालूम है। हो सकता है कि भारत सरकार ,भारतीय सेना ,भारतीय मीडिया और भारतीय राजनैतिक दलों को पूर्ण सत्य की जानकारी हो। किन्तु यह भी एक कटु सत्य है कि भारत की कमजोरियाँ ,भारत के दुश्मनों को ज़रा ज्यादा ही मालूम हैं। उन्हें तो यह भी मालूम था कि मुंबई पर २६/११ हमले में शामिल 'कसाव जैसे कसाइयों' को मय हथियारों के कराची से ताज होटल तक या शिवाजी टर्मिनल तक पहुँचने में कोई बाधा नहीं आएगी। क्योंकि भारत में हर जगह का रेट फिक्स है। हमलावर आतंकियों ने मात्र सौ -दो सौ रूपये रिश्वत देकर भारत की धरती लहू लुहान कर डाली। सीमाओं पर रात के अँधेरे में शीश काट कर ले गए। हमारे जांवाज फौजी सीमाओं पर शहीद हो रहे हैं ,आतंक से लड़ने में पुलिस के जवान शहीद हो रहे हैं ,उसमें रिश्वतखोरों और गद्दारों का कितना हाथ है ? क्या यह यदि देश की जनता को मालूम है ? यदि हाँ तो विप्लव क्यों नहीं होता। इतना सन्नाटा क्यों है ? केवल ढपोरशंख ही क्यों बज रहे हैं ? कोई जनरल कहता है कि मुझे ये मालूम है , कोई मंत्री कहता है कि मुझे वो मालूम है। यदि सबको सब मालूम है तो कुछ करते क्यों नहीं ? कौन किसी को कुछ करने से रोक रहा है ?
वेशक भारत की अधिसंख्य अपढ़ -अशिक्षित जनता को ही नहीं बल्कि मजहबी उन्माद -धार्मिक अंधश्रद्धा , साम्प्रदायिकता और जातीयता के 'डोबरों ' में गोते लगाने वालों को भारत सुरक्षा विषयक विमर्श से कोई लेना देना नहीं है।किसी को चार बच्चे पैदा करने की फ़िक्र है ,किसी को मस्जिद की फ़िक्र है ,किसी को मंदिर की फ़िक्र है ,किसी को सत्ता में बने रहने की फ़िक्र है ,किसी को सत्ता पाने की फ़िक्र है तो किसी को अपना आर्थिक साम्राज्य सुरक्षित करने की फ़िक्र है। किसी को एफडीआई की फ़िक्र है। किसी को शारदा चिट फंड की फ़िक्र है ,किसी को अपना जनता परिवार बढ़ाने की फ़िक्र है। किसी को अमेरिका को साधने की फ़िक्र है , किसी को लव-जेहाद की फ़िक्र है। किसी को जल-जंगल -जमीन हड़पने की फ़िक्र है। वेशक कुछ मुठ्ठी भर ही होंगे जिन्हे मेहनतकश आवाम के हितों की ,किसानों की और देश के स्रवहारा वर्ग को शोषण मुक्त कराने की फ़िक्र के साथ-साथ अपने देश की हिफाजत की भी फ़िक्र होगी। इनमें कुछ ऐंसे भी होंगे जिन्हे विश्व सर्वहारा याने दुनिया के गरीबों की भी फ़िक्र होगी। इन मुठ्ठी भर चेतनशील लोगों की राजनीति की एरिना में फिलहाल तो स्थिति अनुकूल नहीं है। किन्तु जो अतीत के नास्ट्रेलजिया में अभिभूत हैं ,जिन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय स्वाभिमान के नाम पर सत्ता हथयाई है वे 'शुक 'मौनक्यों हैं ?
गोस्वामी तुलसीदास जी का कथन है -
इमि कुपंथ पग देत खगेशा । रहे न तेज तनु बुधि बल लेशा।।
इसका भावार्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र गलत राह पर चलता है तो उसकी साँसे उखड़ने लगतीं हैं। बदहवासी में वह हिंसक और अमानवीय हो जाता है। 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' के भी यही लक्षण हैं। मेरा अनुभव है कि इस उत्तरआधुनिकता के दौर में भी गोस्वामी जी की यह सूक्ति काम कर रही है। 'हाथ कंगन को आरसी क्या ' आप भी मुलाहिजा फरमाएँ।
चूँकि भारत जैसे बहुलतावादी धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक राष्ट्र में मानव उत्थान की अनेकों संभावनाएं छिपी हुईं हैं।यहां अनेक मानवीय मूल्य सुरक्षित हैं। इसलिए भारत का शुद्ध साम्प्रदायिक पड़ोसी , मानसिक रूप से बीमार और झगड़ालू पड़ोसी पाकिस्तान सदैव इस तुकतान में लगा रहता है कि भारत को बर्बाद कैसे किया जाए ? भारत को प्राक्सी युद्ध की चपेट में कैसे व्यस्त रखा जाए ? पाकिस्तान में छुपे भारतीय भगोड़े अपराधी - दाऊद, पाकिस्तान की आस्तीन में पल रहे -हाफिज सईद और लखवी जैसे २६/११ के प्रमाणित अपराधी 'अल्लाह के वन्दे' कैसे हो सकते हैं ? क्या वास्तव में ये इस्लाम की सेवा करते हैं । दरसल ये मानवता के दुश्मन हैं। ये इस्लाम के नाम पर कलंक हैं। ये तो इस्लाम का ककहरा भी नहीं जानते।ये नाशुक्रे अहमक पाकिस्तानी आतंकी तो जेहाद के नाम का डंका पीटने वाले - अलकायदा ,आईएसआई या बोको हराम से भी गए बीते हैं।
ये जेहादी नहीं बल्कि विशुद्ध अपराधी हैं। ये अफ़ीमचियों, ड्रग स्मगलरों ,हथियारों के सौदागरों की दलाली किया करते हैं। ये तो किसी दकियानूसी समाज की तलछट से भी गए गुजरे हैं। ये भारत की नकली मुद्रा पाकिस्तान में छापकर बांग्ला देश ,म्यांमार नेपाल या हांगकांग के रास्ते भारत में खपाते हैं। इनके भारतीय एजेंट भी अधिकांस बिहार ,असम और बंगाल में ही पकडे जा रहे हैं। चूँकि भारत में शोषण उत्पीड़न और असमानता का बोलबाला है। चूँकि भारत में गरीबी -बेकारी -भुखमरी बरक़रार है इसलिये विभीषण ,जयचंद,मीरजाफर बनने को सैकड़ों तैयार हैं।
जनरल दलवीरसिंह सुहाग को यह भी मालूम होना चाहिए की महज कश्मीर ही हमारा सिरदर्द नहीं है। उन्हें और उनके जैसे जनरलों को यह भी जानना चाहिए कि हमें यह क्यों सुनना पड़ रहा है कि हम २०३० तक या २०५० तक चीन के बराबर होंगे या आगे होंगे ? हमें कितना मालूम है कि चीन की पॉलिसी और प्रोग्राम क्या हैं? चीन जैसा वैचारिक राष्ट्रवाद भले ही न सही लेकिन ईरान या इजरायल जैसा या क्यूबा -वियतनाम जैसी न्यूनतम राष्ट्रीय चेतना तो भारत के नागरिकों में अवश्य ही होनी चाहिए।
केवल हाथ में झाड़ू लेकर फोटो खिचाने से यह महानतम मकसद पूरा नहीं हो सकता। शासक यदि झूंठे और ढ़पोरशंखी हैं तो आवाम से क्या उम्मीद की जा सकती है ?साम्प्रदायिक और जातीयता के दुराग्रह यदि सत्ता की सीढ़ी बन जाएंगे तो लोकतान्त्रिक -धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद कहाँ से आएगा ? इन हालात में प्राक्सी वार या छद्मयुद्ध तो क्या आमने-सामने का युद्ध भी हम ठीक से लड़ पाएंगे।
जब तक हम वर्तमान नीतियां नहीं पलटते तब तक भारत का अपने अनचाहे शत्रुओं के हमलों से निपटना मुश्किल है। हमें जानना होगा कि छोटा सा अकेला क्यूबा ५० साल से लगातार अपनी सुरक्षा कैसे कर रहा है ? हमें जानना चाहिए कि अमेरिका और नाटो देशों ने क्या -क्या नहीं किया क्यूबा के साथ ? ह्में यह भी जानना होगा कि कैसे एक जीवंत क्यूबा आज भी सीना तानकर अमेरिका की नाक के सामने खड़ा है। जिन्हे मालूम है कि अतीत में वियतनाम को अमेरिका ने तो लगभग ध्वस्त ही कर डाला था। वे यह भी जानते होंगे कि वियतनाम की जनता ने कैसे जंग जीती और अमेरिका को छठी का दूध भी नसीब नहीं हुआ। शर्मनाक अवस्था में हारकर भाग खड़ा होना पड़ा। पाकिस्तान का छद्मयुद्ध सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं है। वह भारत से लेकर बग़दाद तक और बीजिंग से लकेर वाशिंगटन तक छद्म रूप से व्याप्त है। भारत कब इतना सामर्थ्यवान होगा कि उसका कोई दुश्मन ही न रहे. कोई बुरी नजर से ही न देखे ?
पाकिस्तान की आईएसआई के निर्देश पर ये आतंकी गिरोह भारतीय अर्थ व्यवस्था को बर्बाद करने के मंसूबे साध रहे हैं। ये बदमाश न केवल हवाला कारोवारियों बल्कि बालीबुड में छिपे देशद्रोहियों के मार्फ़त कालेधन को सफ़ेद करने में जुटे हुए हैं। क्या वजह कि खान्स की ही 'पीके' जैसी फ़िल्में पाकिस्तान में बॉक्स आफिस पर सुपर हिट हो रहीं हैं ? क्या वजह है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठानों को भारतीय गुप्त सूचनाएँ सहज ही उपलब्ध हैं ? कटट्रपंथियों को हथियार सप्लाई करने और कश्मीर में पाक प्रशिक्षित बर्बर आतंकियों की घुसपैठ कराने वालों की साजिशों के बारे में भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र कितना जानता है ? खबर हैं कि विगत दिनों अरब सागर में जो पाकिस्तानी आतंकी फिदायीन नौकाओं का भारत की सीमा में अवैध प्रवेश हुआ उसकी जानकारी भी हमें अमेरिकी एजेंसियों ने ही दी है। तो हमारे 'रॉ ' हमारे गुप्तचर व्यूरो क्या घास छील रहे हैं। हमारे कर्णधार केवल हाथों में झाड़ू लेकर फोटो खिचाने में मशगूल हैं , उधर 'नापाक' तत्वों के मंसूबे परवान चढ़ रहे हैं। भारत में निरंतर नर संहार के निमित्त , सैकड़ों फिदायीन लगातार भेजे जा रहे हैं। जनरल साब ! हुजूर ये प्राक्सी वार नहीं खुल्ल्म खुल्ला जंग का ऐलान है।
देशभक्ति ,जनसेवा ,सचरित्रता कर्तब्य और अनुशासन का पाठ केवल चुनावी नारों या संगोष्ठियों तक ही सीमित क्यों है ? केवल गणतंत्र दिवस या स्वाधीनता दिवस पर ही हमें अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान की याद क्यों आ जाती है ? यदि पाकिस्तान को गैर इस्लामिक देश चीन मीठा लगता है तो भारत में क्या कमी है ? कहीं ऐंसा तो नहीं कि हमें भी चीन जैसी महान क्रांति की दरकार हो ? जब दुनिया के सर्वाधिक मुस्लिम भारत में रहते हैं तो क्या वजह है कि भारत को पाकिस्तान के मजहबी संकीर्णतावाद के नापाक हथियार से जूझना पड़ रहा है ? चीन ,अमेरिका और पाकिस्तान क्यों हमें वेवजह लगातार युद्ध की आग में उलझाये रखना चाहते हैं ?
श्रीराम तिवारी
वेशक भारत की अधिसंख्य अपढ़ -अशिक्षित जनता को ही नहीं बल्कि मजहबी उन्माद -धार्मिक अंधश्रद्धा , साम्प्रदायिकता और जातीयता के 'डोबरों ' में गोते लगाने वालों को भारत सुरक्षा विषयक विमर्श से कोई लेना देना नहीं है।किसी को चार बच्चे पैदा करने की फ़िक्र है ,किसी को मस्जिद की फ़िक्र है ,किसी को मंदिर की फ़िक्र है ,किसी को सत्ता में बने रहने की फ़िक्र है ,किसी को सत्ता पाने की फ़िक्र है तो किसी को अपना आर्थिक साम्राज्य सुरक्षित करने की फ़िक्र है। किसी को एफडीआई की फ़िक्र है। किसी को शारदा चिट फंड की फ़िक्र है ,किसी को अपना जनता परिवार बढ़ाने की फ़िक्र है। किसी को अमेरिका को साधने की फ़िक्र है , किसी को लव-जेहाद की फ़िक्र है। किसी को जल-जंगल -जमीन हड़पने की फ़िक्र है। वेशक कुछ मुठ्ठी भर ही होंगे जिन्हे मेहनतकश आवाम के हितों की ,किसानों की और देश के स्रवहारा वर्ग को शोषण मुक्त कराने की फ़िक्र के साथ-साथ अपने देश की हिफाजत की भी फ़िक्र होगी। इनमें कुछ ऐंसे भी होंगे जिन्हे विश्व सर्वहारा याने दुनिया के गरीबों की भी फ़िक्र होगी। इन मुठ्ठी भर चेतनशील लोगों की राजनीति की एरिना में फिलहाल तो स्थिति अनुकूल नहीं है। किन्तु जो अतीत के नास्ट्रेलजिया में अभिभूत हैं ,जिन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और राष्ट्रीय स्वाभिमान के नाम पर सत्ता हथयाई है वे 'शुक 'मौनक्यों हैं ?
गोस्वामी तुलसीदास जी का कथन है -
इमि कुपंथ पग देत खगेशा । रहे न तेज तनु बुधि बल लेशा।।
इसका भावार्थ यह है कि जब कोई व्यक्ति ,समाज या राष्ट्र गलत राह पर चलता है तो उसकी साँसे उखड़ने लगतीं हैं। बदहवासी में वह हिंसक और अमानवीय हो जाता है। 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि ' के भी यही लक्षण हैं। मेरा अनुभव है कि इस उत्तरआधुनिकता के दौर में भी गोस्वामी जी की यह सूक्ति काम कर रही है। 'हाथ कंगन को आरसी क्या ' आप भी मुलाहिजा फरमाएँ।
चूँकि भारत जैसे बहुलतावादी धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक राष्ट्र में मानव उत्थान की अनेकों संभावनाएं छिपी हुईं हैं।यहां अनेक मानवीय मूल्य सुरक्षित हैं। इसलिए भारत का शुद्ध साम्प्रदायिक पड़ोसी , मानसिक रूप से बीमार और झगड़ालू पड़ोसी पाकिस्तान सदैव इस तुकतान में लगा रहता है कि भारत को बर्बाद कैसे किया जाए ? भारत को प्राक्सी युद्ध की चपेट में कैसे व्यस्त रखा जाए ? पाकिस्तान में छुपे भारतीय भगोड़े अपराधी - दाऊद, पाकिस्तान की आस्तीन में पल रहे -हाफिज सईद और लखवी जैसे २६/११ के प्रमाणित अपराधी 'अल्लाह के वन्दे' कैसे हो सकते हैं ? क्या वास्तव में ये इस्लाम की सेवा करते हैं । दरसल ये मानवता के दुश्मन हैं। ये इस्लाम के नाम पर कलंक हैं। ये तो इस्लाम का ककहरा भी नहीं जानते।ये नाशुक्रे अहमक पाकिस्तानी आतंकी तो जेहाद के नाम का डंका पीटने वाले - अलकायदा ,आईएसआई या बोको हराम से भी गए बीते हैं।
ये जेहादी नहीं बल्कि विशुद्ध अपराधी हैं। ये अफ़ीमचियों, ड्रग स्मगलरों ,हथियारों के सौदागरों की दलाली किया करते हैं। ये तो किसी दकियानूसी समाज की तलछट से भी गए गुजरे हैं। ये भारत की नकली मुद्रा पाकिस्तान में छापकर बांग्ला देश ,म्यांमार नेपाल या हांगकांग के रास्ते भारत में खपाते हैं। इनके भारतीय एजेंट भी अधिकांस बिहार ,असम और बंगाल में ही पकडे जा रहे हैं। चूँकि भारत में शोषण उत्पीड़न और असमानता का बोलबाला है। चूँकि भारत में गरीबी -बेकारी -भुखमरी बरक़रार है इसलिये विभीषण ,जयचंद,मीरजाफर बनने को सैकड़ों तैयार हैं।
जनरल दलवीरसिंह सुहाग को यह भी मालूम होना चाहिए की महज कश्मीर ही हमारा सिरदर्द नहीं है। उन्हें और उनके जैसे जनरलों को यह भी जानना चाहिए कि हमें यह क्यों सुनना पड़ रहा है कि हम २०३० तक या २०५० तक चीन के बराबर होंगे या आगे होंगे ? हमें कितना मालूम है कि चीन की पॉलिसी और प्रोग्राम क्या हैं? चीन जैसा वैचारिक राष्ट्रवाद भले ही न सही लेकिन ईरान या इजरायल जैसा या क्यूबा -वियतनाम जैसी न्यूनतम राष्ट्रीय चेतना तो भारत के नागरिकों में अवश्य ही होनी चाहिए।
केवल हाथ में झाड़ू लेकर फोटो खिचाने से यह महानतम मकसद पूरा नहीं हो सकता। शासक यदि झूंठे और ढ़पोरशंखी हैं तो आवाम से क्या उम्मीद की जा सकती है ?साम्प्रदायिक और जातीयता के दुराग्रह यदि सत्ता की सीढ़ी बन जाएंगे तो लोकतान्त्रिक -धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद कहाँ से आएगा ? इन हालात में प्राक्सी वार या छद्मयुद्ध तो क्या आमने-सामने का युद्ध भी हम ठीक से लड़ पाएंगे।
जब तक हम वर्तमान नीतियां नहीं पलटते तब तक भारत का अपने अनचाहे शत्रुओं के हमलों से निपटना मुश्किल है। हमें जानना होगा कि छोटा सा अकेला क्यूबा ५० साल से लगातार अपनी सुरक्षा कैसे कर रहा है ? हमें जानना चाहिए कि अमेरिका और नाटो देशों ने क्या -क्या नहीं किया क्यूबा के साथ ? ह्में यह भी जानना होगा कि कैसे एक जीवंत क्यूबा आज भी सीना तानकर अमेरिका की नाक के सामने खड़ा है। जिन्हे मालूम है कि अतीत में वियतनाम को अमेरिका ने तो लगभग ध्वस्त ही कर डाला था। वे यह भी जानते होंगे कि वियतनाम की जनता ने कैसे जंग जीती और अमेरिका को छठी का दूध भी नसीब नहीं हुआ। शर्मनाक अवस्था में हारकर भाग खड़ा होना पड़ा। पाकिस्तान का छद्मयुद्ध सिर्फ कश्मीर तक ही सीमित नहीं है। वह भारत से लेकर बग़दाद तक और बीजिंग से लकेर वाशिंगटन तक छद्म रूप से व्याप्त है। भारत कब इतना सामर्थ्यवान होगा कि उसका कोई दुश्मन ही न रहे. कोई बुरी नजर से ही न देखे ?
पाकिस्तान की आईएसआई के निर्देश पर ये आतंकी गिरोह भारतीय अर्थ व्यवस्था को बर्बाद करने के मंसूबे साध रहे हैं। ये बदमाश न केवल हवाला कारोवारियों बल्कि बालीबुड में छिपे देशद्रोहियों के मार्फ़त कालेधन को सफ़ेद करने में जुटे हुए हैं। क्या वजह कि खान्स की ही 'पीके' जैसी फ़िल्में पाकिस्तान में बॉक्स आफिस पर सुपर हिट हो रहीं हैं ? क्या वजह है कि पाकिस्तान के सैन्य प्रतिष्ठानों को भारतीय गुप्त सूचनाएँ सहज ही उपलब्ध हैं ? कटट्रपंथियों को हथियार सप्लाई करने और कश्मीर में पाक प्रशिक्षित बर्बर आतंकियों की घुसपैठ कराने वालों की साजिशों के बारे में भारतीय ख़ुफ़िया तंत्र कितना जानता है ? खबर हैं कि विगत दिनों अरब सागर में जो पाकिस्तानी आतंकी फिदायीन नौकाओं का भारत की सीमा में अवैध प्रवेश हुआ उसकी जानकारी भी हमें अमेरिकी एजेंसियों ने ही दी है। तो हमारे 'रॉ ' हमारे गुप्तचर व्यूरो क्या घास छील रहे हैं। हमारे कर्णधार केवल हाथों में झाड़ू लेकर फोटो खिचाने में मशगूल हैं , उधर 'नापाक' तत्वों के मंसूबे परवान चढ़ रहे हैं। भारत में निरंतर नर संहार के निमित्त , सैकड़ों फिदायीन लगातार भेजे जा रहे हैं। जनरल साब ! हुजूर ये प्राक्सी वार नहीं खुल्ल्म खुल्ला जंग का ऐलान है।
देशभक्ति ,जनसेवा ,सचरित्रता कर्तब्य और अनुशासन का पाठ केवल चुनावी नारों या संगोष्ठियों तक ही सीमित क्यों है ? केवल गणतंत्र दिवस या स्वाधीनता दिवस पर ही हमें अपने राष्ट्रीय स्वाभिमान की याद क्यों आ जाती है ? यदि पाकिस्तान को गैर इस्लामिक देश चीन मीठा लगता है तो भारत में क्या कमी है ? कहीं ऐंसा तो नहीं कि हमें भी चीन जैसी महान क्रांति की दरकार हो ? जब दुनिया के सर्वाधिक मुस्लिम भारत में रहते हैं तो क्या वजह है कि भारत को पाकिस्तान के मजहबी संकीर्णतावाद के नापाक हथियार से जूझना पड़ रहा है ? चीन ,अमेरिका और पाकिस्तान क्यों हमें वेवजह लगातार युद्ध की आग में उलझाये रखना चाहते हैं ?
श्रीराम तिवारी
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