गुरुवार, 1 जनवरी 2015

भृष्टाचार की जड़ में बैठी दल्लाशाही भारत के लिए अब नाक़ाबिलेबर्दास्त हो चुकी है !




   हिंदी भाषा में -माध्यम  ,मध्यस्थ ,विचोलिया,सम्पर्कसूत्र,इत्यादि जितने भी त्रिपक्षीय  संबंधसूचक  शब्द हैं वे सब  फ़ारसी से उर्दू में आये - एक अकेले शब्द 'दलाल' के आगे मिमयाते से ध्वनित प्रतीत   होते  हैं। इस अकेले   खूँखार  'पैशाचिक' आयातित  फ़ारसी  शब्द 'दलाल' के सामने उसके समस्त समानार्थी   हिंदी शब्द बड़े ही कातरभाव से घिघयाते,किक्याते से उच्चरित होते लगते हैं। माध्यम ,मध्यस्थ ,विचोलिया या सम्पर्कसूत्र  के नाम से भारत के किसी बड़े शहर में तो क्या हिंदी क्षेत्र के किसी गाँव -गली -पुरवा ,टोला  का  नाम  भी  नहीं है। जबकि लुटेरों का कुख्यात  अड्डा होते हुए भी ,सटोरियों का चरागाह होते हुए भी - 'दलाल पथ '  नाम का रोड  भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में , बड़ी वैश्विक आर्थिक  ताकत के नाम से  महशूर  है।इस आलेख में इस  दलाल  नामक प्राणी के  रूप आकार  पर विस्तृत विमर्श और शोध किया गया है। गौर फरमाएं !

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                               सुधी जनों को सुविदित है कि  पुरानी फिल्मों,पुराने  हिंदी-उर्दू जूड़वा  समानांतर साहित्य में  यह 'दलाल ' शब्द  अधिकतर खलनायक  भूमिका  में या नकारात्मक केरेक्टर में ही प्रयुक्त किया जाता रहा है। भारत में हालाँकि जन्म से लेकर मरण तक - षोडश संस्कारों में यह 'मध्यस्थता  '  निभानेवाले  दलाल हर मौके पर  सक्रिय  रहता है। किन्तु बाजमरतबा आम आदमी के समक्ष उसकी  नकारात्मक छवि का कभी  बेजा प्रदर्शन नहीं होता ।  उसके बिना काम भी नहीं चलता। रामायण में दलाल याने  विभीषण , महाभारत में दलाल याने शकुनि ,बाइबिल में  दलाल याने यहूदा [जुडास] ,इस्लाम में दलाल याने यजीद ,१८५७ के गदर में दलाल याने मीरजाफर' स्वाधीनता  संग्राम में दलाल याने -मुस्लिम लीग और आरएसएस -इत्यादि पर दो राय  हो सकती है।  किन्तु इन पौराणिक एवं  ऐतिहासिक पात्रों जैसे  किरदार को  वर्तमान  वैश्विक पूँजीवाद के उदय ने एक नए परिवेश में  ढाल लिया   है। इस उत्तर आधुनिक दौर में ,इस नवउपनिवेशवादी दौर में ,इस अतिउन्नत सूचना संचार क्रांति के दौर में ,भूमंडलीकरण - उदारीकरण -निजीकरण -बाजारीकरण के भयानक  प्रतिष्पर्धी  दौर में,  वैश्विक पूँजीवाद  ने इस  'मध्यस्थ' को  याने दलाल को अब पूरा 'दल्ला' ही बना डाला है।

                                         आजादी के फ़ौरन बाद   सरकारी तंत्र में छुपे  गद्दार- अफसर ,नेता, मंत्री,  बाबू ,संत्री  और  नेहरूयुग के  मोरारजी जैसे नेता  मंत्री भी सीआईए के दलाल  बनने को आतुर होने लगे । लोकशाही के दबाव और मीडिया -प्रेस के प्रभाव से वे  ज्यादा नहीं  टिक सके।   विकिलीक्स के खुलासों से यह तो पक्का हो गया कि  अमेरिका ,इंग्लैंड ,पाकिस्तान  जैसे 'अमित्र' राष्ट्रों  को भारत  की गोपनीय सूचनाएं और  ख़ुफ़िया जानकारियाँ  कौन -कौन ,कब-कब देता रहा है।आर्थिक उदारीकरण और भूमंडलीकरण ने भारत  को चारों ओर  से मुसीबत में डाला है। भारत शायद दुनिया का सबसे दुर्भाग्यशाली राष्ट्र है जहाँ देशभक्ति के गाने  -तराने तो खूब गाये जाते हैं. किन्तु  परम्परा  यही रही है कि  खाएंगे यहाँ और बजायेंगे सऊदी अरब ईरान ,पाकिस्तान , चीन तथा  अमेरिका की।   वैसे तो  गुलामी  के आगाज से ही यह   परम्परा  चली आ रही है किन्तु उससे कई शताब्दी  पूर्व  से ही  भारतीय  व्यक्ति ,समाज  न केवल  बिकाऊ  रहा है बल्कि जापान,जर्मनी या चीन जैसे राष्ट्रों की देशभक्त जनता के सापेक्ष तो ,महास्वार्थी ,अनुशासनविहीन  और 'दलाल' बनने की तमन्ना रखने वाला ही  रह  है। देशद्रोह  की मानसिकता से रचे -पचे व्यक्तियों और समाजों का भारत में  सदा से ही बाहुल्य रहा है।   क्यों और कैसे यह मेरे आलेख का विषय नहीं है। अस्तु !
                       राजीव गांधी ,नर्सिम्हाराव ,अटलजी और मनमोहनसिंह के  आर्थिक सुधारवाद  के आगमन उपरान्त  देश को 'दलालों' की मधुमख्खियों से जूझना पड़ा। हर्षद मेहता ,हाजी मस्तान, रतन खत्री,  धीरूभाई अम्बानी,  सुब्रतराय सहारा ,प्रमोद महाजन ,सत्यम राजू ,रिजवान बंधू,घोड़ेवाला,उंटवाला,अफीमवाला ,चरसवाला ,दारूवाला  ही दलाली खाने में मशहूर नहीं रहे। खास तौर  से बिकाऊ पत्रकार , क्रिकेटर्स और हिंदी फिल्मों के वे हीरो -हीरोइनें जो अबुधावी ,दुबई या मुंबई  में अपने कपडे उतारने को  हर समय आतुर रहा करते हैं -वे भी 'दलाल' ही हुआ करते हैं।  हथियार  खरीदी में नाम  कमाने वाले दलाल- अदनान खगोसी और'इटली'  वाले रिश्तेदारों को   कोई कैसे  भूल सकता है  ? जिन्होंने  'बोफोर्स कांड' में  वेचारे राजीव गांधी की नैया ही डूबा दी थी। अनेक महा पुरुषों के नाम इस 'दलाल सूची ' हैं ,जिन्होंने बहुराष्ट्रीय निगमों की मध्यस्थता [दलाली] में नेकनामी कमाई  है। विकिलीक्स के खुलासों से ही दुनिया को  मालूम पड़ा की  किसी 'दल्ले' की हैसियत  क्या  होती  है ?
              टूजी  -थ्रीजी ,कोयलाजी ,खननजी, रेतजी ,रेलजी ,खेलजी  तेलजी से लेकर नीरा रडियाजी ,बरखा दत्त जी ,वीर संघवी जी ,सुधीर चौधरी जी और न  जाने-कौन-कौन से  मीडिया जी ,नेताजी  जी  अम्बानी जी ,अडानी जी ,टाटाजी  ,जिंदलजी ,बिरलाजी,सुनील मित्तल  भारती  जी  ने 'इस मध्यस्थ [दलाल] शब्द को गौरवान्वित किया है कि गणना करना मुश्किल है।  देश की जनता ने यूपीए सरकार और उसके  नेताओं को सत्ता से शायद  इसीलिये  ही  उखाड़ फेंका है कि  भृष्टाचार  की जड़ में बैठी  दल्लाशाही  नाक़ाबिलेबर्दास्त  हो गई है। लेकिन यह 'दल्ला शाही ' मोदीराज में भी यथावत बरकरार है।  सुना है कि  भाजपा  की सरकार 'दल्लों' को मान्यता देने पर  गंभीरता से  विचार कर रही  है।
                           विश्वस्त सूत्रों की सूचना है कि भारत की सेनाओं के  पास मध्यम  श्रेणी के परम्परागत आग्नेय हथियारों और गोला बारूद  की उचित आपूर्ति नहीं हो पा रही है।  जरुरी हथियारों की  बेहद कमी और गुणवत्ता दोनों  को लेकर  रक्षा क्षेत्र में असंतोष है। कारगिल युद्ध के दौरान  या  मुंबई में २६/११ के दौरान रेस्क्यू आपरेशन के दौरान  जो जानलेवा खामियाँ  उजागर हुईं थीं  जिनकी बदौलत सुरक्षा  बलों  को  कई दफा प्राण गंवाने पड़े ,शहादत देनी पड़ी  उन खामियों का अभी तक कोई  उचित निदान नहीं हुआ है। दलाली खाने  वाले तो जिन्दा हैं किन्तु देश असुरक्षित है।  दलालों के  चक्कर में  सुरक्षा  बलों  को न केवल  घटिया बख्तरबंद  ,बुलेट प्रूफ जैकेट ,घटिया असलाह ,घटिया  गोला  बारूद और घटिया  संचार सिस्टम  उपलब्ध कराये जातेरहे  हैं. बल्कि सेनाओं में और रक्षा मंत्रालय में उच्च स्तर पर भृष्टाचार भी भारत की सुरक्षा को खोखला बना रहा है। इन्ही कारणों से अनेक भारतीय जवानों को सीमाओं पर शहादत देनी पड़  रही है। उधर पाकिस्तानी-  तालीवानी   आतंकवादियों  और  फौजों  को अमेरिका  के आधुनिकतम हथियार  मिल रहे हैं।  ओपेक देशों से  साउदी अरब से मुफ्त में पेट्रोल मिल रहा है।  वहाँ   भी 'दलाल' होते हैं किन्तु वे अपने देश से गद्दारी नहीं करते।
                दुश्मन  राष्ट्रों के आक्रमण का प्रतिवाद करने में उनसे  परोक्ष लड़ाई लड़ने में भारतीय जबानों को भयानक कठिनाई दरपेश होती  रही है। उधर चीनी सेनाओं के  सापेक्ष भी भारतीय  फौजियों के पास बहुत कम संसाधन और बहुत  कम  मारक  क्षमता वाले निम्न स्तरीय  हथियार ही हैं।इस विकट समस्या का ज्ञान  न   केवल भारत सरकार को है, बल्कि ' शत्रुपक्ष' को भी है ,इसलिए  पडोसी राष्ट्रों द्वारा लड़े जा रहे छद्मयुद्ध में भारत  के जवानों को लगातार शहादत देनी होती है। या फिर अपनी सीमाओं  को छोड़कर  पीछे हटना  पड़ता है।
                                      खुश खबर है कि इस गंभीर समस्या को  विगत सप्ताह  भाजपा संसदीय बोर्ड  की बैठक में  उठाया गया है। कैविनेट मीटिंग में भी  यह 'दलाली' का मुद्दा उठाया गया है।  इस मुद्दे की जड़ में 'दलालों '' की भूमिका  को रेखांकित पाया गया। सुना है कि इस विशद  चर्चा से कुछ  बड़े नेताओं को तो  पसीना आ गया। प्रधानमंत्री  को बताया गया  है  कि  भारत को बिना 'दलालों ' के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोई  भी  निर्माता या बिक्रेता  हथियार देने को  तैयार नहीं है।  तातपर्य ये की बिना 'ऊपर  लिए -दिए'  यह महत्वपूर्ण  काम नहीं होगा !  यह अत्यंत शर्मनाक स्थति है कि इधर  भारत के प्रधानमंत्री ने दुनिया के कार्पोरेट्स को   भारत में रेडकारपेट बिछा दी है ,'रेडटेप '  खोल दिए हैं  ,किन्तु उधर  बिना दलालों  की चिरौरी किये  अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कोई  हमें घास नहीं डाल  रहा है।
                            इधर  स्थानीय  'दल्लों'  को घूस दिए  बिना भी  किसी का कोई काम नहीं हो रहा है। न केवल पारम्परिक  हथियार बल्कि संबर्धित यूरेनियम ,अटॉमिक रिएक्टर्स ,इसरो के लिए वांछित संसाधन , एफडीआई ,पीपीपी इत्यादि सभी जगह  मोदी सरकार का  लगता है अभी तो चक्का  ही जाम है। केवल कोरी वार्ताओं और  समझौतों  ,बड़बोले उपालम्भों  के  अलावा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय  परिदृश्य में भारत के हाथ अभी तक कुछ भी नहीं आया  है।कालाधन जहाँ था वहीँ है। दाऊद जहाँ था वहीँ है। धारा -३७० जहाँ थी वहीँ है। राम लला जहाँ थे [टाट में ] वहीँ हैं ,चीन जहाँ था वहीँ [घुसपैठ] वहीँ है ,पाकिस्तान की भारत के खिलाफ साजिशें और  सीमाओं पर अनावश्यक  गोलाबारी यथावत है ,गरीबी यथावत है ,महँगाई केवल अमीरों के लिए घटी  है। नक्सलवाद में कहीं भी कोई कमी  नहीं आई । साम्प्रदायिकता अवश्य  दोनों छोर पर परवान चढ़ रही है।  मंत्रियों ,सांसदों ,अफसरों  और 'दलालों'  के  हर महीने बढ़ते  किरायेखर्चों पर देश की जनता  के गाढ़े  पसीने की कमाई लगातार लुटाई  जा रही है। देश की आवाम अब डॉ मनमोहनसिंह  की नहीं  मोदी की नीतियों पर सवाल  करने  करने लगी है। अब तो ' संघी भाई ' भी दबी जुबान से कहने को मजबूर हो गए हैं कि कांग्रेसी राज और मोदी राज में कोई नतर नहीं।
                                                डॉ मनमोहनसिंह की यूपीए सरकार ने जो विदेशी मुद्रा भण्डार जमा किया था  या जो  कुछ  भी पूर्व नियोजित किया था उसी की फसल इन दिनों  काटी जा रही है।  कांग्रेस अपनी सत्तात्मक भूमिका में असफल रही। कांग्रेस का  विपक्ष की भूमिका में  भी  बुरा हाल है।  नेता विपक्ष लायक अौकात  भी नहीं बची।  मोदी सरकार को विगत ६ माह  में एक कील भी अनतर्राष्ट्रीय बाजार से उपलब्ध नहीं हुई है।  किन्तु प्रचार ये हो रहा है की उन्होंने 'मंगलयान' में सफलता पाई। उन्होंने पनडुब्बी खरीदी। उन्होंने बहुउद्देशीय अंतरिक्ष उपग्रह स्थापित करवाये।  मामूली आदमी भी जानता है ये उपलब्धियां  कई सालों की तैयारी के बाद संभव हुई हैं।  इसमें मोदी सरकार का  रत्ती भर योग नहीं है। उलटे मोदी जी के आगमन पर विकाश के रथ का पहिया जाम हो  गया है। वेशक दुष्प्रचार में ये सरकार बेजोड़ है। मोदी सरकार सर्वत्र असफल हो रही है।
                  हो सकता है कि  इस असफलता में  मोदी  जी के उस  आप्त वाक्य  का कोई असर हो कि 'न खाऊंगा न खाने दूंगा '  !   महत्वपूर्ण सवाल यह है कि  भारतीय सेनाओं को अंतरार्ष्ट्रीय बाजार  से बिना दलाली दिए उच्च गुणवत्ता के आधुनिकतम  हथियार कब मिलेंगे ? क्या मोदीजी की भीष्म प्रतिज्ञा सफल होगी कि  ' खाऊंगा और न खाने दूंगा '? यदि  बिना दलाल के भारत ने इटली ,जापान,जर्मनी ,फ़्रांस ,अमेरिका और इंग्लैंड से एक सुई भी खरीद कर दिखा दी तो हम   भी मान जाएंगे   मोदी की बात में कुछ तो बजन है  ! वरना अभी तक की घटनाओं से तो यही लगता है कि  डॉ मनमोहनसिंह शायद  इन से कुछ अच्छे ही  थे।  वेशक वे मोदी जी से एक  ही चीज में फिसड्डी थे कि  'कमबोलते थे'! जब भी बोलते थे सच बोलते थे !
                       यदि मोदी सरकार दलालों के आगे नतमस्तक होने  हो तो वह याद रखे कि  ये  अंतर्राष्ट्रीय दलाल  हैं जो  दुनिया में  दो बड़ी लड़ाइयां करवा  चुके हैं। शीतयुध्द  की जाजम पर  सोवियत संघ को नीचा दिखाने  के लिए , द्वतीय विश्व युद्ध के  उपरान्त विश्व मानचित्र के  एक तिहाई   हिस्से पर लहरा रहे सर्वहारा क्रांतियों के  'लाल झंडों 'को झुकाने के लिए ये 'दलाल' ही जिम्मेदार है।  गुलाम राष्ट्रों में उपनिवेशवादी -साम्राज्य्वाद की लूट को जारी रखने के लिए , मेहनतकशों की वकालत  करने वाली ,शोषण मुक्त - इंसानियत की  पैरोकार -साम्यवादी  विचारधारा को बदनाम करने के लिए, ये सत्ता के दलाल ही जिम्मेदार रहे हैं। क्रांतियों की भड़कती ज्वाला से  उत्पन्न भय के भूत को भगाने  के लिए , पश्चिमी  जगत के पूँजीवादी डरपोंक लुटेरों ने धार्मिक पाखंडवाद बनाम   'सभ्यताओं  का  संघर्ष ' के 'नए दलाल' पैदा किये। अमेरिका नेतत्व में नाटो ने  भारत ,चीन  सोवियत संघ तथा समूचे दक्षिण एशिया  को 'नाथने ' के   लिए पाकिस्तान रुपी 'दलाल' को खूब खिलाया -पिलाया है।  न  केवल  पाकिस्तान बल्कि अफगानिस्तान में तालिवान ,इराक,ईरान  सीरिया में आईएसआई जैसी  ताकतों को  जो मुफ्त में अमेरिकी गोला बारूद दिए गए ,वे दलाली नहीं तो और क्या हैं ?  
     
                         श्रीराम तिवारी

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