इन दिनों कोई 'पी के' नाम की फिल्म आई है। मुझे अभी तक इस फिल्म को देखने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है । वैसे भी में केवल 'कला' फिल्मे ही देखना पसंद करता हूँ। बीस -पच्चीस साल से किसी सिनेमाँ घर गया ही नहीं । किन्तु मनोरंजन चेलंस पर कभी -कभार कोई आधी -अधूरी फिल्म अवश्य देख लिया करता हूँ । इस फिल्म के लगने के शुरूआती हफ्ते में तो केवल उसके मुनाफा कमाने के रिकार्ड और सिनेमा घरों में उमड़ी दर्शकों की भारी भीड़ ही चर्चा का विषय रही। किन्तु अब उसकी समीक्षा के बरक्स दूसरा पहलु भी धीरे -धीरे सामने आने लगा है। मेरे प्रगतिशील मित्र और प्रबुद्ध पाठक गण कह सकते हैं इससे हमें क्या लेना-देना। हम तो धर्मनिरपेक्ष हैं। सभी धर्म -मजहब को समान आदर देते हैं। सभी की बुराइओं का समान रूप से विरोध भी करते हैं। मेरा निवेदन ये है कि वैज्ञानिक समझ और प्रगतिशील चेतना के निहतार्थ यह भी जरुरी है कि जान आंदोलन तभी खड़ा हो सकता है जब देश की बहु संख्य 'धर्मप्राण' जनता आप से जुड़े। चूँकि यह बहुसंख्य जनता की आस्था का सवाल है और इसको नजर अंदाज करने के बजाय उनके समक्ष दरपेश चुनौतियों से 'दो -चार' होना ही उचित कदम होगा।
ख्यातनाम जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री स्वरूपानंद जी ने इस फिल्म 'पी के ' की आलोचना के माध्यम से एक बहुत ही सटीक और रेखांकनीय प्रासंगिक प्रश्न उठाया है। कुछ अन्य हिंदूवादी भी इस फिल्म में उल्लेखित कुछ आपत्तियों का विरोध कर रहे हैं। इन सभी का यह पक्ष है कि चूँकि हिन्दू धर्म बहुत उदार और सहिष्णु है इसलिए उसके नगण्य नकारात्मक पक्ष को शिद्द्त से उघारा जाता है। जब कभी धर्म -मजहब में व्याप्त कुरीतियों या आडंबरों की आलोचना को मनोरंजनीय बनाया जाता है या किसी फिल्म की विषय वस्तू बनाया जाता है. तो 'हिन्दू धर्म' को ही एक सोची समझी चाल के अनुरूप 'लक्षित' याने टॉरगेट किया जाता है। स्वरूपानंद जी का ये भी मानना है कि गैर हिन्दू - मजहबों के सापेक्ष हिन्दू धर्मावलम्बी बहुत क्षमाशील और विनम्र होते हैं। इसलिए वे नितांत समझौतावादी और पलायनवादी हैं। इसी उदारता का बेजा फायदा ये फिल्म वाले आये दिन उठाया करते हैं। किन्तु देश में हिंदुत्व वाद वालों की सरकार है और सत्ता में जो जमे हुए हैं वे अब 'हिंदुत्व' को रस्ते में पड़ी कुतिया समझकर लतीया रहे हैं। हिन्दुओं को समझना होगा कि भाजपा और संघ परिवार ने 'हिंदुत्व' को चुनाव में केश' कराने का जरिया बाना लिया है। शासक वर्ग साम्प्रदायिकता को उभारकर असल मुद्दे से ध्यान बँटाने में मश्गूल है। इनके राज में पूँजीपतियों की लूट और मुनाफाखोरी भयंकर बढ़ रही है। मेहनतकशों -गरीब किसानों के श्रम को सस्ते में लूटने की छूट देशी -विदेशी इजारेदाराओं को निर्बाध उपलब्ध है। संगठित संघर्ष की राह में धर्म-मजहब के फंडे सृजित किये जा रहे हैं। 'पी के 'फिल्म के बहाने एक नया फंडा फिर हाजिर है। शंकराचार्य स्वरूपानंद जी ने फिल्म के बहाने 'नकली हिन्दुत्ववादियों' को ललकारा है। उन्होंने हिन्दुओं के सदाचार,शील ,उदारता ,सहिष्णुता और सौजन्यता का जो बखान किया है उसका वही विरोध कर सकता है जिसमे ये 'तत्व' मौजूद नहीं हैं। चूंकि मैं तो इन मानवीय और नैतिक मूल्यों की बहुत कदर करता हूँ इसलिए त्वरित प्रतिक्रया के लिए तत्पर हूँ।
मेरी दिक्कत ये है की जगदुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद जी के इन शब्दों का चाहते हुए भी विरोध नहीं कर पा रहा हूँ। क्योंकि मैं उपरोक्त मानवीय गुणों को [यदि वे किसी धर्म -मजहब में हैं तो !.] मानवता के पक्ष में सकारात्मक मानता हूँ। दूसरी ओर मैं शंकराचर्य जी के और हिंदूवादियों के इस नकारात्मक हस्तक्षेप का भी विरोध करना चाहता हूँ। क्योंकि उनका या किसी और साम्प्रदायिक जमात का इस तरह से - फिल्म ,मनोरंजन,कला ,साहित्य या संगीत में हस्तक्षेप ना-काबिले -बर्दास्त है। बहुत सम्भव है कि जिसमें ये गुण- शील,सौजन्यता और क्षमाशीलता न हो वे 'पी के ' जैसी फिल्म से छुइ -मुई हो जाएँ। जिन धर्मों या मजहबों में यदि विनम्रता ,क्षमाशीलता या सहिष्णुता न हो उनका अस्तित्व तो अवश्य ही खतरे ,में होगा। जो धर्म -मजहब या पंथ - आडंबर,पाखंड ,शोषण ,उत्पीड़न ,आतंक , असत्य या झूँठ की नीव पर टिके होंगे उनको 'पी के' क्या 'बिना पी के ' भी निपटाया जा सकता है।
मैंने बचपन से ही अनुभव किया है और अधिकांस फिल्मों में देखा भी है कि मुल्ला -मौलवी या फादर नन तो बहुत पाक साफ़ और देवदूत जैसे दिखाए जाते रहे हैं। प्रायः प्रगतिशीलता या आधुनकिता के बहाने खास तौर से 'हिन्दू मूल्यों ' का ही उपहास किया गया है। कहीं -कहीं अन्य मजहबों या धर्मों के गुंडों -मवालियों को -अंडर वर्ल्ड के बदमाशों को न केवल 'महानायक' बनाया गया बल्कि हिन्दू हीरोइनों को दुबई,यूएई ,अमीरात में बलात ले जाकर अंकशायनी भी बना लिया गया। ऐंसा नहीं है कि समाज और राष्ट्र को यह सब मालूम नहीं है किन्तु बर्र के छत्ते में हाथ कोई नहीं डालना चाहता। शंकराचार्य ने डाला है तो शायद सही ही किया है उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा? अधिकांस फिल्मों में पंडित ,ब्राह्मण, ठाकुर ,बनिया और सनातनी हिन्दू ही बहुत बदमाश बताये जाते हैं । किसी सलमान खान ,किसी शाहरुख़ खान ,किंसी इमरान खान ,किसी अमीर खान , किसी फरहा खान ,किसी सरोज खान ,किसी पार्वती खान ,किसी गौरी खान ,किसी मलाइका खान ,किसी करीना खान से पूंछा जाना चाहिए कि उन्होंने किसी ऐंसी फिल्म में काम क्यों नहीं किया जो हाजी मस्तान ,अबु सालेम ,हाफिज सईद,दाऊद खानदान जैसे [कु]पात्रों पर फिल्माई गई हो ? क्या यारी - रिस्तेदारी -कारोबारी का यह शंकास्पद संजाल नहीं है ? क्या २६/११ ,क्या ९/११ क्या मुंबई बमकांड हर जगह चुप्पी रखने वालों से यह जरूर पूंछा जाए कि आप को किसने अधिकार दिया या आपको क्या जरुरत आन पड़ी कि बहुसंख्यक हिन्दुओं को ही सुधारने का बीड़ा उठायें ?
मनोजकुमार का सवाल लाजिमी है कि क्या 'खान्स ' ही शेष बचे हैं जो हिन्दुओं को ये समझाये कि उनका धर्म कैसा हो ? क्या वे दाऊद ,ओसामा बिन लादेन या आईएस आई ,हाफिज सईद इंडियन मुजहदीन को भी कुछ समझाने का माद्दा रखते हैं ? क्या वे इन पर भी 'पी के ' जैसी ही फिल्म बनायँगे ? सब जानते हैं कि आप नहीं बनाएंगे . क्योंकि आपको मालूम है कि आप मार दिए जाएंगे। चूँकि हिन्दू धर्म पर धंधा करना आसान है। यहाँ कोई उग्र विरोध नहीं यहाँ तो 'पी के ' के समर्थन में लाल कृष्ण आडवाणी जी भी फौरन हाजिर हैं। यहाँ तो हिंदुत्व का दिग्विजयी अश्वमेध विजेता भी 'खांस' का फेंन है। तभी तो जिसे जेल में होना चाहिए उस सलमान के साथ मोदी जी पतंग उड़ाने में गर्व महसूस करते हैं।
क्या ऐंसे हिंदूवादियों से स्वरूपानंद जी जैसे शुद्ध हिंदूवादी ज्यादा ईमानदार नहीं हैं ? कम से कम वे हिंदुत्व की राजनीति तो नहीं करते ! कम से कम वे 'मुँह देखी मख्खी नहीं निगलते' . हिंदुत्व के बारे में स्वरूपानंद जी से ज्यादा न तो ये सत्तानशीं नेता जानते हैं और न ही 'पी के फिल्म का निर्माण करने जानते हैं। वेशक यदि स्व असगर अली इंजीनियर कहते ,स्व उस्ताद बिस्मिल्ला खां कहते ,अमीर खुसरो कहते ,तो उनकी बात हिन्दू जरूर मानते। अभी भी जावेद अख्तर कहें , उस्ताद अमजद अली खां साहिब कहें या कोई प्रगतिशील जनवादी धर्मनिरपेक्ष विद्वान सुझाव दे कि हिन्दुओं को फलाँ चीज से जुदा रहना चाहिए तो शायद हिन्दू उनकी बात जरूर सुनेंगे। किन्तु अपने स्वार्थ या धंधे के लिए केवल 'हिन्दू धर्म' को लक्षित करना ,लज्जित करना ठीक बात नहीं है। चूँकि हिन्दू स्वभाव से ही क्षमाशील है ,उदार है ,स्वभावतः धर्मनिरपेक्ष है, इसलिए वह दिल से 'पी 'के देख रहा है। लेकिन शंकराचार्य की बात में भी दम है उसे नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए !
श्रीराम तिवारी
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