संसद में कालधन,धर्मांतरण और रेप की घटनाओं पर वामपंथी सांसदों की विद्व्त्ता पूर्ण तार्किक - तकरीरें, मुलायमसिंह की पैंतरेबाजी , ममता गैंग की हुल्लड़बाजी , शरद यादव , रामगोपाल यादव की यथार्थ युक्तियाँ , मायावती का लिखित स्यापा और सत्तापक्ष के जड़मति मंत्रियों-नेताओं की क्षमा याचना से देश की आवाम को लगता है कोई खास लेना देना नहीं है। विपक्ष की इतनी मशक्क़त के वावजूद कोई आदमजात तो क्या एक अदद 'कुत्ते का पिल्ला ' भी सड़कों पर उनके समर्थन में अभी तक नहीं उतरा! इसके विपरीत सत्ता के शीर्ष पर विराजित अहंकारी ढ़पोरशंखी नेताओं को यत्र-तत्र-सर्वत्र कन्धों पर बिठाया जा रहा है। उन्हें चुनावी जीत की खबरें एडवांस में मिल रहीं हैं। न केवल पाखंडी बाबा बल्कि पूँजीखोर लुटेरे भी उनके इस सत्ता हस्तांतरण के अश्वमेध का राष्ट्रव्यापी अभियान में आहुति दे रहे हैं। न केवल वर्चुअल इमेज के स्तर पर ,न केवल महँगाई कम होने के झूंठे प्रोपेगेंडा पर , न केवल असफलतों के अम्बार में चमकती आशाओं पर , हर जगह देश की अधिसंख्य जनता का सहयोग ,समर्थन और समर्पण केवल और केवल मोदी के ही पक्ष में जारी है। इसकी कई वजहें गिनाई जा सकती हैं किन्तु खास वजह एक ही है। वो है भारतीय विपक्ष का लगातार हर कदम पर गलत स्टेण्ड लेना। जहाँ मोदी लगातार विकाश,सुशासन ,निवेश, योजनाएं और भारत गौरव गान का वितण्डावादद बाँट रहे हैं ,चुनावी परचम लेकर झारखंड से लेकर कश्मीर की घाटी तक विजय अभियान में जुटे हैं , वहीँ विपक्ष न केवल अपने विनाश का मर्सिया लिख रहा है बल्कि मोदी को १५ साल तक केंद्र की सत्ता में डटे रहने का इंतजाम कर रहा है। मेरा यह अनुमान काश गलत साबित हो ! कि भारतीय विपक्ष हारकिरी की ओर अग्रसर है !
कहीं ऐंसा तो नहीं कि हिंदुत्ववादियों की चौतरफा हुड़दंग से पीड़ित होकर भारतीय विपक्ष लकवाग्रस्त होने जा रहा हो ? अभी तक तो यही सुना गया है कि 'पैसा -पैसे को खींचता है ' याने अमीर स्वतः ही और ज्यादा अमीर होता चला जाता है । गरीब और ज्यादा गरीब होता चला जाता है। जो सत्ता में आता है उसका पराभव या पतन भी ततकाल शुरू हो जाता है। किन्तु मोदी सरकार की तथाकथित अल्पकालिक 'ज्योति' के 'अटल ज्योति' में रूपांतरित होने से लगता है कि ये सारे सिद्धांत अब कालातीत होने जा रहे हैं। आइन्दा एक नया प्रमेय या सिद्धांत बनाया जा सकता है कि 'महाभृष्ट पूँजीवादी भीड़तंत्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि शक्तिशाली सत्ता पक्ष का नेता नरेंद्र मोदी जैसा आत्मविश्वाशी और चतुर हो तो वह 'वानर राज सुग़ीव'की तरह अपने प्रतिदव्न्दी की ही नहीं बल्कि समस्त विपक्ष की भी शक्ति शोख कर और ज्यादा बलवान हो सकता है। वशर्ते उनके सामने सुग़ीव की तरह भीरु और परावलम्बी -इस दौर के जैसा -निहायत ही कमजोर और लक्ष्यहीन विपक्ष हो !धर्म निरपेक्ष राष्ट्र राज्य में वैचारिक और मानसिक रूप से सदैव बहुसंख्यक वर्ग या हिन्दू समाज के सापेक्ष अल्पसंख्यक वर्ग के ही हितों के लिए आवाज उठाना अब एक रस्म हो गई है। दमित-शोषित और कमजोर के पक्ष में खड़ा होना न्याय संगत है किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि पहाड़ से टकराकर अपने आप को खत्म कर दो ! बल्कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत' . लगातार हिंदुत्व विरोध की इस रौ में बहते जाने से आइन्दा न केवल अल्पसंख्यक ,न केवल कमजोरों बल्कि शोषितों के पक्ष में आवाज उठाने के काबिल रह जाना भी संभव नहीं है। माना की भारतीय लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता ब्रह्माश्त्र है। समाजवाद 'इन्द्रबज्र ' जैसा अश्त्र है । किन्तु क्या इन अश्त्रों को आगरा ,अलीगढ या अन्य जगहों पर हो रहे तथाकथित 'घर वापिसी हवन कुण्ड ' में ही स्वाहा कर दोगे ?आगामी महांसंगाम में किस शस्त्र से लड़ोगे ? क्या लड़ने के काबिल भी रहोगे ? वेशक किसी को जबरन हिन्दू बनाना गलत है। किन्तु तब ये भी तो मानना पड़ेगा कि जबरन मुसलमान बनाना भी गलत है। तब किसी को जबरन ईसाई बनाना भी गलत कहना होगा । आरक्षण का प्रलोभन , सामाजिक उत्थान के प्रलोभन तथा दलित उद्धार के प्रलोभन देकर जो लाखों की संख्या में आदिवासी या दलित बौद्ध बनाये गए हैं उसे क्या कहा जाएगा ? चूँकि संघ और उसके अनुषंगी हिंदुत्वादियों ने इन सवालों को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़कर चुनावों के मौके पर उठाया है। चूँकि जब पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और संकीर्णता प्रेरित अलगाववाद ने भारत के एकता को चुनौती पेश की है। ऐसे नाजुक दौर में विपक्ष अभी भी सिद्धांतों की मरी हुई बंदरिया चिपकाये हुए नाहक ज्ञान बघार रहा है। चूँकि सत्ता में रहकर कांग्रेस ने देश को खोखला कर दिया था। चूँकि देश में जिम्मेदार विपक्ष का अभाव है इसलिए न केवल ' संघनिष्ठ 'हिन्दू बल्कि धर्मनिरपेक्ष हिन्दू भी मोदी के हाथों में भारत को सुरक्षित देख रहा है । तीसरे विकल्प या वाम मोर्चे के पराभव के लिए मोदी या भाजपा जिम्मेदार नहीं है। बल्कि कांग्रेस , जयललिता,ममता,मुलायम, नीतीश, नवीन लालू ,मायावती जैसे क्षेत्रीय नेता सर्वाधिक जिम्मेदार हैं।
विपक्ष को स्मरण रखना चाहिए कि जिन मुठ्ठी भर दिग्भर्मित धर्मांतरण करने वालों को वह कसूरवार और धर्मपरिवर्तन करने वालों को वेगुनाह मान रहा है, तो वह उन पीड़ितों के बीच जाकर असलियत का पता लगाये न ! केवल 'पल में तोला पल में माशा ' हो जाने वाले 'लम्पट सर्वहारा' की किसी ततकालिक अभिव्यक्ति पर या मीडिया के एक खास हिस्से की अनुचित बात का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए। केवल अखवार की खबर से संसद का कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। जब - हिन्दू जागरण वालों ने उनसे कहा कि 'आप तो हमारे वाले हो जी ! वापिस आ जाओ ! हम सब प्रकार से आपकी मदद करेंगे ' तो ये सौ-पचास' आफत के मारे उनके साथ हो लिए। फोटो भी खिचवा लिए। जब इस्लामिक उलेमाओं ने कहा कि ये तो 'कुफ्र' है। खुदा को -अल्लाहः को क्या जबाब दोगे ? तो उनके साथ हो लिए। मुसीबत के मारे- बेहद डरे हुए ये निर्धन 'विधर्मी' इस धर्मान्धता के खेल का मोहरा बना दिए गए हैं। इस खेल में जीत किसी की भी हो किन्तु हारना' इन्ही को है। जो 'धर्म परिवर्तन' की बिशात के मोहरे हैं। वर्तमान भारतीय विपक्ष को इस साम्प्रदायिक ता के खेल में केवल हास्यापद हार से ही गुजरना पड़ेगा.
यह सर्वज्ञात है कि बंगाल में ३५ साल तक वाम मोर्चे ने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए , मजदूरों- किसानों की रक्षा के लिए न केवल देशी- विदेशी मुनाफाखोरों बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शैतानों से दुश्मनी भी दुश्मनी मोल ली। नतीजा क्या मिला ? सम्पूर्ण अल्पसंख्यक वर्ग ने उस ममता बनर्जी को अपना वोट थोक में भरपल्ले से दिया जो किसी की भी हितेषी नहीं है। ममता बनर्जी तो देश के प्रति भी वफादार नहीं है वो अल्पसंख्यकों की क्या खाक हितेषी होगी ? लेकिन ममता झूंठ-मूंठ का नाटक कर संघ परिवार का विरोध करने का स्वांग रच रही है। यह बात क्या बंगाल के अल्पसंख्यकों को नहीं दिख रही ? अब हम कितना ही जोर से और जोश से कहते रहें कि जनता के सवालों को लेकर संघर्ष करो ! किन्तु साम्प्रदायिक उन्माद और पड़ोस की घटनाओं ने भारत की जनता को मजबूर कर दिया है कि नरेंद्र मोदी को सुर्खरू होने दिया जाए। हम कहते हैं कि अल्पसंख्यकों की रक्षा करो ! हम कहते हैं कि वर्तमान पूँजीवादी नीतियों को पलट दो ! हम कहते हैं कि महँगाई बढ़ रही है !,हम कहते हैं कि भृष्टाचार बढ़ रहा है ! हम कहते हैं कि कालेधन पर चर्चा करो ! लेकिन जनता इन सवालों को अनसुना कर वो सुनना चाहती है जो मोदीजी कह रहे हैं ! ऊपर से तुर्रा ये कि बचा खुचा विपक्ष केवल नकारात्मक राजनीति की भेंट चढ़ता जा रहा है।
विपक्ष की कूपमंडूकता के कारण उत्तर प्रदेश ,बिहार और बंगाल में भी आइन्दा भाजपा को ही अप्रत्याशित राजनैतिक बढ़त मिलने के आसार बढ़ रहे हैं। जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लिए बचा-खुचा विपक्ष संसद में हलकान हो रहा है। वे अल्पसंख्यक वोट भी आइन्दा -मोदी को ,संघ परिवार को या भाजपा को ही मिलने लग जाएँ तो कोई अचरज की बात नहीं।अधिकांस वहुसंख्य्क वर्ग को लग रहा है कि भारतीय विपक्ष नकारात्मकता और हिंदुत्व विरोध की जुड़वाँ राजनीति का शिकार हो रहा है.वेशक विपक्ष का और खास तौर से भारतीय वामपंथ का उद्देश्य तो यही है कि देश के शोषित-पीड़ित मजदूर -किसान एकजुट होकर इस पूँजीवादी व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करें। इसके लिए यह जरुरी है कि यह मेहनतक़शवर्ग धर्मान्धता और साम्प्रदायिक खंतियों में न बट जाए। किन्तु केवल अल्पसंख्य्क वर्ग के लिए आवाज उठाने से बहुसंख्यक हिन्दू मेहनतकश में नकारात्मक संदेश जा रहा है। जिन मजदूरों ने अतीत में एकजुट संघर्षों से अपने सामूहिक हितों की रक्षा की वे अब 'हिन्दू' या 'मुसलमान ' के रूप में विभाजित किये जा रहे हैं। सभी अपने साम्प्रदायिक दड़वों की ओर खिच रहे हैं। संघ परिवार के जो काम शेष थे , जो भाजपा या मोदी जी नहीं कर पाए वो अब भारतीय विपक्ष खुद पूरे कर रहा है। समस्त विपक्षी दल -अपनी-अपनी विचारधाराओं का ,सामाजिक -आर्थिक प्रतिबद्धताओं का कितना भी दर्शन बघारते रहें किन्तु यह अटल सत्य है कि भारत का वर्तमान राजनैतिक विपक्ष जिस रास्ते पर चल पड़ा है उसका अवसान सुनिश्चित है। मेरी इस सैद्धांतिक स्थापना को असत्य सिद्ध करने के लिए विपक्ष को आइन्दा वहाँ -वहाँ जीतकर बताना होगा जहाँ -जहाँ साम्प्रदायिक उन्माद जगाया गया। मेरा दावा है कि जीतना तो दूर की बात है , एकजुट होकर केवल जमानत भी बचा कर दिखाए तो जाने ! मैं अपनी इस धारणा को निरस्त करने को उत्सुक हूँ कि काश मैं गलत साबित ही जाऊं। दुंर्भाग्य से मैं असल तस्वीर देखने की तक्नीक जनता हूँ। मैं देख रहा हूँ कि भारतीय सम्पूर्ण विपक्ष हारकिरी की ओर अग्रसर है !
दरसल नरेंद्र मोदी जी और संघ परिवार को तो भारत के वर्तमान राजनैतिक विपक्ष का आभारी होना चाइये। क्योंकि निरंजना ज्योति, साक्षी महाराज ,नवमान ,कटियार ,तोगड़िया बाबा ,रामदेव ,आचार्य धर्मेन्द्र तथा अशोक सिंघल जैसे 'जड़मति मित्रों' के सापेक्ष -सीताराम येचुरी , आनंद शर्मा , मायावती ,शरद यादव , रामगोपाल यादव ,गुलाम नबी आजाद ,दिग्विजयसिंह ,आनद शर्मा ,सोनिया गांधी,राहुल गांधी ,डी राजा तथा मुलायम सिंह जैसे सनातन प्रतिद्व्न्दियों [शत्रुओं नहीं ] की वाग्मिता से नरेंद्र मोदी लगातार और ज्यादा मजबूत होते जा रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष तो जरुरी है ही साथ ही भाजपा जैसी साम्प्रदायिक पार्टी को सत्ता से बाहर करना भी जरुरी है किन्तु सिर्फ विपक्ष की या कुछ नेताओं की राजनैतिक इच्छाओं से कुछ नहीं होता जनता की इच्छा ही सर्वोपरि है। वेशक अभी तो जनता को मोदी जी का व्यक्तित्व , संघ परिवार का घर वापिसी , भाजप नेताओं का बड़बोलापन और बाबाओं का पाखंड ही पसंद आ रहा है। यकीन ने हो तो जनता से पूंछ लो !
श्रीराम तिवारी
कहीं ऐंसा तो नहीं कि हिंदुत्ववादियों की चौतरफा हुड़दंग से पीड़ित होकर भारतीय विपक्ष लकवाग्रस्त होने जा रहा हो ? अभी तक तो यही सुना गया है कि 'पैसा -पैसे को खींचता है ' याने अमीर स्वतः ही और ज्यादा अमीर होता चला जाता है । गरीब और ज्यादा गरीब होता चला जाता है। जो सत्ता में आता है उसका पराभव या पतन भी ततकाल शुरू हो जाता है। किन्तु मोदी सरकार की तथाकथित अल्पकालिक 'ज्योति' के 'अटल ज्योति' में रूपांतरित होने से लगता है कि ये सारे सिद्धांत अब कालातीत होने जा रहे हैं। आइन्दा एक नया प्रमेय या सिद्धांत बनाया जा सकता है कि 'महाभृष्ट पूँजीवादी भीड़तंत्र की लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि शक्तिशाली सत्ता पक्ष का नेता नरेंद्र मोदी जैसा आत्मविश्वाशी और चतुर हो तो वह 'वानर राज सुग़ीव'की तरह अपने प्रतिदव्न्दी की ही नहीं बल्कि समस्त विपक्ष की भी शक्ति शोख कर और ज्यादा बलवान हो सकता है। वशर्ते उनके सामने सुग़ीव की तरह भीरु और परावलम्बी -इस दौर के जैसा -निहायत ही कमजोर और लक्ष्यहीन विपक्ष हो !धर्म निरपेक्ष राष्ट्र राज्य में वैचारिक और मानसिक रूप से सदैव बहुसंख्यक वर्ग या हिन्दू समाज के सापेक्ष अल्पसंख्यक वर्ग के ही हितों के लिए आवाज उठाना अब एक रस्म हो गई है। दमित-शोषित और कमजोर के पक्ष में खड़ा होना न्याय संगत है किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि पहाड़ से टकराकर अपने आप को खत्म कर दो ! बल्कि 'अति सर्वत्र वर्जयेत' . लगातार हिंदुत्व विरोध की इस रौ में बहते जाने से आइन्दा न केवल अल्पसंख्यक ,न केवल कमजोरों बल्कि शोषितों के पक्ष में आवाज उठाने के काबिल रह जाना भी संभव नहीं है। माना की भारतीय लोकतंत्र में धर्मनिरपेक्षता ब्रह्माश्त्र है। समाजवाद 'इन्द्रबज्र ' जैसा अश्त्र है । किन्तु क्या इन अश्त्रों को आगरा ,अलीगढ या अन्य जगहों पर हो रहे तथाकथित 'घर वापिसी हवन कुण्ड ' में ही स्वाहा कर दोगे ?आगामी महांसंगाम में किस शस्त्र से लड़ोगे ? क्या लड़ने के काबिल भी रहोगे ? वेशक किसी को जबरन हिन्दू बनाना गलत है। किन्तु तब ये भी तो मानना पड़ेगा कि जबरन मुसलमान बनाना भी गलत है। तब किसी को जबरन ईसाई बनाना भी गलत कहना होगा । आरक्षण का प्रलोभन , सामाजिक उत्थान के प्रलोभन तथा दलित उद्धार के प्रलोभन देकर जो लाखों की संख्या में आदिवासी या दलित बौद्ध बनाये गए हैं उसे क्या कहा जाएगा ? चूँकि संघ और उसके अनुषंगी हिंदुत्वादियों ने इन सवालों को भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़कर चुनावों के मौके पर उठाया है। चूँकि जब पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और संकीर्णता प्रेरित अलगाववाद ने भारत के एकता को चुनौती पेश की है। ऐसे नाजुक दौर में विपक्ष अभी भी सिद्धांतों की मरी हुई बंदरिया चिपकाये हुए नाहक ज्ञान बघार रहा है। चूँकि सत्ता में रहकर कांग्रेस ने देश को खोखला कर दिया था। चूँकि देश में जिम्मेदार विपक्ष का अभाव है इसलिए न केवल ' संघनिष्ठ 'हिन्दू बल्कि धर्मनिरपेक्ष हिन्दू भी मोदी के हाथों में भारत को सुरक्षित देख रहा है । तीसरे विकल्प या वाम मोर्चे के पराभव के लिए मोदी या भाजपा जिम्मेदार नहीं है। बल्कि कांग्रेस , जयललिता,ममता,मुलायम, नीतीश, नवीन लालू ,मायावती जैसे क्षेत्रीय नेता सर्वाधिक जिम्मेदार हैं।
विपक्ष को स्मरण रखना चाहिए कि जिन मुठ्ठी भर दिग्भर्मित धर्मांतरण करने वालों को वह कसूरवार और धर्मपरिवर्तन करने वालों को वेगुनाह मान रहा है, तो वह उन पीड़ितों के बीच जाकर असलियत का पता लगाये न ! केवल 'पल में तोला पल में माशा ' हो जाने वाले 'लम्पट सर्वहारा' की किसी ततकालिक अभिव्यक्ति पर या मीडिया के एक खास हिस्से की अनुचित बात का कोई भरोसा नहीं करना चाहिए। केवल अखवार की खबर से संसद का कीमती समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। जब - हिन्दू जागरण वालों ने उनसे कहा कि 'आप तो हमारे वाले हो जी ! वापिस आ जाओ ! हम सब प्रकार से आपकी मदद करेंगे ' तो ये सौ-पचास' आफत के मारे उनके साथ हो लिए। फोटो भी खिचवा लिए। जब इस्लामिक उलेमाओं ने कहा कि ये तो 'कुफ्र' है। खुदा को -अल्लाहः को क्या जबाब दोगे ? तो उनके साथ हो लिए। मुसीबत के मारे- बेहद डरे हुए ये निर्धन 'विधर्मी' इस धर्मान्धता के खेल का मोहरा बना दिए गए हैं। इस खेल में जीत किसी की भी हो किन्तु हारना' इन्ही को है। जो 'धर्म परिवर्तन' की बिशात के मोहरे हैं। वर्तमान भारतीय विपक्ष को इस साम्प्रदायिक ता के खेल में केवल हास्यापद हार से ही गुजरना पड़ेगा.
यह सर्वज्ञात है कि बंगाल में ३५ साल तक वाम मोर्चे ने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए , मजदूरों- किसानों की रक्षा के लिए न केवल देशी- विदेशी मुनाफाखोरों बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शैतानों से दुश्मनी भी दुश्मनी मोल ली। नतीजा क्या मिला ? सम्पूर्ण अल्पसंख्यक वर्ग ने उस ममता बनर्जी को अपना वोट थोक में भरपल्ले से दिया जो किसी की भी हितेषी नहीं है। ममता बनर्जी तो देश के प्रति भी वफादार नहीं है वो अल्पसंख्यकों की क्या खाक हितेषी होगी ? लेकिन ममता झूंठ-मूंठ का नाटक कर संघ परिवार का विरोध करने का स्वांग रच रही है। यह बात क्या बंगाल के अल्पसंख्यकों को नहीं दिख रही ? अब हम कितना ही जोर से और जोश से कहते रहें कि जनता के सवालों को लेकर संघर्ष करो ! किन्तु साम्प्रदायिक उन्माद और पड़ोस की घटनाओं ने भारत की जनता को मजबूर कर दिया है कि नरेंद्र मोदी को सुर्खरू होने दिया जाए। हम कहते हैं कि अल्पसंख्यकों की रक्षा करो ! हम कहते हैं कि वर्तमान पूँजीवादी नीतियों को पलट दो ! हम कहते हैं कि महँगाई बढ़ रही है !,हम कहते हैं कि भृष्टाचार बढ़ रहा है ! हम कहते हैं कि कालेधन पर चर्चा करो ! लेकिन जनता इन सवालों को अनसुना कर वो सुनना चाहती है जो मोदीजी कह रहे हैं ! ऊपर से तुर्रा ये कि बचा खुचा विपक्ष केवल नकारात्मक राजनीति की भेंट चढ़ता जा रहा है।
विपक्ष की कूपमंडूकता के कारण उत्तर प्रदेश ,बिहार और बंगाल में भी आइन्दा भाजपा को ही अप्रत्याशित राजनैतिक बढ़त मिलने के आसार बढ़ रहे हैं। जिस अल्पसंख्यक वर्ग के लिए बचा-खुचा विपक्ष संसद में हलकान हो रहा है। वे अल्पसंख्यक वोट भी आइन्दा -मोदी को ,संघ परिवार को या भाजपा को ही मिलने लग जाएँ तो कोई अचरज की बात नहीं।अधिकांस वहुसंख्य्क वर्ग को लग रहा है कि भारतीय विपक्ष नकारात्मकता और हिंदुत्व विरोध की जुड़वाँ राजनीति का शिकार हो रहा है.वेशक विपक्ष का और खास तौर से भारतीय वामपंथ का उद्देश्य तो यही है कि देश के शोषित-पीड़ित मजदूर -किसान एकजुट होकर इस पूँजीवादी व्यवस्था में आमूल चूल परिवर्तन करें। इसके लिए यह जरुरी है कि यह मेहनतक़शवर्ग धर्मान्धता और साम्प्रदायिक खंतियों में न बट जाए। किन्तु केवल अल्पसंख्य्क वर्ग के लिए आवाज उठाने से बहुसंख्यक हिन्दू मेहनतकश में नकारात्मक संदेश जा रहा है। जिन मजदूरों ने अतीत में एकजुट संघर्षों से अपने सामूहिक हितों की रक्षा की वे अब 'हिन्दू' या 'मुसलमान ' के रूप में विभाजित किये जा रहे हैं। सभी अपने साम्प्रदायिक दड़वों की ओर खिच रहे हैं। संघ परिवार के जो काम शेष थे , जो भाजपा या मोदी जी नहीं कर पाए वो अब भारतीय विपक्ष खुद पूरे कर रहा है। समस्त विपक्षी दल -अपनी-अपनी विचारधाराओं का ,सामाजिक -आर्थिक प्रतिबद्धताओं का कितना भी दर्शन बघारते रहें किन्तु यह अटल सत्य है कि भारत का वर्तमान राजनैतिक विपक्ष जिस रास्ते पर चल पड़ा है उसका अवसान सुनिश्चित है। मेरी इस सैद्धांतिक स्थापना को असत्य सिद्ध करने के लिए विपक्ष को आइन्दा वहाँ -वहाँ जीतकर बताना होगा जहाँ -जहाँ साम्प्रदायिक उन्माद जगाया गया। मेरा दावा है कि जीतना तो दूर की बात है , एकजुट होकर केवल जमानत भी बचा कर दिखाए तो जाने ! मैं अपनी इस धारणा को निरस्त करने को उत्सुक हूँ कि काश मैं गलत साबित ही जाऊं। दुंर्भाग्य से मैं असल तस्वीर देखने की तक्नीक जनता हूँ। मैं देख रहा हूँ कि भारतीय सम्पूर्ण विपक्ष हारकिरी की ओर अग्रसर है !
दरसल नरेंद्र मोदी जी और संघ परिवार को तो भारत के वर्तमान राजनैतिक विपक्ष का आभारी होना चाइये। क्योंकि निरंजना ज्योति, साक्षी महाराज ,नवमान ,कटियार ,तोगड़िया बाबा ,रामदेव ,आचार्य धर्मेन्द्र तथा अशोक सिंघल जैसे 'जड़मति मित्रों' के सापेक्ष -सीताराम येचुरी , आनंद शर्मा , मायावती ,शरद यादव , रामगोपाल यादव ,गुलाम नबी आजाद ,दिग्विजयसिंह ,आनद शर्मा ,सोनिया गांधी,राहुल गांधी ,डी राजा तथा मुलायम सिंह जैसे सनातन प्रतिद्व्न्दियों [शत्रुओं नहीं ] की वाग्मिता से नरेंद्र मोदी लगातार और ज्यादा मजबूत होते जा रहे हैं। भारतीय लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष तो जरुरी है ही साथ ही भाजपा जैसी साम्प्रदायिक पार्टी को सत्ता से बाहर करना भी जरुरी है किन्तु सिर्फ विपक्ष की या कुछ नेताओं की राजनैतिक इच्छाओं से कुछ नहीं होता जनता की इच्छा ही सर्वोपरि है। वेशक अभी तो जनता को मोदी जी का व्यक्तित्व , संघ परिवार का घर वापिसी , भाजप नेताओं का बड़बोलापन और बाबाओं का पाखंड ही पसंद आ रहा है। यकीन ने हो तो जनता से पूंछ लो !
श्रीराम तिवारी
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