मौसम विभाग के अनुसार आज इंदौर सहित मध्यप्रदेश के अधिकांस क्षेत्रों में पारा अपने पूर्वर्ती रिकार्ड से नीचे जा चुका है। घने नैसर्गिक कोहरे और मानव निर्मित भयानक प्रदूषण की धुंध ने देश-काल -परिस्थितियों की हालत ये कर दी है कि सुबह के नौ बजे तक भी सूर्यदेव के दर्शन दुर्लभ हो रहे हैं। अखवार में एक उम्दा कार्टून भी देखने को मिला है -जिसमें सूर्य देव खुद भी रजाई में से झाँक रहे हैं। कार्टूनिस्ट ने तो सूरज को 'टोपा ' भी पहना दिया है। इस अवसर पर महाकवि सेनापति के 'ऋतुवर्णन' की चार पंक्तियाँ समीचीन हैं या नहीं यह पाठकों के निजी अनुभवों पर छोड़ता हूँ :-
शिशिर में शशि को सरूप पावे सविताहु ,
घामहु में चाँदनी की दुति दमकत है।
चंद के भरम होत मोद है कमोदिनी कहूँ ,
शशि शंक पंकजनि फूल न सकत है।।
.......... ……………… ...................
……चकवा की छाती धर धीर धस्कत है।
नोट :- जो इन पंक्तियों का अर्थ या भावार्थ नहीं जानते या जो महाकवि सेनापति को नहीं जानते , वे हिंदी साहित्य के छंदबद्ध काव्यप्रवाह और भारतीय ऋतू संबंधी शानदार काव्यात्मक अभिव्यंजना से वंचित हैं।
श्रीराम तिवारी
शिशिर में शशि को सरूप पावे सविताहु ,
घामहु में चाँदनी की दुति दमकत है।
चंद के भरम होत मोद है कमोदिनी कहूँ ,
शशि शंक पंकजनि फूल न सकत है।।
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……चकवा की छाती धर धीर धस्कत है।
नोट :- जो इन पंक्तियों का अर्थ या भावार्थ नहीं जानते या जो महाकवि सेनापति को नहीं जानते , वे हिंदी साहित्य के छंदबद्ध काव्यप्रवाह और भारतीय ऋतू संबंधी शानदार काव्यात्मक अभिव्यंजना से वंचित हैं।
श्रीराम तिवारी
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