जिसने कहा था 'हम लड़ेंगे हिंदुस्तान से-
एक हजार साल तक'
जो -भारत पाकिस्तान को लड़ाकर ,
पाकिस्तान के दो टुकड़े करवाकर ,
लाखों बंगला देशियों को मरवाकर ,
लाखों पाकिस्तानियों को सरेंडर करवाकर ,
भारत -पाकिस्तान में दुनिया के हथियार खपवाकर ,
हो गया जो जन्नत नशीन ,
वो जुल्फिकार अली भुट्टो भी उतना जाहिल नहीं था।
जितने ये वहशी दरिंदे हमलावर ,
धर्मान्धता की चुटकी भर अफीम खाकर ,
कारगिल -कश्मीर में छिपकर ,
अपने आकाओं के पेशाब से -
जला रहे हैं चिराग 'जेहाद' के।
ये आदमखोर जाहिल - जिन्न हैं ,
इन्हें हर बक्त काम चाहिए ,
उनकी घटिया शर्त है कि उस काम में लहू होना चाहिए।
कभी मुंबई ,कभी बेंगलुरु ,कभी कोलकाता ,
कभी कराची ,लाहौर बाघा सीमा पर ,
कभी स्वात घाटी -पाकिस्तान में ,
मलाला का सर चाहिए।
उन्हें -कभी क्रिकेटरों के ,कभी पत्रकारों के ,
कभी मानव अधिकार कार्यकर्तोंओं के ,
कभी सीमाओं पर भारतीय जवानों के शीश चाहिए।
अमन के इन नापाक विध्वंशकों को ,
इंसानियत के दुश्मनों को ,
केवल भारत की बर्बादी से संतोष नहीं ,
उन्हें तो पाकिस्तान के नौनिहालों का भी लहू चाहिए।
श्रीराम तिवारी
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