'क' को अपने पडोसी से बहुत प्रॉब्लम थी। पडोसी और पड़ोसन बहुत झूंठे ,मक्कार ,हिंसक और गाली गुफ्ता वाली धातुओं से बने हुए थे । 'क' ने शिवजी की घोर तपस्या की। शंकर जी ने कहा ' माँगो वरदान '। 'क' ने शर्त रखी में जो भी मांगू उसका डबल मेरे उस बदजात पडोसी को देना होगा। शंकर जी ने कहा -ओ. के ! तथास्तु ! 'क' ने अपनी एक आँख फोड़ने का वरदान माँग लिया। पड़ोसी की दोनों आँखें फूट गईं ।
एक सास को अपनी 'कर्कशा'बहु से बहुत प्रॉब्लम थी। क्रोध की आग में अंधे होकर सासुजी ने किसी देवता को प्रशन्न किया। वरदान माँगा की 'मेरी बहू का सर्व नाश हो जाए' ! 'देवताओं के विधान में शायद इसका तात्पर्य यह रहा होगा कि किसी सधवा का सर्वनाश याने विधवा हो जाए। सास को प्रतिहिंसा की ज्वाला में यह ज्ञान ही नहीं रहा कि वह बहु का सर्वनाश नहीं बल्कि प्रकारांतर से खुद का 'सत्यानाश' करने की भयंकर भूल कर बैठी है। वह अनजाने में अपने ही पुत्र के विनाश की कामना कर बैठी ।
ऐंसी ढेरों कहानियाँ संसार की हर भाषा में और हर कौम में हर दौर में पढ़ने-सुनने की मिल जायेंगी । आम तौर पर दुनिया का हर ,असफल,दुर्बुद्धि और ईर्षालु व्यक्ति ,समाज और राष्ट्र इस आत्मघाती फोबिया से पीड़ित है। वह खुद तो कुछ बेहतर कर नहीं पाता उलटे दूसरों का विकाश और उन्नति देख-देख ,दुखी होकर आत्मघाती हरकतें किया करता है। विसंगतियों , बिडम्बनाओं से आक्रान्त परिस्थतियों में वही सही निर्णय ले पाते हैं जो वैज्ञानिक सोच वाले हैं । सामान्यतः विवेकी इंसान और खास तौर पर प्रगतिशील चिंतक -लेखक या क्रन्तिकारी सोच वालों से दुनिया को उम्मीद रहती है कि वे देश और समाज का हर तरह से मार्ग दर्शन करे। हर भारतीय इस मान्यता में यकीन रखता है कि 'बुजुर्गों का सम्मान करो ' । क्या हिन्दू ,क्या सिख , क्या बौद्ध ,क्या जैन, क्या ईसाई ,क्या मुसलमान ,क्या पारसी ,क्या नास्तिक ,क्या आस्तिक -सभी को अपने पूर्वजों और बुजुर्गों से प्यार है। न केवल सम्मान बल्कि उनके प्रति कृतज्ञता का भी भाव हुआ करता है। सभी को मालूम है कि सभी सभ्य समाजों में बेहतरीन उसूलों और नैतिक मूल्यों का आग्रह अपेक्षित है। सभी सभ्यताओं और धर्म-मजहबों में यह नैसर्गिक विश्वाश जुड़ा हुआ है कि अपने बुजुर्गों का सम्मान करें। अपने वरिष्ठों को इज्जत दो। यदि अटलजी और मदन मोहन मालवीय को सम्मान मिल रहा है तो किसी के पेट में मरोड़ क्यों ? वेशक ये दोनों किसी खास विचारधारा के हिमायती होंगे किन्तु भारी बहुमत से चुनी गई सरकार यदि कोई काम -धाम नहीं कर पा रही है और यदि मोदी जी पर यह आरोप है कि वे बुजुर्गों का सम्मान नहीं करते तो कम -से कम मोदी जी को अपनी गलती सुधारने का अवसर तो दिया ही जाना चाहिए !
पंडित मदनमोहन मालवीय को जो लोग जानते हैं वे उनके अवदान को कदापि नजर अंदाज नहीं कर सकते। वे न केवल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक , न केवल कांग्रेस के निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए थे बल्कि महानतम शिक्षाविद,समाजसेवी और साहित्यकार भी थे। यदि वे हिन्दू महा सभा के संस्थापकों में से थे तो क्या वे 'गोधरा काण्ड दोषी हो गए ? अटलजी तो तीन -तीन बार प्रधानमंत्री बन चुके हैं। पहली बार तरह दिन के लिए. दूसरी बार तीन महीने के लिए और तीसरी बार ५ साल के लिए। इसके अलावा जो शख्स ४० साल तक संसद में विपक्ष की भूमिका में रहा हो । जिसने आपातकाल में जेल यातना सही हो , उसे यदि भाजपा वाले 'भारत रत्न' दे रहे हैं तो कोई बड़ा एहसान नहीं कर रहे हैं। यह तो कांग्रेस को भी करना चाहिए था। अब किसी के पेट में दर्द क्यों उठने लगा। मुझे बहुत उचित लगा जब संसद में वामपंथी सांसदों ने और अन्य अधिकांस विपक्षी दलों ने भी अटलजी और पंडित मदनमोहन मालवीय को भारत रत्न दिए जाने का तहे दिल से समर्थन किया। कांग्रेस ने तो ५० साल में ऐसे -ऐसे नमूनों को भारत रत्न दिया है जो देश के किसी भी काम नहीं आये। अटलजी और पंडित मदनमोहन मालवीय को सम्मानित करना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं है। सोशल मीडिया पर या प्रिंट -दृश्य मीडिया पर कुछ नासमझ लोगों ने इस सम्मान पर अंगुली उठाई है वह उनकी न केवल अज्ञानता बल्कि निंदनीय हरकत है।
वेशक अटलजी और पंडित मदन मोहन मालवीय से भी श्रेष्ठ बलिदानी ,देशभक्त इस देश में हुए हैं। कांग्रेस ने अपनी 'वलन ' के महापुरुषों को सम्मानित किया ,भाजपा ने अपनी वलन के लोगों को सम्मनित किया ,समाजवादी आएंगे\ तो लोहिया ,मामा वालेश्वर दयाल को नवाजेंगे। सपा वाले तो मुलायम को ही भारत रत्न दे डालेंगे. जब कम्युनिस्ट सत्ता में आएंगे तो हो सकता है कि सबसे पहले शहीद भगतसिंह , बीटी रणदिवे,श्रीपाद अमृत डांगे ,ज्योति वसु ,नम्बूदिरीपाद ,हरकिसनसिंह सुरजीत ,विजय लक्ष्मी सहगल ,एम के पंधे या किसी अन्य मजदूर नेता को भारत रत्न दे सकते हैं ।शिवसेना वाले यदि कभी आएंगे तो बाल ठाकरे साहिब को भारत रत्न न मिले यह कैसे हो सकता है !
मायावती जी यदि केंद्र की सत्ता में आईं तो मान्यवर कासीराम जी को और खुद को भी भारत रत्न दे सकतीं हैं। जब वे अपनी मूर्तियां वनवा सकतीं हैं तो 'भारत रत्न ' क्यों नहीं लेंगी ?
दरसल महत्वपूर्ण चीज भारत रत्न नहीं है। यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि किसे दिया जा रहा है ? खास बात ये है कि देश की जनता को असली मुद्दों से भटकाया जा रहा है। शासक वर्ग की बात तो समझ में आती है कि वे इन आलतू-फ़ालतू चीजों पर लम्बी बहस चलाकर जनता को उल्लू बना रहे हैं। राम लला मंदिर निर्माण , धारा -३७० , विदेशी बैंकों से कालेधन की वापसी , पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण व्यवहार पर अंकुश ,दाऊद जैसें आतंकियों को पकड़कर भारतीय क़ानून के हवाले करना , रुपया अवमूल्य्न रोकना तथा वेरोजगारी जैसे मुद्दों पर किये गए चुनावी वादों पर मोदी सरकार रत्ती भर का काम नहीं कर पाई है। जनता सवाल खड़े न कर सके इसलिए हाथ में झाड़ू उठाकर फोटो खिचवाना ,धर्मांतरण विमर्श का हौआ खड़ा करना , प्रधानमंत्री के देशी- विदेशी सैर सपाटों का मीडिया पर प्रदर्शन कराना , इत्यादि फंडों के मार्फ़त मोदी सरकार अपनी असफलताओं के कारण जनता से नजरें चुरा रही है।
फेस बुक गूगल जैसे सोसल साईट पर देश की प्रबुद्ध जनता का ५% भी हाजिर नहीं है। यदि ये चंद तथाकथित पढ़े-लिखे लोग ही शासक वर्ग की इन चालाकियों को नहीं समझेंगे तो फिर देश में वही होगा जो 'मंजूरी शैतान होगा। सरकार की असफलताओं को उजागर करने के बजाय ,पूँजीवादी विनाशकारी नीतियों का विरोध करने के बजाय ,कुछ लोग मोदी जी का व्यक्तिगत विरोध कर रहे हैं। मानो प्रकारांतर से वे भी संघियों की तरह मोदी जी को चमत्कारी पुरुष ही मान रहे हैं। जो 'खुल जा सिम-सिम ' से देश का उद्धार कर देंगे। मोदी जी के व्यक्तिगत अंधे विरोध में ये भी भूल गए कि वे जिस वििमर्श में उलझ रहे हैं वह तो शासक वर्ग की कुचाल मात्र है। वामपंथी सोच के लोगों को चाहिए कि वर्तमान शासक वर्ग याने 'संघ परिवार' की इस चालकी को समझे। लव-जेहाद,धर्म -मजहब ,भारत रत्न या धर्मांतरण जैसे मुद्दों पर सोच समझकर ही न्याय संगत व् तार्किक प्रतिक्रिया दें या पक्ष प्रस्तुत करें । जैसे की अभी वामपंथी सांसदों ने संसद में 'भारत रत्न ' के सवाल पर सही स्टेण्ड लेकर खुद को भी गौरवान्वित किया है ।
श्रीराम तिवारी
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