अतीत में कुछ लेखक इतिहासकार सिर्फ अंग्रेजों की गुलामी को ही भारतीय गुलामी का इतिहास बताने की भयंकर भूल करते रहे हैं! खास तौरपर इस्लामिक और अंग्रेज इतिहासकारों के प्रभाव में हमारे इतिहासकारों ने हलाकू,चंगेज खान,तैमूर लंग, मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनबी, मुहम्मद गौरी,बाबर,दुर्रानी,अब्दाली,मलिक काफूर,इत्यादि लुटेरे-हत्यारे महा जंगखोरों को विदेशी नहीं मानना
कुछ लोगों ने प्रगतिशीलता के नाम पर इतना अंधेर मचा दिया कि वे 'शाश्वत सत्य' को भी कंजरवेटिव,पोंगापंथ मानने लगे।जिन्हें बर्बर कबीलों का आक्रमण देशभक्तिपूर्ण जचता हो, वास्तव में यह वीभत्स इतिहास उन्हें सपने में डराता है। कट्टर हिंदुत्ववादी भी गलत धारणा लिए हुए हैं कि उनके मार्ग के गतिअवरोधक -इस्लाम,ईसाई और अन्य धर्म पंथ मजहब हैं!
किन्तु वे अपनी आत्मालोचना के लिए जरा भी तैयार नहीं हैं। वे यह नहीं जानना चाहते कि संस्कृत वांग्मय में और अन्य भारतीय भाषाओँ के पौराणिक लेखन में आम जनता को केवल मूक 'दासत्व' बोध ही क्यों सिखाया जाता रहा है।और यदि'मुहम्मद बिन कासिम' मारकाट मचाता हुआ -लूटपाट करता हुआ सिंध -गुजरात को मसलकर सोमनाथ मंदिर ध्वस्त कर किस भारतीयता का परिचय दिया है। दूसरा यक्ष प्रश्न है कि तब भारत में 'अहिंसा परमोधर्म:' का उद्घोष कौन कर रहा था ?
दरसल भारत की गुलामी का एक मात्र कारण अहिंसा नीति ही नही है! माना कि अहिंसा तो देवत्व का,स्वर्ग प्राप्ति का साधन है,किंतु बर्बर यायावर, आक्रमणकारी हिंसक लुटेरे नही जानते थे कि अहिंसा,सत्य,अस्तेय,ब्रह्मचर्य,अपरिग्रह का पालन करने वाले ऋषियों मुनियों की धरती पर हमला करके उन्होंने भारत भूमि के देवत्व पर हमला किया है। दरसल वे सिर्फ नर संहार जानते थे। वे अल्लाह के बाद सिर्फ अपने खलीफा को सुप्रीम मानते थे!
जबकि महान भारतीय सनातन सभ्यता का पालन करने वाले नर नारी जीव मात्र को ब्रह्ममय देखते थे!वे अपने बचन का पालन करने के लिये प्राण भी न्यौछावर कर दिया करते थे! नारियां अपने सतीत्व की रक्षा के लिए यमराज से लड़ने की हिम्मत रखतीं थीं।
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